कानून और न्याय: गुटखे का प्रचार करने वाले ‘पद्म’ विजेताओं पर कार्रवाई क्यों नहीं!

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कानून और न्याय: गुटखे का प्रचार करने वाले ‘पद्म’ विजेताओं पर कार्रवाई क्यों नहीं!

स्वास्थ्य के लिए हानिकारक पान मसाला और गुटका बनाने वाली कंपनियों और उसका प्रचार करने वाले अभिनेताओं एवं प्रख्यात पद्म पुरस्कार प्राप्त हस्तियों जैसे अमिताभ, शाहरूख, अजय देवगन, अक्षय कुमार सहित कई अभिनेताओं की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। इलाहबाद उच्च न्यायालय ने सन् 2022 में दिए गए अपने आदेश के परिपालन में समुचित कार्रवाई न करने पर दायर याचिकाओं पर केंद्र सरकार को अभी हाल ही में नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। याचिकाकर्ता, जो कि पेशे से एक वकील है, ने 2022 में बड़े पैमाने पर जनता के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक उत्पादों के विज्ञापनों और समर्थन में मशहूर हस्तियों एवं अति विशिष्ट रूप से पद्म पुरस्कार विजेताओं की कथित भागीदारी के संबंध में जनहित में कुछ मुद्दे उठाते हुए उच्च न्यायालय का रूख किया था।

याचिकाकर्ता ने भारतीय केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण के द्वारा कुछ व्यक्तियों यानी पद्म पुरस्कार विजेताओं‘ के खिलाफ उचित कार्रवाई करने और उन पर जुर्माना लगाने का निर्देश देने की मांग की थी। याचिकाकर्ता ने यह भी मांग की थी की इन व्यक्तियों को ऐसे विज्ञापनों से अर्जित पूरी राशि उपभोक्ता निधि में जमा करने और उतनी ही राशि भारत सरकार के राहत कोष में जमा करने का निर्देश दिया जाना चाहिए। याचिकाकर्ता ने बताया कि सर्वोच्च न्यायालय ने 1996 में पद्म पुरस्कार प्रदान करने के तरीके और पद्म पुरस्कार प्रदान करने की प्रक्रिया एवं उसके उचित रूप से प्रशासित होने के बारे में अपनी चिंता व्यक्त की थी। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 1995 में ही सुझाव दिए जाने के बावजूद आज तक ऐसी कोई समिति नहीं बनाई गई है जो कि उनके सुझावों एवं चिंताओं को ध्यान में रख कर पद्म पुरस्कारों के लिए शॉर्टलिस्टेड लोगों का अवलोकन करे।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष उठाए गए मुद्दों और चिंताओं को ध्यान में रखते हुए न्यायालय ने अपने आदेश में याचिकाकर्ता को सरकार के समक्ष अपना पक्ष रखने को कहा था। उच्च न्यायालय का यह मानना था कि इस तरह से कोई भी मुद्दे केन्द्र सरकार के सामने जाएंगे क्योंकि यह कार्यकारी या विधायी मुद्दा है। उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि यह भी कहा था कि याचिकाकर्ता उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत उपलब्ध शिकायतों के निवारण के लिए वैधानिक तंत्र का सहारा ले सकता है। संबंधित शिकायतों के निवारण के लिए कलेक्टर एवं आयुक्त या यहां तक कि केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण से संपर्क कर सकता है। क्योंकि उपभोक्ता अधिकारियों का कार्य उल्लंघन, अनुचित व्यापार व्यवहार, झूठे और भ्रामक विज्ञापन आदि पर रोक लगाना है।

प्रस्तुत याचिका के माध्यम से, याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय को सूचित किया कि उसने अक्टूबर, 2022 में कैबिनेट सचिव, भारत सरकार और मुख्य आयुक्त, केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण से संपर्क किया था। लेकिन आज दिनांक तक कोर्ट के आदेश के अनुपालन में अधिकारियों द्वारा कोई निर्णय नहीं लिया गया है। यह कोर्ट की अवमानना है। याचिकाकर्ता ने यह भी बताया कि विचाराधीन मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पद्म पुरस्कारों पर विचार किया गया है। सर्वोच्च न्यायालय ने बालाजी राघवन विरुद्ध यूनियन ऑफ इंडिया में पद्म पुरस्कार प्रदान करने के लिए एक उचित तंत्र रखने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए है। लेकिन, सरकार द्वारा उसका भी अनुसरण नहीं किया है।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ एकल के समक्ष याचिकाकर्ता (वकील) मोतीलाल यादव ने स्वयं ही याचिकाकर्ता के रूप में उपस्थित हुए। उन्होंने गुटखा और पान मसाला कंपनियों के बनाए उत्पादों का प्रचार करने वाले अभिनेताओं, जिनमें पद्म पुरस्कार से सम्मानित हस्तियां भी शामिल हैं, के खिलाफ समुचित कार्रवाई किए जाने की दलील दी। उच्च न्यायालय ने इस पर अपने आदेश की अवमानना हेतु प्रस्तुत आवेदन पर केंद्रीय कैबिनेट सचिव व केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण की मुख्य आयुक्त को अवमानना नोटिस जारी किया।

न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान की पीठ ने कैबिनेट सचिव राजीव गौबा और केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण की मुख्य आयुक्त निधि खरे को अवमानना नोटिस जारी कर चार हफ्ते में अपना पक्ष रखने हेतु कहा है। इस आवेदन में याचिकाकर्ता मोतीलाल यादव ने कहा कि पù पुरस्कार अलंकृत हस्तियों का इन विज्ञापनों का हिस्सा बनना किसी भी सूरत में उचित और नैतिक नहीं माना जाना चाहिए। इन याचिकाओं में अभिनेता अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान, अजय देवगन, अक्षय कुमार, सैफ अली खान के खिलाफ कार्रवाई करने की गुहार लगाई गई है। ये सभी अभिनेता गुटखा कंपनियों के उत्पादों के विज्ञापन करते रहे हैं।

इस मामले में याचिकाकर्ता की दलील यह थी कि दोनों अधिकारियों यानी कैबिनेट सचिव और उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण की अध्यक्ष को पिछले साल 15 अक्टूबर 2022 को प्रतिवेदन भेजा गया था। इसमें इन अभिनेताओं और इन हानिकारक उत्पादों को महिमांडित और क्रेजी बताने वाले उनसे विज्ञापन कराने वाली कंपनियों पर सख्त कानूनी कार्रवाई करने की अपील की गई थी। लेकिन एक साल की अवधि बीत जाने के बावजूद, अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। इस पर न्यायालय ने दोनों अधिकारियों से पूछा है कि क्या इस संबंध में कोई कार्रवाई हुई है अथवा नहीं? याचिकाकर्ता ने सर्वोच्च न्यायालय के 1996 में दिए गए एक फैसले का भी हवाला दिया जिसमें न्यायालय ने पù पुरस्कार के लिए हस्तियों पर चिंता जताई थी। पद्म विभूषण, पद्म भूषण और पद्म श्री पुरस्कार देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में से एक हैं। ये पुरस्कार भारत सरकार द्वारा प्रतिवर्ष भारतीय नागरिकों को उनके असाधारण कार्यों के लिए प्रदान किए जाते हैं। पद्म पुरस्कार देने की शुरुआत वर्ष 1954 में की गई थी। जिसके बाद वर्ष 1978 और 1979 और वर्ष 1993 से 1997 के बीच की रूकावट को छोड़कर प्रतिवर्ष इसकी घोषणा गणतंत्र दिवस के अवसर पर की जाती है।

इस याचिका ने एक बार पुनः हमें यह याद दिलाया है कि विषिष्टता भरे सम्मान के साथ-साथ उनकी गरिमा को बनाए रखने की जिम्मेदारी भी इन लोगों पर है। तंबाकू का सेवन हर प्रकार से शरीर के लिए नुकसान देय है। आप इसे धूम्रपान के रूप में करें या फिर इसको चबाएं तंबाकू में मौजूद निकोटीन की वजह से आपको इसके सेवन की लत लग सकती है। इसका शरीर पर बहुत बुरा असर पड़ता है। याचिकाकर्ता ने कहा कि तंबाकू के सेवन से कई प्रकार के कैंसर होने की संभावना बनी रहती है। इसमें फेफड़ों का कैंसर, मुंह का कैंसर, लिवर का कैंसर और गले का कैंसर तो होता ही है साथ ही कई क्रोनिक बीमारियां भी सम्मिलित है। यह सब जानते हुए भी हमारे यहां के पद्म पुरस्कार व्यक्तित्व द्वारा इनका प्रमोषन किया जा रहा है जो दुर्भाग्यपूर्ण है।

विशिष्ट लोगों का अनुसरण आम लोगों के द्वारा किया जाता है। इस कारण विषिष्ट नागरिकों के द्वारा किए जाने वाले विज्ञापनों एवं सिनेमा में दिखाने वाले विज्ञापनों के द्वारा बड़ी संख्या में लोग प्रभावित होती है। इसमें कई बच्चे भी शामिल है, जिनके पास यह विवेक भी नहीं है कि वह जो कर रहे हैं, वह उनके लिए ठीक है अथवा नहीं। स्वास्थ्य के लिए हानिकारक चीजें जैसे सिगरेट, गुटका, पान मसाला आदि जैसी चीज का विज्ञापन अथवा सिनेमा या अन्य किसी प्रचारित मीडिया में इन्हें प्रदर्षित किए जाने से पहले इसका लोगों पर पड़ने वालो परिणामों को भी समझना चाहिए।

यह जानना दिलचस्प होगा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय इस संबंध में क्या कार्यवाही करती है। लेकिन याचिकाकर्ता का कथन पूर्ण रूप से सही है कि इन बुराइयों एवं हानिकारक पदार्थों का विज्ञापन करना देश के लिए अत्यंत ही हानिकारक है। इनका प्रचार प्रसार करना एवं उससे भारी मात्रा में धन कमाना दुर्भाग्यपूर्ण है तथा इसके लिए इन पद्म पुरस्कारों को प्राप्त करने वालों के विरुद्ध निश्चित ही कार्यवाही होनी चाहिए। यह नैतिक एवं विधिक दोनों ही दृष्टिकोण से अनुचित है।