Autobiography of Fake Shami: क्या आपने भी शमी समझ नकली शमी लगा रखा है?
महेश बंसल
ना बाबा ना…मैं शमी नहीं हूं … आपकी अज्ञानता ..शमी के पत्तों की समानता एवं मेरे आकर्षक फूलों के कारण शमी समझकर आप मुझे अपने घरों में लगाते है । इस संदर्भ में गुगल महाशय द्वारा दी गई संदेहास्पद जानकारी भी वैसी ही है .. जिस तरह करोड़पति के विज्ञापन में श्री अमिताभ बच्चन स्पष्ट करते है कि प्रिंट मीडिया अथवा सोशल मीडिया की जानकारी की सत्यता को जांच लेना आवश्यक है । सत्यता की जानकारी के अभाव में ही नर्सरी वालों के साथ ही बागवान भी मुझे शमी मान लेते है । अभी मैं जिनके टैरेस गार्डन में खिल रहा हूं ..वो महाशय भी शमी समझकर मुझे लाऐ थे .. लेकिन इसमें मेरा क्या दोष है ? मैने तो नहीं कहा कि मेरा नाम शमी है … मेरे पुरखों ने तो मेरा नामकरण “वीरतरु” Dravyaguna या Dichrostachys cinerea किया था … जबकि “शमी” का नाम खेजडी़ या Prosopis cineraria रखा गया था ।
यह भी सही है कि मुझे शमी मानने से ही मैं अनेकों घरों के आंगन या बगी़चों में पहुंच पाया हूं , लोग मेरे सम्मुख दीपक व अगरबत्ती लगाते हैं। चलो अच्छा है इसी बहाने आपका प्यार तो मुझे मिल रहा है । अज्ञानता का मेरे प्रति यह भाव सदैव बनाये रखना ।
असली शमी
मित्रों यह तो थी नकली शमी (वीरतरु) की आत्मकथा। मेरा मानना है कि अधिसंख्य बागवानों के यहां शमी समझ वीरतरु ही लगा हुआ है, कुछ लोगों के यहां असली शमी भी हो सकता है। गुगल पर शमी के नाम पर अधिसंख्य फोटो वीरतरु के ही दिखाई देते है, इस लिए वीरतरु को जब भी कोई नकली शमी बताता है तो बहुत से लोग झगड़ने लगते है।
अब हम वास्तविक शमी एवं उससे जुड़ी मान्यताओं के बारे में बताते है। असली शमी का फूल केवल एक ही पीले रंग का (बबुल के फूल समान) होता है, फूल आने की संभावना गमलों में नहीं रहती जबकि वीरतरु के फूल में दो रंग गुलाबी व पीला रहते है एवं गमलों में भी फूल खिल जाते है। पत्तियों में भी फर्क रहता है। जिसे चित्र में बताया गया है। शमी की पत्तियों में कई औषधियों गुणों की भरमार हैं। पौधे के विभिन्न भागों का उपयोग विभिन्न औषधीय प्रयोजनों के लिए किया जाता है। आयुर्वेद में शमी के कसैले छाल का उपयोग कुष्ठ रोग, घाव, अस्थमा और आंखों से जुड़ी परेशानियों के इलाज के लिए किया जाता है। इसके अलावा इसके फलों और पत्तियों के भी कई और फायदे भी हैं ।
यह वृक्ष विभिन्न देशों में पाया जाता है जहाँ इसके अलग अलग नाम हैं। अंग्रेजी में यह प्रोसोपिस सिनेरेरिया नाम से जाना जाता है। महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में शमी, तेलंगाना में जम्मी, गुजरात में खिजरी, राजस्थान में खेजड़ी, हरियाणा में जनती ,पंजाब में जांद , संयुक्त अरब अमीरात में घफ़, सिंध में कांडी , तमिल में वण्णि कहते हैं।
शमी/खेजड़ी का वृक्ष जेठ के महीने में भी हरा रहता है। गर्मी में जब रेगिस्तान में जानवरों के लिए धूप से बचने का कोई सहारा नहीं होता तब यह पेड़ छाया देता है। जब खाने को कुछ नहीं होता है तब यह चारा देता है, जो लूंग कहलाता है। इसका फूल मींझर कहलाता है। इसकी फलियां जिसे सांगरी कहते है, राजस्थान की सिग्नेचर डिश है। इसकी लकड़ी मजबूत होती है जो किसान के लिए जलाने और फर्नीचर बनाने के काम आती है। अकाल के समय रेगिस्तान के आदमी और जानवरों का यही एक मात्र सहारा है। सन 1899 में दुर्भिक्ष अकाल पड़ा था जिसको छपनिया अकाल कहते हैं, उस समय रेगिस्तान के लोग इस पेड़ के तनों के छिलके खाकर जिन्दा रहे थे।
दशहरे के दिन शमी के वृक्ष की पूजा करने की परंपरा है। रावण दहन के बाद घर लौटते समय शमी के पत्ते लूट कर लाने की प्रथा है जो स्वर्ण का प्रतीक मानी जाती है। जिसके बाद लोग इस पेड़ की पत्तियों को दोस्तों और परिवार वालों के बीच बांटते हैं। रामायण में भी शमी के पौधे का महत्व बताया गया है. इसके अनुसार जब भगवान राम और रावण के बीच युद्ध हुआ था उस समय युद्ध शुरू होने से पहले भगवान राम ने शमी के पेड़ का पूजन किया था. जिसके बाद उन्हें विजय हासिल हुई ।
महाभारत के अनुसार, पांडवों ने अपने वनवास का तेरहवां वर्ष विराट राज्य में भेष बदलकर बिताया था । विराटनगर जाने से पहले, उन्होंने एक वर्ष तक इस पेड़ पर अपने दिव्य हथियारों को लटकाए रखा। एक साल बाद जब वे लौटे तो उन्होंने पाया कि उनके सभी हथियारों शमी के पेड़ की शाखाओं पर सुरक्षित हैं। उन्होंने पेड़ को नमन किया और जाते समय पेड़ को धन्यवाद दिया।
ऐसा माना जाता है कि इस वृक्ष में सभी देवी- देवताओं का वास होता है, जो भक्तों को सुख, शांति और सफलता का आशीर्वाद देते हैं। इस वृक्ष का संबंध राजा रघु से भी है, जिन्होंने अपनी सारी संपत्ति कौत्स नामक ऋषि को दान कर दी थी। ऋषि की 14 करोड़ स्वर्ण मुद्राओं की मांग को पूरा करने के लिए रघु ने धन के देवता कुबेर के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया। कुबेर ने शमी वृक्ष से स्वर्ण मुद्राएँ बरसाईं, जिन्हें रघु ने ऋषि और अन्य लोगों में बाँट दिया। इस प्रकार, शमी वृक्ष को उदारता और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
हिंदू धर्म में शमी के पत्तों का इस्तेमाल भगवान शिव की पूजा में किया जाता है और इससे वह प्रसन्न होते हैं. इसके अलावा भगवान गणेश और मां दुर्गा की पूजा में भी शमी के पत्तों का उपयोग करना शुभ माना गया है. जिस तरह घरों में सुबह-शाम तुलसी का पूजन किया जाता है उसी प्रकार शनिवार के दिन शमी के पेड़ के पूजन का विशेष महत्व है।
शमी या खेजड़ी के वृक्ष की लकड़ी यज्ञ की समिधा के लिए पवित्र मानी जाती है। वसन्त ऋतु में समिधा के लिए शमी की लकड़ी का प्रावधान किया गया है।
इस पौधे को लगाने के लिए दक्षिण दिशा उपयुक्त मानी गई है, क्योंकि उस दिशा में सीधी धूप नहीं पड़ती।
राजस्थान का कल्पवृक्ष कहीं जाने वाली खेजड़ी को संरक्षित करने के उदेश्य से राजस्थान राज्य का राज्य वृक्ष 31 अक्तूबर, 1983 को घोषित किया गया। खेजड़ी को राज्य वृक्ष घोषित किए जाने का उदेश्य पर्यावरण और पारिस्थितिकी संतुलन को बनाए रखना था। मरूस्थल में जेठ आषाढ़ के महीनों में हड्डियों को गला देने वाली गर्मी के दिनों में भी खेजड़ी घनी और हरी-भरी रहने के कारण वन्य जीवों को संरक्षण प्रदान करती हैं। भारत सरकार द्वारा इस पर डाक टिकट भी जारी किया गया था।
महेश बंसल, इंदौर