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Loksabha Election 2024:सांसदों के इस्तीफे,भाजपा का चुनावी शंखनाद
भारतीय जनता पार्टी की लोकसभा चुनाव की तैयारियों का अनुमान इस एक घटना से ही लगाया जा सकता है कि उसके उन 12 सांसदों(11 लोकसभा,1 राज्यसभा) ने इस्तीफा दे दिया है, जो मध्यप्रदेश(5),छत्तीसगढ़(3) व राजस्थान(4) से विधानसभा चुनाव जीतकर आये हैं। इससे यह भी स्पष्ट हो गया कि ये नेता अब अपने प्रदेश की राजनीति मे सक्रिय रहेंगे। दूसरा यह कि उन 11 लोकसभा सीटों पर अब नये प्रत्याशी घोषित किये जायेंगे। एक और बड़ा संदेश इसमें यह भी छुपा है कि इस बार भी भाजपा अपने उन सांसदों को प्रत्याशी नहीं बनायेगी, जिनका उल्लेखनीय योगदान नहीं रहा या जो निष्क्रिय रहे या जिनकी शिकायतें रहीं । ऐसे दो दर्जन सांसद बदले जाने की संभावना है। इस बार उसका लक्ष्य 400 पार का है, जिसके लिये नये,ऊर्जावान चेहरे मैदान में उतारना जरूरी है।
अक्सर राजनीति पर चर्चा करते हुए कुछ लोग कहते हैं कि भाजपा-कांग्रेस में क्या फर्क है? उनके लिये यह जवाब है। जहां कांग्रेसी ईवीएम विलाप,रस्मी समीक्षा और एक-दूसरे पर ठीकरा फोड़ने में लगे हैं, वहीं भाजपा प्रदेश से राष्ट्रीय स्तर तक लोकसभा की मैदानी तैयारियों में जुट गई है। एक और उदाहरण देखिये। मप्र में भाजपा विधायक दल का नेता चुना जाना है, जिसके लिये कुछ नेता प्रयासरत भी हैं और दिल्ली आ-जा रहे हैं। वहीं वर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ऐलान किया है कि वे छिंदवाड़ा जा रहे हैं, जहां जिले की सभी 7 सीटें भाजपा हारी याने कांग्रेस जीती हैं। वे उस गड्ढे को भरने के जतन करेंगे और प्रदेश की 29 सीटों में से अभी भाजपा के पास जो 28 सीटें हैं, उनकी बजाय 29 सीटों रूपी कमल की माला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पहनायेंगे। यह है एक भाजपा कार्यकर्ता का मनोबल और संगठन के प्रति उसका समर्पण। जिस दिन कांग्रेसी कार्यकर्ता में यह भाव आ जायेगा,उस दिन कांग्रेस एक बार फिर मुकाबले में आ जायेगी।
खासकर राजस्थान,मप्र व छत्तीसगढ़ के चुनाव परिणामों से जो तस्वीर उभरी है,वह पहाड़ से निकली नदी के पानी के तले में साफ नजर आने वाले पत्थरों की तरह स्पष्ट है। संदेश साफ है कि लोग अब राष्ट्रीय नेतृत्व के तौर पर नरेंद्र मोदी के प्रति आकृष्ट हैं और स्थानीय मुद्दे उनसे पीछे हैं। यदि ऐसा न होता तो राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा को सत्ता शायद ही मिलती। ऐसे में यह स्वाभाविक तौर पर सवाल उठता है कि तब क्या मप्र में लाड़ली बहना ने जीत में योगदान नहीं दिया ? तो मैं कहना चाहूंग कि मध्यप्रदेश में सत्ता प्राप्ति में लाड़ली बहना सहायक बनी है, लेकिन प्रचंड जीत का एकतरफा श्रेय नरेंद्र मोदी को जाता है। चूंकि राजस्थान व छत्तीसगढ़ में लाड़ली बहना जैसी कोई योजना नहीं थी तो वहां केवल मोदी के नाम पर सत्ता मिली,जबकि वहां कांग्रेस सरकारें थीं और उन्होंने भी जनता के लिये ढेरों योजनाओं का पिटारा खोल दिया था,लेकिन मोदी मैजिक के आगे वह कमजोर साबित हुआ।
यह भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व की ही रणनीति थी कि उसने ऐन वक्त पर मप्र में मुख्यमंत्री का चेहरा सामने रखने की बजाय मप्र के मन में मोदी का नारा दिया, जिसने चुनाव वैतरणी पार लगा दी। जबकि कुछ माह पहले तक भाजपा मप्र में सरकार बरकरार रखने के प्रति आश्वस्त नहीं थी। भाजपा लोकसभा चुनाव में अपने समूचे प्रचार अभियान के केंद्र में नरेंद्र मोदी को ही रखेगी । उन्हें विकास पुरुष के तौर पर प्रचारित करेगी, जिसका निष्कर्ष यह रहेगा कि मोदी है तो विकास है। मोदी हैं तो मुमकीन है। भाजपा इस फार्मूले को अनेक बार आजामा चुकी है, जिसे वह रामबाण मानती है। इसके विपरीत कांग्रेस या अन्य विपक्षी राजनीतिक दल अभी किसी तरह की कार्य योजना ही नहीं बना पाये हैं। अभी तो उनकी एकता ही खतरे में है। लड़ाई में हथियारों के साथ-साथ रसद और रणनीति भी उतनी ही जरूरी होती है। जिस पर अभी तो विपक्ष में चितन भी नहीं है। जब तक ये किसी एक बिंदु पर सहमत होने को आयेंगे, तब तक भाजपा आधा सफर तय कर चुकी होगी। ऐसे में परिणामों के बारे में अभी से सोचा जा सकता है।
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रमण रावल
संपादक - वीकेंड पोस्ट
स्थानीय संपादक - पीपुल्स समाचार,इंदौर
संपादक - चौथासंसार, इंदौर
प्रधान संपादक - भास्कर टीवी(बीटीवी), इंदौर
शहर संपादक - नईदुनिया, इंदौर
समाचार संपादक - दैनिक भास्कर, इंदौर
कार्यकारी संपादक - चौथा संसार, इंदौर
उप संपादक - नवभारत, इंदौर
साहित्य संपादक - चौथासंसार, इंदौर
समाचार संपादक - प्रभातकिरण, इंदौर
1979 से 1981 तक साप्ताहिक अखबार युग प्रभात,स्पूतनिक और दैनिक अखबार इंदौर समाचार में उप संपादक और नगर प्रतिनिधि के दायित्व का निर्वाह किया ।
शिक्षा - वाणिज्य स्नातक (1976), विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन
उल्लेखनीय-
० 1990 में दैनिक नवभारत के लिये इंदौर के 50 से अधिक उद्योगपतियों , कारोबारियों से साक्षात्कार लेकर उनके उत्थान की दास्तान का प्रकाशन । इंदौर के इतिहास में पहली बार कॉर्पोरेट प्रोफाइल दिया गया।
० अनेक विख्यात हस्तियों का साक्षात्कार-बाबा आमटे,अटल बिहारी वाजपेयी,चंद्रशेखर,चौधरी चरणसिंह,संत लोंगोवाल,हरिवंश राय बच्चन,गुलाम अली,श्रीराम लागू,सदाशिवराव अमरापुरकर,सुनील दत्त,जगदगुरु शंकाराचार्य,दिग्विजयसिंह,कैलाश जोशी,वीरेंद्र कुमार सखलेचा,सुब्रमण्यम स्वामी, लोकमान्य टिळक के प्रपोत्र दीपक टिळक।
० 1984 के आम चुनाव का कवरेज करने उ.प्र. का दौरा,जहां अमेठी,रायबरेली,इलाहाबाद के राजनीतिक समीकरण का जायजा लिया।
० अमिताभ बच्चन से साक्षात्कार, 1985।
० 2011 से नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने की संभावना वाले अनेक लेखों का विभिन्न अखबारों में प्रकाशन, जिसके संकलन की किताब मोदी युग का विमोचन जुलाई 2014 में किया गया। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को भी किताब भेंट की गयी। 2019 में केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के एक माह के भीतर किताब युग-युग मोदी का प्रकाशन 23 जून 2019 को।
सम्मान- मध्यप्रदेश शासन के जनसंपर्क विभाग द्वारा स्थापित राहुल बारपुते आंचलिक पत्रकारिता सम्मान-2016 से सम्मानित।
विशेष- भारत सरकार के विदेश मंत्रालय द्वारा 18 से 20 अगस्त तक मॉरीशस में आयोजित 11वें विश्व हिंदी सम्मेलन में सरकारी प्रतिनिधिमंडल में बतौर सदस्य शरीक।
मनोनयन- म.प्र. शासन के जनसंपर्क विभाग की राज्य स्तरीय पत्रकार अधिमान्यता समिति के दो बार सदस्य मनोनीत।
किताबें-इंदौर के सितारे(2014),इंदौर के सितारे भाग-2(2015),इंदौर के सितारे भाग 3(2018), मोदी युग(2014), अंगदान(2016) , युग-युग मोदी(2019) सहित 8 किताबें प्रकाशित ।
भाषा-हिंदी,मराठी,गुजराती,सामान्य अंग्रेजी।
रुचि-मानवीय,सामाजिक,राजनीतिक मुद्दों पर लेखन,साक्षात्कार ।
संप्रति- 2014 से बतौर स्वतंत्र पत्रकार भास्कर, नईदुनिया,प्रभातकिरण,अग्निबाण, चौथा संसार,दबंग दुनिया,पीपुल्स समाचार,आचरण , लोकमत समाचार , राज एक्सप्रेस, वेबदुनिया , मीडियावाला डॉट इन आदि में लेखन।