Bhole Baba: महंगे चश्मे और सफेद सूट-बूटधारी- कौन है भोले बाबा! जिसके सत्संग में 116 लोगों की मौत हुई?
उत्तर प्रदेश के सिकंद्राराऊ में भोले बाबा के धार्मिक आयोजन सत्संग में भगदड़ मचने से 116 लोगों की मौत हो गई। आखिर महंगे चश्मे और सफेद सूट-बूटधारी- कौन है भोले बाबा? कौन हैं सूरजपाल जो सिपाही से भोले बाबा बन गए। अब वह सत्संग करते हैं।
जानिए उस आश्रम के बाबा की पूरी कहानी:
उत्तरप्रदेश में अभिसूचना इकाई (LIU) में खुफिया सूचनाओं के संग्रह का जिम्मा संभालने वाले सूरजपाल सिंह का शासकीय सेवा से अचानक ऐसा मोह भंग हुआ कि उन्होंने सन 1997 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली। उसके दिमाग में आध्यात्मिक मार्ग पर चलने का खयाल आया और चल पड़ा इसी मार्ग पर।
वही सूरजपाल से बाद में भोले बाबा बन गए। वर्ष 1999 में अपने गांव के ही घर को आश्रम का रूप दे दिया। यहां सत्संग शुरू कर दिया।
बता दे कि पटियाली क्षेत्र के बहादुर नगर निवासी सूरजपाल सिंह की अभिसूचना विभाग में सिपाही के रूप में तैनाती हुई। इसके बाद वह हेड कांस्टेबल पद पर प्रोन्नत हुए और उन्होंने हेड कांस्टेबल पद पर रहते हुए स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली।
सत्संग प्रवचन शुरू होने के साथ ही सूरजपाल को भोले बाबा के रूप में पहचान मिली तो उनकी पत्नी को माताश्री के रूप में। इनको कोई संतान नहीं है। 1997 के बाद से शुरू हुई भोले बाबा की आध्यात्मिक यात्रा का प्रचार प्रसार तेजी से हुआ। भोले बाबा के सत्संग में लोग अपनी परेशानियां लेकर पहुंचने लगे और भोले बाबा द्वारा अपने हाथों से स्पर्श करके बीमारियां दूर करने का दावा करते रहे। सत्संग और चमत्कार के मोह में उनके अनुयायियों का कारवां बढ़ता चला गया।
इस ढाई दशक की यात्रा में हजारों लोग उनके सत्संग में पहुंचने लगे। लोग उनके चमत्कारों को लेकर लगातार उनके अनुयायी बनते चले गए। पटियाली ही नहीं बल्कि कासगंज, एटा, बदायूं, फर्रुखाबाद, हाथरस, अलीगढ़ के अलावा दिल्ली, बिहार, मध्यप्रदेश, राजस्थान सहित कई राज्यों में भोले बाबा की धूम होने लगी और हजारों लाखों लोग देश में उनके अनुयायी बन गए। भोले बाबा के अनुयायी उनके प्रति कट्टर भी हैं कोई भी बाबा की आलोचना सुनना पसंद नहीं करता है।
सूरजपाल सिंह उर्फ साकार हरि बाबा उर्फ भोले बाबा कासगंज जिले के पटयाली का रहने वाला है। 17 साल पहले पुलिस कांस्टेबल की नौकरी छोड़ सूरजपाल सत्संग करने लगा। वह आम साधु-संतों की तरह गेरुआ वस्त्र नहीं पहनता। अधिकतर वह महंगे चश्मे, सफेद पैंट-शर्ट पहनता है। गरीब और वंचित तबके के लोगों के बीच इसकी लोकप्रियता तेजी से बढ़ी।
उसके उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान में उसके लाखों अनुयायी हैं। बाबा ने अपने पैतृक गांव बहादुरनगर में बड़ा आश्रम बना रखा है, जहां हर महीने के पहले मंगलवार को सत्संग होता है। बाबा आश्रम में हो या न हो, भक्तों का हुजूम लगा रहता है। पुलिस पृष्ठभूमि के चलते बाबा पुलिस के तौर-तरीकों को जानता है। इसी से उसने वर्दीधारी स्वयंसेवकों की लंबी-चौड़ी फौज खड़ी कर दी।
*बसपा सरकार में लाल बत्ती कार में चलता था बाबा का काफिला!*
नारायण साकार हरि यानी भोले बाबा का बसपा सरकार में डंका बजता था। बसपा सरकार में भोले बाबा लाल बत्ती की गाड़ी में सत्संग स्थल तक पहुंचते थे। उनकी कार के आगे आगे पुलिस एस्कॉर्ट करते हुए चलती थी। बसपा सरकार में तत्कालीन जनप्रतिनिधि उनके सत्संग में शामिल होने पहुंचते रहे। सत्संग स्थल पर पुलिस की जगह उनके स्वयंसेवक ही कमान संभालते हैं।
सत्संग में सेवा के लिए पुलिसकर्मी भी छुट्टी लेकर पहुंचते हैं। सत्संग में पूरी व्यवस्थाएं स्वयंसेवकों के हाथ में ही होती हैं। इनमें कई पुलिसकर्मी हैं, जो बाबा की सुरक्षा में तैनात रहने के साथ सत्संग स्थल पर व्यवस्थाएं संभालते हैं। स्वयंसेवक गुलाबी रंग की यूनिफॉर्म में सत्संग स्थल से लेकर शहर की सड़कों पर तैनात रहते हैं। आगरा में कोठी मीना बाजार मैदान, सेवला के पास शक्ति नगर मैदान, आवास विकास कॉलोनी, दयालबाग, बाह और शास्त्रीपुरम के पास सुनारी में नारायण साकार हरि का सत्संग हो चुका है।
*आश्रम के बाहर लगा बोर्ड!*
बाबा हो या न हो, आश्रम में बड़ी संख्या में पहुंचते हैं भक्त
भोले बाबा का आश्रम जिले के पटियाली तहसील क्षेत्र के बहादुरनगर गांव में मौजूद है। यह उनका पैतृक गांव भी है। भोलेबाबा का बहादुर नगर में बड़ा आश्रम बना है। इस आश्रम में पहले सप्ताह के प्रत्येक मंगलवार को सत्संग होता था, लेकिन कुछ वर्ष पहले से यह परंपरा टूटी है। लोगों का कहना है कि बाबा पिछले कई वर्षों से आश्रम नहीं आए हैं। लोग यह भी बताते हैं कि बाबा आश्रम में रहें या न रहें, लेकिन उनके भक्तों के आने का सिलसिला अनवरत रूप से जारी रहता है। बाबा के भक्त श्रद्धालु मंगलवार को विशेष रूप से यहां पहुंचते हैं, लेकिन मंगलवार के अलावा भी आम दिनों में उनके आने सिलसिला जारी रहता है। भक्तों के बीच यह भी मान्यता है, कि आश्रम में लगे नल के पानी से लोग स्नान भी करते हैं, और नल का पानी प्रसाद के रूप में बोतलों में भरकर साथ ले जाते हैं। भोले बाबा की मान्यता काफी समय से है और इसको लेकर दूर दूर से भक्त यहां नियमित रूप से पहुंचते हैं। पटियाली स्टेशन और बहादुरनगर मार्ग पर मंगलवार को काफी भीड़ देखी जाती है। ट्रेनों से भी भक्तों का आना जाना होता है। भक्तों की मौजूदगी आश्रम में रहने के कारण आश्रम भी गुलजार रहता है।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार भोले बाबा के खिलाफ क्या कार्यवाही करती है।