

बादल,अफसर, ठेकेदार और घमंडी सड़क
मुकेश नेमा
सावन के बादलों का इंतज़ार बस प्रेमियों को रहता हो ऐसी क़तई नही है। सड़क बनाने वाले ठेकेदार और अफसर उनसे भी ज्यादा अधीरता से निहारते है बादलों को। बादलों की प्राथमिक ज़िम्मेदारी है कि वो आएं और सड़कों को बहा ले जाएं।सड़क बनाने वाले ठेकेदार और अफसर आस्तिक होते है। भगवान भी प्रेम करता है उनसे। आमतौर पर हर साल बादल भेजना याद रखता है बादल आते हैं। बरसते है। और उनका रास्ता ताकती भावनाओं से भरी सड़कें बह जाती है।
सड़कें बहने के लिए ही बनाई जाती है हमारे यहाँ। पर कभी कभार अनहोनी भी होती ही हैं। कुछ ढीठ किस्म की सड़कें नही भी बहती। ऐसा ही अजीब वाकया हुआ एक शहर में। एक सड़क बादलों के मनुहार के बावजूद नही बही। दुनिया का सातवाँ आश्चर्य। देखते ही देखते यह खबर आग की तरह फैली। हैरान जनता झुंड बना बना कर उसे देखने आई। पब्लिक को सतयुग आने का शक हुआ। लोगों ने आँखें मल मल कर देखा बिना बही सड़क को। एक दूसरे को चिकोटी काट कर तस्दीक की कि कहीं वो सपना तो नही देख रहे। और जो चीज देख रहे हैं वो सड़क ही है या कुछ और है। फिर जनता हो हो कर हँसी और उसने सड़क बनाने वाले अफसर और ठेकेदार को गधा करार दिया।
खबर सडक बनाने के लिए जिम्मेदार महकमे तक भी पहुँची। संबंधित अफसर को बाक़ी अफसरों ने दया भाव से देखा। सब हँसे उस पर। वो अपनी ग़ैरज़िम्मेदारी पर शर्मिंदा हुआ। उसने फौरन सड़क बनाने वाले ठेकेदार को तामील किया। ठेकेदार आया। घबराया और आँखें नीचे किए रहा।
साहब अनमना है बहुत। शर्मा ऐसी उम्मीद थी नही तुमसे। ठेकेदार सचमुच शर्मिंदा है। दुखी है अपने ही पेट पर लात मारने के लिए। सर मैंने डांटा है अपने बंदों को।
साहब मायूस भी है। ये क्या कर बैठे तुम ? बिना बही सड़कें साख खराब करती हैं। अब बड़े अफसर तुम्हारे साथ मुझे भी नौसिखिया मानेंगे। सबका नुकसान कर दिया तुमने। नई नई नौकरी है मेरी। मुझे डर है कहीं प्रोबेशन पीरियड न बढ़ा दिया जाए मेरा।
अफसर भी नया था और ठेकेदार भी। ठेकेदार के मरे बाप भी ठेकेदार थे सो लड़का भी ठेकेदार हुआ और फिर वो सड़क बना बैठा जो बहने के लिए तैयार नही हुई।
कम से कम अपने पिताजी की इज्जत की ही सोच लेते। वो इतने शरीफ थे कि बादलों को जहमत देने से भी बचते थे। कागज़ों पर ही सड़के बना कर बहा देने के लिए मशहूर थे। और ये तुम्हारा किया धरा है। न सड़क बही न उसमें गड्डे हुए। सड़कें बहेगी नही तो हमारी तुम्हारी जरूरत क्या रह जाएगी ?
सर आदमी गलती कर के ही सीखता है। अब आगे कभी ऐसी गलती हो जाए तो आपका जूता और मेरा सर।
सब हँस रहे है यार।मन लगाकर काम किया नही तुमने।
सर अब ये गलती दोबारा नही होगी।
बादलों की पेशी भी हुई इन्द्र के सामने।
कामचोरी सीख आए धरती पर जाकर। उस सड़क को राजी नही कर पाए बहने के लिए ?
सर । हमने तो पूरी कोशिश की उसे मनाने की। पर वो जिद्दी और ईमानदार थी।
ये अजीब बात बताई तुमने। यदि हम सड़कें ही न बहा सके तो कौन भरोसा करेगा हम पर ?
सर अगली बार फिर कोशिश करेंगे हम। उस घमंडी सड़क का सर झुका कर रहेंगे।
इन्द्र नाराज थे सो बादल दफ़ा किए गए।
खैर। जो होना था हो चुका। एक जिद्दी सड़क ने बहने से इनकार कर बादलों ,ठेकेदारों और अफसरों सबके कैरियर को खतरे में डाल दिता है। बादल मुँह छुपाए फिर रहे है और अफसर और ठेकेदार गमगीन है।शाम को गम गलत करते हुए फिर बादलों का इंतज़ार करेंगे। हम उम्मीद कर सकते है कि बादल हिम्मत कर दोबारा बरसेंगे। सड़क बहाने में सफल होंगे। ये जरूरी है ताकि बादलों अफसरों और ठेकेदारों की साख ,उनका आत्मसम्मान और आत्मविश्वास दोबारा बहाल हो सके।