चीता प्रोजेक्ट सफल होने के बाद, गिर के शेरों को कूनों में शिफ्ट करने को लेकर वन विभाग हुआ सक्रिय

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चीता प्रोजेक्ट सफल होने के बाद, गिर के शेरों को कूनों में शिफ्ट करने को लेकर वन विभाग हुआ सक्रिय

 

भोपाल। कूनो में चीता प्रोजेक्ट सफल होने के बाद गिर के शेरों को शिफ्ट करने की दिशा में वन विभाग 6 साल के बाद एक बार फिर सक्रिय हुआ है। कें द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से वन विभाग एक बार फिर बैठक करने की नीति बना रहा है। वन्य प्राणी शाखा के पीसीसीएफ शुभ्ररंजन सेन ने बताया कि अभी इस मामले में वन्य प्राणी शाखा कोई ठोस निर्णय नहीं लिया है। लेकिन चीता के साथ बब्बर शेर को बसान को लेकर वन विभाग शुरू से गंभीर है। वन्य प्राणी से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि लोकसभा चुनाव के बाद ही वन विभाग इस संदर्भ में कोई नीति बना सकता है। एशियाई लॉयन को कूनों में शिफ्ट करने को लेकर अब कोई कानूनी दाव- पेंच का मामला पूरी तरह से सुलझ चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश सरकार के पक्ष में वर्ष 2013 में अपना फैसला सुना चुका है। वर्ष 2018 में केंद्र सरकार ने कूनो में बब्बर शेर को शिफ्ट करने के लिए कहा था। जंगल के राजा बब्बर शेर को कूनों में शिफ्ट करने को लेकर वर्ष 1996-97 और वर्ष 2015-16 में केंद्र सरकार 2406.29 लाख रूपये खर्च भी कर चुकी है। गौरतलब है कि गिर अभयारण्य में बब्बर शेरों की प्रतिवर्ष मौत हो रही है। एशियाई लॉयन को बचाने के लिए कूनों में शिफ्ट करने की कार्ययोजना दो दशक पहले ही बन चुकी थी। लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में मध्यप्रदेश में बब्बर शेर नहीं आ सका है। वन एवं पर्यावरण मंत्री नागर सिंह चौहान ने कहा कि लोकसभा चुनाव के बाद इस मामले को लेकर वन विभाग के अधिकारियों के साथ एक बैठक कंरूगा। बब्बर शेर को यहां लाने के लिए हर संभव प्रयास किया जाएगा। कूनों नेशनल पार्क में सहरिया जनजाति से जुड़े 24 ग्राम है। 20 विस्थापित परिवारों को मुआवजा देने का विभाग निर्णय ले चुका है।

चीता और बब्बर शेर साथ- साथ रहते हैं-

दक्षिण अफ्रीका में चीता और बब्बर शेर साथ- साथ रहते हैं। कूनों नेशनल पार्क में चीता को देखने के लिए पिछले दो साल के अंदर जिस तरह से सैलानियों की संख्या बड़ी संख्या में बढ़ी है। वन विभाग से जुड़े लोगों का कहना है कि अगर कूनों में बब्बर शेर को लाया जाता है तो यहां दर्शकों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ेगी। कूनों में चीता को रहते हुए दो साल से ज्यादा समय हो गया है। विभाग के लोगों का कहना है कि चीता भी भारतीय परिवेश में रहने के लिए अब पूरी तरह से अभ्यस्त हो चुका है। दो साल के बाद चीता अपने प्रजाति के साथ रहने के लिए अभ्यस्त हो जाता है।

6 साल पहले हुआ था पत्र व्यवहार-

कूनों में चीता को शिफ्ट होने से पहले तत्कालीन वन मंत्री उमंघ सिंघार ने गिर के शेरों को कूनों में बसाने के लिए केंद्र सरकार को पत्र लिखा था। लेकिन उसके बाद वन विभाग ने इस मामले को लेकर कोई पहल नहीं किया। लेकिन अब चीता प्रोजेक्ट सफल होने के बाद यह माना जा रहा है कि विभाग इस मामले में अब बहुत जल्द पहल करने वाला है। चीता अपने प्रजातियों के बीच रहते हुए उसकी जीवन प्रत्याशा भी बढ़ेगी और बब्बर शेर को बचाया जा सकता है।