अपनी भाषा अपना विज्ञान : भाषा बहता नीर – भाग 1- भाषा विज्ञान और न्यूरोलाजी

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अपनी भाषा अपना विज्ञान : भाषा बहता नीर – भाग 1- भाषा विज्ञान और न्यूरोलाजी

1.0 भाषा क्या है और क्या नहीं?

1.1 भाषा एक चमत्कार है जो इस समय हम और आप कर रहे है — चाहे आप मुझे सुन रहे हों या मेरा लिखा पढ़ रहे हो — यह चमत्कार जारी है । मेरे मुंह से निकलने वाली श्वास पर आधारित कुछ अजीब सी ध्वनियां हवा में तैर रही हैं। कहकहाहट, चहचहाहट, फुसफुसाहट, खरखराहट जैसा शोर आपके कानों के माध्यम से दिमाग में घुस कर छैनी चला रहा है — मस्तिष्क में सूक्ष्म सूक्ष्म रुपान्तरण कर रहा है। कुछ नये विचार व तथ्य रोपित कर रहा है ।

यही काम आंखों के माध्यम से होता जब हम पढ़ते हैं ।

मनुष्य के अलावा अन्य प्राणियों में भी सूचनाओं का संचार होता है, संवाद होता है, भावनाओं की अभिव्यक्ति होती है । लेकिन मनुष्य की भाषाओं की बात ही अलग है। कोई तुलना नहीं । बहुत बड़ी खाई है । भाषा सीमित ध्वनियों, सीमित शब्दों, सीमित नियमों द्वारा असीमित वाक्य और असीमित विचार गढ़ती है ।

1.2 भाषा एक अन्त: प्रज्ञा है। Language is an Instinct

प्राणियों के डार्विनियन विकास में अनेक नायाब अंग और हुनर विकसित हुए । जो उन्हें धारण करने वाली स्पीशीज द्वारा स्वयं की संतानों की संख्या बढ़ाने में मदद करते हैं । इन्सान द्वारा दो पैरों पर चलना, मछलियों के फिन और गिल, कछुए की पीठ पर ढाल, कुत्तो की घ्राण क्षमता, चील की आंख, चमगादड़ का रेडार, चिड़ियां का घोसंला बनाना, जिराफ की लम्बी गर्दन, प्रवाजक पक्षियों की हजारों मील की उड़ान, मकड़ी का जाल आदि आदि ।

मनुष्यों की भाषा भी इसी सूची में आती है । प्रत्येक नवजात शिशु के ब्रेन में भाषा रूपी Operating System फिट हो कर आता है । लेकिन यह प्रणाली अकेले इन्सान के बूते की बात नहीं । उसके लिये समाज चाहिये । भेड़िया बालक कभी भाषा नहीं सीखते ।

1.3 भाषा का लिखित स्वरुप, मूल रूप से भाषा नहीं है ।

इतिहास के किसी भी काल में, भूगोल के किसी भी कोने में, कोई भी मानव समूह ऐसा नहीं हुआ जिसके पास भाषा न हो । यह गाथा लगभग दस लाख वर्ष पूर्व आरम्भिक Homo जातियों के साथ शुरू हुई होगी, या उससे भी पहले ।

जबकि होमो सेपियंस (हम) दो लाख वर्ष पूर्व विकसित हुए । लेकिन भाषा का लिखित स्वरूप मुश्किल से 5000 वर्ष पहले पनपा । कुछ सीमित सभ्यताओं । सब में नहीं ।

जन्म से ही लिखने-पढ़ने की अन्तःप्रज्ञा नही आती । उसे तो सीखना पड़ता है ।

1.4 भाषा महज शब्द कोश और व्याकरण नहीं है ।

भाषा के नियम ऊपर से नहीं आते । नीचे से उभरते है । स्वतः पनपते है । जब चल पड़ती है तो उसके उपयोग का अध्ययन करके भाषा वैज्ञानिक ‘व्याकरण’ के सूत्र ढूंढते है शब्दों और अर्थों के मध्य में बहुविध सम्बन्धों को डिक्शनरियों में सूचीबद्ध करते है Language is a bottoms up process, not top down.

1.5 भाषा, विचार नहीं है ।

कुछ सीमित अर्थो में बिना भाषा के सोचना, विचार करना, अनुभव करना, अभिव्यक्त करना सम्भव है। नन्हे शिशु और पालतु पशुओं का अनुभव हमें यही बताता है ।

हम वयस्कों में भी बहुत सारा सोच बिना भाषा के होता है । हमारी भावनाएं, Emotions, रसनिष्पति, Sixth sense, Gut feeling, आंखों की जुबान, मुख मुद्रा, तन-भाषा, आवाज का लहजा आदि बिन बोले कितना कुछ कह जाते हैं । कहीं जाने के लिये Google map पर एक नज़र हमे गंतव्य पर पहुंचा सकती है जबकि उस मार्ग को शब्दों में बयां करना कतई जरुरी न हो । कहते हैं एक चित्र हजार शब्दों के बराबर होता है ।

बैजींन नामक एक कार्बनिक यौगिक की रासायनिक संरचना का चित्र रूप, एक वैज्ञानिक को सपने में दिखा था ।

आइन्सटाइन ने सापेक्षता सिद्धान की परिकल्पना को बन्द आंखों के साथ अनेक दृश्य रूपों में पाया था ।

अभी तक आपने जो सुना या पढ़ा, उसे यदि दोहराने का कहा जाये तो शब्दश: ऐसा कर पाना सम्भव नहीं होगा लेकिन उसका सार सार निष्कर्ष अनेक लोग कह पायेंगे, लिख पायेंगे हालांकि उनके वाक्य नितान्त भिन्न होंगे । स्मृति में जो रह जाता है वह Abstract होता है, अमूर्त होता है, विचार होता है, हुबहू भाषा नहीं होता । बिना भाषा के सीमित विचार सम्भव है । विस्तृत और समृद्ध और विचारों के लिये भाषा अनिवार्य है। E=mc2 को बिना भाषा समझाना असम्भव है । फिर भी भाषा स्वयं विचार नहीं है, हालाँकि वह विचारों की वाहक जरुर है ।

2.0 भाषा कैसे काम करती है ।

2.1 भाषा के अवयवों में से एक है “शब्द” “Words”.

शब्द एक इकाई है जिसका कोई अललटप्पू अर्थ होता है । कोई तर्क नही । कोई नियम नही । कोई साम्य नहीं । बस शब्द है और Arbitrary रूप से, बेतरतीब रुप से उसका एक अर्थ है । कभी कभी एक से अधिक अर्थ हो सकते हैं । एक उदाहरण लेते हैं । “घोड़ा” । यह ध्वनि [घो…ड़ा] न तो घोड़े जैसी दिखती है, न घोड़े जैसी हिन हिनाती है, न घोड़े जैसे दौड़ती है । लेकिन इस शब्द को सुनते ही आप सभी के मानस पटल पर घोड़े के कोई चित्र और उससे जुड़े अनेक तथ्य व स्मृतियां उभर आये होंगे । ऐसा इसलिये होता है कि हम सब हिन्दी भाषियों में इस लघु ध्वनि-पुंज का अर्थ साझा रूप से स्वीकार किया, अपने आप किया, किसी कोष-कार के आदेश से नहीं करा ।

एक शिक्षित स्नातक के मानस-कोश [Lexicon] की शब्द क्षमता गजब की होती है । लगभग 60,000 शब्द । 20 वर्ष उम्र में हासिल हो जाती है । प्रत्येक नये शब्द का अर्थ उसकी मन मर्जी का । उतना ही Arbitrary जितने कि टेलीफोन डायरेक्टरी में फोन नम्बर होते हैं । क्या कोई 60000 नंबर याद करता है ?  अर्थ कुछ ऐसे कि

जो नन्ही “एलिस” ले अपनी वण्डरलैण्ड में कहा था ।

“When I use a word, it means exactly what (I) want it to mean.”

हमारी भाषा शब्दों का अनियमित उल्टा पुल्टा क्रम नहीं है । उसके अपने नियम हैं ।

2.2 भाषा के नियम: व्याकरण [Grammar] और रूपविज्ञान [Morphology]

भाषाओं की मौलिक इंजीनियरिंग ट्रिक है [“असतत संयोजी प्रणाली”] [Discrete Combinatorial System.]

जो दो स्तरों पर काम करती है —

(अ) – वाक्यों के निर्माण में जिसकी ईटें हैं “शब्द” – और नियम है व्याकरण या grammar

(ब) – शब्दों के निर्माण में जिसकी ईटें है [ध्वनिम] [Phoneme] और [Morpheme] तथा उनके नियम है

Morphology — [रुप विज्ञान]

फोनीम या ध्वनिम से भी छोटी इकाई है Phonetic features.

2.2.1 रूपविज्ञान के कुछ उदाहरण [Morphology]

वाक्यों के समान शब्दों का गठन भी उनके अवयवों के सम्मिश्रण – संधि – संयोजन आदि प्रक्रियाओं से होता है ।

Inflectional morphology Derivational Morphology Compounding
Dog, Dogs

कुत्ता, कुत्ती, कुत्ते

दौड़ा, दौड़ेगा, दौड़ रहा है, दौड़ाया, दौडु?, दौड़ता, Run, ran, running (will) run

 — able

[Readable, Searchable, Adorable, Eatable]

पठनीय, शौधनीय, प्रसंशनीय, खाद्य

— ness        सफेदी, अच्छाई, बुराई

Whiteness, Goodness, Coldness, Sharpness    ठण्डापन, नुकीलापन

Tooth + Brush           Handbill

Mouse + Eater         Eyebrow

समास का निर्माण

2.2.2 Syntax व्याकरण

भाषा की रचनात्मकता [Creativity] और उर्वरता [Productivity, Fecundity] गजब की होती है । इसकी क्रान्तिकारी व्याख्या 1950-60 के दशक में महान भाषाविज्ञानी नोअम चॉम्स्की ने करी । हालांकि इस प्रकार के सोच की कुछ झलक 3000 वर्ष तक्षशिला में पाणिनी के काम में मिलती है।

कुछ गिने चुने Cliché [पिष्टोक्ति, रुढ़ोक्ति) को छोड़‌ कर हमारे भाषाई अनुभव में प्रति पल हम कोई नया वाक्य बोलते हैं या सुनते हैं । जी हाँ, नया मौलिक वाक्य ।

मैं दोहराता हूँ ——— “इस प्रकार के सोच की कुछ झलक 3000 वर्ष पहले तक्षशिला में पाणिनी के काम में मिलती है ।” मेरा दावा है कि हुबहु ठीक ऐसा ही वाक्य “न भूतो न भविश्यति है ।” विचार हो सकता है वाक्य नहीं ।

प्रतिदिन अरबों लोग, खरबों अवसरों पर खरबों प्रकार के नये नये मौलिक वाक्यों का सृजन करते हैं, या सृजन करने वाले के उच्छवास या चितरी हुई आकृतियों को समझते हैं ।

शब्दों का स्मृति भण्डार होता है लेकिन वाक्यों का नहीं । व्याकरण और रूप विज्ञान के सौ-पचास नियम होते हैं जिन्हें एक बच्चा, तीन वर्ष की उम्र तक आते-आते स्वत: आत्म सात कर लेता है । माता पिता या किसी शिक्षक द्वारा पढ़ाये जाने की जरूरत नहीं होती ।

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इन नियमों का निवास और निष्पत्ति हमारे मन [Mind] में अर्थात् [मस्तिष्क] में होती है । चॉम्स्की के अनुसार Linguistics is nothing without – Psycho-Linguistics. मनोभाषिकी के बगैर भाषाविज्ञान कुछ नहीं है ।

मानव मन को समझने के लिये भाषा विज्ञान एक खिड़की या कुंजी के समान है ।

व्याकरण के नियम, शब्दों के अर्थों से स्वतंत्र होते हैं । दोनों का अपना अपना अलग वजूद है । Syntax या ग्रामर की दृष्टि से इस वाक्य पर गौर कीजिये जिसमें कोई त्रुटि नहीं लेकिन अर्थ विज्ञान (Semantics) की नजर से वह अण्डबण्ड हैं ।

Colourless Green Ideas Sleep furiously.

 रंगहीन हरे विचार गुस्से में सोते हैं ।

(विशेषण) (विशेषण) (भाववाच्चक (क्रियाविशेषण) (क्रिया) संज्ञा)

इन्हीं शब्दों के क्रम को यदि हम उलटपुलट कर दें तो AI वाली मशीन Error Signal दे देगी ।

[हरे हैं गुस्से सोते रंगहीन में विचार]

यह भी अर्थ हीन है लेकिन इसे हम वाक्य भी नहीं कहेंगे । AI वालों ने बहुत मेहनत से दिमाग लगा करा Auto-Correction की सुविधा बनाई हैं जो कभी काम की होती है तो कभी अनर्थ कर देती है । उन्होंने Auto Suggestion के Tools भी बनायें है जिन्हें हम कभी स्वीकार करते हैं तो कभी Dismiss करते हैं । Grammarly जैसी अनेक, Paid applications हैं, जो हमारी शब्द चयन, वाक्यविन्यास और शैली को सुधारने का दावा करते हैं । हम हमेशा से सहमत नहीं होते ।

मुद्दे की बात यह है कि

Syntax does not consist of a string of word by word association, as in Stimulus Response, theories of behavioural psychology.

व्यवहारगत मनोविज्ञान की गई गुजरी मान्यताओं के अनुसार Stimulus होते हैं और Response होते हैं —

उद्दीपन या कारण होता है तथा प्रतिक्रिया या परिणाम होता है ।

उक्त सिद्धन्त भाषा पर लागू नहीं होते । बच्चों को भाषा की कितनी सीमित आवक मिलती लेकिन जावक/Output इतना प्रचुर ।

* यदि शब्द ‘अ’ आया है तो उसके आगे शब्द ‘ब’ य ‘स’ या ‘द’ के आने की सम्भावना इतने-इतने प्रतिशत होगी, ऐसे Algorithm भाषा पर थोपना गलत हो जाता हैं ।

भाषा कही अधिक कठिन और मौलिक होती है ।

वाक्यों में और संवाद /कथोपकथन /Discourse में लम्बी दूरी की निर्भरताएं होती है। Long Distance Dependencies ।

आइये निम्न बक्य पर फिर गौर करते हैं

वाक्य के के आरम्भ में “यदि” है तो आगे कही जाकर “तो” जरुर आयेगा ।

“बात निकलेगी तो दूर तलक जायेगी”

एक और उदाहरण —

“गर तुम मुझे न चाहो, तो कोई बात नहीं, किसी और को चाहोगी तो मुश्किल होगी ।”

वाक्यों का मतलब, शब्दों की एक लड़ी नहीं होता । उसके विन्यास में वृक्ष की शाखाओं के फूटने की नियम बद्ध प्रणाली होती है ।

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The Rajasthan Royals will win the world cup soon.

भाषाई व्याकरण के नियम खुली खुली रचनात्मकता का साधन बनते हैं । जैसे गणित में संख्याएं अनन्त होती हैं वैसे ही भाषा में वाक्यों की विविधता अनन्त होती है । तीन वर्ष के बच्चे को शब्द और अर्थ याद रखने पड़ते हैं परन्तु Syntax के नियम और उनके आधार पर बनने वाले नये नये वाक्य नही रटना पड़ते ।

एक बच्चे को चित्र दिखाया और कहा

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This is a Wug.

फिर दूसरा चित्र दिखाया और पूछा ये क्या है —

बच्चे ने कहा दो….. Wugs

देखते ही देखते तमाम नियम आत्मसात हो जाते हैं । वयस्कों में विदेशी भाषा सीखते समय यही काम बहुत कठिन व श्रम साध्य होता है ।

ऐसा लगता है कि दुनिया की सभी भाषाओं की व्याकरण को संधारित करने वाला Operating System एक ही होता है । Universal Grammar द्वारा वाक्यों  की सृजन प्रक्रिया में एक Deep structure गठित होता है । प्रजनक व्याकरण । (Generative Grammar) द्वारा एक Surface Structure बनता है ।

2.3 Phonology ध्वनिविज्ञान

प्रत्येक भाषा में “ध्वनिम” की संख्या और सदस्यता थोड़ी थोड़ी अलग होती है । मराठी का ळ हिंदी में नहीं है । तमिल में ‘ख’, ‘घ’ नहीं है । भोजन के पश्चात मेरा तमिल मित्र कहता है “मैंने काना का लिया” ।

जब में लोकमान्य तिलक बोलता हूँ तो मेरे मराठी मित्रों के चेहरों पर एक रेखा आ जाती है । मैं अभ्यास करता हूँ, ‘तिळक’. पंजाबी में भगवान को पगवान कहते है । जापानी लोग ‘ल’ के स्थान पर ‘र’ बोलते है ।

मेरे एक जापानी मित्र ने कहा:

In Japan also, we are very much interested

in Clinton’s “ERECTION” (Election)

बचपन से जो Phonemes या ध्वनिम सुने उन्हें ही हमारा बाजा बजा पाता है और कान सुन पाते है — हमारे बाजे की फिटिंग स्थायी बन जाती है । बड़े होते होते, दूसरी भाषा बोलते समय हम उस भाषा की ध्वनियों को हमारी प्रथम भाषा की ध्वनियों की शैली में ही बोल पाते है ।

इसे Accent या लहजा कहते है ।

आस्ट्रेलिया में हम वहां के Aborigines मूल निवासियों से बात कर रहे थे । उन्होंने हमने प्रसन्नता और गर्व से बताया कि भारत के गोंड आदिवासियों और उनकी भाषा की ध्वनियों व लय खूब मिलते है । यदि दूर से एक समूह को बातचीत करते सुनें तो लगेगा मानो अपनी ही भाषा में बात कर रहे है ।

एक न्यूरोलाजिस्ट के रूप में पिछले 40 वर्षो में मैंने चार पांच मरीज ऐसे देखे हैं जिनका Accent लहजा बदल गया । घर वा गाँव वाले कहते ‘इसकी बानी अंग्रेजों जैसी हो गई।’ ‘साला ये तो साहब बन गया।’

इस अवस्था का नाम है Foreign Accent Syndrome. मस्तिष्क द्वारा उच्चारण में काम आने मांसपेशियों को संचालित करने वाले एक छोटे से भाग में रोग आने से ऐसा होता है । अच्छे Mimicry आर्टिस्ट यही काम सायास कर लेते हैं ।

2.4 भाषा के अतर्पटल Interfaces of Language

आवक – जावक, Input : Output, सृजन – ग्रहण, Decoding : Encoding, Reception : Production

2.4.1 भाषा का बाहर निकलना

इस वादक की बाहर निकलने वाली सांस पर कितने सारे बटन, छेद, पिस्टन आदि खेला करते हैं और मधुर संगीत की सृष्टि करते हैं ।

वाणी क्या है ? हमारे फेफड़ों से बाहर निकलते वायु की नदी पर खेला है । यह खेला कौन करता है ?

बांसुरी के छेद ! सेक्सोफोन के पिस्टन । हमारी एनाटॉमी में यही काम करते हैं निम्न अंग: —

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(i)   Vocal cords   स्वर तंतु

(ii)  Pharynx   ग्रसिका

(iii) Soft Palate — nasal cavity. नरम तालु, नासिका मार्ग

(iv)  Tongue — base, mid, tip. जीभ पश्च, मध्य और अग्रभाग

(v)   Cheek muscles गाल की मांसपेशिया

(vi)  Jaw muscles — जबड़े की मांसपेशिया up-down, side wards, back-front

(vii) Lips      होंठ

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उपरोक्त छिद्रों, पिस्टन्स आदि को चलाने वाली मांसपेशियों की सूक्ष्म त्वरित गतियों का नियंत्रण बायोलोजिकल इंजीनियरिंग का एक चमत्कार है ।

हमारे फेफड़ें इलास्टिक गुब्बारे के समान है । उसके मुंह को ढीला छोड़ दो तो फुस्स से हवा निकाल जाती है । लेकिन बोलते समय हम उस उच्छवास को Control करते हैं । हौले-हौले टूकड़े-टूकड़े में थोड़ी-थोड़ी सांस् छोड़ते हैं, छोटी छोटी सांसे अन्दर भरते है । जैसा वाक्य वैसा उच्छवास । शंकर महादेवन के Breathless गायन में कार्बन डाय आक्साइड के ऊपर Lyrics and music हावी हो जाते है ।

मानव स्वर में इतनी विविधता के पीछे एनाटॉमी में परिवर्तनों को डार्विन ने नोट करा था । हमारा Larynx (स्वरयंत्र) अन्य प्राणियों की तुलना में बहुत नीचे रहता है ताकि Pharynx और जीभ को ज्यादा खेला करने का स्थान मिल जाये । हालांकि इसकी एक कीमत चुकानी पड़ती है। The Risk of Aspiration । निगलते समय खाद्य पदार्थ की कुछ मात्रा का भोजन नली [esophagus] के बजाय श्वास नली [trachea] में चले जाना ।

2.4.2 भाषा को सुनकर समझना

सुनी जा रही भाषा को मस्तिष्क द्वारा Decode कर पाना बायोलाजी का एक और चमत्कार है । भाषा-बोध [Language instinct] का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है । शब्द एक धोका है ? शब्द कृत्रिम है ? कहां शुरू कहां खत्म जबकि Spectrograph सतत है । हमारा मस्तिष्क ध्वनियों में शब्द ढूंढ़ता है । ध्वन्यात्म दृष्टि से भाषा का स्पेक्ट्रोग्राफ सतत होता है । यदि हमें भाषा आती है तो हम शब्द पहचान लेते है । विदेशी भाषा में ऐसा करना सम्भव नही होता ।

मोर की पुकार में मैं और मेरी पत्नी “नीरू” “नीरू” सुनते हैं । मिट्ठू की नकल, सिर्फ नकल होती है । मैना की श्वास नली पर वाल्व होते है जिन्हें बजाकर वह का भ्रम पैदा करती है । Sine Wave Speech कम्प्यूटर जनित होती है । विदेशी भाषा की फिल्मों के Subtitles पढ़ते-पढ़ते और अभिनेताओं के होठों की गतियां देखते-देखते हम उनकी आवाजों में अपनी भाषा सुनने लगते हैं । लिखित शब्दों को बीच खली स्थान होता है । लेकिन बोले गये शब्दों के बीच कोई गेप नहीं होता । विदेशी भाषा हमें ध्वनि की निरंतरता के रूप में सुनाई पड़ती है । सुने और पढ़े गये शब्दों का प्रथम मिलान मस्तिष्क में मौजूद शब्द कोश से होता है । यदि Entry मौजूद है तो उसे अर्थ-भण्डार के डिपार्टमेंट में Meaning जानने के लिये भेजा जाता है । न केवल अर्थ वरन अन्य शब्दों से रिश्तों की फेहरिस्त भी पेश हो जाती है । वाक्यों में उपयोग के नमूने पेश हो जाते है ।

3.0 भाषा का विकास (Evolution of Language)

लिखित भाषा के शिलालेख मिल जाते है लेकिन वाचिक भाषा अपने पीछे कोई फसिल्स या पॉटरी नहीं छोड़ जाती । क्या तरीका है आरम्भिक भाषाओं [Proto—Languages] के बारे में जानने का ।

लगभग 2 लाख साल पहले Homo Sapience का आविर्भाव हुआ । अन्य होमो स्पीशीज 10 लाख साल पहले से थी । इन सबकी भाषाएँ जरुर रही होंगी । वर्तमान समय में हम अध्ययन करते हैं ऐसे कबीलों की भाषा का जो शेष आधुनिक मानव समाज से पूरी तरह कटे रहे है । इनके छोटे-छोटे समूह होते है। प्रत्येक की भाषा पृथक । दो समूह के सदस्य जब आपस में साथ रहना शुरू करते हैं। तो PIDGIN विकसित होती है ।

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[गिरमिटिया मजदूर या अश्वेत गुलाम जब परदेश पहुंचे तो [पिडगिन] बनी । एक शब्द समूह और उनकी लघु श्रंखलाएं जो अलग अलग भाषाओं से ली गई और उनमें वाक्य बनाने की व्याकरण मौजूद नही है ।

मानों एक टूरिस्ट ने किसी विदेशी भाषा के गिने चुने शब्द रट लिये  हों । प्रिंस फिलिप को न्यूगिनी द्वीप के बाशिंदों ने नाम दिया था Fella belong Mrs. Queen.

[पिडगिन] का अगला पड़ाव होता है क्रियोल [Creole] बच्चों की एक या दो पीढ़ी लगती हैं। व्याकरण बनने लगती है ।

महज सवासौ साल पहले की घटना है । प्रशान्त महासागर के हवाई द्वीप समूह में गन्ने की खेती के लिये मजदूरों की जरूरत पड़ी । चीन, जापान, पुर्तगाल और फिलीपींस से लाए गये मजदूरों के बीच फटाफट पिडगिन विकसित हो गई । अगली पीढ़ी में बच्चों द्वारा “हवाईयन क्रियोल” का जन्म हुआ । जिसकी ग्रामर इन बच्चों के मन मस्तिष्क में स्वत: स्फूर्त बनी, किसी ने पढाई नहीं । Creolization of children can be observed in real time

बच्चो में क्रियालीकरण हमारे देखते देखते देखा जा सकता है ।

3.1 साइन भाषा Sign Language

ऐसा ही कुछ गूंगे-बहरों की साइन भाषा Sign Language के साथ होता है ।

साइन भाषा को लोग गलत समझते हैं । इसमें हावभाव, मुखमुद्रा, इशारे, Symbols आदि नहीं हैं । इसे पढ़ाया नहीं जाता हैं । यह भी Pidgin और क्रियोल अवस्थाओं से गुजर कर विकसित होती है । बच्चों में किसी भी भाषा के विकास के लिये उसे बोलने वालों के एक समुदाय की जरुरत होती है जो साथ में समय गुजारता है । वैसे ही गूंगे-बहरों के समुदाय में Sign Language का अपने आप जन्म होता है । उन्हें बस आपस में छोड़ दो । देखते ही देखते समृद्ध Vocabulary और Grammar बनने लगते हैं । व्याकरणकर्ता बाद में आते हैं । भाषा पहले । अलग-अलग देशों के भिन्न समुदायों में Sign Language के विविध रूप पनपते हैं । कुछ समानताएं होती हैं । बहुत सरे अन्तर होते हैं । यदि बहरे शिशु के माता-पिता भी बहरे हो, तो Sign Language समृद्ध बनती हैं, बजाय कि तब, जब माता-पिता बहरे न हों ।

4.0 बहुभाषिता

आप लोगों में कितनों को सिर्फ एक भाषा आती है — जैसे कि केवल हिन्दी ? हाथ उठाइ‌यो । कितनों को के दो भाषाएं आती है? हिन्दी के साथ एक कोई सी भी और? कितनों को तीन या अधिक भाषाएं आती है?

भारत सहित दुनिया के अधिकांश देशों के नागरिक बहु‌भाषी है। हमें इसका गर्व होता चाहिये ।

एक-भाषिता या तो ग्रामीण, आदिवासी अल्पशिक्षित लोगों में मिलेगी या अंग्रेजी जानने वाले अमीर देशों में – अमेरिका, इंग्लैण्ड, ऑस्ट्रेलिया और सिर्फ चीनी भाषा बोलने वाले चीन में ।

बहु‌भाषी और बहुलिपिज्ञ होना मस्तिष्क के लिये अच्छा है । NIMHANS बैंगलौर में, मेरी मित्र डॉ. सुवर्णा और एडिनबर्ग, स्कॉटलैण्ड से मेरे मित्र थामस बाक की शोध से सिद्ध हुआ है कि बहु‌भाषी लोगों में एल्जीमर्स रोग /डिमेन्शिया कम होता है, देर से होता है । बाद की उम्र में भी नई भाषा सीखने से मस्तिष्क के न्यूरल नेटवर्क समृद्ध और पुख्ता होते हैं।

मेरी शोध के विषय वाचाघात /अफेजिया में द्विभाषी मरीजों में रोग की तीव्रता कम होती है, सुधार तेज होता है, वाणी चिकित्सा बेहतर हो जाती है ।

बहुभाषिता को प्रामाणिक तरीके मापने के लिये अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त लोकप्रिक एक पैमाना है LEA-P-Q Language Experience And Proficiency – Questionnaire जिसका हिन्दी प्रारूप मैंने बनाया और इस लिंक पर उपलब्ध है । [ https://bilingualism.northwestern.edu/wp-content/uploads/2021/03/LEAP-Q-Hindi.doc ]

अफेजिया /वाचाघात से प्रभावित बहु‌भाषी मरीजों में आमतौर पर वह भाषा अधिक प्रभावित होती है जो बाद में सीखी गई । प्राथमिक या मातृभाषा बची रह जाती है। लेकिन कभी कभी अपवाद भी मिलते हैं ।

बहु‌भाषिता के अनेक पहलू है । कौन सी भाषा कब सीखी, कितनी सीखी, कितनी काम में आती है, भावनात्मक लगाव कैसा है? किन परिस्थितियों में सीखी, कब छूट गई, केवल बोलना सीखा या लिखना-पढ़ता थी, कौन सी लिपियां आती है?

बहुभाषी लोगों में भाषाओं का मिश्रण होता है कहीं कम, कहीं ज्यादा । सम्पर्क में आने वाले समाज में कौन सी भाषा बोली जा रही है । कितने मिश्रण वाली भाषा चालू है, इस पर भी निर्भर करता है ।

कोड मिश्रण – Code Mixing एक प्रकार का Hybrid है — जैसे काजल की स्याही से तूने लिखी है न जाने कितनों की लव-स्टोरियां । एक ही वाक्य में संकर-पना दिखता है । या फिर “जब वी मेट”

कोड-स्विचिंग तब होता है जब एक वाक्य या वाक्यांश की एक भाषा को दूसरी में व्याकरणीय दृष्टि से पुन: संरचित किया जाता है ।

“तुम्हें नहीं पता, She is daughter of The CEO, यहां दो चार दिन के लिये आई है । मैंने सोचा, I should introduce my self to her.

कोड मिश्रण और कोड-स्विचिंग पर के अनेक पहलुओं पर बहुत शोध हुई है ज़ो इस वक्तव्य या आलेख के दायरे से बाहर की है ।

5.0 भाषा और लिपि

भाषा लिपि नहीं है । भाषा मूल स्वरूप में वाचिक है। डार्विनियत विकास में मानव मस्तिष्क पढ़ने के लिये नहीं बना था । इस हेतु न तो कोई जीन्स हैं, न कोई अंग । जबकि बोलने- सुनने के लिये हैं ।  अन्य कार्यों के लिये ब्रेन में जो सर्किट बने, उन्हीं को ट्रेनिंग देकर इन्सान पढ़ना लिखना सीखता है । As a by procduct or Secondary Use. जन्म से हमारे दिमाग में कोई पठन-केन्द्र या लेखन केन्द्र नहीं होते ।

मानव इतिहास साक्षी है कि जब भी कोई नया अविष्कार, नयी तक्नालाजी विकसित होती है — [जो कि अनिवार्य रूप से स्वतः स्फूर्त होती है — किसी के किये कराए नहीं होती।] तो समाज का एक तबका उसका विरोध करता है, दूसरा उसे तुरन्त आत्मसात करना है तथा ज्यादातर लोग बीच में ढूलमुल रहते हैं । तेल देखते हैं, तेल की धार देखते हैं ।

प्राचीन यूनान में सुकरात के समय लेखन की शुरुआत हुई थी । उन्हें अच्छा नहीं लगता था । वे कहते थे “लिखकर याद रखना भी कोई याद रखना हुआ । याद तो मन में रखना चाहिये । हम अपने आप को कागज व स्याही का गुलाम क्यों बनाये?”

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क्या ऐसी ही सोच हमें अन्य आविश्कारों के साथ सुनने को नहीं मिलती? भला हो समाज के उस तबके का जो नये को ग्रहण करता है । सुकरात के परम शिष्य प्लेटो अपने गुरु का आदर करते थे, लेकिन असहमत थे । चुपके चुपके गुरु के उद्‌गार लिखते रहते थे । अरस्तू के आते आते लेखन सर्वमान्य हो चुका था । हमारी अपनी वैदिक वाचिक परम्परा उपनिषदों, पुराणों और रामायण-महाभारत (इतिहास) तक आते आते लिखित स्वरूप धारण कर चुकी थी ।

लिपियां क्या है? आड़ी तेड़ी लकीरें । डिजाइनें । इन्हें आंखे देखती है । फिर मस्तिष्क के पिछले भाग में स्थित आस्सीपिटल खण्ड तक भेजती है । वहां पर इन आकृतियों की छटाई या वर्गीकरण होता है, पहले से मौजूद एल्बम में से मिलाप होता है । प्रत्येक आकृति [Grapheme] का किसी ध्वनि [Phoneme] से रिश्ता पनपता है । अक्षरों की सत्ता स्थापित होती है । उनके छोटे-बड़े समूहों को ‘शब्द’ की पहचान स्टोर किये रहते हैं । पर्दे पर डिज़ाइन आते ही पूरा जाल झंकृत हो उठता है ।

विश्व में लिपियों के चार प्रमुख प्रकार हैं ।

  1. Logo graphic चित्रलिपि, चीनी, जापानी
  2. Syllabic जापानी ‘काना’
  3. Alphabatic अंग्रेजी, अन्य यूरोपियन भाषाएं, रोमन, लेटिन
  4. Alpha-syllabic देवनागरी-संस्कृत, हिन्दी, मराठी नेपाली, अन्य भारतीय लिपियों, दक्षिण पूर्व एशिया

6.0

देव नागरी लिपि सच में बहुत व्यवस्थित और वैज्ञानिक है । इसे पढ़ कर उच्चारण सही होता है । मेरी पुत्री का विवाह एक तेलुगु परिवार में हुआ है । स्वागत भाषण मैंने देवनागरी लिपि में तेलुगु भाषा में लिखवा कर पढ़ा था। सबने कहा कि आपका उच्चारण व Accent अच्छा था ।

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तेलुगु कथ्य:–

मानवसंस्कृति-चरित्रलो विवाहमु अतिपुरातनमैन पद्धति ।

अन्नि संस्कृति-सभ्यतगल देशाललो अन्नि कालाललो अयिननु विवाहानिकि चाला प्रामुख्यत उन्नदि ।

विवाहमु प्रीतिकरमु, सुन्दरमु सुमधरमु मरियु कल्याणकरमु, इदि पूर्णत्वानिकि चिन्हमु, शाश्वतमु । दीनिगुरिंचि अन्दरू आशीर्वदिस्तारू । ई बंधमु पवित्रमु, मण्गलकरमु, कुटुम्बालनु कलुपुतुन्दि । इदि वन्तेन वन्टिदि, मित्रत्वान्नि पेंचुतुन्दि, वंशान्नि अभिवृद्धि चेस्तुन्नदि ।

हिन्दी कथ्य:–

मानव सभ्यता के इतिहास में विवाह की संस्थ बहुत पुरानी है।

लगभग सभी संस्कृतियों में सभी देशों और कालों में इसे खूब महत्व दिया गया है।

विवाह प्रीतिकर है, सुन्दर, सुमधुर है, कल्याणकारी है, पूर्णत्व का अहसास कराता है, शाश्वत है, स्थायी है । विवाह पवित्र है, मंगलमय है। परिवारों को जोड़ता है। पुल है। सम्पर्क है। साझेदारी है। मित्रता है। पीढ़ियों का दायित्व है ।

यदि उर्दू, मराठी व नेपाली के समान कुछ और भा‌षाएं भी देवनागरी मे लिखी जावें तो राष्ट्रीय एकता में बढ़ोतरी होगी । जैसे यूरोप में रोमन लिपि के कारण है अरब जगत के अनेक देशों, चीन के समस्त प्रान्तों, पूर्व सोवियत संघ से टूटे देशों में एक ही लिपि है ।

हम लोग कभी कभी अंग्रेजी में Spelling की हंसी उड़ाते हैं । Put पुट है तो But बट क्यो ? लेकिन एक बात याद रखिये Nothing Succeeds like success और The proof of pudding is in Eating.

आज की तारीख मे रोमन लिपि में अंग्रेजी दुनिया‌भर में हिट है तो उसे कठिन या अनियमित या बेतरतीब आरोपित करने में कोई दम नहीं है ।

एक न्यूरोलाजिस्ट के रूप में मैं ऐसे बच्चे और वयस्क मरीज देखता हूँ जिनका और सब तो ठीक है लेकिन मस्तिष्क में वे हिस्से क्षतिग्रस्त है जहां पढ़ने वाला नेटवर्क फैले रहते हैं । शुरू में मैं सोचता था कि ऐसे मरीजों में देवनागरी वाली हिन्दी पढ़ना तुलनात्मक रूप से आसान होगा बजाय के रोमन वाली अंग्रेजी के । लेकिन मैने ऐसा नहीं पाया । 50-50 परसेन्ट व्यक्तियों में बराबरी से दोनों प्रकार की कमी पाई गई ।

मैं प्राय: इस बात पर भी दुःख मनाता था कि नयी पीढ़ी के युवा मोबाईल आदि के कारण हिन्दी को रोमन लिपि में टाइप करते और पढ़ते है । मुझे अच्छा नही लगता । समझ‌ने में दिक्कत होती है । हमारी फिल्मों के अभिनेता अपने हिन्दी डायलाग रोमन लिपि में पढ़ते हैं । यह जान कर बहुत कोफ्त होती थी ।

आज फिर दिल ने एक तम्मना की

आज फिर दिल को हमने समझाया

भाषा बहता नीर है ।

स्वयं कम्प्यूटर पर हिन्दी टाइप करने के लिये मैं रोमन का फोनेटिक की-बोर्ड इस्तेमाल करता हूँ । अनेक देशों ने रोमन लिपि को पिछले 100 वर्षो में अपनाया है — जैसे Bahasa Malaysia, Bahasa Indonesia, Swahili, Turkei आदि ।

हिन्दी वर्णमाला लम्बी और जटिल है । अकारादि क्रम याद रखना कठिन है । अक्षर विन्यास में मेहनत लगती है — ऊपर, नीचे, आगे-पीछे मात्राएं व अन्य चिन्ह लगाने पड़ते है । आधे अक्षर व संयुक्त अक्षर की झंझट है । टाइपिंग और लिखने की गति धीमी रहती है । फॉण्ट का आकार रोमन जितना छोटा नहीं कर सकते वरना पढ़‌ना मुश्किल । निःसन्देह हमें अपनी देवनागरी से प्यार है, उस पर गर्व है । उसे बचा कर रखना है । बढ़ावा देना है वह हमारी पहचान है । लेकिन उसकी सीमाओं को भी पहचानना है ।