राज-काज: नतीजों को लेकर आला अफसरों की भी उड़ी नींद….

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राज- काज: नतीजों को लेकर आला अफसरों की भी उड़ी नींद….

– विधानसभा चुनावों की मतगणना का भाजपा- कांग्रेस को बेसब्री से इंतजार है ही, इसे लेकर प्रदेश के दो दर्जन से ज्यादा आला अफसरों की नींद भी उड़ी हुई है। अफसरों में जिलों में पदस्थ कलेक्टर और एसपी ज्यादा हैं। चुनाव प्रचार के दौरान पक्षपात को लेकर इनके खिलाफ भाजपा और कांग्रेस दोनों ने शिकायतें की हैं। भिंड कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव, छतरपुर कलेक्टर संदीप जीआर और छतरपुर एसपी अमित सांघी सहित कुछ अफसर ऐसे हैं, जिनकी शिकायत दोनों दलों की ओर से हुई है। पहले भाजपा ने भिंड कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव पर कांग्रेस के पक्ष में काम करने का आरोप लगाया था, बाद में नेता प्रतिपक्ष भी इनके खिलाफ चुनाव आयोग पहुंच गए। इसी प्रकार राजनगर में कांग्रेस कार्यकर्ता सलमान की हत्या के मामले में वहां के कलेक्टर-एसपी पर भी दोनों दलों ने पक्षपातपूर्ण कार्रवाई का आरोप लगाया। शिकायतों के दायरे में आने वाले आईएएस और आईपीएस अफसरों को भी नतीजों का बेसब्री से इंतजार है। यदि प्रदेश में सत्ता परिवर्तन होता है तो अधिकांश कलेक्टर-एसपी का बदला जाना तय है लेकिन सजा उन्हें ज्यादा मिलेगी जिन पर भाजपा का एजेंट बनकर काम करने का आरोप है। भाजपा की फिर सत्ता में वापसी होती है तो उन पर गाज गिरेगी, जिन पर कांग्रेस को लाभ पहुंचाने का आरोप है। लिहाजा नींद उड़ना स्वाभाविक है।

 रहली के भार्गव की राह पर शिवपुरी में कक्का जी….

– विधानसभा चुनाव के दौरान अलग स्टाइल के नेताओं में रहली से चुनाव लड़ रहे भाजपा के दिग्गज पीडब्ल्यूडी मंत्री गोपाल भार्गव की गिनती होती है तो कांग्रेस के कद्दावर नेता केपी सिंह कक्का जी भी लगभग इसी राह पर चलते दिखे। मौजूदा दौर में कोई चुनाव बिना प्रलोभन नहीं लड़ा जाता। पैसा, शराब, साड़ी, कंबल आदि का बंटना आम है। न गोपाल भार्गव के पास पैसे की कमी है, न ही केपी सिंह के पास। दोनों अब तक कोई चुनाव नहीं हारे।

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भार्गव तीन चुनाव से न क्षेत्र में प्रचार करने निकल रहे, न अपने क्षेत्र में सभा के लिए किसी बड़े नेता को बुलाया। दूसरी तरफ कक्काजी ने इस बार अपने परंपरागत क्षेत्र पिछोर से बाहर निकलकर ताल ठोंकी है। वे शिवपुरी से चुनाव लड़ रहे हैं। उन्होंने खुद शिवपुरी को चुना या कांग्रेस नेतृत्व ने उन्हें पिछोर से हटाकर शिवपुरी भेज दिया, इसे लेकर मतभिन्नता हो सकती है। खास यह है कि न रहली क्षेत्र में भार्गव ने मतदाताओं को लुभाने के लिए पैसा, पायल, साड़ी, कंबल और शराब का सहारा लिया, न ही कक्काजी के क्षेत्र से ऐसी कोई खबर है। चूंकि कक्का जी के लिए शिवपुरी नया क्षेत्र था, इसलिए उन्होंने दिन-रात एक किया। भार्गव अपनी परंपरागत सीट रहली से लड़ रहे थे, इसलिए पिछले दो चुनाव की तहर इस बार भी वे प्रचार के लिए बाहर नहीं निकले। मतदान के दिन भी उन्होंने स्कूटी से जाकर अपना वोट डाला।

मतदान बाद दिग्विजय की सक्रियता देख सब दंग….

– दिग्विजय सिंह बेवजह ही सबसे चर्चित नेताओं में शुमार नहीं हैं। इसके लिए वे हमेशा लीक से अलग हटकर कुछ करते दिखते भी हैं। आमतौर पर विधानसभा चुनाव के बाद नेता थकान मिटाने और विश्राम की मुद्रा में रहते हैं लेकिन दिग्विजय मतदान के अगले ही दिन राजनगर विधानसभा क्षेत्र जा पहुंचे। यहा मतदान की पूर्व रात कांग्रेस के एक कार्यकर्ता की मौत हो गई थी। भाजपा प्रत्याशी अरविंद पटैरिया और अन्य के खिलाफ हत्या का प्रकरण दर्ज हुआ था।

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दिग्विजय कांग्रेस विधायकों व अन्य नेताओं के साथ पटेरिया की गिरफ्तारी की मांग हो लेकर धरने पर बैठ गए। पूरी रात उन्होंने राजनगर थाने के सामने कंबल ओढ़कर गुजारी। पुलिस अधीक्षक के आश्वासन पर उन्होंने धरना समाप्त किया। वहां से वे सीधे सागर जिले के गढ़ाकोटा पहुंच गए। यहां कांग्रेस प्रत्याशी ज्योति पटेल पर हमला हुआ था। आरोप भाजपा प्रत्याशी और भाजपा के कद्दावर नेता गोपाल भार्गव पर था। दिग्विजय ने घटनास्थल का मौका मुआयना किया। कार्यकर्ताओं के घर जाकर घटना की जानकारी ली। हालांकि यहां उन्होंने गोपाल भार्गव के खिलाफ कोई बयान नहीं दिया, सिर्फ इतना कहा कि भार्गव महाबली हैं। वे चुनाव वैसे भी जीत जाते, उनसे ऐसी उम्मीद नहीं थी। इस उम्र में दिग्विजय की यह सक्रियता देख सब दंग हैं।

 लुटा-पिटा न छोड़ दे प्रत्याशियों का यह अंतिम अस्त्र….

– विधानसभा के इस चुनाव में कुछ प्रत्याशियों द्वारा प्रचार के अंतिम समय में इस्तेमाल किए गए एक अंतिम अस्त्र की चर्चा जमकर हो रही है। यह अस्त्र इन्हें लुटा-पिटा भी छोड़ सकता है। इसका इस्तेमाल उन प्रत्याशियों ने किया है जिन्हें लगा कि प्रचार के अंतिम समय में वे प्रतिद्वंद्वी से पिछड़ रहे हैं। धन की कमी इनके पास थी नहीं, लिहाजा इन्होंने अंतिम अस्त्र के रूप में जमकर पैसे का उपयोग किया। पैसा नगद बांटा और खरीद कर मतदाताओं तक उपहार भी बंटवाए। राजनीतिक हल्कों में चर्चा है कि पानी की तरह पैसा बहाने वाले इनमें से कई प्रत्याशी चुनाव हार सकते हैं। इसका मतलब यह होगा कि मतदाताओं ने पैसा और उपहार ले लिया और वोट भी नहीं दिया। ऐसा हुआ तो राजनीति के बाजार में ये लुटे-पिटे नजर आएंगे। उन प्रत्याशियों की हालत ज्यादा खराब होगी, जिन्होंने जीत की उम्मीद में कर्ज लेकर या अपनी संपत्ति बेचकर चुनाव लड़ा और पैसा बांटा। मजेदार बात यह है कि ऐसे प्रत्याशियों के मुकाबले उनकी जीत की चर्चा हो रही है, जिन्होंने चुनाव में पैसा खर्च ही नहीं किया। खर्च के लिए इनके पास पैसा था भी नहीं। लिहाजा, उन्होंने अपना ध्यान व्यवस्थित चुनाव प्रचार और मतदाताओं से संपर्क में ही केंद्रित रखा। चुनावी चौपालों में ऐसे चुनाव क्षेत्रों की चटखारे लेकर चर्चा हो रही है।

इस निर्दलीय को भाजपा ने निकाला, कांग्रेस ने भी….

– विधानसभा का यह चुनाव कई मायने में यादगार रहेगा। मजे की बात यह है कि कुछ दावेदार ऐसे थे जो भाजपा से टिकट मांग रहे और कांग्रेस से भी। दोनों ने टिकट नहीं दिया तो निर्दलीय मैदान में डट गए। भाजपा और कांग्रेस ने बगावत करने वालों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की तो दोनों दलों की सूचियों में भी ऐसे कुछ प्रत्याशियों के नाम थे। इनमें एक हैं छतरपुर जिले की मलेहरा विधानसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले करन सिंह लोधी।

BJP and Congress

ये जिला पंचायत के सदस्य भी हैं। भाजपा- कांग्रेस ने भी लोधी समाज से ही टिकट दिया है। भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं प्रद्युम्न सिंह लोधी और कांग्रेस की प्रत्याशी हैं रामसिया भारती। भारती भी लोधी समाज से हैं। बगावत करने वाले करन सिंह भी लोधी हैं। करन सिंह कितने वोट ले पाते हैं यह तो कोई नहीं बता सकता लेकिन वे ऐसे बागी प्रत्याशियों में शुमार हो गए हैं, जिन्हें भाजपा और कांग्रेस दोनों ने पार्टी से 6 साल के लिए निकाला है। दरअसल, मलेहरा सीट में लोधी समाज के मतदाताओं की तादाद सबसे ज्यादा है। इसलिए हर दल इसी समाज के किसी नेता को टिकट देने की कोशिश करता है। हालांकि यहां से दो बार रेखा यादव और एक बार उमा यादव भी चुनाव जीती हैं, क्योंकि यहां यादव मतदाता भी लोधी समाज के लगभग बराबर हैं।

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