Election Fever : Sanwer : सांवेर के वोटरों की हर बार पत्ते फैंटने की आदत!

प्रकाश सोनकर और तुलसी सिलावट ही 38 साल में दोबारा चुनाव जीते!

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Election Fever : Sanwer : सांवेर के वोटरों की हर बार पत्ते फैंटने की आदत!

इंदौर जिले में विधानसभा की 9 सीटें हैं। इनमें 6 शहरी हैं और 3 ग्रामीण क्षेत्र की हैं। 2008 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 5 और कांग्रेस को 4 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। जबकि, 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने इंदौर की 9 में से 8 सीटें जीती। सिर्फ क्षेत्र क्रमांक-3 में जीतू पटवारी ही कांग्रेस के अकेले ऐसे नेता थे, जिन्होंने राऊ सीट से जीत दर्ज की। जबकि, 2018 में भाजपा को 5 सीटें मिली, कांग्रेस को 4 सीटों पर संतोष करना पड़ा था। ये चार सीटें थीं इंदौर विधानसभा क्षेत्र-1, राऊ, सांवेर और देपालपुर। लेकिन, बाद में हुए सत्ता पलट में सांवेर से जीते तुलसी सिलावट ने पाला बदल लिया और भाजपा से इस्तीफ़ा दे दिया। बाद में हुए उपचुनाव में भी वे जीते और कांग्रेस को एक सीट का नुकसान हो गया।

इंदौर जिले की तीन ग्रामीण सीटों में से अभी देपालपुर कांग्रेस के पास है, जबकि महू और सांवेर में भाजपा के विधायक हैं। देपालपुर सीट पर दोनों पार्टियों के उत्तराधिकारी ही ख़म ठोंककर बैठे रहते हैं, जिससे दूसरे नेताओं को मौका नहीं मिलता! जबकि, महू (अंबेडकर नगर) के मतदाताओं की मानसिकता ही कुछ अलग है। कहने को ये ग्रामीण सीट है, पर शहर से कहीं ज्यादा जागरूक। उधर, सांवेर के मतदाताओं का सोच ही कुछ अलग है! उन्हें पत्ते पलटने में ही ज्यादा मजा आता है, वे किसी एक नेता या पार्टी को ज्यादा जड़ें नहीं जमाने देते।

 

सांवेर विधानसभा

अनुसूचित वर्ग के लिए आरक्षित सांवेर विधानसभा सीट का इतिहास बताता है कि यहां पिछले 38 साल (1980 से 2018 तक) के चुनाव में दो नेताओं (तुलसी सिलावट और प्रकाश सोनकर) को छोड़कर कभी कोई उम्मीदवार दोबारा चुनाव नहीं जीत सका। यानी अधिकांश चुनाव में हर बार नया चेहरा चुनाव जीतता रहा। लेकिन, उपचुनाव इसके अपवाद रहे और यही स्थिति 2020 के विधानसभा उप चुनाव में भी दोहराई गई। 2020 के उपचुनाव में तुलसी सिलावट की जीत ने उन्हें सांवेर सीट से सबसे ज्यादा पांच बार जीतने वाला पहला विधायक बना दिया। इससे पहले भाजपा के प्रकाश साेनकर ने चार बार जीत हासिल की थी।

1990 के मुख्य चुनाव में भाजपा के प्रकाश सोनकर जीते थे। 1993 में हुए उपचुनाव और उसके पहले के प्रकाश सोनकर के निधन के बाद 2007 में हुए उपचुनाव में कांग्रेस के तुलसी सिलावट चुनाव जीते। उसके बाद 2008 के मुख्य चुनाव में भी तुलसी सिलावट को जीत मिली। 2021 में पार्टी बदलकर (कांग्रेस से भाजपा) तुलसी सिलावट फिर चुनाव जीते।

इनके अलावा कभी किसी पार्टी के उम्मीदवार ने सामान्य विधानसभा में लगातार दूसरी बार यहां से चुनाव नहीं जीता। 1990 में भाजपा के प्रकाश सोनकर कांग्रेस के तुलसी सिलावट को हराकर चुनाव जीते। लेकिन, 1992 में बाबरी मस्जिद का ढांचा तोड़ने के बाद हुए दंगों के चलते भाजपा की प्रदेश सरकार बर्खास्त कर दी गई। इसके बाद 1993 में मध्यावधि चुनाव हुए तो भाजपा के प्रकाश सोनकर ने कांग्रेस के तुलसी सिलावट को फिर चुनाव में हरा दिया।

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भाजपा नेता प्रकाश सोनकर के निधन पर 2007 में यहां उपचुनाव हुए तो कांग्रेस के तुलसी सिलावट ने भाजपा के संतोष मालवीय को हराया। उसके बाद 2008 के मुख्य चुनाव में कांग्रेस के तुलसी सिलावट ने भाजपा की निशा सिलावट को 3517 वोट से हरा दिया था। आशय यह कि 40 सालों में मुख्य चुनावों में कोई भी उम्मीदवार दूसरी बार नहीं जीता। अब तक इस सीट पर हुए 14 चुनावों में 6 बार कांग्रेस ने तो 8 बार भाजपा ने इस सीट पर जीत दर्ज की।

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दल बदलकर चुनाव लड़ा

सांवेर से चुनाव लड़ने वाले दो उम्मीदवार ऐसे भी हुए जिन्होंने परस्पर पार्टी बदलकर चुनाव लड़ा। प्रेमचंद गुड्डू 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए थे। उन्होंने बेटे अजीत बौरासी को भाजपा के टिकट पर उज्जैन जिले की घटिया विधानसभा सीट से चुनाव लड़ाया। लेकिन, अजीत चुनाव हार गए थे। 2021 में कांग्रेस की सरकार गिरने के बाद प्रेमचंद गुड्डू फिर कांग्रेस में आ गए और पार्टी ने उन्हें सांवेर में 2021 में हुए उपचुनाव में टिकट दिया। तुलसी सिलावट अपने नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस और मंत्री पद छोड़कर आए और भाजपा में शामिल होकर फिर मंत्री बन गए। भाजपा ने उन्हें फिर से सांवेर से उम्मीदवार बनाया और वे गुड्डू को हराकर चुनाव जीते थे।

क्या कहता है चुनावी इतिहास

1962 में यहाँ हुए पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के सज्जनसिंह विश्नार चुनाव जीते। 1967 के चुनाव में भारतीय जनसंघ के बाबूलाल राठौर ने जीत का झंडा फहराया। 1972 में यहाँ से कांग्रेस राधाकिशन मालवीय जीते। लेकिन, आपातकाल के बाद बदली परिस्थितियों में 1977 के चुनाव में इस सीट से जनता पार्टी के अर्जुन सिंह धारू ने विजय पताका फहराई। 1980 के विधानसभा चुनाव में जीत भाजपा के प्रकाश सोनकर के नाम रही। 1985 में पहली बार यहाँ से तुलसी सिलावट ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत गए।

इसके बाद 1990 और राम मंदिर मामले पर हुए बवाल के बाद भंग हुई विधानसभा के बाद 1993 में हुए चुनाव में भाजपा के प्रकाश सोनकर ने फिर यह सीट अपने नाम की। लेकिन, 1998 में कांग्रेस के प्रेमचंद गुड्डू को फिर मतदाताओं ने चुन लिया। 2003 और 2008 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा के प्रकाश सोनकर को मतदाताओं ने लगातार दो बार चुनाव जिताया। इसके बाद 2013 के चुनाव में यहाँ से भाजपा के राजेश सोनकर चुने गए। लेकिन, 2018 में जीत फिर कांग्रेस के तुलसी सिलावट के नाम रही। लेकिन, 2020 के उपचुनाव में तुलसी सिलावट भाजपा में शामिल होकर मैदान में उतरे और जीत का झंडा गाड़ा।

 

2023 के उम्मीदवार

भाजपा की उम्मीदवारी यहां पहले से लगभग तय मानी जा रही थी। यहां से भाजपा ने फिर तुलसी सिलावट को ही मैदान में उतारा। सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़ने के बाद उन्होंने भाजपा में भी अपनी जड़ों को मजबूत भी किया है। लेकिन, कांग्रेस के पास अभी सिलावट के कद वाला कोई नेता नहीं है। कांग्रेस ने इस बार प्रेमचंद गुड्डू के बजाए उनकी बेटी रानी सेतिया बौरासी को मौका दिया। सांवेर के पिछले चुनाव में रानी ने सक्रियता भी दिखाई थी। खुद प्रेमचंद गुड्डू भी कोशिश में थे, पर इस बार पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया।