Taylor Bird,घोसलों का विज्ञान: टेलर बर्ड की सिलाई कला , पत्तों को चोंच से सीलकर बनाया घोंसला

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Taylor Bird

Taylor Bird,घोसलों का विज्ञान  : टेलर बर्ड की सिलाई कला , पत्तों को चोंच से सीलकर बनाया घोंस

घोसलों का विज्ञान किश्त -4

डॉ स्वाति तिवारी 

एक दिन अचानक मुझे अपने बगीचे में नल के पास पक्षियों का कुछ शोर सुनाई दिया , मैं समझ गयी थी कि जरुर कोई खतरा है ,आमतौर पर पक्षी किसी शत्रु के आसपास आने पर ही सामूहिक रूप से आवाजें करते हैं .जाकर देखना लाजमी था . देखा की एक महोख  पक्षी नल के पास रखे  कदली के गमले के आसपास शिकारी सा घूम रहा है ,ओह ! तो यहाँ कोई घोसला है और उसमें अंडे या बच्चे हैं .अब महोख को भागना जरुरी था ,मैंने जोर से रेलिंग के खम्भे पर ठोंका .महोख उड़ गया .लेकिन कब तक खड़ी रहूंगी वह फिर आयगा क्योंकि दो बार मैं उसके आने को देख चुकी थी .मैंने कदली के पत्तों को हलके से उठाया और टटोला ,ओह !तो इतने सुरक्षित तरीके से बनाए घोसलें को भी शिकारी ने देख लिया है .अब समस्या यह थी कि इस गमले का गार्ड कहाँ से लाऊं ?गमले में डरे भयभीत तीन चूजे दिखाई दिए .और फिर नल के पास पड़े कुछ नाजुक नवजात पंख भी .तो एक बार तो वह कामयाब हो ही गया है ,पर अब नहीं .पति ने मेरी चिंता देखी और टिपण्णी की कि प्रकृति का अपना इको सिस्टम है तुम कहाँ -कहाँ जाओगी ?

देखो ! अब जब मुझे खतरा और जीवन एक साथ दिख ही गए हैं तो मैं जीवन के साथ जाउंगी .मैंने एक व्यक्ति की मदद से गमले को बरामदे के पास वाले कमरे में खिड़की के निचे स्टूल पर इस तरह से रखा की चिड़ियाँ मम्मी को बच्चे कहाँ है यह दिख जाय खिड़की में ग्रिल थी जिसमें से यह नन्ही मम्मी तो आ सकती थी पर वह बड़ा महोका नहीं ..तो यह थी टेलर बर्ड और उसके बच्चों से मेरी अति निकटता की शुरुवार .फिर तो बगीचे में जाने कितनी दर्जन [टेलर ]माताओं को देखा .थोड़ी देर बाद जब हम सब उस कमरे से हट गए तो ची ची ची शुरू हुआ और उनकी माताराम खिड़की की ग्रील पर बैठी दिखी जैसे कह रही हो धन्यवाद बहन मेरे वंश की सुरक्षा के लिए  .मैंने भी कहा  चलो अभी तो ठीक है पर रात को खिड़की बंद करुँगी हाँ .मुझे कोई रिस्क नहीं चाहिए .अब अगर घोसलों की बात हो तो यह नन्ही कैसे याद नहीं आएगी जिसकी जज्ज्की के समय मेरा घर और गमला उसकी शरण स्थली था ?चलिए आज इसी पर बात करते हैं .

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कुजिनी चिड़ियों में सबसे ज्यादा चर्चित चिड़ियाँ है  दर्जी पक्षी,जिसके बारे में  अंग्रेजी कवि रुडयार्ड  किपलिंग ने अपनी पुस्तक जंगल बुक में लिखा है . जंगल बुक कथाएँ में एक दर्जिन चिड़िया जोड़ी भी शामिल है, दर्जी” और उनकी पत्नी, मुख्य पात्रों में से  हैं .कहा जाता है कि दर्जी की पत्नी ने चोट का नाटक किया था, लेकिन इस प्रजाति में यह व्यवहार अभी तक अज्ञात है.साहित्य में इस पक्षी का उल्लेख और भी मिलता है जैसे उपेंद्रकिशोर रे द्वारा बच्चों की लोक कथाओं की बांग्ला में एक उत्कृष्ट पुस्तक का शीर्षक “टुनटुनिर बोई” है, जो इस प्रजाति का  स्थानीय नाम टुंटुनी है . पक्षी वैज्ञानिक आज भी अचंभित होते है टेलर बर्ड की सिलाई कला को देख कर ? कैसे एक नन्ही सी चिड़ियाँ बिना सुई धागे के  पत्तों को बिलकुल उसी तरह सिल देती   है जैसे किसी कुशल टेलर ने कपड़ा सिल दिया हो ?कितने आश्चर्य की बात है सारे ओजार केवल एक चोंच ?आइये आज जानते है प्रकृति का अजूबा ?

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The bird that stitches its home | Natural History Museum
हम बात कर रहें है दर्जीन चिड़ियाँ के घोसले की , दर्जिन चिड़िया, ओर्थोटोमस वंश और सिल्वाइडी (Sylviidae) कुल से संबंधित छोटे आकार के पक्षी (फुदकी) हैं। इनकी कुल नौ प्रजातियां अस्तित्व में हैं। दर्जिन चिड़िया को उसका यह नाम उसकी घोंसला बुनने की खास कला के कारण मिला है।

Common Tailorbird – Shifting Radius

यह  पालतू किस्म की भरोसा करने वाली चिड़ियाँ होती है .शायद मनुष्य ने इसकी कला देख कर ही कपड़ों को और अन्य  वस्तुओं को सिलना सिखा .क्योंकि प्रकृति ने सिलने की कला एक नन्ही चिड़ियाँ के माध्यम से हम तक पंहुचाई .इसका घोसला वास्तुकला का अनुपम उदाहरण है .यह अपना घोसलें सिलने के लिए प्रसिद्ध है और इसी लिए टेलर बर्ड कहलाती है .सामान्य दर्जी एक चमकीले रंग का पक्षी है, जिसमें चमकीले हरे रंग के ऊपरी भाग और मलाईदार अंडरपार्ट्स होते हैं। इनका आकार 10 से 14 सेंटीमीटर (3.9 से 5.5 इंच) तक होता है और इनका वजन 6 से 10 ग्राम (0.21 से 0.35 औंस) होता है। उनके पास छोटे गोल पंख, एक लंबी पूंछ, मजबूत पैर और एक तेज चोंच होती है जिसमें ऊपरी मेम्बिबल तक घुमावदार टिप होतीहै .

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दरजी पक्षी सामान्यतः एक चुलबुली जैतूनी हरे रंग की चिड़िया होती है इसका निचला भाग मलाईदार सफ़ेद होता है .इसकी पूंछ हमेशा तनी हुई होती है .इसमें दो लम्बे पंख होते  हैं .यह अक्सर अकेली या जोड़े से झाड़ी या बागों में फुदकती गाती रहती है .सामान्य दर्जी कीटभक्षी होता है. लताओं .गमलों में कीड़े तलाशती देखी जा सकती है .इसकी पहचान इसकी खोपड़ी का रंगहै जो  जंग लगे लोहे जैसा होता है . लिंग समान हैं, सिवाय इसके कि प्रजनन के मौसम में नर के पास लंबे केंद्रीय पूंछ पंख होते हैं.दर्जी चिड़िया, ओर्थोटोमस वंश और सिल्वाइडी कुल से संबंधित छोटे आकार के पक्षी (फुदकी) हैं। इनकी अब तक केवल कुल नौ ही प्रजातियां अस्तित्व में हैं। टेलर बर्ड नाम यह नाम इन्हें घोंसला बनाने की खास कला के कारण मिला है।

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यह चिड़िया अपनी लंबी पतली चोंच से एक पत्ती या कई पत्तियों में छेदों की एक श्रृंखला बनाती है और फिर इन छेद के बीच से पौधों के रेशों, कीटों के रेशम और कभी कभी घरेलू इस्तेमाल के धागों को पिरो कर एक दर्जी की तरह पत्तियों की सिलाई कर इन्हें आपस में जोड़ देती है। इन सिली हुई पत्तियों के बीच बनी जगह में घास-पात या रूई बिछाकर एक सुविधाजनक घोंसला तैयार कर लेती है। यह मुख्य रूप से एशिया के उष्णकटिबंधीय भागों में पाई जाती हैं। आमतौर पर खुले जंगलों, मैदानों और उद्यानों में रहना पसंद करती हैं।इनका प्रजनन का मौसम मार्च से दिसंबर है, जो भारत में जून से अगस्त तक चरम पर होता है, जो गीले मौसम के साथ मेल खाता है। श्रीलंका में मुख्य प्रजनन अवधि मार्च से मई और अगस्त से सितंबर है, हालांकि वे पूरे वर्ष प्रजनन कर सकते हैं.

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घोसला एक दम अनूठा  होते हुए भी  घोंसला अद्वितीय नहीं है क्योंकि इस तरह के घोसले और कई प्रिनिया प्रजाति   में भी पाया जाता है । देखने पर पता चलता ही कि घोंसला एक गहरा कप होता है, जो नरम सामग्री से ढका होता है और मोटी पर्णसमूह में रखा जाता है और घोंसले को धारण करने वाली पत्तियों की ऊपरी सतह बाहर की ओर होती है जिससे इसे देखना मुश्किल हो जाता है। पत्तियों के किनारों पर बने छिद्र छोटे होते हैं और पत्तियों के भूरे होने का कारण नहीं बदिखाई नहीं देते  हैं, इन छेदों से ताना बाना सुई की तरह डाला और निकाला जात है .धागे को अंत में खिंच  कर पत्ते में कसाव आता है .जिससे छलावरण में मदद मिलती है। ।पत्तों को इस तरह जोड़ा होता है कि बाहर से पता ही नहीं चलता है कि यह घोंसला है। इस कारण यह चूजों के लिए बहुत ही सुरक्षित होता है। इसको इस तरह बनाया जाता  है कि धूप, बरसात और अन्य पक्षियों से पूरी तरह सुरक्षित रह सके। चोंच से बनाया यह घोंसला काफी मजबूत है। पक्षी वैज्ञानिक  जेर्डन ने लिखा है कि अध्ययन के दौरान मैंने देखाके   पक्षी ने पत्तों के ऊपर गांठें बना लीं, लेकिन किसी गांठ का उपयोग नहीं किया गया।इसके बाद वैज्ञानिकों ने  टेलरबर्ड द्वारा घोंसले में उपयोग की जाने वाली प्रक्रियाओं को सिलाई, रिवेटिंग, लेसिंग और मैटिंग के रूप में वर्गीकृत किया।Stitching nest with threads

कुछ मामलों में घोंसला एक ही बड़े पत्ते से बनाया जाता है, जिसके किनारों को आपस में जोड़ा जाता है। कभी-कभी एक कीलक के रेशों को एक निकटवर्ती पंचर में विस्तारित किया जाता है जो  सिलाई की तरह दिखता है । सिलाई दो पत्तियों को छेदकर और उनके माध्यम से फाइबर खींचकर की जाती है। तंतु बाहर की ओर फूल जाते हैं और वास्तव में वे रिवेट्स की तरह अधिक होते हैं । .
अगर हम दर्जिन चिड़िया के जीवनकाल के बारे में बात करे तो इस पक्षी का जीवनकाल करीब तीन साल के आसपास होता हे। इस तीन साल में यह अपना जीवन चक्र पूर्ण करते हुए संतान उत्पन्न करने के लिए परिवार का निर्माण करती है जिसके लिए एक सुरक्षित आवास की जरुरत होती है जो अंडे रखने उन्हें ऊष्मायन करने के लिए आवश्यक होता है जो घोसला या नेस्ट कहा जाता है .इसी में से टेलरबर्ड का घोंसला बड़ा अनोखा होता है क्योंकि यह पत्तों मैं बनाया जाता है जो कि काफी मुश्किल भी है ।

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इसे टेलर बर्ड सिर्फ इसीलिए कहा जाता है क्योंकि यह एक ही बड़े से पत्ते को या दो तीन  पत्तों को जोड़ देती है एक हुनरमंद दरजी या मोची की तरह उन्हें मकड़ी के जालों तथा रुई से सी कर उसमें अंडे देती है ।छलावरण के रूप में यह एक पत्ते को द्वार के सामने परदे सा लटका लेती है जो इसे शिकारियों को हमला करने से बचाने में मदद करता है.घोसला छोटा होता है किन्तु वह एक लम्बी नली या ट्यूब  में कप  जैसा भी हो सकता है .कई बार यह एक ही पत्ते को मोड़ कर बना लेती है और कई बार पत्ता बड़ा या मजबूत  ना होने पर दो या तीन पत्ते मिला कर सिल लेती है .सिलाई इतनी सफाई के साथ करती है की एक जैसी सिलाई दिखती है .टांको के बीच की दूरी ,छेड़ के ऊपर धागों की गठान एक जैसी बनाती है .
इसके लिए यह पत्तियों में सबसे पहले बराबर दूरी पर एक जैसे छेद करती है फिर रुई या लतरों ,या रेशों से सिलाई करती है .यह लतरों को मोड़ कर मजबूत करती है उनके किनारों पर गांठे  बन  जाती है .इस कार्य के लिए यह केना ,कदली,क्रोटान ,जैसे पौधे पर र्घोसला बनाना पसंद करती है .घोसला इस सिले हुए पत्तों के अंदर कप में रखा नरम फाइबर के कप जैसा होता है इसमें रुई , पंख ,रेशे ,और तिनके होते है .जिसमें तीन से चार लाल भूरे अंडे देती है .इसका घोसला मुश्किल से जमीन से दो मीटर की ऊंचाई  पर होता है .उंचाई कम होने से इनके अंडे और बच्चे हमलो के  शिकार भी हो जाते है .घोसला एक तरह से पक्षियों में इन्क्युबेटर की तरह होता है .ऊष्मायन अवधि लगभग 12 दिन है। नर और मादा दोनों ही शावकों को भोजन कराते हैं। कृन्तकों, बिल्लियों, कौवा-तीतर, छिपकलियों और अन्य शिकारियों द्वारा शिकार के कारण अंडों और चूजों की मृत्यु दर अधिक है।

The tailorbird's nest-making has to be seen to be believed - Australian  Geographic

 मादा चिड़िया बच्चों के लिए खाना लेने जाती  है तो नर ( पिता ) हमेशा घोंसले के नजदीक पहरे पर रहता हैं । साथ ही कभी-कभी उल्टा भी हो जाता है इसलिए अपने बच्चों का ध्यान रखना इन्हें अच्छी तरह से आता है। बरसात के आसपास जब प्रकृति में कई छोटे कीड़े और जीव जंतु इल्लियाँ होती है तभी ये परिवार का विस्तार करती है .
इस तरह के घोसलें दरजी चिड़ियाँ के अलावा चिकुर कूजिन ,काली फुदकी ,भूरी कुजिनी  भी बनाती है .(फोटो इंटरनेट से साभार  )

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