Debate on Less voting: कम मतदान पर चिंता और चर्चा-किस पार्टी को नफा-नुकसान!

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Debate on Less voting: कम मतदान पर चिंता और चर्चा-किस पार्टी को नफा-नुकसान!

रमण रावल की विशेष राजनीतिक रिपोर्ट

इस समय,जब लोकसभा के दो चरण का मतदान हो चुका है, तब भारतीय जनता पार्टी के सामान्य कार्यकर्ता और देश भर के भाजपा समर्थकों-प्रशंसकों के बीच इस बात की चिंता और चर्चा है कि क्या कम मतदान का प्रतिशत भाजपा के लिये परेशानी खड़ी कर सकता है? यह चिंता और चर्चा दोनों ही स्वाभाविक है, लेकिन मेरा ऐसा मानना है कि ऐसी या इससे अधिक चिंता तो विपक्ष को होना चाहिये कि क्या उनके समर्थक मतदाताओं ने इस संभावना के परिप्रेक्ष्य में मतदान ही नहीं किया कि कांग्रेस व उनका गठबंधन तो निपट ही रहा है तो फिजूल गर्मी में मतदान के लिये क्यों निकला जाये? इस पर थोड़ा चिंतन जरूर कीजियेगा।

अब आते हैं इस बात पर कि कुल सात चरणों के लोकसभा चुनाव के नतीजों का आकलन दो चरण के मतदान से किया जा सकता है? संकेत तो मिल सकता है, लेकिन यह पूरे अनुमानों का निर्धारण नहीं कर सकता। वह भी तब जब मतदाता के मन को टटोलना कभी-भी आसान नहीं रहा। मतदान पूर्व और पश्चात किये जाने वाले विश्लेषणों की हकीकत अनगिनत बार हमारे सामने आ चुकी है। इसलिये कुल सात चरणों के मतदान में से अभी शेष केवल दो चरण का मतदान किसी भी निष्कर्ष का आधार तो नहीं बन सकता।

अब दूसरी बात, जो ज्यादा महत्वपूर्ण है। देश ही नहीं, पूरी दुनिया देख रही है कि 22 जनवरी 2024 को अयोध्या में राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद भारत में सनातन के पक्ष में जो शीतल बयार चल रही है, वह भाजपा को स्वाभाविक लाभ पहुंचाने वाली साबित हो सकती है। राम सबके हैं और उन पर भाजपा का एकाधिकार नहीं है और भाजपा राम नाम को भुना रही है,जैसे जुमले विपक्ष कितने ही उछालता रहे, आम तौर पर जन साधारण के बीच यह तथ्य तो स्थापित हो ही चुका है कि राम मंदिर इसलिये बना है कि केंद्र में भाजपा की सरकार है। यहां उन सारी बातों को दोहराने से अब कोई मतलब नहीं कि कांग्रेस समेत ज्यादातर विपक्षी दल राम के अस्तित्व को नकारते रहे,मंदिर निर्माण के लिये राई-रत्ती भर प्रयास नहीं किये, कार सेवा नहीं की, कोई जन आंदोलन नहीं चलाया,सरकारें न्यौछावर नहीं की।ऐसे में इस जबानी जमा खर्च की कोई तुक नहीं कि राम सबके हैं और भाजपा इसका एकतरफा श्रेय ले रही है। यह तो जनता तय कर चुकी, मान चुकी।

इस बात को ध्यान में रखते हुए हमने देखा ही है कि खासकर कांग्रेस को हिंदी भाषी राज्यों में लोकसभा के प्रत्याशियों का भारी टोटा पड़ा है। उससे पहले थोकबंद कांग्रेसी भाजपा या दूसरे दलों में शामिल हुए हैं और कमोबेश सबने एक बात प्रमुखता से कही है कि कांग्रेस के जागीरदारों का राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा में न जाना उन्हें आहत कर गया। इसलिये जब प्रत्याशियों में ही लोकसभा चुनाव में खड़े होने का उत्साह नहीं बचा तो क्या यह संभव नहीं कि कांग्रेस को समर्थन देने वाला मतदाता भी घर बैठा रहा हो? वह भी क्यों गर्मी में तपने बाहर निकले और मृत्यु शैया पर पड़ी कांग्रेस को गंगाजल का आचमन कराये? इसलिये यह भी तो हो सकता है कि दो चरणों में भाजपा को मिलने वाले मत तो बरकरार रहे हों और कांग्रेस या विपक्ष के पक्ष में मतदान कम हुआ हो ?

अब कम मतदान की भी बात कर लेते हैं। पिछली बार 2019 के आम चुनाव में 67.40 प्रतिशत मतदान हुआ था, जब मतदाता करीब 91 करोड़ थे। इस बार मतदाता करीब 97 करोड़ हैं। 2019 में भाजपा को 37.36 प्रतिशत मत से 303 सीटें मिली थीं। इस बार अभी तक के दो चरणों में 60 प्रतिशत मतदान हुआ है। इसे पूरे सात चरणों का भी यही औसत मान लें तो 58.20 करोड़ मतदाता मैदान में आयेंगे,ऐसा मानते हैं। भाजपा को यदि पिछला समर्थन 37.36 प्रतिशत न भी मिले और 35 प्रतिशत समर्थन ही मिले तो 20.37 करोड़ मतदाता समर्थन करेंगे। जबकि पिछली बार 37.36 प्रतिशत से 22.84 मतदाता ने समर्थन दिया था। याने 2 करोड़ मत कम मिल सकते हैं। बावजूद इसके 2014 से लोकसभा और इस दौरान हुए विधानसभा चुनावों में युवा मतदाता ने भाजपा को अधिक पसंद किया है। इसलिये मुझे नहीं लगता कि भाजपा के समर्थन में कोई उल्लेखनीय गिरावट आयेगी।

वैसे लोकतंत्र में समर्थ और अंतिम सत्य तो मतदाता ही है। इस चुनाव में थके हुआ विपक्ष सारा जोर मोदी का समर्थन घटाने पर दे रहा है, ना कि अपना समर्थन बढ़ाने पर । देश का सबसे पुराना राजनीतिक दल कांग्रेस तो खुद के बूते पर एक तिहाई बहुमत लायक सीटों पर तो चुनाव ही नहीं लड़़ रहा है तो उसके गठबंधन की जीत का ख्याल भी कैसे लाया जा सकता है । परस्पर घोर विरोधी दलों का तालमेल एक व्यक्ति को रोकने के लिये हुआ है,इतनी-सी बात अब ठेठ देहाती मतदाता तक समझ चुका है। ऐसे में वह किस तरफ जाना पसंद करेगा, यह सवा महीने बाद 5 जून को परिदृश्य साफ हो जायेगा। इतना तो तय जान लीजिये कि 2024 के लोकसभा चुनाव के परिणाम देश ही नहीं दुनिया के लिये मायने रखेंगे और विश्व इतिहास का एक नया अध्याय लिखा जायेगा।