राज-काज: भाजपा-कांग्रेस में ‘50 फीसदी कमीशन’ पर ‘रार’….

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राज-काज: भाजपा-कांग्रेस में ‘50 फीसदी कमीशन’ पर ‘रार’….

भाजपा-कांग्रेस में ‘50 फीसदी कमीशन’ पर ‘रार’….

विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा-कांग्रेस में नई ‘रार’ ‘50 फीसदी कमीशन’ को लेकर छिड़ गई है। कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव ने एक पत्र का हवाला देकर आरोप लगाया कि भाजपा की इस सरकार में 50 फीसदी कमीशन के बगैर कोई भुगतान नहीं हो रहा है। इसे कमलनाथ ने लपका और दिग्विजय सिंह ने भी। राहुल और प्रियंका गांधी तक के ट्वीट आ गए। प्रदेश सरकार को घेरने की कोशिश हुई। कांग्रेस कर्नाटक की तर्ज पर मप्र में भी भाजपा के खिलाफ कमीशनखोरी को मुद्दा बनाने में जुट गई। कर्नाटक में भाजपा की तत्कालीन सरकार के खिलाफ ‘40 फीसदी कमीशन’ का मुद्दा जमकर चला था। भाजपा को इसका अहसास था। वह सतर्क थी। अब भाजपा का आरोप है कि जो पत्र जारी कर प्रियंका गांधी तक ने 50 फीसदी कमीशन का आरोप लगाया है, वह फर्जी है। इसे लेकर प्रियंका सहित कांग्रेस नेताओं के खिलाफ पूरे मप्र में एफआईआर दर्ज कराने का निर्णय लिया गया है। भोपाल सहित कुछ जिलों में पुलिस में शिकायत कर दी गई है। दूसरी तरफ कांग्रेस पीछे हटने के लिए तैयार नहीं। पार्टी नेता कह रहे हैं कि वे इस मसले पर जेल जाने तक को तैयार हैं। अरुण यादव ने कहा है कि कुछ ठेकेदारों ने हाईकोर्ट में कहा है कि भुगतान के लिए 50 फीसदी कमीशन मांगा जा रहा है। मसला तूल पकड़ रहा है।

मीरा की ‘तान’ पर यदुवंशियों को साधेगी कांग्रेस….!

बांसुरी की एक ‘तान’ कृष्ण की थी, जिस पर मोहित होकर द्वापर में एक मीरा उनकी दीवानी हो गई थी। विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस दूसरी मीरा की ‘तान’ पर बुंदेलखंड के यदुवंशियों को दीवाना करने की कोशिश में है। हम बात कर रहे हैं उत्तरप्रदेश के दबंग समाजवादी नेता दीपनारायण यादव की पत्नी मीरा यादव की, जो एक बार टीकमगढ़ जिले की निवाड़ी विधानसभा सीट से विधायक रह चुकी हैं। टीकमगढ़ से अलग होकर निवाड़ी अब अलग जिला है। दोनों जिलों की सभी 5 सीटों पर भाजपा का कब्जा है। कांग्रेस के बृजेंद्र सिंह राठौर के निधन के बाद भाजपा ने 2021 के उप चुनाव में प्रथ्वीपुर सीट भी जीत ली थी। यहां उप्र के शिशुपाल यादव को भाजपा में लाकर पार्टी ने टिकट दिया था। उन्होंने बृजेंद्र सिंह के बेटे नितेंद्र सिंह राठौर को साढ़े 15 हजार से भी ज्यादा वोटों के अंतर से हरा दिया था। दोनों जिलों में यादव मतदाताओं की तादाद अच्छी खासी है। उप चुनाव में सहानुभूति पर यादव समाज भारी पड़ा था। निवाड़ी से सटे झांसी का होने के कारण दीप नारायण एवं उनकी पत्नी मीरा की इन दोनों जिलों के यादवों में अच्छी पकड़ है। कांग्रेस इसे भुनाने मीरा को कांग्रेस में लाकर चुनाव लड़ाने की तैयारी में है। मीरा कभी भी कांग्रेस ज्वाइन कर सकती हैं। कांग्रेस को इसका लाभ समूचे बुंदेलखंड में मिल सकता है।

खुद को साबित करना ‘ज्योति’ के लिए बड़ी चुनौती….

विधानसभा चुनावों में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए खुद को साबित करना सबसे बड़ी चुनौती है। उन्हें साबित करना होगा कि चंबल-ग्वालियर अंचल में उनका ही सिक्का चलता है। भाजपा में दबदबा बनाए रखने और मुख्यमंत्री पद पर दावेदारी के लिए जरूरी है कि चुनाव में भाजपा को 2018 में कांग्रेस को मिली सीटों से ज्यादा मिलें। कांग्रेस में रहकर पार्टी को उन्होंने अकेले एकतरफा जीत दिलाई थी, अब केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के अलावा पूरी भाजपा भी उनके साथ है। कांग्रेस की कोशिश है कि ‘ज्योति’ का यह मंसूबा पूरा न हो। इसके लिए दिग्विजय सिंह एवं उनके बेटे जयवर्धन सिंह, नेता प्रतिपक्ष डॉ गोविंद सिंह ने पूरी ताकत झोंक रखी है। सिंधिया के प्रभावशाली समर्थकों को तोड़ कर कांग्रेस में लाया जा रहा है। बैजनाथ यादव, यादवेंद्र सिंह यादव, राकेश गुप्ता और रघुराज सिंह धाकड़ सहित लगभग एक दर्जन नेता सिंधिया का साथ छोड़ कांग्रेस में वापस आ गए हैं। मालवा अंचल के उनके ताकतवर समर्थक समंदर पटेल ने भी कांग्रेस ज्वाइन करने की घोषणा कर दी है। कुछ और नेता कतार में बताए जा रहे हैं। सवाल है कि यदि इस चुनाव में सिंधिया अच्छा परफारमेंस न दिखा पाए तो भाजपा में उनकी हैसियत क्या होगी? वैसे भी भाजपा नेतृत्व ने इस चुनाव में उन्हें कोई बड़ी जवाबदारी नहीं दी है।

विंध्य के दिग्गज को कमजोर करने की साजिश….!

विधानसभा चुनावों की सरगर्मी के बीच विंध्य में अभय मिश्रा एवं उनकी पत्नी नीलम मिश्रा की कांग्रेस छोड़कर भाजपा में वापसी सुर्खियों में है। पिछले चुनाव से पहले ही ये दोनों भाजपा छोड़कर कांग्रेस में आए थे। अभय भाजपा के दिग्गज और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के खास राजेंद्र शुक्ला के खिलाफ रीवा से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े थे। इस चुनाव में उन्हें 17 हजार से भी ज्यादा वोटों से शिकस्त मिली थी। इस बार कांग्रेस में उनका टिकट खतरे में था। वे भाजपा में वापसी की फिराक में थे। इधर भाजपा में एक खेमा विंध्य के दिग्गज पूर्व मंत्री राजेंद्र शुक्ला को किनारे लगाने में लगा था। खबर है कि सेमरिया से टिकट के आश्वासन पर अभय मिश्रा एवं उनकी पत्नी नीलम भाजपा में वापस आ गए। सेमरिया में राजेंद्र शुक्ला के सबसे खास केपी त्रिपाठी भाजपा से विधायक हैं। भाजपा का विरोधी खेमा त्रिपाठी के स्थान पर अभय अथवा नीलम में से किसी एक को टिकट दिलाने की तैयारी में है। त्रिपाठी राजेंद्र शुक्ला के दाहिने हाथ जैसे हैं। लिहाजा, त्रिपाठी के जरिए शुक्ला को कमजोर करने की कोशिश हो रही है। अभय-नीलम दोनों सेमरिया से विधायक रह चुके हैं, इसलिए उनका दावा कमजोर भी नहीं है। शुक्ला दोनों की भाजपा में वापसी के विरोध में थे, लेकिन पार्टी में विरोधी खेमे के सामने उनकी नहीं चली।

‘उमंग’ की मांग से धर्म संकट में ‘कमलनाथ’….

कांग्रेस में लंबे समय तक आदिवासी चेहरा रहीं पार्टी की पूर्व उप मुख्यमंत्री स्वर्गीय जुमना देवी की तरह उनके भतीजे विधायक उमंग सिंगार भी अलग तरह की राजनीति कर अपनी पहचान बना रहे हैं। अपनी बुआ के पदचिन्हों पर चलते हुए पहले कांग्रेस सरकार में मंत्री रहते उन्होंने वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह पर बड़ा हमला किया था। अब उन्होंने कमलनाथ के मुख्यमंत्री के रूप में चेहरे पर अपरोक्ष सवाल उठा दिया। उन्होंने मांग कर डाली की प्रदेश का मुख्यमंत्री किसी आदिवासी को बनना चाहिए। इस मांग से कमलनाथ विचलित हैं और धर्मसंकट में भी। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि उमंग कैसी राजनीति करते हैं, सभी जानते हैं। भाजपा ने भी इस मुद्दे पर कांग्रेस को घेर लिया। गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने तो यहां तक कहा कि वे उमंग की बेबाकी के कायल हैं। बड़ा सवाल है कि उमंग द्वारा उठाई इस मांग से कितना फायदा होगा, कितना नुकसान। कांग्रेस को इससे फायदा भी हो सकता है। आदिवासी मतदाता कांग्रेस के आदिवासी नेताओं के इर्द-गिर्द लामबंद हो सकते हैं। इससे जयस का आदिवासी वोट बैंक प्रभावित हो सकता है और भाजपा का भी। कांग्रेस पहले ही आदिवासी नेता कांतिलाल भूरिया को पार्टी की चुनाव अभियान समिति का प्रमुख बना संदेश दे चुकी है। दांव उलटा भी पड़ सकता है। आदिवासी वर्ग के बीच यह मांग जोर पकड़ सकती है।