इस दिन का हिसाब

554

इस दिन का हिसाब

इस दिन का क्या करूंँ
छप्पन बरसों पहले के
इसी तासीर के एक दिन से जिसका
इश्क़ है
बस इसी संबंध के भरोसे
ये उछल कूद करता है

जबकि उसने सारे रिश्ते खत्म कर लिए हैं
मुझसे भी
एक कच्चा घर तब्दील हो चुका है
खंडहर में
नदी पोखर खेतों को
भरने योग्य बारिश को भी
नहीं कुछ याद रहा मैं
सितारों में बदल चुके
मुझे सबसे पहले देखने वाले रिश्ते

बस माँ को याद होगा
ठीक इस शक्लो सूरत का वह दिन
उसे ही दिखाई देती है
इतने बरसों के एक एक दिन से
बनी एक मीनार

मेरे जन्मदिनों का
पूरा का पूरा हिसाब
बस माँ को पता है
मुझे भी इस दिन
बहुतेरी गुमी चीज़ें याद आतीं हैं
देखते हुए इतने ताज़ा रिश्ते

ब्रज श्रीवास्तव