

In the Country of Nefertiti : विश्व के सात अजूबों की सूची में शामिल मिस्र का ग्रेट पिरामिड 481 फुट ऊँचा है!
पुश्किन की नज्म है……..
जिसने जन्म का चोला भी पहना
और मौत का कफन भी
पर फिर भी जिसे अपने
वजूद के सबूत के लिए
कागज का एक टुकड़ा
नसीब न हुआ
संतोष श्रीवास्तव
लेकिन मुझे जन्म के सबूत के लिए उन पिरामिडों को देखना था जो 5000 साल का इतिहास समेटे मिस्र में विश्व धरोहर का दर्जा पाए मुझे जाने कब से अपनी ओर खींच रहे थे और इसे दृढ़ स्वप्न की तरह अपने दिल में तब से संजोए रखा है जब मेरी मुलाकात स्विट्जरलैंड के एंगलबर्ग शहर में पहाड़ पर स्थित होटल टेरेस में काहिरा की रहने वाली प्रसिद्ध पुरातत्वविद और मिस्र के पिरामिडों पर अनुसंधान कर रही डॉ जोआन फ्लेचर से हुई। वे छुट्टियां बिताने टेरेस में ही आकर रुकी थीं। वे खासतौर से मिस्र की साम्राज्ञी नेफ़रटीटी के रहस्य को खोज रही थीं। इतिहास के गर्त में कई बार बहुत महत्वपूर्ण घटनाएँ,दस्तावेज और शासक बड़े मानीखेज और सुनियोजित तरीके से दफना दिए जाते हैं ।
बहरहाल वह मौका आ ही गया जब मैं अपनी संस्था विश्व मैत्री मंच के 24 सदस्यों के दल सहित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित करने मिस्र की यात्रा पर निकल पड़ी ।
मुंबई के छत्रपति शिवाजी टर्मिनस से 30 नवंबर 2018 की सुबह 4:20 पर हमने कुवैत एयरवेज से कुवैत के लिए उड़ान ली। भारतीय समयानुसार 6:10 पर सुबह कुवैत पहुँचे। मिस्र 3 घंटे 20 मिनट भारतीय समय से आगे है।
3 घंटे कुवैत एयरपोर्ट पर काहिरा की फ्लाइट का इंतजार करना पड़ा। काहिरा 11:20 पर पहुँचे। ऑन अराइवल वीजा की प्रक्रिया के बाद हम अपने गाइड अहमद के साथ अपनी 40 सीटर बस में थे और मिस्र की अजनबी मगर अपनी सी धरती पर खूबसूरत एहसास के साथ बेहद खुश थे। दिन में मिस्र का तापमान 22 ,23 तक रहता है। रेगिस्तानी इलाका होने की वजह से धूप तेज लग रही थी। तेज़ और चमकीली। काहिरा में हम खूबसूरत रिसोर्ट पिरामिड पार्क में रुके।
भूख तेजी से लगी थी। इंतजार लंच का ….आज ही सम्मेलन भी था। खूब उत्साह था सभी में । यह विश्व मैत्री मंच का रूस, दुबई ,भूटान के बाद चौथा अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन था ।अंजना श्रीवास्तव ने अकेले ही सम्मेलन के लिए हॉल बैनर आदि लगाकर तैयार कर दिया। सरस्वती जी की फोटो ,बैटरी से चलने वाले दीपक, फूलों की माला, आभा दवे मुंबई से लेकर आई थी। सभी प्रतिभागियों के लिए मोमेंटो मैं लेकर आई थी। तय हुआ कि चूँकि हॉल 9:00 बजे तक ही हमारे पास है अतः कवि सम्मेलन क्रूज में करेंगे। लंच के बाद 5:00 बजे सम्मेलन शुरू हुआ। उद्घाटन सत्र में स्वागत भाषण, संस्था का परिचय, किताबों के लोकार्पण, एकल नाट्य प्रस्तुति हुई ।द्वितीय सत्र में परिचर्चा। विषय “हिंदी साहित्य में अनुवाद की भूमिका”। बहुत शानदार रहा यह सत्र। टी ब्रेक के बाद प्रतिभागियों को स्मृति चिह्न से सम्मानित किया गया। विदेशी धरती पर हिंदी साहित्य का परचम लहरा कर हम पिछली रात के जागरण लंबी हवाई यात्रा के बावजूद प्रफुल्लित थे ।अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी साहित्य की प्रतिष्ठा के लिए अंश मात्र ही सही योगदान तो था ही हमारा।
डिनर के लिए हम शहर के रेस्तरां होटल पिरामिड गये।जो शहर से दूर था ।खुला इलाका ……रात यहाँ वैसे भी ठंडी हो जाती है। इस वक्त तापमान 9 डिग्री सेल्सियस था। तिस पर ठंडी हवाएँ।
मिस्र में सब्जियाँ, हरे पत्ते वाली सलाद,सूप आदि भोजन में बहुत अधिक शामिल किया जाता है। अरहर, मसूर की दाल, मोटे गोल चावल ,खमीरी रोटी जो मिक्स आटे की होती है और जो वहाँ के तंदूर में पकाकर होटलों में भिजवाते हैं। बाद में सफर के दौरान मैंने इन रोटियों को साइकिल ठेले में खुला बिकते देखा। लौकी का कोफ्ता और बैंगन भी यहाँ खूब खाया जाता है ।सूजी का हलवा, सिवईयां मीठे व्यंजन के रूप में मौजूद रहती है।
आधे घंटे के सफर के बाद हम रेस्तरां पहुँचे। ढेर सारी हरी सलाद, दाल, चावल, बैंगन, नानबाई की ठंडी रोटी, सूखी और रसेदार सब्जी, मैदे के लड्डू, सिवईयां की बर्फी। फल में मुसम्मी, तरबूज, अंगूर ,खरबूजा ।मेरी तो खाने के बाद डिनर टेबल पर ही आँखें मुंदने लगीं। चाय मंगवाई बिल्कुल बेज़ायका। पानी की बोतल 25 इजिप्शियन पाउंड यानी 112 भारतीय रुपए में खरीदी।
रिसोर्ट लौटकर इतनी थकान के बावजूद लोग रिसेप्शन में सोफे पर बैठ कर फ्री वाई-फाई का फायदा उठाने लगे। रिसेप्शन भी महल के दरबार जैसा। ढेर सारे बड़े-बड़े सोफे ,मूर्तियाँ, नकली फूलों की सजावट ।
अहमद ने कहा–” सुबह 6:00 बजे वेकअप कॉल, 7:00 बजे ब्रेकफास्ट और 8:00 बजे गीजा पिरामिड के लिए हम प्रस्थान करेंगे ।”
मेरी रूम पार्टनर अंजना ने भोपाल से लाए चाय के सैशे का बिल्कुल सही वक्त पर इस्तेमाल किया। चाय पीकर आनंद आ गया। शाँत सुखद नींद के बाद वेकअप कॉल के पहले ही हम दोनों जाग गए ।आराम से तैयार हुए और कॉन्टिनेंटल ब्रेकफास्ट के बाद बस में आ बैठे।
मिस्र की धरती पर राधा कृष्ण और गणपति की आरती गाते हुए हम गीजा पहुँचे ।बीच-बीच में अहमद जानकारियां देता रहा ।
अंतिम जीवित आश्चर्य-
मिस्र की सभ्यता अति प्राचीन है।प्राचीन सभ्यता के अवशेष यहाँ की गौरव गाथा कहते हैं। वैसे तो मिस्र में 138 पिरामिड हैं ।लेकिन काहिरा के उपनगर गीजा स्थित तीन पिरामिड ग्रेट पिरामिड कहलाते हैं ।जो विश्व के सात अजूबों की सूची में शामिल हैं। यहाँ के तत्कालीन सम्राट फेरो (वैसे मिस्र के सभी सम्राट फेरो या फराओ कहलाते थे जो देवताओं की तरह पूजे जाते थे) के लिए बनाए गये ये पिरामिड सचमुच अजूबे ही हैं। न जाने किस तरह के मसालों के लेप तैयार कर राजाओं के शवों की ममी बनाकर इन ग्रामीणों में सुरक्षित रखा गया। जो पांच सदियाँ गुजर जाने के बाद आज भी ज्यों के त्यों हैं। ममियों के साथ खाद्य पदार्थ, वस्त्र, गहने, बर्तन ,वाद्य यंत्र ,हथियार, जानवर तथा जीवित दास दासियों को भी राजा की तीमारदारी के लिए दफना दिया जाता था ।वैसे पूरे विश्व का इतिहास ऐसी निर्ममताओं से भरा है।
गीज़ा उपनगर में प्रवेश करते ही दूर-दूर तक फैले रेगिस्तान में तीन पिरामिड तेज धूप में अपने भूरे ,धूसर रंग में अलौकिक आभा बिखेर रहे थे। मानो जीवन के सभी रंगों को विदा कर मृत्यु का एकाकी उदास रंग ही इन पिरामिडों की पहचान है। बड़े, मध्यम और छोटे आकार के ये पिरामिड जैसे किसी ने रेगिस्तान में अतिथि स्वागत का थाल सजाया हो। इस पूरे परिसर में घूमने की टिकट हम विदेशियों के लिए 160 इजिप्शियन पाउंड थी जो मूल टिकट रेट से दुगनी थी। खैर इसी तरह विदेशियों के लिए अलग प्रवेश टिकट तो भारत में भी है।
ग्रेट पिरामिड 481 फुट ऊँचा है। 3800 साल पहले यह दुनिया का सबसे ऊँचा स्मारक था। यह 13 एकड़ भूमि तक फैला है। इसे बनाने में 25 लाख चूना पत्थर लगे जिनमें से हर एक पत्थर का वजन 2 से 30 टन था। इसका निर्माण 2560 ईसा पूर्व मिस्र के शासक खुफु के चौथे वंशज द्वारा बनवाया गया था। जिसे पूरा होने में 23 वर्ष लगे। ये पिरामिड ऐसी जगह बने हैं जिन्हें इजराइल के पर्वतों से भी देखा जा सकता है और यह भी धारणा है कि ये चाँद की धरती से भी दिखते हैं ।वर्षों से वैज्ञानिक इन पिरामिडों का रहस्य जानने की कोशिश में लगे हैं पर अभी तक कोई सफलता नहीं मिली।
परिसर घूमने के लिए अब हम स्वतंत्र थे ।हमें मीटिंग प्वाइंट में 1 घंटे बाद मिलना था ।वैसे तो पिरामिड पर चढ़ना अपराध है फिर भी कुछ लोग चढ़े जिन्हें वहाँ तैनात पुलिस ने उतरने को कहा ।फोटो खिंचवा कर वे नीचे उतर आए। वहाँ ऊँट, घोड़े और तांगे की सवारी भी थी। मैंने प्रमिला और विजयकांत जी के साथ तांगे में बैठकर तीनों पिरामिड की परिक्रमा लगाते हुए पैनोरमा तक की सैर की। पैनोरमा से गीजा का व्यू बहुत खूबसूरत दिखता है। दूसरे तांगे 4
पर हमारे अन्य साथी माँग के साथ तुम्हारा गाते हुए जा रहे थे ।कुछ लोग मध्यम आकार के पिरामिड के अंदर भी गए जिसकी अलग से टिकट लेनी पड़ती है ।लेकिन मेरे लिए उसमें जाना मुश्किल था। क्योंकि कमर झुकाकर उसमें जाना पड़ता है और 20 मिनट तक कमर झुकाकर ही सब देखना पड़ता है। अंदर सीढियाँ हैं जिन पर चढ़कर ममी रखने का खाली ताबूत देखा जा सकता है ।दूसरी तरफ से सीढियाँ उतर कर बाहर निकलते हैं। इसकी दीवारों पर अरबी, हिब्रू भाषा में यहाँ की जानकारी दी गई है ।अब ताबूत से ममियाँ इजिप्शियन संग्रहालय में पर्यटकों के दर्शनार्थ रखी गई हैं।
कुछ साथी तांगे की सवारी में इतना खो चुके थे कि समय पर नहीं लौट पाए ।लिहाजा अहमद अपना आपा खो बैठा और नाराजगी में तय किए दर्शनीय स्थलों में से कॉटन शॉप जो कि खान-ए खलीली बाजार में है और जहाँ का
इजिप्शियन कॉटन मशहूर है नहीं ले जाया जा सकता ऐसा कहने लगा ।बहरहाल हम लॉर्ड ऑफ स्फिंक्स आए ।
सड़क थोड़ी ढलान वाली थी और यहाँ बहुत अधिक भीड़ थी। बुर्का पहने इजिप्शियन महिलाएं बिल्कुल भारतीय मुस्लिम औरतें लग रही थीं। विशाल रेगिस्तानी भूभाग में खंडित नाक वाली प्रतिमा के रुप में गीजा का महान स्फिंक्स स्थापित था। जो चूना पत्थर से निर्मित था। उसका शरीर शेर जैसा और सिर मनुष्य जैसा था। आसपास कई सीढ़ीनुमा लंबी-लंबी चट्टानें थीं। यह स्थान दुनिया की सबसे लंबी नदियों में शुमार नील नदी के पश्चिमी तट पर काहिरा से 12 किलोमीटर दूर मिस्र के मरुस्थल में स्थित है। स्फिंक्स एक मिथकीय दैत्य है जो पिरामिड के आसपास स्थित शमशान से सभी शैतानी ताकतों को दूर भगा देता है। इसका चेहरा आमतौर पर सम्राट फिरौन खाफ्रे का प्रतिनिधित्व करता है। 73 मीटर लंबी और 20 . 21 मीटर ऊँची यह प्रतिमा प्राचीन मिस्र का अद्भुत मूर्ति शिल्प है जो फारस खाफ्रे (2558– 2532 ईसा पूर्व) के शासन काल में निर्मित की गई थी।
कितने आक्रमणों से गुजरा मिस्र। सिकंदर महान ने यहाँ आक्रमण कर ग्रीक शासन लागू किया ।यहाँ यूनानी संस्कृति का असर भी दिखाई देता है। फारसी ,मुस्लिम, मंगोल तुर्की शासन भी रहा। अंत में ब्रिटिश आए जिनके शासन का अंत 28 फरवरी 1922 में हुआ। 18 जून 1953 में यह गणराज्य घोषित कर दिया गया। अब यहाँ सैन्य शासन है ।इतने सारे विदेशी आक्रमणों की वजह से यहाँ मिली जुली संस्कृति है। हालांकि आध्यात्म और धर्म में इन्होंने किसी भी संस्कृति को शामिल नहीं किया। ये सूर्य ,चंद्र ,नील नदी, पृथ्वी, पर्वत, आकाश ,वायु की पूजा करते हैं। जैसे हमारे यहाँ पवित्र नदी गंगा है वैसे ही नील नदी है ।
सूर्य को रे ऐमन और होरस नामों से जाना जाता है। बाद में सूर्य पूजा एमर रे के नाम से की जाती रही। फिर पृथ्वी, प्रकृति और नील नदी को मिलाकर एक शक्ति ओसाइरस नामक देवता के रूप में पूजी जाने लगी ।
इसे जल देवता भी मानते हैं ।ओसिइस रे देवता का पुत्र है जो जीवन मृत्यु का मूल्यांकन करता है यानी यम। इन की पत्नी का नाम आईरिस था जो देवियों में प्रमुख देवी हैं और रे की सगी बहन हैं। मिस्र में सगे भाई बहनों में विवाह होना बहुत शुभ माना जाता है ।यहां राक्षसों और दैत्य की भी कल्पना की गई है। मुझे लगता है पूरे विश्व में धार्मिक कल्पनाएं एक जैसी हैं ।अब यहाँ इस्लाम धर्म भी प्रमुखता से अपनाया गया है ।इस्लाम के प्रचलन के साथ 7 वीं शताब्दी में जब बादशाहियत आई तो उन लोगों के शवों को दफनाने के लिए शहरों से दूर रेगिस्तानी इलाके को चुना गया ।अलग-अलग राजवंशों के दफनाने के अलग-अलग इलाके थे जिन्हें बाद में चहारदीवारी से एक कर दिया गया ।इसे el-arafa necropolis भी कहा जाता है ।इन्हीं शमशानों से सभी शैतानी ताकतों को स्फिंक्स दूर भगा देता है। पहाड़ी की ढलान से लगे समतल मैदान में कुर्सियां लाइट एंड साउंड शो के लिए लगी थीं। हजार बारह सौ से कम क्या होंगी। यहाँ से स्फिंक्स की मूर्ति एकदम नजदीक नजर आती थी।
बस चढ़ाई पारकर चौड़ी सड़क पर आ गई थोड़ी ही देर बाद धूसर इमारतों का सिलसिला शुरू हो गया ।सड़कों पर लोगों की आवाजाही ,भीड़ के चेहरे अजनबी नहीं लग रहे थे। हिंदुस्तानी छवि के थे।
सामने पपाइरस इंस्टिट्यूट जो कागज बनाने का स्थल है हमें डिमांस्ट्रेशन के द्वारा कागज बनाना दिखाया गया। पपाइरस एक प्रकार का पौधा है। लंबी डंडी में ऊपर की ओर बहुत सारी पतली डंडियां होती हैं जैसे सौंफ का गुच्छा ।लंबी हरी डंडी को बेलन से बेलकर पतला कर मशीनों में सुखाया जाता है जिससे बहुत मजबूत कागज बनाया जाता है। जो आसानी से नहीं फटता। इस पर बहुत सुंदर चित्रकारी होती है ।भूरे रंग का यह कागज भोजपत्र जैसा ही है।
वेलकम ड्रिंक के रूप में काली पुदीने वाली चाय हमें दी गई। बहुत विशाल हॉल जो पार्टीशन से तीन गैलरियों में बंट गया था, पपाइरस कागज से बने बेमिसाल चित्रों, कलाकृतियों से सजा था ।कुछ तो सजीव लग रही थीं। सोविनियर के रूप में कलाकृतियां, चित्र और कागज खरीद कर हमारा काफिला सीधे नील नदी पर स्थिर खड़े फिश बोट रेस्तरां में लंच के लिए आ गया ।इस नाम से कुछ ने नाक भौं सिकोड़ी पर वह पूरी तरह निराशमिश था बावजूद फिश बोट नाम से।
नील की लहरों पर कुछ परिंदे विहार कर रहे थे ।भूख की तेजी ने गर्म खाने को खूब स्वादिष्ट बना दिया था। खाने के बाद मैं देर तक रेस्त्रां की खिड़की में से नील की लहरों को देखती रही। निश्चय ही इसमें बाढ़ भी आती होगी। कोई बता रहा था कि यहाँ बाढ़ को शुभ माना जाता है। रेगिस्तान की वजह से बाढ़ का पहला दिन “खुशी के आँसू वाली रात “के नाम से मनाया जाता है ।
मिस्रवासी बेहद विद्वान होते हैं। वे आर्किटेक्ट में कमाल रखते हैं। यह तो पिरामिड देख कर ही समझ गई थी मैं। गणित, रसायन शास्त्र ,एस्ट्रोलॉजी और मौसम की जानकारी के विशेषज्ञ भी होते हैं। 365 दिन और 12 महीनों वाले कैलेंडर ने मिस्र में ही जन्म लिया। दुनिया की सबसे पहली घड़ी भी यहीं बनी और यहीं वजन की सबसे पुरानी यूनिट एक्वा भी बनी ।बस इजिप्शियन संग्रहालय के रास्ते पर थी। राजधानी होने के बावजूद काहिरा का स्थापत्य अधूरा अधूरा सा था ।भूरे रंग के अलावा दूसरा रंग दिखाई नहीं दे रहा था। सड़क के दोनों तरफ की इमारतें बिना प्लास्टर की थीं कि जैसे रिनुएशन का काम चल रहा हो। इमारतों में कोई आकर्षण नहीं था। ओल्ड काहिरा में तो कुछ इमारतें 641 ईसा पूर्व की थीं। विशाल किले, मस्जिद ,मीनार, कॉप्टिक चर्च, सभा स्थल …..जैसे अतीत की गलियों में भ्रमण कर रहे हों। संग्रहालय में फोटो खींचना अलाउ नहीं है । अगर कैमरे की टिकट ली है तो फोटो खींच सकते हैं। इस भव्य संग्रहालय में 3 से 4 हज़ार वर्ष पुराने फराओ,सम्राटों और शासकों की विशाल मूर्तियां थीं। सिक्के, पपीरोज और ग्रीक रोमन राज्य काल के समय की दुर्लभ वस्तुएँ थीं। प्रवेश द्वार से सटे हॉल में एक विशाल नौका रखी थी। मिस्रवासियों का मानना था कि पाताल से नौका में बैठकर ओसाईरिस आएंगे और मृत व्यक्ति के जीवन का मूल्यांकन करेंगे। इसीलिए शवों के ताबूतों को जमीन में बहुत गहरे उतारा जाता था।
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वहीं से कुछ सीढियाँ उतर कर जैसे कि पाताल मार्ग हो कुछ मूर्तियां रखी थी। वहाँ बहुत रोशनी थी ।पहली मंजिल पर मिस्र के महान फराओ सम्राटों के पिरामिडों और मकबरे से निकला खजाना और ममियाँ मौजूद थीं। उस जमाने के फर्नीचर ,दैनिक उपयोग की चीजें भी प्रदर्शित की गई थीं। तूतनखामन जो मिस्र का बहुचर्चित सम्राट था उसकी ममी 3 स्वर्ण मुकुटों के पीछे थीं जो स्वर्ण के ताबूत में रखी थीं। 11 किलो वजन का स्वर्ण मुखौटा, सोने से बना कमरा, सोने का पलंग, कुर्सी ,टेबल सब सोने के और उस पर लाजवाब पच्चीकारी। सोने के जूते ,चप्पल ,हाथी दाँत के अनेकों आभूषण यहाँ तक कि शव पर चढ़ाए गए गुलाब के फूलों की सूख कर काली पड़ गई पंखुड़ियां और यह सब खजाना 4 हज़ार वर्ष पहले बने पिरामिडों से यहाँ स्थानांतरित किया गया था । लग रहा था जैसे समय यहाँ आकर ठहर गया है।
इसके बाद ममी कक्ष था जिसकी टिकट अलग से लेनी पड़ी। वहाँ मिस्र के राजा रानी दास दासी और जानवरों तक की ममी थी ।राजपरिवार की 14 ममियां थीं जो वहाँ प्रदर्शित थीं। पारदर्शी ताबूतों में ……बेहद लोमहर्षक ……. 4 हज़ार साल पहले इन चलते-फिरते जीवित सेवकों को सम्राट सम्राज्ञी के शवों के साथ इसलिए दफनाया गया था कि एक वक्त आएगा जब यह सब पुनः जीवित हो जाएंगे। उनके शवों को हर प्रकार की जड़ी बूटियों का लेप लगाकर पूरे शरीर को सफेद पट्टियों से लपेट कर ममी बना कर सुरक्षित रखा गया था। कई ममी के तो नाक ,बाल ,नाखून तक ज्यों के त्यों थे ।इन मृत शरीरों के बीच में सिहरन और अजीब सी विरक्ति से भर गई। ऐसा लग रहा था जैसे दम घुट रहा हो।
म्यूजियम के बाहर खुली हवा में साँस लेते हुए मुझे लगा जैसे मैं किसी टाइम कैप्सूल में बैठकर सदियों की चौखट लांघ आई हूँ।
क्रमशः —-अगले अंक में ——-
संतोष श्रीवास्तव ,भोपाल
नयी आमद – Kavita Verma की अमेरिका यात्रा संस्मरण पर आधारित पुस्तक – ‘अमेरिका जैसा मैंने देखा’