Silver Screen:नए दौर के कथानकों में पौराणिक किस्सों का तड़का!  

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Silver Screen:नए दौर के कथानकों में पौराणिक किस्सों का तड़का!  

हिंदी फिल्मों में जब भी धर्म का जिक्र हुआ, दर्शकों ने उसे हाथों हाथ लिया! भगवान की शरण में बॉलीवुड की फिल्मों ने कई बार सफलता का स्वाद भी चखा। ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मों के जमाने में आई ‘रामराज्य’ से लगाकर आज जब भी परदे पर भगवान उतरे, फ़िल्मकार को उनका आशीर्वाद जरूर मिला! फिल्म इंडस्ट्रीज में एक्शन के साथ धर्म और ईश्वर के चमत्कारों को दिखाने वाली फिल्मों का हमेशा वर्चस्व रहा है। फिल्म ‘बजरंगी भाईजान’ का नायक हनुमान भक्त है। ‘अग्निपथ’ रितिक रोशन गणेश का गाना भगवान गणेश को समर्पित था। शाहरुख खान ने भी जब ‘डॉन’ का रीमेक बनाया तो गणेश की स्तुति की! अमिताभ बच्चन की तो करीब सभी हिट फिल्मों में भगवान या अल्लाह का आशीर्वाद साथ चला। कुली, अमर-अकबर- एंथनी, सुहाग, दीवार हो या ‘कल्कि’ सभी में आस्था का कोई न कोई तड़का जरूर लगा। अक्षय कुमार ने भी जब ‘खिलाड़ियों के खिलाड़ी’ में जय शेरावालिए तेरा शेर … गाया तो धूम मच गई। फिर वे ‘ओएमजी’ सीरीज की दो फिल्मों में भगवान की भूमिका में दिखाई दिए।

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भारत में पौराणिक फ़िल्में बनाने का चलन 1920 के दशक में ही शुरू हो गया था। तब दर्शकों को सिनेमाघर तक लाने के लिए धार्मिक कथाओं पर फ़िल्में बनाए जाना शुरू हुआ। फिल्मकारों ने इन विषयों पर बहुत सी फ़िल्में बनाईं। उन्हीं में से एक कंपनी की स्थापना भारतीय सिनेमा के महान स्वप्नद्रष्टा होमी वाडिया ने की थी। फिल्मों के शुरूआती दौर में जब बोलने वाली फ़िल्में आई तो ‘संपूर्ण रामायण’ (1961), ‘महाभारत’ (1965), ‘जय संतोषी मां’ (1975), ‘करवा चौथ’ (1980) और ‘महाबली हनुमान’ (1981) जैसी फ़िल्में बनी। इन फिल्मों की कहानी धार्मिक आस्था से जुड़ी होने की वजह से दर्शकों ने इसे पसंद भी किया। इन फिल्मों का कथानक पहले से दर्शकों को पता था, इसलिए उनकी कहानियों से ज्यादा इनके फिल्मांकन में रूचि थी। इन फिल्मों के कथानकों के लिए कॉपीराइट की चिंता भी नहीं थी। हालांकि, अब समय बदल चुका है और आज के निर्देशकों के पास नई तकनीक से धार्मिक कथानकों को फिल्माने के बहुत से विकल्प मौजूद हैं। समय बीतने के साथ, हर तरह की पौराणिक कहानियाँ सिनेमा के परदे नए स्वरूप में दिखाई जाने लगी है।

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पिछले कुछ सालों में सिनेमा की दुनिया में एक अलग ट्रेंड आया। यह है पौराणिक कहानियों या परंपराओं पर आधारित फिल्मों का। ऐसी फिल्मों में संस्कृति के साथ कुछ पौराणिक कहानियों पर ज़ोर देकर फिल्मकारों ने लोकप्रियता भी बटोरी। इसी साल (2024) में आई फिल्म ‘कल्कि 2898 एडी’ में पौराणिक कथाओं में शुमार भगवान विष्णु के दसवें को दिखाया गया है। फिल्म के निर्देशक नाग अश्विन ने इस फिल्म को महाभारत का सीक्वल बताया। इस फिल्म में कलयुग को दिखाया गया, जिसका अब अंत होने वाला है। फिल्म में अमिताभ बच्चन अश्वत्थामा के किरदार निभाया हैं, जो मान्यता के हिसाब से महाभारत के युद्ध में श्रीकृष्ण से मिले श्राप की वजह से आज भी धरती पर मौजूद हैं। 2023 में रामायण पर आधारित ‘आदि पुरुष’ फिल्म बनाई गई थी। फिल्म को ओम राउत ने निर्देशित किया और प्रभास श्री राम के किरदार में नजर आए थे। 2022 में रिलीज हुई ‘कांतारा’ में स्थानीय मान्यता के अनुसार, देवता पंजुरली और गुलिगा देवता को कहानी का एक अहम हिस्सा दिखाया गया।

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आने वाली कई फिल्मों की कहानी आज की पृष्ठभूमि की होते हुए पौराणिक कथाओं से प्रेरित हैं। बाहुबली, आरआरआर, ब्रह्मास्त्र, कार्तिकेय-2 जैसी फिल्में इसका उदाहरण हैं। भगवान श्रीराम की जीवनी पर आधारित फिल्म ‘रामायण’ का निर्माण भी चल रहा है। इसके निर्देशन की बागडोर नितेश तिवारी के हाथ में है। प्रमुख किरदारों में राम के रोल में रणबीर कपूर को लिया गया और सीता बनी है साई पल्लवी। इसके अलावा ‘सीता: द इंकार्नेशन’ का निर्देशन अलौकिक देसाई कर रहे हैं। फिल्म में सीता का किरदार एक्ट्रेस कंगना रनौत कर रही हैं। विक्की कौशल भी ‘द इम्मॉर्टल अश्वत्थामा’ में काम करने वाले हैं। इस माइथोलॉजिकल फिल्म की तैयारी निर्देशक आदित्य धर ने शुरू कर ली। फिल्म का रिसर्च मटेरियल तैयार हो चुका था। ‘चाणक्य’ जैसे अद्भुत चरित्र पर टीवी सीरियल के साथ कई किताबें मौजूद हैं। लेकिन, अभी तक कोई फीचर फिल्म का निर्माण नहीं हुआ। ऐसे में नीरज पांडे की ये फिल्म दर्शकों में उत्सुकता तो जगाती है। इसमें चाणक्य का किरदार अजय देवगन निभाएंगे।

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‘ब्रह्मास्त्र’ से लगाकर ‘कंतारा’ तक कई ऐसी फ़िल्में हैं, जो पौराणिक कथाओं से प्रेरित हैं। अक्षय कुमार की ‘रामसेतु’ में रामायण काल में बने सेतु की कुछ कहानियों को दिखाया गया। ऐश्वर्या राय और अभिषेक बच्चन की 2010 में आई ‘रावन’ में एक डाकू पुलिस वाले पत्नी का किडनैप करता है और फिर वो उससे प्यार करने लगता है। इस फिल्म में रामायण से कुछ किस्से लिए गए हैं। ‘महाभारत’ के कुछ अंश प्रकाश झा की फिल्म ‘राजनीति’ में भी दिखाए गए। इसमें रणबीर कपूर, कैटरीना कैफ, अजय देवगन और अर्जुन रामपाल हैं। फिल्म ‘हनुमान’ 2024 की बड़ी फिल्मों में है जिसने कम बजट में अपार सफलता हासिल की। इस फिल्म में हनुमान की शक्तियां एक लड़के में आ जाती हैं और फिर वो सुपरहीरो बन जाता है। कमल हासन की फिल्म ‘दशावतारम’ को बेहतरीन फिल्मों में माना जाता है। इसमें अलग-अलग पौराणिक कहानियों से किस्से लिए गए हैं।

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फिल्म इंडस्ट्री में सबसे ज्यादा कमाई का रिकॉर्ड भी एक धार्मिक फिल्म ‘जय संतोषी माँ’ के नाम है। 1975 में आई इस फिल्म ने अपनी लागत का कई गुना बिजनेस करके ‘शोले’ जैसी फिल्म को टक्कर दी थी! जब ‘शोले’ रिलीज हुई, उन्हीं दिनों ‘जय संतोषी माँ’ फिल्म भी प्रदर्शित हुई। लेकिन, दोनों ही फिल्मों के कथानक में विरोधाभास था। ‘शोले’ में हिंसा की भरमार थी, जबकि ‘जय संतोषी माँ’ के जरिए आस्था और विश्वास का संदेश दिया गया था। दोनों फिल्मों का सबसे मजेदार तथ्य यह था कि ‘जय संतोषी माँ’ का बॉक्स ऑफिस कलेक्शन ‘शोले’ के मुकाबले अधिक था! ‘शोले’ में गब्बर सिंह की गोलियां खून बिखेर रही थी, जबकि ‘जय संतोषी माँ’ में दर्शक सिनेमाघर में आरती गा रहे थे। आज 49 साल बाद भी ‘जय संतोषी मां’ का जिक्र सफल फिल्मों में लिया जाता है।

‘जय संतोषी माँ’ ने अपने समय काल में जबरदस्त कामयाबी हासिल की थी! दर्शकों ने इसे सिर्फ फिल्म की तरह नहीं लिया, बल्कि सिनेमाघर को मंदिर की तरह पूजने भी लगे। दर्शक हॉल में चप्पल-जूते पहनकर नहीं आते थे! श्रद्धा इतनी उमड़ पड़ी कि आरती के वक़्त लोग सीट से खड़े होकर तालियां बजाते और सिक्के चढ़ाते थे! गांवों और शहरों में हर जगह श्रद्धा का सैलाब उमड़ पड़ा था। हर शुक्रवार महिलाएं संतोषी माता का व्रत करने लगी! मंदिरों में संतोषी माता की मूर्ति स्थापित की जाने लगी थी। संतोषी माता की व्रत कथा सुनी और सुनाई जाने लगी! गुड़-चने का प्रसाद बंटने लगा। लड़कियों से लेकर बूढ़ी महिलाएं तक शुक्रवार व्रत रखकर उद्यापन करने लगी थी! इस फिल्म के बाद भी संतोषी माता को लेकर आस्था का ज्वार कम नहीं हुआ! फिल्म के बाद इसी विषय पर आए सीरियल को भी दर्शकों ने बेहद पसंद किया था। दरअसल, ये ऐसा स्वीकार्य विषय है, जो कभी दर्शकों के जहन से नहीं निकलता। बदले हालात में फर्क सिर्फ ये आया कि नए दौर की कहानियों में धर्म का तड़का लगने लगा।

 

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हेमंत पाल

चार दशक से हिंदी पत्रकारिता से जुड़े हेमंत पाल ने देश के सभी प्रतिष्ठित अख़बारों और पत्रिकाओं में कई विषयों पर अपनी लेखनी चलाई। लेकिन, राजनीति और फिल्म पर लेखन उनके प्रिय विषय हैं। दो दशक से ज्यादा समय तक 'नईदुनिया' में पत्रकारिता की, लम्बे समय तक 'चुनाव डेस्क' के प्रभारी रहे। वे 'जनसत्ता' (मुंबई) में भी रहे और सभी संस्करणों के लिए फिल्म/टीवी पेज के प्रभारी के रूप में काम किया। फ़िलहाल 'सुबह सवेरे' इंदौर संस्करण के स्थानीय संपादक हैं।

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