Indore-4: भाजपा की अभेद्य अयोध्या में इस बार कांग्रेस की रणनीति कितनी कारगर!

1990 से अब तक 6 बार चुनाव में कांग्रेस की कोशिशें कामयाब नहीं हुई!

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Indore-4: भाजपा की अभेद्य अयोध्या में इस बार कांग्रेस की रणनीति कितनी कारगर!

Indore : शहर का विधानसभा क्षेत्र क्रमांक-4 पश्चिमी इलाका कहलाता है। राजनीतिक रूप से इसे भाजपा की अयोध्या भी कहते हैं, जहां से कांग्रेस 1990 से अभी तक लगातार 6 चुनाव हारी। इस वजह से सारी कोशिशों के बाद भी कांग्रेस कोई सशक्त नेतृत्व तैयार नहीं कर सकी, जो भाजपा के लिए चुनौती बने। तीन बार जीतने के बाद इस बार विधायक मालिनी गौड़ को टिकट दिए जाने पर संशय था। पार्टी के कुछ नेताओं ने विरोध भी किया। लेकिन, संगठन ने फिर भी मालिनी गौड़ पर ही भरोसा दिखाया। जबकि, कांग्रेस ने राजा मंधवानी को टिकट दिया। क्योंकि, यहां का बड़ा इलाका सिंधी बहुल है। कांग्रेस को भरोसा है कि उनके उम्मीदवार को समाज का साथ मिल सकता है। इस नजरिए से कहा जा सकता है, कि इस बार का चुनाव रोचक होगा।

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इस सीट के राजनीतिक इतिहास को देखा जाए तो 1990 में पहली बार यहां से कैलाश विजयवर्गीय ने भाजपा का खाता खोला था। इसके बाद वे विधानसभा-2 की राजनीति करने चले गए। विजयवर्गीय के बाद यहां से लगातार तीन विधानसभा चुनाव लक्ष्मण सिंह गौड़ ने जीते। उनके बाद के तीन चुनाव में उनकी पत्नी मालिनी गौड़ ने जीत दर्ज कराई। 1990 में यहाँ से कांग्रेस के इकबाल खान के चुनाव हारने के बाद से कांग्रेस कई नेताओं को चुनाव लड़वा चुकी है, पर अभी तक उसे सफलता नहीं मिली। कांग्रेस के उजागर सिंह, ललित जैन, सुरेश मिंडा के अलावा गोविंद मंघानी भी यहां से दो बार चुनाव हार चुके हैं। सुरेश मिंडा कांग्रेस के अच्छे नेता थे, पर वे अयोध्या का गढ़ नहीं भेद सके। जबकि, 2018 में यहां से सुरजीतसिंह चड्ढा चुनाव हारे। उनकी जड़ें और राजनीतिक अनुभव इतना गहरा नहीं था, कि वे चुनाव जीत सकें।

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मालिनी गौड़ को यहाँ से राजनीतिक विरासत पति स्व लक्ष्मणसिंह गौड़ से मिली है। महिला होने के नाते सहानुभूति का भी उन्हें शुरू से फ़ायदा मिला। महापौर बनने के बाद उन्होंने अपनी जड़ों को और मजबूत किया। शहर के इस इलाके का चेहरा बदलने में मालिनी गौड़ का महापौर बनने का बड़ा हाथ रहा। आज इस पूरे इलाके की रंगत बदल गई। चौड़ी सड़कें, व्यवस्थित बगीचों के अलावा ये प्रमुख व्यापारिक केंद्र भी बन गया है। यहां और भी ऐसे कई निर्माण हुए, जो 2023 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए मददगार बनेंगे।

क्या कहता है इस विधानसभा सीट का इतिहास
1977 में आपातकाल के बाद जनता पार्टी के श्रीवल्लभ शर्मा ने चुनाव जीता था। लेकिन, 1980 में यहाँ से कांग्रेस के यज्ञदत्त शर्मा जीते। 1985 का चुनाव यहां से कांग्रेस उम्मीदवार नंदलाल माटा ने जीता था। लेकिन, 1990 में यहां भाजपा के कैलाश विजयवर्गीय ने उन्हें मात दे दी। कैलाश विजयवर्गीय के राजनीतिक करियर की शुरुआत इसी चुनाव को माना जाता है। इसके बाद कैलाश विजयवर्गीय ने विधानसभा क्षेत्र-2 की राजनीतिक कमान संभाल ली और यहाँ से 1993 लक्ष्मणसिंह गौड़ भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े। उनकी जीत का सिलसिला 1998 और 2003 के चुनाव में भी चला। लेकिन, एक सड़क हादसे में निधन के बाद उनकी राजनीतिक उत्तराधिकारी पत्नी मालिनी गौड़ बनी और उपचुनाव में जीत दर्ज की। वे 2008, 2013 और 2018 का चुनाव भी जीतीं। 2018 में उन्होंने कांग्रेस के सुरजीत सिंह चड्ढा को हराया था। वे 5 साल इंदौर की महापौर भी रही, जो उनकी बड़ी राजनीतिक उपलब्धि है।

2023 में ये दो नेता आमने-सामने
ये भाजपा का गढ़ बन गया है, इससे इंकार नहीं। इसीलिए विरोध बावजूद यहाँ से भाजपा फिर मालिनी गौड़ को ही उम्मीदवार बनाया। कामकाज और अपनी हिंदूवादी छवि के कारण भी उनकी जमीन मजबूत है। लेकिन, उनके खिलाफ जिस तरह आवाज उठी, उससे सेबोटेज की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। जबकि, कांग्रेस ने यहां से राजा मंधवानी को टिकट दिया है। वे सिंधी समाज से जुड़े हैं और सामाजिक पृष्ठभूमि के कारण उनकी पहचान भी है। इस सीट से पहले कांग्रेस के नंदलाल माटा चुनाव जीते थे, जो इस बात का संकेत है, कि यदि मेहनत की जाए तो कांग्रेस झंडा गाड़ा भी जा सकता है।कांग्रेस के एक दावेदार ने उनको टिकट दिए जाने का विरोध भी किया, पर उसका संगठन पर कोई असर नहीं हुआ।