Bilvapatra : धर्म, आस्था और स्वास्थ्य का खजाना है- बिल्वपत्र

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Bilvapatra

Bilvapatra:धर्म, आस्था और स्वास्थ्य का खजाना है- बिल्वपत्र

डॉ. विकास शर्मा

जय भोला जय भंडारी तेरी है महिमा न्यारी, जो तूने प्रकृति में इतने महत्वपूर्ण औषधीय पौधों का वरण किया और इन्हें संरक्षित रखा।
“कोई भी पूजा देवता को कुछ अर्पित किए बिना पूरी नहीं होती है। भगवान शिव बहुत सरल और भोले हैं, और अधिक की अपेक्षा नहीं करते; इसलिए उन्हें भोलेनाथ कहा जाता है। बस उन्हें बेल-पत्र चढ़ाने की जरूरत है। बेल-पत्र चढ़ाना व्यक्ति के स्वभाव के तीनों पहलुओं – तमस, रजस और सत्व – के समर्पण का प्रतीक है। आपको अपने जीवन की सकारात्मकता और नकारात्मकता को भगवान शिव को समर्पित करना होगा और मुक्त होना होगा।
– गुरुदेव श्री श्री रविशंकर
प्रायः देखा जाता है कि जिन पेड़-पौधों का संबंध किसी देवी- देवता और धार्मिक आस्था से है, उनके सुरक्षित रहने की संभावना सामान्य पेड़ पौधों की अपेक्षा कई गुना अधिक रहती है। ऐसी ही एक खास वनस्पति है बिल्व या बिल्बपत्र{Bilvapatra}। बोलचाल में इसे बेल या बेलपत्ती भी कहा जाता है। भगवान भोलेनाथ को बिल्वपत्र अत्यंत प्रिय हैं। लेकिन ये औषधीय गुणों की भी खान हैं आज की पोस्ट में इसी पर बात करेंगे।
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ऋषि- मुनियों और संतो से अक्सर यह बात सुनने को मिलती है कि प्राचीन समय मे घने जंगलों के बीच साधना के समय उपवास में महान साधु संत जंगली फलों, कन्दो और बेलपत्रों{Bilvapatra} को ही ग्रहण किया करते थे। अर्थात इनमें पोषक तत्वों की जानकारी बहुत पहले से ही थी। इसके अलावा बिल्ब के फलों में कठोर एवं मजबूत छिलकों के भीतर भी स्वादिष्ट गूदा भरा होता है, जिसे फल की तरह खाया जाता है। लेकिन अगर इसका जूस बनाया जाए तो यह डिहाइड्रेशन लू से बचाव की अचूक औषधि बन जाती है।
बेल का पत्ता खाने के नुकसान 900
पिछली पोस्ट में कई मित्रो ने सवाल किया था कि फलों को सीधे खाने से अधिक जूस कैसे फायदेमंद होता है, तो इसके लिए बता दूँ कि रोगी अवस्था मे ठोस से अधिक तरल भोज्य पदार्थ फायदेमंद होता है। कुछ फल सीधे खाये जा सकते हैं सभी नही जैसे कि बेल, कबीट, मौसंबी, नीबू आदि। इसीलिये इनका जूस या शर्बत बनाना अधिक उपयुक्त होता है।
पातालकोट के आदिवासी बेल के शर्बत या जूस को गलगंड रोग की उत्तम औषधि मानते हैं। गर्मियों में होने वाली पेशाब में जलन व ठनके जैसी बीमारियों में भी बेल का जूस कारगर है।ज्यादातर जंगली फलों के समान ही इसमें भी कैल्शियम, फॉस्फोरस, पोटेशियम, सल्फर जैसे सूक्ष्म तथा वृहद पोषक तत्व भरपूर मात्रा में लाए जाते हैं। गूदे में विटामिन ए, बी, और सी, प्रोटीन और फाइबर्स भी पाये जाते हैं।
इसके मीठे फल इंसानों सहित जंगली पशु-पक्षियों के लिए ऊर्जा का भंडार होते हैं। इसके फल, फूल, पत्तियाँ, जड़ व छाल सभी औषधीय महत्व के होते हैं। शोध कार्यो से भी यह स्पष्ट हो चुका है कि इसमें कई महत्वपूर्ण रसायन जैसे अल्फा कुर्कुमिन, अल्फा जिन्जीबरीन, लेक्टिन, सैलिसिलिक एसिड आदि पाये जाते हैं, जो शरीर की विभिन्न चलापचयी क्रियाओं में सहायक होते हैं।इस प्रकार बेल पत्र के  बहुत ही अनोखे औषधीय लाभ हैं। इसका फल विटामिन और खनिजों का एक समृद्ध स्रोत है जिसमें विटामिन सी, विटामिन ए, राइबोफ्लेविन, कैल्शियम, पोटेशियम, फाइबर, विटामिन बी 1, बी 6 और बी 12 शामिल हैं – जो शरीर के समग्र विकास और विकास के लिए आवश्यक है।
बेल के जूस की प्रवत्ति शीतल होती है अतः इसे गर्मियों में पसंद किया जाता है। इसे मधुमेह के रोगी, हृदय रोगी, रक्तचाप के मरीज और मतायें बहने भी ग्रहण करती हैं। यह सभी के लिए फायदेमंद होता है। इसका जूस पसंद अनुसार मीठा और नमकीन दोनो तरह से बनाया जा सकता है।
जूस बनाने के लिए इसके पल्प/ गूदे को एक बर्तन में लेकर अच्छी तरह फेंट लें और फिर पानी मिला कर मिला दें। अब पानी को छान लें और इसमें कुटा हुआ पुदीना, अदरख, जीरा, काली मिर्च, सौंफ, अजवाईन, काला नमक थोड़ी मात्रा में गुड़ आदि मिलाकर पुनः घोल लें। मजेदार जूस तैयार हो जायेगा।

यदि आप अत्यधिक पसीने या त्वचा पर चकत्ते के कारण दुर्गंध की परेशानी से पीड़ित हैं, तो बेल पत्र का मिश्रण कुछ दिनों तक लगाने से शरीर की दुर्गंध कम हो जाएगी।बेल पत्र का रस खाने या पीने से बालों के झड़ने की समस्या को हल करने और रूखे और रूखे बालों को चिकना करने में मदद मिल सकती है।बेल पत्र का मिश्रण त्वचा पर सफेद धब्बे हटाने में मदद करता है जो दवा के दुष्प्रभाव के रूप में विकसित हो सकते हैं।

डॉ. विकास शर्मा
वनस्पति शास्त्र विभाग
शासकीय महाविद्यालय चौरई
जिला – छिन्दवाड़ा (म.प्र