Journeys full of Mystery and Adventure 4 :आधी रात ,मेहंदी लगे हाथ और सुनसान सड़क
बात ज्यादा पुरानी नहीं है और घटना भी यूँ साधारण ही कही जा सकती है .लेकिन जब दिमाग में कोई बात वहम की तरह बैठ जाय तो वह सच ही लगने लगती है . हमारे देश में कई तरह के मिथक जैसे रात को हल्दी ,मेंहंदी ,इत्र.लगा कर नहीं जाना चाहिए .बाल खुले रख कर नहीं जाना चाहिए इत्यादि .एक घटना इसी तरह की मिथकों से जुडी हुई आज आपसे शेयर कर रही हूँ .
श्रीमान जी की सरकारी नौकरी रही इसलिए स्थानांतरण होता रहता था। करीब दस वर्ष इंदौर रहने के बाद श्रीमान जी का खंडवा स्थानांतरण हो गया। कहां इंदौर और कहां खंडवा जैसी छोटी जगह।प्रारंभ में तो मन ही नहीं लग रहा था और धीरे -धीरे मन लगने लगा। आसपास सब अच्छे लोग थे और उनसे घरोपा हो गया था । सुख -दुख में एक दूसरे के काम आते थे। उन दिनों मेरा लेखन भी चरम पर था और सब पहचानने लगे थे । खंडवा में बहुत आदर -सम्मान भी मिला और मेरी कविता की पहली पुस्तक भी वहीं पर रहते हुए आई थी ।
खंडवा में पास में ही मेरी बेटी की सहेली रहती थी । उनके परिवार में उसके काका जी का विवाह था। हम खूब मस्ती करते और देर रात तक गाते -बजाते । एक दिन मेंहदी की रस्म थी । मैंने और मेरी बेटी ने भी मेंहदी लगाई और खूब बन्ना -बन्नी गाए । रात्रि का कब एक बज गया मालूम ही नहीं पड़ा । घर जाने लगे तो कुछ महिलाएं हमारे साथ हो गईं और सामने तिराहा था वहां से सात घर बाद हमारा घर था । तिराहे पर वे महिलाएं खड़ी हो गईं कि सामने ही आपका घर है और हम यहां से देख रहे हैं । मैं और मेरी बेटी ने कहा ठीक है चले जाते हैं आप यहीं से देखते रहना ।
आधी सड़क तक पहुंचे तो एक व्यक्ति आया और उसके हाथ में पर्ची थी एक जिसमें पास में रहने वाले एक सज्जन का पता था । हमसे उनका मकान पूछने लगा तो दूर से वह पर्ची देख कर हमने उनका पता बता दिया । हालांकि ,डर भी लग रहा था कि रात्रि के एक बजे कौन सा समय है किसी के घर जाने का । कहते हैं मेंहदी लगा कर रात्रि में नहीं निकलना चाहिए । निकल तो गए थे सो जी कड़ा कर के पता बता दिया कि आगे जाकर बाएं मुड़ जाना और फिर दाएं हाथ पर दूसरा घर उनका ही है । जैसे ही वह जाने के लिए पलटा तो हम सनाके में आ गए। उसकी पीठ पर दो तिरछे लाल रंग के निशान थे नीचे से ऊपर तक मानों खून लगा हो । वह तेजी से आगे बढ़ा और हमारे पास रहने वाले के घर में प्रविष्ट हो गया बिना गेट खोले और उधर की तरफ कूदे। यह कैसे संभव था ? कुछ समझ में नहीं आया । तिराहे पर महिलाएं हमें दूर से देख रहीं थीं, और जब हम अपने घर के आंगन की दीवार के अंदर प्रवेश किया तो चलीं गईं ।
मैं वहींआंगन की दीवार पर से झुक कर देखने लगी कि वह व्यक्ति कहां जाता है । वह हमारे बताए पते पर नहीं जाकर चार घर छोड़ कर एक कुआं था वहां जाकर अदृश्य हो गया। कहते हैं उसमें गड़बड़ थी, वहां कई लोग डर लगाने की बात कहते थे .
दूसरे दिन हमने यह बात सबको बताई तो लोगों ने बताया कि हमारे घर के पास में जो खुला मैदान है वहां किसी ट्रक ने एक व्यक्ति को कुचल कर मार डाला था। मुझे लगा था शायद वे कि ट्रक के टायर के लाल निशान थे उसकी शर्ट पर।
इस घटना के पहले तक हम तो शाम को गर्मियों में वहीं घूमते थे और एक ऊंची सी साफ -सुथरी जगह पर बैठ कर गप्पें भी मारते थे । एक बार किसी ने मना किया था कि वहां मत बैठा करो, परन्तु कारण नहीं बताया था । अब तो हमने वहां बैठना छोड़ दिया और अभी भी वह एक भयावह रात्रि कंपा जाती है ।मैं हनुमान जी को बहुत मानती हूं और सुंदरकांड व हनुमान चालीसा पढ़ती हूं इसलिए कोई हानि नहीं पहुंचा सका वह और पता भी दूर से कागज दिखा कर पूछा । आज भी लगता है हम उस दिन बाल -बाल बचे ।
नीति अग्निहोत्री
57,सॉंई विहार ,इंदौर .(म.प्र)