भाजपा के दमदार नेताओं की चौंकाने वाली लिस्ट, उषा ठाकुर,महेंद्र सिसोदिया, बिसेन सहित 8 मंत्रियों के टिकट अटके!    

सिंधिया समर्थक 4 मंत्रियों के नाम नहीं, कई ऐसे नाम जिनके नामों से आश्चर्य! 

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भाजपा के दमदार नेताओं की चौंकाने वाली लिस्ट, उषा ठाकुर,महेंद्र सिसोदिया, बिसेन सहित 8 मंत्रियों के टिकट अटके!    

 

भाजपा की एक और लिस्ट आ गई। गिनती के हिसाब से ये चौथी लिस्ट है। पिछली तीन लिस्ट की तरह इस लिस्ट ने भी चौंका दिया। इस बार की 57 नामों की लिस्ट में 24 मंत्री और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नाम शामिल हैं। विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम दोबारा टिकट पाने में सफल रहे। लेकिन, एक महीने पहले मंत्री पद की शपथ लेने वाले गौरी शंकर बिसेन समेत 8 मंत्रियों के नाम इस लिस्ट से गायब दिखाई दे रहे। संस्कृति मंत्री उषा ठाकुर और सिंधिया के घोर समर्थक महेंद्र सिंह सिसोदिया का नाम भी इस सूची में नहीं होने से आश्चर्य व्यक्त किया जा रहा है।

ज्यादातर सिंधिया समर्थकों को फिर टिकट से नवाज दिया गया, जिनके बारे में कयास लगाए जा रहे थे कि कई के टिकट कट सकते हैं। कई ऐसे विधायकों को फिर टिकट दे दिया, जिनके बारे में कयास थे कि इस बार इनका पत्ता कट सकता है। इसे सीधे-सीधे भाजपा की मज़बूरी भी कहा जा सकता है कि उसने बगावत के डर से कोई रिस्क नहीं ली।

57 उम्मीदवारों की चौथी लिस्ट के साथ अब पार्टी के 136 उम्मीदवार सामने आ गए। 94 सीटों के नाम अभी भी बाकी हैं। इस लिस्ट की खासियत यह रही कि पार्टी ने सभी सीटों पर फिर वही उम्मीदवार उतार दिए, जो 2018 का चुनाव जीते थे। पूरी लिस्ट में सिर्फ एक छोटा सा बदलाव देखा गया कि जयसिंह नगर से विधायक रहे जयसिंह मरावी को जैतपुर से उम्मीदवार बनाया गया और जैतपुर की विधायक मनीषा सिंह को जयसिंह नगर से उम्मीदवारी दी गई। इसके अलावा पूरी सूची में कोई बड़ा बदलाव दिखाई नहीं दिया।

कयास लगाए जा रहे थे कि ऐसे विधायक जिनको लेकर उनके क्षेत्र में विरोध है, उन्हें बदला जाएगा। लेकिन, इस लिस्ट में ऐसे कोई आसार दिखाई नहीं दिए। यहां तक की भाजपा के कई नेता भी इन विधायकों के विरोध में खुलकर आ गए थे, फिर भी उन्हें टिकट दिया गया। इनमें इंदौर के क्षेत्र क्रमांक-4 की विधायक मालिनी गौड़ और विवादास्पद उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव भी हैं, जिन्हें उज्जैन की सीट से टिकट दिया। इनका काफी विरोध था, फिर भी दोनों को टिकट मिल गया। सिर्फ यही नहीं और भी कई विधायक हैं जिनके चुनाव लड़ने पर सवालिया निशान था। दरअसल, पार्टी ने किसी भी तरह की रिस्क नहीं ली और जीते हुए विधायकों को फिर से मैदान में उतार दिया।

ये पार्टी की ऐसी मजबूरी थी, जिसका इशारा पिछली बार मिला सबक माना जा सकता है। 2018 में भाजपा को एक-एक सीट के लाले पड़ गए थे और बहुमत की दौड़ में पार्टी कांग्रेस से चंद सीटों से पिछड़ गई थी और सरकार नहीं बनी। बाद में सिंधिया विद्रोह से सरकार तो बनी, लेकिन पार्टी पहली बार का सबक नहीं भूली। इस बार पार्टी ने कोई बड़ी रिस्क नहीं ली। किसी नए नाम को मौका नहीं दिया न इसकी संभावना थी। क्योंकि, यदि किसी सीट से नए उम्मीदवार को टिकट दिया जाता, तो वहां दूसरे दावेदार बगावत करके सेंध लगा सकते थे।

 

*4 सिंधिया समर्थक मंत्रियों के नाम नहीं*

इस लिस्ट की एक गौर करने वाली बात यह है कि ज्यादातर ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थकों को फिर से उम्मीदवार बनाया गया। सांवेर से तुलसीराम सिलावट, बदनावर से राजवर्धन सिंह दत्तीगांव, ग्वालियर से प्रद्धुमन सिंह तोमर, सुरखी से गोविंद सिंह राजपूत और सांची से डॉ प्रभुराम चौधरी के नाम शामिल हैं। तुलसी सिलावट को फिर सांवेर से ही टिकट दिया, जबकि उन्हें आलोट से चुनाव लड़वाए जाने की भी बात चली थी। लेकिन, तीन सिंधिया समर्थक मंत्रियों महेंद्र सिंह सिसोदिया, बृजेंद्र सिंह, ओ पी एस भदौरिया और सुरेश धाकड़ के नाम इस लिस्ट में नहीं हैं।

स्कूली शिक्षा राज्यमंत्री इंदरसिंह परमार, पंचायत एवं ग्रामीण विकास राज्यमंत्री राम खेलावन पटेल के नाम भी अटके हुए हैं। यशोधरा राजे सिंधिया ने पहले से ही इस बार चुनाव लड़ने से मना कर दिया है। एक महीने पहले शपथ लेने वाले दोनों मंत्रियों को मिला, पर गौरीशंकर बिसेन का नाम लिस्ट से गायब है। एक महीने पहले मंत्री बने राहुल लोधी को खरगापुर और राजेंद्र शुक्ल को रीवा से प्रत्याशी बनाया गया। अभी सबसे बड़ी चुनौती 94 सीटों पर आने वाली है, जिस पर भाजपा को अपनी ताकत दिखाना होगी।