MP’s IAS Officer Ayodhya Connection: अयोध्या वाले MP के IAS अफसर

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MP’s IAS Officer Ayodhya Connection: अयोध्या वाले MP के IAS अफसर

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वैसे तो अयोध्या को राम की अयोध्या के नाम से जाना जाता है किन्तु मध्यप्रदेश के एक IAS अफसर को अयोध्या वाला बोला जाने लगा। अब उनका ये नाम क्यों पड़ा और इस अफसर का अयोध्या कनेक्शन क्या है, यह आपको हम समझाते है। प्रदेश में एक IAS अफसर हैं, जो आज भले ही लूप लाईन में हों, किन्तु किसी समय वे हीरा-पन्ना के क्षेत्र में बड़े पद पर थे। इन पंडित जी ने वहां भी गजब का कमाल किया। सबसे पहले तो इन्होंने अपनी बिटिया रानी को एक बडी हीरा कंपनी में नौकरी दिलवा दी। उसके बाद एक बडे शहर में 40 एकड़ बेशकीमती जमीन खरीद ली। पंडित जी की कलाकारी यही नहीं रूकी। इन्होंने अयोध्या में राम मंदिर बनने के पहले वहां एक आलीशान रिसोर्ट बनाकर उसे एक परदेसी कंपनी को भारी किराये पर दे दिया। अब बताओ पंडित जी को अयोध्या वाला नहीं तो क्या मथुरा वाला कहेंगे। बोलो जय जय सियाराम!

*जीतू पटवारी की सूची कहां अटकी* 

मध्य प्रदेश: पूर्व मंत्री जीतू पटवारी को विधानसभा ने नोटिस जारी किया, सदन में कांग्रेस विधायकों का हंगामा न्यूज डेस्क, अमर उजाला, भोपाल Published by: आनंद पवार Updated Wed, 16 Mar 2022 01:10 PM IST सार राज्यपाल के अभिभाषण के बहिष्कार के मामले में कांग्रेस विधायक जीतू पटवारी को बुधवार को विधानसभा ने नोटिस जारी किया है। इस पर सदन में कांग्रेस विधायकों ने नारेबाजी और हंगामा किया। मध्य प्रदेश विधानसभा (फाइल फोटो) मध्य प्रदेश विधानसभा (फाइल फोटो) - फोटो : अमर उजाला विस्तार कांग्रेस विधायक जीतू पटवारी को बुधवार को विधानसभा ने नोटिस जारी किया है। राज्यपाल के अभिभाषण के बहिष्कार के मामले में ये कार्रवाई की गई है। इस पर सदन में कांग्रेस विधायकों ने नारेबाजी और हंगामा किया। विधानसभा की तरफ से जीतू पटवारी को जारी नोटिस पर गोविंद सिंह ने विरोध दर्ज कराया। इसके बाद विधानसभा अध्यक्ष ने नियम पढ़कर बताया। नरोत्तम मिश्रा ने कहा कि कोई खेद प्रकट नहीं करेगा। इसके बाद कांग्रेस विधायकों ने सदन में नारेबाजी शुरू कर दी और जमकर हंगामा किया

जीतू पटवारी जब से प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बने हैं, तब से जितने विवाद उनके नाम लिखे गए, इतने बोफोर्स कांड के नाम पर भी नहीं होंगे। यानी जीतू पटवारी विवादों के मामले में बोफोर्स के भी आगे निकल गए। विरोधी तो यह भी कह रहे हैं कि जीतू ने अपनी कार्यकारिणी नहीं बनाई। अब कहने वालों को कौन समझाए कि जीतू पटवारी इतने होशियार है कि उन्होंने अपनी पर्सनल कार्यकारिणी अनुमोदन के लिए दिल्ली हाईकमान को भेजी थी। खास बात यह कि पटवारी ने इस कार्यकारिणी की भनक प्रदेश प्रभारी भंवर जितेन्द्र सिंह को भी नहीं लगने दी और न प्रदेश के बड़े नेताओं को पता चला।

लेकिन, शायद जीतू पटवारी की किस्मत ही खराब है। न तो वह कार्यकारिणी अनुमोदित होकर दिल्ली से वापस आई और न उनकी यह कारस्तानी छिपी रही। अब बड़े नेता और पटवारी के विरोधी यह कहने से नहीं चूक रहे है कि पटवारी साहब ने जो कार्यकारिणी भेजी वह कब आएगी। यानी कि पटवारी का समय इतना खराब चल रहा है कि परछाईं भी उनका साथ नहीं दे रही।

*कांग्रेसी झटके ने निपटा दिया*

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आलीराजपुर वाले स्वयंभू नेता नागर सिंह चौहान की पत्नी को जिस दिन भाजपा ने लोकसभा का टिकट दिया था, उसी दिन तय हो गया था कि अब उनके पर कतरे जाएंगे। लेकिन, नागर इस भ्रम में थे कि पार्टी को मेरे से अच्छा कोई नेता नहीं मिलेगा। दरअसल, ये उनका भ्रम था कि वे पार्टी से ऊपर हैं। लेकिन, जब रामनिवास रावत को विभाग दिए गए, तो सबसे पहले नागर सिंह चौहान के विभागों को ही कतरा गया। इसके बाद तो नागर सिंह ने कांग्रेसी स्टाइल में तीन चैलेंच पार्टी को दिये ।पहला, हाईकमान से चर्चा करूंगा,  और दूसरा यह कि पत्नी से भी इस्तीफा दिलाऊंगा और तीसरा यह कि खुद भी मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दूंगा। लेकिन, ऐसा कुछ नहीं हुआ।

नागर सिंह दिल्ली तो गए, पर उनसे पार्टी का कोई नेता नहीं मिला। जबकि, उन्होंने प्रचारित यह किया था कि उन्हें बुलाया गया है, पर सच्चाई यह नहीं थी। पत्नी ने भी लोकसभा से इस्तीफा नहीं दिया और न खुद ने दिया। दिल्ली से न सिर्फ खाली हाथ लौटे, बल्कि पार्टी के सामने एक तरह से सरेंडर ही कर दिया। कहने वाले कह रहे है कि नागर सिंह ने कांग्रेसी स्टाईल दांव खेला था, लेकिन अब लगता है कि नागर सिंह न तो भाजपा सरकार को समझ पाए और न भाजपा संगठन को। तभी तो नागर सिंह को कांग्रेसी फार्मूला ले डूबा। अब ये कहने कि बात नहीं कि नागरसिंह चल तो कांग्रेसी मित्रों के हिसाब से ही रहे थे। उन्होंने तो मंत्रिमंडल नहीं छोडी पर ये मित्र उनसे पार्टी छुड़वा दे, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

*एक और मंत्री संगठन के निशाने पर*

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जिस प्रकार नागर सिंह को अपने मित्रों के कारण ठोकर खाना पडी वैसे ही अब संघ की ओर संगठन की निगाहे इंदौर संभाग के एक और मंत्री पर टिकी है। इंदौर के आसपास के ये नेताजी मोहन कैबिनेट में पॉवरफुल विभाग लेकर राजनीति कर रहे है। लेकिन, बताने वालों का कहना है कि इन नेताजी के भी एक अल्पसंख्यक मित्र अब चाय से ज्यादा केतली गरम वाली भूमिका में दिखाई दे रहे है। इन भाईजान का रुतबा ऐसा है कि विभाग में हर काम में भाईजान की सहमति और असहमति किसी कानून की तरह होती है और विभाग में भी। अब कहने वाले तो यहां तक कह रहे है कि कोई मंत्री जी से पूछता है कि दो और दो कितने होते हैं, तो मंत्री जी कहते हैं कि होते तो चार है, पर एक बार भाईजान से पूछ लेता हूं। अब आप बताओ कि इसमें ‘नौ’ और ‘शाद’ का क्या दोष?

*बेटे के जन्मदिन पर तोहफों की बरसात*

वैसे तो रोज किसी न किसी का जन्मदिन मनता आया है। उनकी चर्चा हो न हो, पर धार जिले के एक एसडीएम के साहबजादे के जन्मदिन और उसमें आए तोहफों की चर्चा जरूर हो रही है। ये एसडीएम साहब पड़ोस के ही जिले के रहने वाले है। दरअसल वे जहां के एसडीएम हैं, वहां के नेताओं में जबरजस्त बैर है। बस इसी बात से साहब को कोई टेंशन नहीं रहता। साहबजादे का जन्मदिन मनाया था उस जन्मदिन में आये तोहफों ने एसडीएम साहब का रुतबा और प्रवृत्ति दोनों जगजाहिर कर दी। साहब अपने जिले में जमीन भी बहुत खरीद रहे है। अब दिल जले तो यहां तक कह रहे है कि तोहफे इतने आए कि दो कमरे भर गए और नकदी के साथ साहिबजादे को जेवर देने वालों की गिनती नहीं। अब जिसका भगवान भला करेंगे, वो तो मन्नत का चढ़ावा चढ़ाएगा ही!

*कांग्रेस में गलती होना और न होना!*

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इंदौर शहर कांग्रेस के अध्यक्ष सुरजीत सिंह चड्ढा और जिला कांग्रेस अध्यक्ष सदाशिव यादव का प्रदेश कांग्रेस द्वारा किया गया निलंबन समाप्त हो गया। सवाल उठता है कि उन्होंने गलती की या नहीं! यदि गलती की थी, तो क्या उसकी सजा 7 दिन का गोपनीय निलंबन ही था और यदि गलती नहीं की, तो यह निलंबन भी क्यों किया गया? अभी पार्टी इसी उहापोह में है कि इस बात का उसके पास क्या जवाब है? क्योंकि, सुरजीत सिंह चड्ढा का एक वीडियो भी इस बीच वायरल हुआ था, जिसमें वे साफ कहते नजर आ रहे थे कि मैंने कैलाश विजयवर्गीय का पार्टी ऑफिस में जो स्वागत-सत्कार किया वह प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी के कहने से किया। इस घटना के बाद यह स्पष्ट हो गया की पूरी गलती सुरजीत सिंह चड्ढा की नहीं है। उन्होंने जो किया अपने अध्यक्ष कहने पर किया। यदि बात यह है, तो फिर अध्यक्ष को क्या सजा मिली? यही कारण है कि अभी तो कोई समझ नहीं पाया कि कोई गलती हुई भी या नहीं?

*’संघ’ में अब सरकारी लोगों का अलग प्रकल्प*

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सरकारी अधिकारियों और कर्मचारी भी अब संघ से जुड़कर काम कर सकेंगे। 58 साल पहले लगाई गई रोक को सरकार ने हटा दिया है। सीधा आशय यह कि वे संघ की शाखाओं में स्वयं सेवक की तरह अपनी हिस्सेदारी निभा सकेंगे। इस आदेश के जारी होते ही संघ ने भी इस दिशा में पहल शुरू कर दी। संघ में एक नया प्रकल्प बनाने की तैयारी शुरू कर दी गई, जिसमें सिर्फ सरकारी कर्मचारी और अधिकारी ही होंगे। यानी अब संघ में सरकारी कर्मचारियों के लिए एक अलग विभाग होगा। अभी तैयारी चल रही है, जब यह बन जाएगा तो उसका मूल स्वरूप सामने आएगा।o

 *मीडियावाला की खबर पर लगी मुहर* 

भोपाल संभाग के कमिश्नर डॉक्टर पवन शर्मा की केंद्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर जाने की खबर सबसे पहले मीडियावाला ने दी थी। कल रात केंद्र सरकार जारी IAS की सूची में डॉक्टर पवन शर्मा का नाम भी शामिल है। उन्हें केंद्रीय रक्षा मंत्रालय रक्षा मंत्रालय में संयुक्त सचिव बनाया गया है। डॉ पवन शर्मा 1999 बैच के आईएएस अधिकारी हैं।