राज-काज:कमलनाथ- दिग्विजय के बीच लगातार बढ़ रही दूरी….

राज-काज:कमलनाथ- दिग्विजय के बीच लगातार बढ़ रही दूरी….

 

– कांग्रेस में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के बीच दोस्ती की मिसाल दी जाती थी, लेकिन अब दोनों के बीच लगातार दूरी बढ़ने की खबरें हैं। अमरवाड़ा विधानसभा सीट के लिए उप चुनाव हो रहा है। कमलनाथ की प्रतिष्ठा यहां जुड़ी है। उन्हें साबित करना है कि उनका बेटा नकुलनाथ लोकसभा चुनाव भले हार गया लेकिन छिंदवाड़ा क्षेत्र में उनकी पकड़ कमजोर नहीं है। इसके लिए अमरवाड़ा में कांग्रेस की जीत जरूरी है।

digvijy kamal

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी के साथ वे वहां डेरा डालकर जी-तोड़ मेहनत कर रहे हैं, लेकिन उप चुनाव से दिग्विजय सिंह जैसे बड़े नेता की गैर-मौजूदगी कमलनाथ से उनकी बढ़ती दूरी का संकेत दे रही है। दिग्वजय अब तक अमरवाड़ा प्रचार के लिए नहीं गए। इससे पहले लोकसभा चुनाव में भी दोनों ने एक दूसरे के क्षेत्र से दूरी बनाकर रखी थी। दिग्वजय न छिंदवाड़ा नकुलनाथ के प्रचार में गए थे और न ही कमलनाथ एक भी दिन राजगढ़ दिग्विजय के समर्थन में पहुंचे। दोनों जगह कांग्रेस को पराजय का सामना करना पड़ा था। बता दें, इससे पहले जब दिग्विजय मुख्यमंत्री थे तो कमलनाथ उनके लिए संकटमोचक की भूमिका निभाते थे। दिग्विजय भी उन्हें बड़े भाई जैसा सम्मान देते थे। कमलनाथ मुख्यमंत्री बने तब दिग्विजय उनके खेवनहार बने। हालांकि कमलनाथ के मुख्यमंत्री रहते ही दोनों के बीच मतभेद की खबरें आना शुरू हो गई थीं।

*0 स्पीकर में सत्तापक्ष पर भी अंकुश लगाने की क्षमता….!* 

अपरिमित क्षमताओं के धनी नरेंन्द्र सिंह तोमर

– विधानसभा को लंबे समय बाद नरेंद्र सिंह ताेमर के रूप में ऐसे स्पीकर मिले हैं, जो गंभीर हैं, हर मुद्दे की समझ रखते हैं, नियम-कायदों का अनुभव है और सबसे महत्वपूर्ण उनके पास सत्तापक्ष पर भी अंकुश लगाने की क्षमता है। वजह है उनका वरिष्ठ होना और सभी पक्षों में उनके प्रति सम्मान का भाव। यह ठीक है कि स्पीकर को सत्तापक्ष की मर्जी से सदन चलाना पड़ता है, लेकिन लोकतंत्र के इस मंदिर की सार्थकता तभी है जब विपक्ष को भी पर्याप्त समय और महत्व मिले, उनकी आवाज दबाई न जाए। विधानसभा की आसंदी में बैठकर तोमर ऐसा करते दिखाई पड़ रहे हैं। नर्सिंग घोटाले मुद्दे पर लाए गए ध्यानाकर्षण प्रस्ताव पर 5 घंटे तक चली चर्चा इसका प्रमाण है। विधानसभा के इतिहास में शायद ही कभी किसी ध्यानाकर्षण पर इतनी लंबी और सार्थक चर्चा हुई हो। सत्तापक्ष ने कई बार इस पर आपत्ति की लेकिन स्पीकर नरेंद्र सिंह तोमर की दृढ़ इच्छा शक्ति के सामने किसी की नहीं चली। अन्य मसलों पर भी वे विपक्ष को पर्याप्त बल्कि सत्तापक्ष से ज्यादा अवसर देते दिखाई पड़े। इससे अलावा तोमर सदन के अंदर कभी किसी मंत्री की सीट के पास विधायकों की भीड़ नहीं लगने देते। कितना भी वरिष्ठ मंत्री क्यों न हो वे तत्काल ऐसा करने से रोकते हैं। जबकि पहले कई बार सदन के अंदर बाजार जैसा नजारा देखने को मिल जाता था।

 

*0 विधानसभा में बन गया यह एक और इतिहास….* 

MP Vidhan Sabha

– विधानसभा के इस बजट सत्र में दो घटनाएं इतिहास में दर्ज हुईं। पहला, नर्सिंग घोटाले पर ध्यानाकर्षण के जरिए कराई गई 5 घंटे की चर्चा और दूसरा, सबसे छोटा 5 दिन का बजट सत्र। स्पीकर नरेंद्र सिंह तोमर ने सत्तापक्ष की आपत्तियों को दरकिनार करते हुए नर्सिंग घोटाले को लेकर जिस तरह लंबी चर्चा होने दी, उसे देखकर लगा कि इस विधानसभा का नजरा बदला हुआ नजर आएगा। विपक्ष को बोलने का पर्याप्त अवसर मिलेगा और लोकतंत्र के इस मंदिर की साख बहाल होगी। पर जिस तरह 19 जुलाई तक चलने वाले बजट सत्र को पांचवें दिन अनिश्चितकाल के लिए स्थगित किया गया, उसे देखकर लगा कि यह सोचना जल्दबाजी होगी। बजट सत्र आमतौर पर सबसे लंबे और महत्वपूर्ण होते थे। बजट के साथ विभागों की अनुदान मांगों पर महीनों चर्चा होती थी। इसके साथ जनता से जुड़े मुद्दों पर प्रश्नकाल, ध्यानाकर्षण, शासकीय- अशासकीय संकल्पों पर चर्चा होती थी। 2003-04 में जबसे भाजपा प्रदेश की सत्ता में आई तब से धीरे-धीरे इन सत्रों की अवधि छोटी होती गई। इस बार का बजट सत्र तो इतिहास में दर्ज हो गया। चलना था 1 जुलाई से 19 जुलाई तक और स्थगित हो गया 5 जुलाई को पांचवें दिन। ऐसा विपक्ष के विरोध के बावजूद किया गया। कम से कम स्पीकर नरेंद्र सिंह तोमर के रहते ऐसी उम्मीद नहीं थी।

*0 ‘भुट्टा पार्टी’ को ‘पॉवर सेंटर’ कहना कितना जायज….!* 

भाजपा सरकार और संगठन में अब बदलाव यानि भटकाव...

– प्रदेश के नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने अपने बंगले में ‘भुट्टा पार्टी’ पहली बार नहीं दी है, पहले भी वे ऐसे आयोजन करते रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बाद वे दूसरे ऐसा नेता हैं जो समय-समय पर प्रमुख नेताओं और मीडिया को बुलाकर भोजन कराने का शौक रखते हैं। वे जब भी ऐसे आयोजन करते हैं तो हमेशा एक वर्ग प्रचारित करने लगता है कि विजयवर्गीय का बंगला नया ‘पॉवर सेंटर’ बन रहा है। विजयवर्गीय प्रदेश और देश के ताकतवर नेता हैं, पॉवर दिखाने के लिए उन्हें ऐसे आयोजन करने की जरूरत नहीं है। वैसे भी समानांतर ‘पॉवर सेंटर’ बनाने वाले नेता ऐसे आयोजन नहीं करते। उनके यहां सिर्फ संबंधित नेता के समर्थकों का जमावड़ा होता है। ऐसे आयोजनाें में कभी मीडिया को नहीं बुलाया जाता। विजयवर्गीय जब भी आयोजन करते हैं, उसमें मुख्यमंत्री के साथ हर पक्ष के नेता शामिल होते हैं। भुट्टा पार्टी में भी मुख्यमंत्री, मंत्री आए और विधानसभा अध्यक्ष भी। सबसे ज्यादा तादाद मीडिया के लोगों की थी। संभवत: ‘पॉवर सेंटर’ के रूप में प्रचारित करने के कारण ही बीच में विजयवर्गीय ने ऐसे आयोजन बंद कर दिए थे। हालांकि इसकी वजह उनका केंद्र की राजनीति में चले जाना भी था। बहरहाल, विजयवर्गीय के इस आयोजन के कारण बंगला नंबर सी-21 को नए ‘पॉवर सेंटर’ के तौर प्रचारित करना ठीक नहीं।

*0 अवैध कालोनियों को लेकर यह कैसा निर्णय….!* 

– अवैध कालोनियों के मसले पर प्रदेश की डॉ मोहन यादव सरकार ने पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के उलट रास्ता अख्तियार किया है। शिवराज अवैध कालोनियों को वैध करने के पक्ष में थे जबकि डॉ यादव की सरकार ने ऐलान कर दिया है कि प्रदेश की एक भी अवैध कालोनी वैध नहीं की जाएगाी। यहां तक कोई समस्या नहीं है, लेकिन सरकार ने जो नीति तय की है वह गले नहीं उतर रही। नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने विधानसभा के अंदर घोषणा की कि अवैध कालोनियों को वैध नहीं किया जाएगा। इस क्षेत्र में एक नेक्सस काम कर रहा है, उसे रोकने के लिए कड़े नियम बनाए जा रहे हैं। इसके साथ उन्होंने यह भी कहा कि अवैध कालोनियों में रहने वालों की सुविधा के लिए अधोसंरचना का विकास किया जाएगा और मकान बनाने की अनुमति भी दी जाएगी। मौजूदा सरकार की यह नीति ही समझ से परे है। सरकार एक तरफ कालोनियां वैध भी नहीं करेगी और दूसरी तरफ वहां रहने वालों को सुविधाएं भी देगी और मकान बनाने की अनुमति भी। यह अवैध कालोनियों को प्रोत्साहन ही हुआ। ये दोनों काम एक साथ कैसे किए जा सकते हैं? हालांकि विजयवर्गीय ने चुनाव का जिक्र कर मजबूरी की तरफ भी संकेत दिया। उन्होंने कहा कि कई बार वोट के लिए कई निर्णय लेने पड़ते हैं। जनप्रतिनिधियों की सुनना पड़ती है।