नया साल शुभ और मंगल के सन्देश लेकर आता है लेकिन जब नए साल मनाने के तरीके अमंगल की खबरें लेकर आते हैं तो दिल बैठ जाता है. नए साल की शुरुआत में बैष्णोदेवी मंदिर में हुई भगदड़ में एक दर्जन से ज्यादा लोगों के मारे जाने की दुर्घटना हृदय विदारक है .इस हादसे के बाद एक बार फिर हमें सोचना होगा की नए साल का स्वागत करने के हमारे तौर-तरीके क्या और कैसे हों ?
बीता साल कोरोना की भीषण त्रासदी का दर्द छोड़कर गया.कोरोना की वजह से दुनिया ने जीवन में तरह-तरह के अनुशासन स्वेच्छा से और मजबूरन ओढ़े थे लेकिन जैसे ही इसमें शिथिलता आयी हादसे दोबारा शुरू हो गए .बैष्णों देवी मंदिर का हादसा भाड़ के आगे प्रबंधन की असफलता की वजह से हुआ.इसके लिए किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता ,हालांकि मामले की औपचारिक जांच होगी लेकिन साँच कभी सामने नहीं आएगा .
हमारे यहां नव वर्ष मनाने के तौर -तरीके बेहद पारम्परिक हैं. हम लोग बड़ी संख्या में देव् दर्शन कर नए वर्ष का आगाज करते हैं .लेकिन इसी कमजोरी की वजह से देश के तमाम प्रसिद्धि प्राप्त पूजा घरों में सारे अनुशासन को तोड़कर जो भीड़ उमड़ती है उसे देखने से हैरानी होती है .मुझे लगता नहीं कि देवता भी इतनी बेकाबू भीड़ को ढंग से आशीष पाते होंगे .
देश में भगदड़ की घटनाएं प्राय होती रहतीं हैं .पूजाघर भगदड़ की प्रमुख केंद्र हैं .भगदड़ रोकने की कोई मशीन आज तक बनी नहीं है,इसे अनुशासन से ही रोका जा सकता है. भीड़ अक्सर भगदड़ का शिकार होती है. आपको मुंबई के परेल स्टेशन पर हुई भगदड़ याद होगी. भगदड़ की आशंका से अमरनाथ यात्रा को भी कई बार रोकना पड़ा है .औरंगाबाद में प्रवासी मजदूरों के बीच हुई भगदड़ का हादसा कौन भूल सकता है ?
भगदड़ की वजह से हर साल सैकड़ों निरीह लोगों की जान जाती है . मुझे याद है कि पिछले दशक में भगदड़ की एक दर्जन से अधिक दुर्घटनाओं में करीब 700 लोग मारे गए थे .परेल में 22, बनारस के राजघाट में 19, नैना देवी मंदिर में 2006 में हुई भगदड़ में 160 लोग मरे गए थे।
2008 में राजस्थान के चौमुंडा देवी मंदिर की भगदड़ ने 120 लोगों की जान ले ली थी .सबरीमाला में 2011 में 106 लोग मारे गए थे.
हमारे मध्यप्रदेश में रतनगढ़ मंदिर पर 2013 में हुई भगदड़ में 89 लोगों की जान गयी थी .2010 में प्रतापगढ़ के राम जानकी मंदिर में हुई भगदड़ में 63 लोग मरे गए थे,2003 में नासिक के कुम्भ में 40 लोगों की मौत हुई थी .
दुर्भाग्य की बात ये है कि देश भगदड़ के हर हादसे के बाद शोकाकुल तो होता है किन्तु भगदड़ से बचने और दूर रहने का कोई उपाय नहीं करता. धार्मिक स्थलों पर भीड़ को नियंत्रित करने के लिए एक ही तरीका बचता है की वहां राशनिंग की जाये.कोटा सिस्टम या आन लाइन बुकिंग से प्रवेश की व्यवस्था की जाये .सरकार यदि ऐसा करेगी तो हमारा धर्म भ्रष्ट होने लगेगा,उसके ऊपर आंच आ जाएगी और ऐसी किसी भी व्यवस्था का विरोध होने लगेगा .हम नहीं मानेगे .
देश में धार्मिक स्थलों पर भगदड़ जैसे हादसों की एकमात्र वजह धर्मस्थलों का आस्था से हटकर पर्यटन स्थलों में बदल जाना है. कारोबारी ही नहीं बल्कि अब देश की सरकारें भी इस नए पर्यटन को धार्मिक पर्यटन के रूप में अंगीकार कर चुका है. काशी में इसका प्रयोग खुद प्रधानमंत्री की अगुवाई में किया गया.
जहाँ भीड़ होगी ,वहां भगदड़ की आशंकाएं हमेशा बनी रहेंगी,ऐसे में हादसों को टालना असम्भव बना रहेगा ,लेकिन हमें इसे एक बड़ी समस्या मानकर निबटने की तैयारी करना ही होगी अन्यथा शुभ की कामना करने वाले लोग इस तरह के हादसों में अपनी जान गंवाते रहेंगे.
देश का शायद ही कोई पूजास्थल ऐसा होगा जो इस तरह की हृदय विदारक घटनाओं का साक्षी न बना हो. देश में अलग-अलग शहरों में लगने वाले कुम्भ मेलों से लेकर छोटे -छोटे उत्सवों पर भी भगदड़ होती है. बिहार का बैजनाथ धाम हो या कल का इलाहाबाद या हरि की पौढ़ी ,सबके सब निर्दोषों की लाशों से पट चुके हैं किन्तु भगदड़ रोकने का कोई विज्ञान विकसित नहीं किया जा सका.
जान गंवाने से बेहतर है की ख़ास मौकों पर पारम्परिक रूप से जहाँ भीड़ होती है वहां न जाया जाये. देश बहुत बड़ा है ,आनंद की अनुभूति के लिए देश के किसी भी रमणीक हिस्से में जाया जा सकता है .धर्म कर्म करने के लिए आप उस समय को चुनिए जब भीड़ नहीं हो.नए वर्ष का स्वागत तो आप अपने घर की छत और बालकनी में बैठकर भी कर सकते हैं,.लेकिन नहीं करते.कोरोनाकाल में नजरबंद रही आबादी तो तमाम पाबंदियां तोड़कर पर्यटन पर निकल पड़ी है. ओमीक्रान की वजह से दोबारा लाकडाउन की आशंका से भयभीत लोग जल्द से जल्द घूम-फिर लेना चाहते हैं ,उन्हें पता ही नहीं है कि उनकी ये कोशिश कितनी खतरनाक है .
एक जबरदस्त घुमक्क्ड होने के नाते मेरी सलाह है की भीड़ से बचें,अनुशासन का पालन करें या फिर समय लेकर घर से निकलें ,तभी भगदड़ जैसे हादसों से बचा जा सकता है.अन्यथा भगदड़ होती रहेगी,लोग मरते रहेंगे,हादसों की जाँच होती रहेगी ,लेकिन होगा कुछ नहीं .आप यदि सर्वेक्षण करें तो पाएंगे की अतीत में जिन स्थानों पर भगदड़ हो चुकी है वहां आज भी हालात पहले जैसे ही हैं .लोग सुधरने को राजी ही नहीं है.
भगदड़ भीड़ का चरित्र है,फिर चाहे भीड़ भारत की हो या किसी दुसरे देश की .भारत के अलावा दुनिया के दुसरे देशों में भी भगदड़ में लोग मारे जाते हैं. इजराइल के उत्तर में बीते साल हुई भगदड़ में 40 लोग मारे गए थे। भगदड़ की घटनाओं में जमा कमजोर लोग तमाम तरह की आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक असुरक्षाओं के बोध से ग्रस्त रहते हैं। भगदड़ की घटनाओं को व्यवस्थागत खामियों के आलोक में देखा जाता है।
लिहाजा, ये घटनाएं विचार के प्रश्न के रूप में सामने नहीं आ पाती हैं। केंद्र सरकार यह कहकर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर लेती है कि कानून एवं व्यवस्था प्रदेश सरकारों का विषय है। राज्य सरकारों का यह आलम है कि भगदड़ की घटनाओं के बाद जांच की एक प्रक्रिया शुरू की जाती है और फिर ऐसी घटनाओं को भाग्य का खेल और भगवान की मर्जी मानकर उन्हें भुला दिया जाता है। बहरहाल बैष्णोदेवी मंदिर हादसे में मारे गए लोगों की आत्मशांति के लिए प्रार्थना करते हुए हमें भविष्य में इस तरह के हादसे रोकने की जरूरत है .