Loksabha Election 2024:नारे नहीं चक्रव्यूह है 400 पार व 370

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Loksabha Election 2024:नारे नहीं चक्रव्यूह है 400 पार व 370

अब जबकि लोकसभा चुनाव का रंग जम चुका है और सात चरणों में से तीन चरण पूरे हो चुके हैं,तब भारतीय जनता पार्टी के इन दो नारों की जमीनी हकीकत समझी जा सकती है। आम तौर पर ये देश और भाजपा कार्यकर्ताओं को भाजपा नेतृत्व की ओर से दिये गये नारे व संकल्प नजर आते हैं। जबकि ये नारों से कहीं आगे ऐसी रणनीति थी, जिसमें विपक्ष बुरी तरह से घिर चुका है। अब वह इसके पीछे का असल खेल समझ भी ले तो कुछ फर्क नहीं पड़ने वाला।यह भाजपा का ऐसा चक्रव्यूह था, जिसमें विपक्ष के महारथी एक-एक कर अंदर घुसते चले गये और वापसी के रास्ते और हिकमत मालूम होकर भी उलटे पैर लौटने में हेकड़ी खराब हो जाने से अंदेशे से घिरे हैं।

 

दरअसल,प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा के अंतिम सत्र में नारा दिया था कि भाजपा इस बार, 400 पार करेगी। इसी के साथ भाजपा आलाकमान ने कार्यकर्ताओं को लक्ष्य दिया कि वे देश के करीब दस लाख बूथ पर प्रत्येक में 370 नये मतदाता भाजपा के पक्ष में जोड़ने का अभियान चलाये। 370 के आंकड़े से कश्मीर की वजह से देशवासियों की भावना भी जुड़ी हुई है तो इसका चर्चित हो जाना स्वाभाविक ही था। दूसरी तरफ 400 पार का आंकड़ा इसलिये उछाला गया कि यदि यह जादुई आंकड़ा पार कर लेते हैं तो भाजपा को अपनी कार्य योजना के तहत संविधान में जो आवश्यक संशोधन करने है,उसके लिये जरूरी संख्या इसके जरिये ही मिल पायेगी। संविधान में कुछ भी संशोधन करना है तो संसद के दोनों सदनों के कुल 521 सदस्यों का समर्थन जरूरी है। राज्यसभा में अभी राजग के 117 सांसद हैं। लोकसभा में 404 सीटें ले आयें तो संशोधनों की राह आसान हो जायेगी।

इस आंकड़े को उछालने के पीछे मुझे जो रणनीति दिखाई देती है, वह यह कि इससे वह मतदाता जो ऐन मतदान के दिन अपना मन बनता है और राष्ट्रवादी सोच रखता है, वह भाजपा के पक्ष में मतदान करना पसंद करेगा। भाजपा के पक्के समर्थक मतदाता यदि किसी कारणवश मतदान के प्रति ढीले पड़ रहे होंगे तो उनमें एक सार्थक लक्ष्य के प्रति आकर्षण रहेगा। उधर, 370 से भावनात्मक जुड़ाव के चलते कार्यकर्ता भी अधिक समर्पण भाव से नये मतदाता जोड़ने में लग जायेगा। तीसरा, जो सबसे बड़ा कारण था, वह विपक्ष को भटकाना था। जाहिर सी बात है कि विपक्ष पूरी ताकत इस बात पर लगाता रहा है कि मोदी सरकार 400 का आंकड़ा तो पार नहीं कर पाये। उसने प्रत्येक बूथ पर 370 नये मतदाता जोड़ने का भी काफी मखौल उड़ाया कि रातोरात 37 करोड़ मतदाता भाजपा के पक्ष में जुट जाना असंभव है। उनका ऐसा कहना सही भी है। कोई चमत्कार भी इतना व्यापक समर्थन तो नहीं बढ़ा सकता । बस यहीं पर विपक्ष समझ नहीं पाया और चुनावी जंग इन दो प्रमुख नारों के आसपास घूमता रहा।

 

भाजपा का शीर्ष नेतृत्व इस भरोसे और भ्रम में नहीं रहा होगा कि उसे 400 से अधिक सीटें मिल सकती है। मिल जाये तो ताज्जुब भी नहीं होगा, क्योंकि उसने समूचा अभियान तो इस आंकड़े के इर्द-गिर्द ही चलाया है। भाजपा के इस शोशे को लेकर विपक्ष ने सारा ध्यान इस पर ही केंद्रित कर दिया कि भाजपा को 400 सीटें न मिल पाये। अभी तक के हालात से ऐसा कभी नहीं लगा कि विपक्ष केंद्र में मिली-जुली सरकार बनाने का प्रयास कर रहा है। वह तो भाजपा को 400 के आंकड़े से रोकने में लगा है। देश के प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने तो केवल 270 सीटों पर प्रत्याशी खड़े किये हैं याने वह भी अपने बूते सरकार बनाने के लिये मानसिक तौर पर भी तैयार ही नहीं था। जिस तरह से अलग-अलग प्रांतों में परस्पर विरोधाभासी दलों का राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी गठबंधन बना है,उसमें स्थायित्व के प्रति उनमें शामिल दल ही आश्वस्त नहीं हैं। इस बेमेल गठबंधन पर जनता को भी भरोसा नहीं हो सकता। वे देख चुके हैं कि किस तरह से दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपने अभी तक के राजनीतिक जीवन मे रात-दिन कांग्रेस,सोनिया गांधी और गांधी परिवार के खिलाफ जहर उगलते रहे और अब हाथों में हाथ डाले तस्वीरें उतरवा रहे हैं तो क्यों? वे केजरीवाल,जो हाथ लहरा-लहरा कर सोनिया गांधी के खिलाफ सीबीआई,ईडी की जांच की मांग करते रहे,उन्हें जेल में डालने की मांग करते रहे और मोदीजी को चुनौती देते रहे, वे जब कांग्रेस से सीटों का समझौता करेंगे तो आपको लगता है कि जनता उनके प्रत्याशी को चुनेंगी?

 

कमोबेश ऐसा सभी जगह हैं। इसलिये विपक्ष के प्रयास भी अब एकमात्र इस बात पर केंद्रित हो गये कि भाजपा को 400 पार जाने से रोका जाये। भले ही फिर भाजपा को 300 से 350 सीटों के बीच कुछ मिल जाये, तब भी वह डींग तो हांक ही सकता है कि हमने मोदी के रथ को रोक दिया। अब सारा दरोमदार जनता के ऊपर आन पड़ा है कि वह मोदी जी के नारे की लाज रखे या उनकी रणनीति के अनुसार पिछली बार से ज्यादा सीटें देकर तसल्ली दे या विपक्ष की मंशा के अनुरूप 300 या इसके अंदर ही भाजपा को रोक दे। रही बात विपक्षी गठबंधन सरकार बनने की तो शेख चिल्ली ख्वाब देखने पर कोई कानूनी रोक तो है नहीं । इस समय तो किसी नेता या दल की छवि और ताकत इतनी नहीं कि वे भाजपा सरकार बनने के तमाम अनुमानों को पलटी खिला दे।