राहुल गांधी के लिए सत्ता का रास्ता UP से या USA से

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राहुल गांधी के लिए सत्ता का रास्ता UP से या USA से

लखनऊ के एक पुराने मित्र ने फोन करके एक दिलचस्प सवाल किया ” यह बताइये भारत में केंद्र की सत्ता का रास्ता UP ( उत्तर प्रदेश ) से आता है या USA ( अमेरिका ) से ? ” वह कभी वरिष्ठ अधिकारी , नेता और लेखक रहे हैं | यू पी में चरण सिंह से योगी तक और इंदिरा गाँधी से नरेंद्र मोदी की सरकारों और विभिन्न पार्टियों के उतार चढ़ाव देखते रहे हैं | इसलिये मैंने उत्तर दिया – ” परम्परा से तो हर राजनीतिक पार्टी के बड़े नेता कहते और सिद्ध करते रहे हैं कि उत्तर प्रदेश से विजय रथ लेकर निकले बिना न कोई प्रधानमंत्री बन सका या बनवा सका | लेकिन कभी सी आई ए के नाम पर गतिरोध और गड़बड़ियों के आरोप लगाने वाली कांग्रेस के कुछ नेताओं को भरोसा है कि अमेरिकी ताकत से सत्ता का रास्ता आसान हो सकता है | शायद इसीलिए भारत के हर लोक सभा या महत्वपूर्ण राज्यों की विधान सभाओं के चुनाव से पहले अपने नेता राहुल गाँधी की अमेरिका की यात्रा का इंतजाम कर देते हैं | कुछ स्थानों पर प्रायोजित सार्वजानिक भाषण और मुलाकातें होती हैं और कुछ गुप्त बैठकें होती हैं | बहरहाल आप खबरों और विश्लेषणों पर नजर रखिये , जब दिल्ली आएं तो सामने बैठकर बात करेंगे | ” लेकिन इस संक्षिप्त बातचीत से महसूस हुआ कि यह संयोग नहीं , राजनीतिक भी नहीं महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय सत्ता का खेल बनता जा रहा है | भारतीय राजनीति , प्रशासन , अर्थ व्यवस्था , मीडिया और गुप्तचर तंत्र को प्रभावित करने का सिलसिला है | फिर इस बार तो संवेदनशील जम्मू कश्मीर से लेकर दुनिया के बाजार को प्रभावित करने वाले मुंबई महाराष्ट्र के चुनावों के लिए कांग्रेस की जोड़ तोड़ चरम सीमा पर है |

राहुल गांधी 8 से 10 सितंबर तक अमेरिका में होंगे, जिस दौरान वह जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय और टेक्सास यूनिवर्सिटी में लोगों के साथ संवाद करने के साथ ही वाशिंगटन डीसी और डलास में कई बैठकें करेंगे |राहुल नेशनल प्रेस क्लब में प्रेस के साथ बातचीत करेंगे, थिंक टैंक के लोगों से मिलेंगे और जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय में छात्रों और चुनिंदा लोगों को सम्बोधित करेंगे | राहुल की छवि चमकाने और यदा कदा अपने बयानों से कांग्रेस को फजीहत में डालने वाले
गांधी परिवार के सबसे करीबी सैम पित्रोदा ने राजीव गांधी और उनके बेटे राहुल गांधी को “भारत की अवधारणा का संरक्षक” बताया है | उन्होंने कहा कि राहुल अपने पिता से ज्यादा बुद्धिमान हैं और वह रणनीति बनाने के मामले में भी उनसे बेहतर हैं. शिकागो में भारतीय न्यूज़ एजेंसी को दिए इंटरव्यू में पित्रोदा ने जोर देकर कहा कि लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी में प्रधानमंत्री बनने के सारे गुण हैं | ” और इस वक्तव्य के बाद भी कई टी वी चैनल्स और सोशल मीडिया पर सैम अंकल का प्रचार अभियान जारी है | हाल के लोक सभा चुनाव के बाद प्रतिपक्ष के नेता का दर्जा मिलने से अमेरिका , यूरोप और भारत में भी पित्रोदा और पार्टी दुनिया को यह दिखाने में लगी है कि ‘ सम्भलो राहुल बस केंद्र की सत्ता का सिंहासन पाने वाले हैं ‘ | पिछले दस वर्षों के दौरान राहुल गाँधी ने तीन सौ से अधिक विदेश यात्राएं की होंगी |

पित्रोदा ने पहली बार इंदिरा गाँधी और राजीव गांधी को टेलीकॉम सेक्टर पर अपने फॉर्मूलों से परिवार के अंदरूनी घेरे में प्रवेश किया। था | बाद में उन्हें सरकार में बड़े निर्णय करने वाले मिलते रहे | राजीव गाँधी के सत्ता से हटने पर वी पी सिंह सरकार के पुराने कांग्रेसी मंत्री के पी उन्नीकृष्णन ने टेलीकॉम क्षेत्र में करोड़ों के गंभीर आरोप लगाए , जांच के आदेश हुए | लेकिन दो साल बाद सरकार ही बदल गई और कांग्रेस सत्ता में आ गई | उतार चढ़ाव चलता रहा और मनमोहन सिंह की सरकार आने पर सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् के साथ पित्रोदा को ज्ञान आयोग का प्रमुख बनाकर लगभग मंत्रो जैसा दायित्व मिला | अब वह अब राहुल गांधी के करीबी सहयोगी हैं, उन्हें कई मुद्दों पर सलाह देते हैं, उनकी विदेश यात्राओं की व्यवस्था करते हैं और यहां तक ​​कि चुनावों के लिए पार्टी के घोषणापत्र के मसौदे में भी प्रमुख भूमिका निभाते हैं।राजीव गांधी और राहुल गांधी के बीच समानताओं और अंतर के बारे में पूछे जाने पर पित्रोदा ने कहा है कि उन्होंने राजीव गांधी, पीवी नरसिम्हा राव, मनमोहन सिंह, वीपी सिंह, चंद्र शेखर और एचडी देवेगौड़ा सहित कई प्रधानमंत्रियों के साथ काम किया है. | मुझे कई प्रधानमंत्रियों के साथ बहुत करीब से काम करने का मौका मिला, लेकिन राहुल और राजीव के बीच अंतर शायद यह है कि राहुल कहीं अधिक बुद्धिमान और बेहतर रणनीतिकार हैं, राजीव काम करने में ज्यादा यकीन रखते थे | “

इस तरह के दावों से लगता है कि राहुल गाँधी विदेशों में अपनी गतिविधियों से भारत के मतदाताओं को भी चमत्कृत करने में लगे हैं | उनके दूसरे सलाहकार दिग्विजय सिंह एक कदम आगे बढ़कर यह कहते रहे हैं कि सत्ता में हों या न हों विवादों से भी चर्चा में बने रहना उचित है | पार्टी के प्रचार प्रमुख जयराम रमेश को भी पार्टी तथा गाँधी परिवार के करीबी मणिशंकर अय्यर की शैली में आक्रामक तेवर अपनाने का तरीका पसंद है | लेकिन क्या इससे जनता का दिल जीतना आसान है ? पित्रोदा , मणिशंकर अय्यर और जयराम नरेश चुनावी मैदान में नहीं जाते हैं | लेकिन उनकी सलाह पर राहुल गांधी जितने वक्तव्य देते हैं , वे व्यापक राष्ट्रीय हितों की दृष्टि से खतरनाक कहे जा सकते हैं | लगभग एक वर्ष से वह जाति जन गणना , सरकारी खजाना दो अरबपतियों को लुटाने जैसे उत्तेजक भ्रामक बयान देते रहे हैं | अब अमेरिका जाने से पहले उन्होंने कश्मीर की चुनावी सभाओं में यहाँ तक कह दिया कि ‘ हमने राजाओं को हटाकर लोकतंत्र कश्मीर में लाया था | लेकिन अब मोदी सरकार ने यहां राजा का शासन ला दिया है। यहां के राजा एल जी ( उप राज्यपाल ) हैं। पहले केंद्र शासित प्रदेश को राज्य बनाते थे। मोदी जी राज्यों को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया | यहाँ का धन बाहर के लोगों को लुटाया जा रहा हैं , उन्हें कॉन्ट्रैक्ट दिए जा रहे हैं | देश में पूरी सरकार दो अरबपतियों के लिए चलाई जा रही है। आपका जो स्टेट हुड छीना गया है, उसका फायदा इन्हीं दोनों को दिया गया है। जो हालात देश में है, उससे खराब हालत जम्मू-कश्मीर में है।” बहुत संभव है यही बात वे अमेरिका में भी कहें , क्योंकि उनके सलाहकार पित्रोदा की सलाह यह भी है कि “ किसी विपक्षी नेता द्वारा सरकार की आलोचना करना जायज है, और यह वास्तव में उसका काम है, तो शिकायत क्यों करें | विदेश में की गई टिप्पणियों को लेकर उनकी आलोचना करना बकवास है | “

जम्मू कश्मीर को दशकों बाद मोदी सरकार ने संविधान की धारा 370 के बंधन से मुक्त कर वहां के लोगों को हर भारतीय जैसे अधिकार और आर्थिक विकास की रफ़्तार बढ़ाई | अब दो तीन करोड़ पर्यटक पहुँचने लगे हैं और चुनाव के बाद पुनः राज्य का दर्जा देने का वायदा भी कर दिया है | लेकिन राहुल गांधी वहां बाहरी लोगों के आने काम करने के विरोध का अभियान चलाकर अलगाववाद की आग लगा रहे हैं | कश्मीर तो आतंकवाद और अब्दुल्ला मुफ़्ती राज में भ्रष्टाचार से बुरी तरह प्रभवित था | वहां सीमित आर्थिक साधन हैं और बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य , पर्यटन सुविधा , रोजगार , व्यापार आदि के लिए देश विदेश से बड़े पैमाने पर पूंजी निवेश की आवश्यकता है | यही नहीं रायबरेली अमेठी को चुनावी गढ़ के उत्तर प्रदेश या बिहार , कर्नाटक , हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में कोई कश्मीरी या अन्य भारतीय काम धंधे ठेके लेने के हकदार नहीं होंगे ? इसी तरह किसी केंद्र शासित प्रदेश के उप राज्यपाल या राष्ट्रपति शासन में राज्यपाल राजा की तरह गड़बड़ियां और अत्याचार कर सकते हैं | इंदिरा गाँधी से लेकर राहुल गाँधी की सुरक्षा व्यवस्था में रहे अधिकारी भी उप राज्यपाल या राजयपाल रहे हैं , लेकिन ऐसे आरोप प्रतिपक्ष ने नहीं लगाए | इसी तरह भारत के लोकतंत्र और न्याय व्यवस्था को पूरी तरह संकट में बताने का प्रचार भारत के अंदर और विदेशों में कितना उचित या उपयोगी होगा ?

Author profile
ALOK MEHTA
आलोक मेहता

आलोक मेहता एक भारतीय पत्रकार, टीवी प्रसारक और लेखक हैं। 2009 में, उन्हें भारत सरकार से पद्म श्री का नागरिक सम्मान मिला। मेहताजी के काम ने हमेशा सामाजिक कल्याण के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है।

7  सितम्बर 1952  को मध्यप्रदेश के उज्जैन में जन्में आलोक मेहता का पत्रकारिता में सक्रिय रहने का यह पांचवां दशक है। नई दूनिया, हिंदुस्तान समाचार, साप्ताहिक हिंदुस्तान, दिनमान में राजनितिक संवाददाता के रूप में कार्य करने के बाद  वौइस् ऑफ़ जर्मनी, कोलोन में रहे। भारत लौटकर  नवभारत टाइम्स, , दैनिक भास्कर, दैनिक हिंदुस्तान, आउटलुक साप्ताहिक व नै दुनिया में संपादक रहे ।

भारत सरकार के राष्ट्रीय एकता परिषद् के सदस्य, एडिटर गिल्ड ऑफ़ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष व महासचिव, रेडियो तथा टीवी चैनलों पर नियमित कार्यक्रमों का प्रसारण किया। लगभग 40 देशों की यात्रायें, अनेक प्रधानमंत्रियों, राष्ट्राध्यक्षों व नेताओं से भेंटवार्ताएं की ।

प्रमुख पुस्तकों में"Naman Narmada- Obeisance to Narmada [2], Social Reforms In India , कलम के सेनापति [3], "पत्रकारिता की लक्ष्मण रेखा" (2000), [4] Indian Journalism Keeping it clean [5], सफर सुहाना दुनिया का [6], चिड़िया फिर नहीं चहकी (कहानी संग्रह), Bird did not Sing Yet Again (छोटी कहानियों का संग्रह), भारत के राष्ट्रपति (राजेंद्र प्रसाद से प्रतिभा पाटिल तक), नामी चेहरे यादगार मुलाकातें ( Interviews of Prominent personalities), तब और अब, [7] स्मृतियाँ ही स्मृतियाँ (TRAVELOGUES OF INDIA AND EUROPE), [8]चरित्र और चेहरे, आस्था का आँगन, सिंहासन का न्याय, आधुनिक भारत : परम्परा और भविष्य इनकी बहुचर्चित पुस्तकें हैं | उनके पुरस्कारों में पदम श्री, विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार, गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार, पत्रकारिता भूषण पुरस्कार, हल्दीघाटी सम्मान,  राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार, राष्ट्रीय तुलसी पुरस्कार, इंदिरा प्रियदर्शनी पुरस्कार आदि शामिल हैं ।