‘एकता’ और ‘एकात्मता’ की प्रतिमा को जोड़ती ह्रदय प्रदेश की जीवन रेखा…

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‘एकता’ और ‘एकात्मता’ की प्रतिमा को जोड़ती ह्रदय प्रदेश की जीवन रेखा…

मध्यप्रदेश की जीवन रेखा अब अपने किनारे स्थित भारत की दो महान प्रतिमाओं को जोड़ने का काम भी करेगी। दोनों ही व्यक्तित्व अनूठे हैं। एक ने सनातन धर्म के जरिए पूरे भारत को एक कर दिया तो दूसरे ने आजादी के बाद तीन विद्रोही रियासतों के मंसूबों को नेस्तनाबूद कर भारत को वर्तमान स्वरूप प्रदान किया था। एक का संबंध धर्म से था, तो दूसरे का संबंध राजनीति से था। दोनों ही व्यक्तित्व भारत की महान विरासत हैं। यह दो प्रतिमाएं हैं ‘स्टेच्यू ऑफ वननेस’ और ‘स्टेच्यू ऑफ यूनिटी’। पहली स्टेच्यू है आदि गुरु शंकराचार्य की और दूसरी स्टेच्यू है सरदार वल्लभ भाई पटेल की। इसमें यह भी खास है कि दोनों स्टेच्यू का निर्माण भारतीय जनता पार्टी के दो दिग्गज नेताओं ने करवाया है। स्टेच्यू ऑफ यूनिटी का निर्माण भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने करवाया है। उन्होंने इसकी योजना गुजरात के मुख्यमंत्री रहते बनाई और क्रियान्वित की थी और जब यह पूरी हुई तब तक नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बन गए थे। स्टेच्यू ऑफ वननेस का निर्माण मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने करवाया है। इसकी शुरुआत 2017-18 में हुई थी, जब शिवराज सिंह चौहान का मुख्यमंत्री के रूप में तीसरा कार्यकाल था। और यह जब बनकर पूरी हुई तब शिवराज सिंह चौहान का मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में चौथा कार्यकाल चल रहा है। दोनों स्टेच्यू के निर्माण करीब पांच साल में पूरा हुआ है। तो यह भी साफ है कि नरेंद्र मोदी को स्टेच्यू ऑफ यूनिटी के लिए हमेशा जाना जाएगा, तो शिवराज सिंह चौहान को स्टेच्यू ऑफ वननेस के लिए हमेशा याद किया जाएगा। दो महान व्यक्तित्व की प्रतिमाएं अपने साथ राजनीति की इन दो शख्सियत का नाम भी हमेशा जिंदा रखेंगी। यह भी एक संयोग ही है कि स्टेच्यू ऑफ यूनिटी का लोकार्पण नरेंद्र मोदी ने किया तो स्टेच्यू ऑफ वननेस का  शिवराज सिंह चौहान के हाथों ही संपन्न हुआ। ऐसे कयास लगे और संभावनाएं जताई गईं कि स्टेच्यू ऑफ वननेस का लोकार्पण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों संपन्न हो सकता है, लेकिन अंततः शिवराज के हाथों ही यह अद्वितीय कार्य संपन्न हुआ।

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पहले बात स्टेच्यू ऑफ वननेस की करें तो ओंकारेश्वर के मांधाता पर्वत पर शंकराचार्य के बाल रूप की प्रतिमा स्थापित की गई है। बाल शंकर का चित्र मुंबई के विख्यात चित्रकार वासुदेव कामत द्वारा वर्ष 2018 में बनाया गया था। जिसके आधार पर यह मूर्ति सोलापुर महाराष्ट्र के प्रसिद्ध मूर्तिकार भगवान राम पुर द्वारा उकेरी गई। मूर्ति को बनाने में कई धातुओं का इस्तेमाल किया गया है। मूर्ति निर्माण के लिए 2017-18 में संपूर्ण मध्य प्रदेश में एकात्म यात्रा निकाली गई थी, जिसके माध्यम से 27,000 ग्राम पंचायतों से मूर्ति निर्माण हेतु धातु संग्रहण व जनजागरण का अभियान चलाया गया था। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ओंकारेश्वर में संत समुदाय के साथ आदि गुरु शंकराचार्य की 108 फीट ऊँची प्रतिमा का 21 सितंबर 2023 को अनावरण किया। यह स्टेच्यू लगभग 2 हजार 200 करोड़ रूपये लागत से बनकर तैयार हुई है। शिलान्यास के अवसर पर शिवराज ने कहा कि आदिगुरू शंकराचार्य की ‘एकात्मता की प्रतिमा’ विश्व को शांति और एकता का संदेश देगी। एकात्म धाम में स्थापित आचार्य शंकर की प्रतिमा का नाम ‘एकात्मता की मूर्ति’ (स्टैच्यू ऑफ वननेस) है। 108 फीट की अष्टधातु मूर्ति आचार्य शंकर के बाल रूप 12 वर्ष की आयु की है। मूर्ति के आधार में 75 फीट का पैडेस्टल है। यह मूर्ति पाषाण निर्मित 16 फीट के कमल पर स्थापित है।मूर्तिकार भगवान रामपुरे एवं चित्रकार वासुदेव कामत के मार्गदर्शन में मूर्ति का निर्माण किया गया है। प्रतिमा में 88 प्रतिशत कॉपर, 4 प्रतिशत जिंक, 8 प्रतिशत टिन का उपयोग किया गया है। प्रतिमा 100 टन वजनी है। कुल 290 पैनल से यह मूर्ति निर्मित की गई है। समग्र अधोसंरचना के निर्माण में उच्च गुणवत्ता के 250 टन के स्टेनलेस स्टील का उपयोग किया गया है। कंक्रीट के पैडस्टल की डिजाइन 500 वर्ष तक की समयावधि को ध्यान में रखकर की गई है।

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तो अब बात भारत के पहले उप प्रधानमंत्री और पहले गृह मंत्री की प्रतिमा स्टैच्यू ऑफ यूनिटी (एकता की प्रतिमा) की करें। गुजरात सरकार द्वारा 7 अक्टूबर 2010 को इस परियोजना की घोषणा की गयी थी। इस मूर्ति को बनाने के लिये लोहा पूरे भारत के गाँव में रहने वाले किसानों से खेती के काम में आने वाले पुराने और बेकार हो चुके औजारों का संग्रह करके जुटाया गया। सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय एकता ट्रस्ट के 3 माह लम्बे इस “स्टैच्यू ऑफ यूनिटी अभियान” में लगभग 6 लाख ग्रामीणों से मूर्ति स्थापना हेतु लगभग 5,000 मीट्रिक टन लोहे का संग्रह किया गया। हालाँकि यह लोहा कहे अनुसार प्रतिमा में उपयोग नहीं हो सका और इसे परियोजना से जुड़े अन्य निर्माणों में प्रयोग किया गया। यह स्मारक सरदार सरोवर बांध से 3.2 किमी की दूरी पर साधू बेट नामक स्थान पर है जो कि नर्मदा नदी पर एक टापू है। यह स्थान भारतीय राज्य गुजरात के भरुच के निकट नर्मदा किनारे स्थित है। यह विश्व की सबसे ऊँची मूर्ति है, जिसकी लम्बाई 182 मीटर (597 फीट) है। आधार सहित इस मूर्ति की कुल ऊँचाई 240 मीटर है जिसमें 58 मीटर का आधार है। इसके बाद विश्व की दूसरी सबसे ऊँची मूर्ति चीन में स्प्रिंग टैम्पल बुद्ध है, जिसकी आधार के साथ कुल ऊंचाई 153 मीटर (502 फीट) हैं। प्रारम्भ में इस परियोजना की कुल लागत भारत सरकार द्वारा लगभग 3,000 करोड़ रुपए रखी गयी थी, बाद में लार्सन एंड टूब्रो ने अक्टूबर 2014 में सबसे कम 2,989 करोड़ रुपए की बोली लगाई। जिसमें आकृति, निर्माण तथा रखरखाव शामिल था। निर्माण कार्य का प्रारम्भ 31 अक्टूबर 2013 को प्रारम्भ हुआ। मूर्ति का निर्माण कार्य मध्य अक्टूबर 2018 में समाप्त हो गया। इसका उद्घाटन भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 31 अक्टूबर 2018 को सरदार पटेल के जन्मदिवस के मौके पर किया गया।

आदि शंकराचार्य का ओंकारेश्वर से खास नाता है। मात्र 8 वर्ष की उम्र में वह अपने गुरु को खोजते हुए केरल से ओंकारेश्वर पहुंचे थे। उन्होंने यहीं नर्मदा किनारे काली गुफ़ा में गुरु गोविंद भगवत्पाद से दीक्षा ली। इसके बाद पूरे भारतवर्ष का भ्रमण कर, सनातन की चेतना जगाई। चारों धाम की स्थापना करने वाले शंकराचार्य की मूल भावना थी कि जीव -जगत सभी आत्मा एक ही हैं, उसी क्रम में यहां एकात्म धाम की स्थापना की गई है। और शंकराचार्य की दीक्षा स्थली ओंकारेश्वर को आदि शंकराचार्य के जीवन और दर्शन के लोकव्यापीकरण के उद्देश्य से ओंकारेश्वर को अद्वैत वेदांत के वैश्विक केंद्र के रूप में विकसित किया जा रहा है।

तो सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म नडियाद, गुजरात में एक लेवा पटेल(पाटीदार) जाति में हुआ था। वे झवेरभाई पटेल एवं लाडबा देवी की चौथी संतान थे। उनकी शिक्षा मुख्यतः स्वाध्याय से ही हुई। लन्दन जाकर उन्होंने बैरिस्टर की पढाई की और वापस आकर अहमदाबाद में वकालत करने लगे। महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित होकर उन्होने भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में भाग लिया। और आजादी के संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका और भारत की एकता का श्रेय सरदार को ही जाता है।

तो यह दोनों प्रतिमाएं पूरी दुनिया को एकता का संदेश देती रहेंगीं। पूरी दुनिया में भारत के विश्वगुरु के रूप में पुनर्स्थापित करने का भाव जगाती रहेंगीं। और भारतीय राजनीति के दो दिग्गज नरेंद्र मोदी और शिवराज सिंह चौहान के नामों को सैकड़ों साल तक जिंदा भी रखेंगीं।ह्रदय प्रदेश की जीवन रेखा ‘एकता’ और ‘एकात्मता’ की प्रतिमा को जोड़ने का काम कर रही है… तो राजनीति की जीवन रेखा मोदी और शिवराज को भी जोड़े हुए है…।