Flashback : CM उमा भारती का फरमान ‘बैठक से सीधे उज्जैन जाइए, मैं नहीं कहूं तब तक कोई वापस ना आए’

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Flashback: CM उमा भारती का फरमान ‘बैठक से सीधे उज्जैन जाइए, मैं नहीं कहूं तब तक कोई वापस ना आए’

सेना के लिए जैसे सीमा पर तैनाती और युद्ध से बड़ी कोई चुनौती नहीं होती, कुछ उसी तरह मध्यप्रदेश सरकार और प्रशासन के लिए सिंहस्थ (कुंभ मेला) होता है। भारी भीड़ का नियंत्रण, सजग कानून व्यवस्था, साधु-संतों से संपर्क, शाही स्नान की व्यवस्थाएं और साथ में वीआईपी के आगमन पर उनके इंतजाम। इसके अलावा भी महीनेभर तक रोजाना बहुत से ऐसे काम सामने आते हैं, जिनकी कोई गिनती नहीं की जा सकती। इसके अलावा इस बात का भी ध्यान रखना पड़ता है कि मीडिया सारे कामकाज का सही मूल्यांकन करे! क्योंकि, अंततः सामने मीडिया रिपोर्ट्स ही आती है, जो व्यवस्थाओं को सही या गलत ठहराती हैं।

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2004 में उज्जैन में हुए ‘सिंहस्थ’ मेले के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री उमा भारती के निर्देश पर शासन ने मुझे अपने नियमित ADG (योजना एवं प्रबंध) के कार्य के साथ-साथ ‘सिंहस्थ’ की सभी सुरक्षा व्यवस्थाओं का प्रभारी बनाया था। मार्च के अंतिम सप्ताह में ‘सिंहस्थ’ प्रारंभ होने से लगभग एक सप्ताह पूर्व मुख्यमंत्री ने शासन और पुलिस के संबंधित उच्चाधिकारियों की एक बैठक बुलाई गई, जिसमें मैं भी सम्मिलित हुआ।

बैठक के बाद विस्मयकारी ढंग से मुख्यमंत्री ने बैठक में निर्देश दिए कि ‘उपस्थित सभी अधिकारी यहीं से उज्जैन के लिए रवाना हो जाएं। जब तक मैं न कहूँ आप लोग लौटकर न आएं!’ मीटिंग से मैं सीधा घर आया और जरूरी तैयारी कर उज्जैन रवाना हो गया। उज्जैन में पुलिस मेस के विस्तार में बने नवनिर्मित भवन के मुख्य कक्ष में जाकर मैंने डेरा डाल दिया। शासन के संबंधित प्रमुख सचिव तथा विभागाध्यक्ष  टूरिस्ट कार्पोरेशन के क्षिप्रा होटल में ठहर गए।

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प्रदेश शासन में तत्कालीन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ‘सिंहस्थ’ के प्रभारी थे। सारी व्यवस्थाएं उन्हीं की देखरेख  होना थी। मुख्यमंत्री उमा भारती की तरह वे भी धार्मिक विचारधारा के हैं। उनके साथ काम करने का अपना अलग ही अनुभव ही रहा, जो काम के दौरान मददगार बना! उज्जैन पहुँचकर मैंने पूरे क्षेत्र और घाटों तथा मंदिरों का व्यापक भ्रमण पुलिस व्यवस्था की दृष्टि से किया। कंट्रोल रूम में स्थानीय वरिष्ठ अधिकारियों से चर्चा की।

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पुलिस व्यवस्था को मैंने संतोषजनक पाया और समस्त पुलिस बल को उनके कार्य एवं कर्तव्य से भली भाँति अवगत कराने के लिए पूरी व्यवस्था की। उज्जैन के IG सरबजीत सिंह, DIG संजय कुमार झा और पुलिस अधीक्षक उपेंद्र जैन व्यवस्था के कार्यों में जी जान से लगे हुए थे।

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‘सिंहस्थ’ शुरू होने से पूर्व पूरे मेले की तैयारियां काफी अराजक नजर आई। इस अराजकता का मुख्य कारण कुछ अखाड़ों के आक्रामक साधु थे, जो मुख्यमंत्री के साध्वी होने के कारण उनसे सीधे बात करके स्थानीय अधिकारियों के लिए काफ़ी कठिनाइयां उत्पन्न कर रहे थे। एक बार तो नगर निगम के आयुक्त विनोद शर्मा को उन्होंने क्षिप्रा नदी के पानी में खड़े करके उनसे अपनी मांगें पूरी करने का आश्वासन पाकर ही छोड़ा।

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निर्माण कार्य और विशेष रूप से शौचालय आदि का कार्य पूरा करने के लिए काफी कुछ किया जाना था। परंतु, इस वातावरण में काम तेज़ी से होने के बजाय बाधाएं ज्यादा आ रही थी। प्रदेश के तत्कालीन प्रमुख सचिव पीएचई सत्यानंद मिश्रा के कुशल नेतृत्व में मेला प्रारंभ होने से पूर्व शौचालय निर्माण की स्थिति काफ़ी सँभल गई।

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‘सिंहस्थ’ में एक महत्वपूर्ण कार्य मीडिया का प्रबंधन होता है। शासन ने इस कार्य के लिए कैलाश विजयवर्गीय के निर्देशानुसार इंदौर के संयुक्त संचालक जनसंपर्क सुरेश तिवारी को यह दायित्व सौंपा।

उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर का अच्छा मीडिया सेंटर तैयार करवाकर सूचनाओं के प्रसारण के लिए उत्तम व्यवस्था तैयार कर ली। मेला शुरू होते ही मीडिया सेंटर हरकत में आ गया। प्रतिदिन शाम 5 बजे बहुत बड़ी संख्या में पत्रकार और मीडिया प्रतिनिधि उपस्थित होते थे। इनमें उज्जैन के स्थानीय छोटे समाचार पत्रों के संवाददाताओं से लेकर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर का मीडिया उपस्थित रहता था।

5 बजे सायंकाल मुख्य मीडिया ब्रीफिंग होती थी और उसमें में एक या उससे अधिक अधिकारियों को तिवारी जी द्वारा व्यक्तिगत रूप से बुलाया जाता था। संभागायुक्त सीपी अरोड़ा, कलेक्टर राजेश राजौरा, नगर निगम कमिश्नर विनोद शर्मा, मेला अधिकारी रजनीकांत गुप्ता तथा ऊपर उल्लिखित वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को ब्रीफिंग करने के लिए बुलाया जाता था। इन सब कार्रवाइयों का समन्वय संयुक्त संचालक तिवारी जी द्वारा बखूबी किया जाता था।

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 शुरुआती दिनों में ही एक दिन तिवारी जी ने मुझे प्रेस ब्रीफिंग के लिए बुलाया। तिवारीजी पहले से मेरे अच्छे मित्र थे और उन्होंने बिना किसी झिझक के उस दिन मुझसे कहा कि आज कोई अधिकारी नहीं मिल रहा है, इसलिए आपको बुलाया है। संयोगवश उस दिन मेरी ब्रिफिंग बहुत देर तक चलती रही और स्थानीय से लेकर अंतरराष्ट्रीय संवाददाताओं ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी।

क्योंकि, मुझे सारी व्यवस्थाओं की जानकारी थी, इसलिए मैं बिना किसी घबराहट के शांत और संयत ढंग से उनकी जिज्ञासा को शांत करता रहा। इसके फलस्वरूप तिवारीजी ने बहुत जल्दी-जल्दी मुझे ब्रीफिंग के लिए बुलाना शुरू कर दिया। विशेष शाही स्नानों के पहले और बाद में तो वे निश्चित मुझे बुलाते थे। सुरक्षा व्यवस्था के साथ-साथ मीडिया ब्रीफिंग भी मेरे कार्य में सम्मिलित हो गई थी।

अपने सेवाकाल के शुरू से ही मैं मीडिया के समक्ष सदैव पारदर्शी रहा था तथा किसी भी विभागीय कमी को स्वीकार करने में मुझे कभी कोई झिझक नहीं रही। साथ ही किसी भी अच्छे कार्य को पूरी दमदारी से प्रस्तुत करना भी मैं अपना कर्तव्य समझता था। सिंहस्थ’ के दौरान ही विदेशो में पदस्थ कुछ भारतीय अधिकारी और वहाँ के मेरे मित्र TV पर मेरी ब्रिफिंग देखने के बाद मुझे साधुवाद देते थे।

ब्रीफिंग के कवरेज का अच्छा होने का मुख्य कारण तिवारी जी की व्यवस्था और प्रबंधन था। उनका कार्य बिलकुल बाधा रहित तथा त्वरित गति से चलता रहता था।सभी शाही स्नानों के समय मुझे हेलीकाप्टर भी मिल जाता था।हेलीकाप्टर में मैं बदल बदल कर TV चैनल के संवाददाताओं को अपने साथ ले जाता था और नीचे भीड़ में पुलिस व्यवस्था के कारगर होने के दृश्यों को दिखाता रहता था।

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इन TV के संवाददाताओं की रिकॉर्डिंग के प्रसारण की व्यवस्था तिवारीजी सुनिश्चित करते थे। मेले का संचालन सुचारु रुप से होने के कारण मीडिया ब्रीफिंग ईमानदारी से एवं प्रभावी ढंग से की जा सकी। इसके साथ ही तिवारीजी के नेतृत्व में जनसंपर्क विभाग के कुशल संचालन द्वारा स्थानीय से अंतरराष्ट्रीय स्तर तक मीडिया में सकारात्मक कवरेज मिलना सुनिश्चित हुआ।

सिंहस्थ 2004 का समापन बिना किसी बाधा के हुआ और जनता सहित साधु-संतों ने इसका पूरा श्रेय मुख्यमंत्री उमा भारती और ‘सिंहस्थ’ प्रभारी मंत्री कैलाश विजयवर्गीय को दिया गया। मेला समाप्ति के बाद राजधानी भोपाल से उज्जैन गए सभी वरिष्ठ अधिकारी संतुष्टि के साथ वापस लौट आए। छिटपुट घटनाओं के अलावा ये ‘सिंहस्थ’ कानून व्यवस्थाओं के नजरिए से मेरे लिए अलग ही अनुभव था।

‘सिंहस्थ’ समाप्ति के बाद सुरेश तिवारी को पुन: संयुक्त संचालक, जनसंपर्क, इंदौर के पद पर वापस पदस्थ कर दिया गया। बाद में सुरेश तिवारी 2014 में संचालक जनसंपर्क के पद से रिटायर हुए। वे ‘मध्य प्रदेश माध्यम’ के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर भी रहे। फिलहाल वे मीडिया पोर्टल ‘मीडियावाला’ संचालित कर रहे हैं।