मेरे यहां खिला था पीला पलाश
Autobiography of Yellow Palash: जी हां मैं ही पलाश हूं
महेश बंसल
जंगल की आग हूं मैं .. मेरा जन्म मां पार्वती के अभिशाप से हुआ है । एक पुराण कथा के अनुसार भगवान शिव और पार्वती का एकांत भंग करने के कारण अग्नि देव को शाप ग्रस्त होकर पृथ्वी पर मेरे वृक्ष के रूप में जन्म लेना पड़ा। मेरे पुष्पित वृक्ष के संबंध में महाकवि कालिदास ने लिखा था – “वसंत काल में पवन के झोंकों से हिलती हुई पलाश की शाखाएँ वन की ज्वाला के समान लग रहीं थीं और इनसे ढकी हुई धरती ऐसी लग रही थी, मानो लाल साड़ी में सजी हुई कोई नववधू हो।” नोबेल पुरस्कार विजेता रबींद्रनाथ टैगोर ने मेरे चमकीले नारंगी लौ जैसे फूल की तुलना आग से की थी। शांतिनिकेतन में, जहां टैगोर रहते थे, मेरा यह फूल वसंत के उत्सव का एक अनिवार्य हिस्सा बन गया था। मैंने पलाशी शहर को अपना नाम दिया है, जो वहां लड़े गए प्लासी के ऐतिहासिक युद्ध के लिए प्रसिद्ध है। मेरे फूलों का उपयोग पारंपरिक होली के रंग तैयार करने के लिए किया जाता है। मेरे पत्तों का उपयोग भोजन की पत्तल व दोने बनाने के लिए किया जाता है । एक मजेदार बात बताता हूं, एक सदी पहले तक भावी दामाद का चयन करने के पूर्व परीक्षा के रूप में मेरे पत्तों से पत्तल दोने बनवाये जाते थे । ठीक ढंग से बनाने पर ही दामाद के रूप में स्वीकार किया जाता था।
अनेक साहित्यकारों ने मुझ को केन्द्र में रखकर साहित्य की रचना की है। जैसे- रवीन्द्रनाथ त्यागी का व्यंग्य संग्रह- ‘पूरब खिले पलाश’, मेहरून्निसा परवेज का उपन्यास ‘अकेला पलाश’, मृदुला बाजपेयी का उपन्यास ‘जाने कितने रंग पलाश के’, नरेन्द्र शर्मा की ‘पलाश वन’, नचिकेता का गीत संग्रह ‘सोये पलाश दहकेंगे’, देवेन्द्र शर्मा इंद्र का दोहा संग्रह ‘आँखों खिले पलाश’ इत्यादि। मैं उत्तरप्रदेश एवं झारखंड का राजकीय पुष्प हूं, भारत सरकार ने मुझ पर डाक टिकट भी जारी किए थे।
पलाश के अतिरिक्त मुझे ‘पलास’, ‘परसा’, ‘ढाक’, ‘टेसू’ के नाम से भी पुकारा जाता है।
मेरी वृद्धि बहुत धीमी गति से होती है। मेरे दो भाई पीले एवं सफेद फूल देते है। पीला भाई तो कुछ कुछ स्थानों पर दिख जाता है लेकिन सफेद भाई पता नहीं किस कंदरा में तपस्या रत है। फिर भी सफेद भाई को मंडला एवं अन्य एक दो जंगलों में देखा गया है। मेरे पेड़ भारत के अतिरिक्त बांग्लादेश, नेपाल, पाकिस्तान, थाईलैंड, कम्बोडिया, मलेशिया, श्रीलंका और पश्चिम इंडोनेशिया में भी बहुतायत में है। मेरी पत्तियाँ चमड़े की तरह होती हैं जो मवेशियों द्वारा नहीं खाई जाती । मैं मच्छरों को मारता है. मच्छर फूल की गंध और रंग से आकर्षित होते हैं। वे मेरे फूल के भीतर तरल पदार्थ में अंडे देते हैं लेकिन वे अंडे कभी नहीं फूटेंगे। तरल पदार्थ को छूने वाले मच्छर कभी भी मुझसे बच नहीं सकते।
मेरे आकार, प्रकार, औषधीय गुण, तंत्र मंत्र में उपयोगिता इत्यादि पर बताने लगूं तो कहानी बहुत लंबी हो जाएगी। लेकिन हां, यह कहानी क्यों बताई ? इसकी थोड़ी सी भूमिका भी बता देता हूं। जिन महाशय को यह कहानी बताई है, ये महाशय पारिवारिक मांगलिक कार्य से अपने घर से 150 किलोमीटर दूर गये थे। वापसी के समय मेरे एक पेड़ पर खिल रहे असंख्य फूलों के आकर्षण के बावजूद फोटो क्लिक नहीं करने का इन्हें दुःख हो रहा था। 30 किलोमीटर के बाद मेरे एक और पेड़ को देखकर ये रुके, तथा अनेक फोटो लिए । ( मेरा यह फोटो उसी अवसर का है। ) यही नहीं मेरे और भी पेड़ देखने हेतु अचानक यात्रा का मार्ग बदलकर लगभग 40 किलोमीटर का अतिरिक्त सफर किया। गत वर्ष भी केवल मेरे पीले फूलों को देखने हेतु 120 किलोमीटर का सफर किया था। अतः मैंने सोचा कि कहानी सुनाने हेतु यह महाशय उपयुक्त पात्र है ।
पीला पलाश
अब बात करते है पीले पलाश की , जो मेरे यहां पिछले दो वर्षों तक दो गमलों में खिलें थे एवं जिनके दो वृक्ष भी जंगल में देखने का सौभाग्य मिला था। पीला पलाश असुलभ पौधों की श्रेणी में आता है , फिर भी यदि गमले में ही फूल आने लगे तो आश्चर्य भी होता है ।
पीले पलाश को (ब्यूटिया मोनोस्पर्मा वर) को आमतौर पर जंगल की पीली लौ के रूप में जाना जाता है। इसमें करिश्माई हाथीदांत सदृश्य फूलों की कलियाँ और पूरे मुकुट को कवर करने वाले चमकीले पीले फूल होते हैं। मेरे टैरेस गार्डन पर दो गमलों में खिले पीताम्बरी पलाश को देखकर अपने आप को बहुत सौभाग्यशाली होने का अनुभव हुआ था।
होली के पहले जंगलों में सुर्ख लाल रंग के पलाश के फूलों के दर्शन तो आम बात है, लेकिन घर की छत पर बनाए गए उद्यान के 12-12 इंच के दो गमलों में खिलें पीले रंग के पलाश की जानकारी ने वनस्पति विज्ञान के विशेषज्ञों को भी हैरत में डाल दिया था। पीला पलाश दुर्लभ प्रजाति का फूल माना जाता है ।
इंदौर शहर के पर्यावरणविद डॉ. ओ.पी. जोशी भी मानते हैं कि पीला पलाश पूरे देश में बहुत ही कम पाया जाता है। सफेद पलाश भी बहुत कम खिलता है। सुर्ख लाल रंग का पलाश तो शहर के आसपास चारों ओर बहुतायात में देखने को मिल जाता है, जोशी ने बताया कि शहर में राजेन्द्र नगर क्षेत्र के धनवन्तरि नगर और पलासिया क्षेत्र के बैकुंठ धाम कालोनी में पीले पलाश के दो पेड़ उगाए गए थे, लेकिन गमलों में इन फूलों के पल्लवित होना बहुत सुखद है। ग्राफ्टिंग किए गए पौधों में अथवा कटिंग से लगाएं गए पौधों में यह संभव है। मैंने भी कोलकाता से ग्राफ्टिंग किए हुए पौधे बुलाएं थे।
लाल पलाश को दूर से देखने पर लगता है कि जंगल में कहीं अंगारे दहक रहे हैं। इन फूलों को जंगल की आग भी कहा जाता है। लाल और पीले पलाश के गुण धर्म में केवल रंगों का ही अंतर है, अन्य कोई अंतर नहीं। इसका व्यूटिया नाम 18 वीं शताब्दी में सर विलियम राक्सवर्ग ने इंग्लैंड के पर्यावरण प्रेमी प्रधानमंत्री जॉन स्टूअर्ट, अर्ल ऑफ व्यूट की स्मृति में रखा था। मोनो स्पर्मा का अर्थ है एक बीज वाला, क्योंकि इसकी बालोर जैसी चौड़ी बड़ी फली में भी एक ही बीज होता है। ल्यूटिया का अर्थ होता है सुनहरा या पीला।
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वैसे भारतीय संस्कृति में पीले रंग का अत्यधिक महत्व माना गया है। पीले रंग के पलाश को पीताम्बरी पलाश भी कहा जाता है। भगवान कृष्ण पीले रंग के वस्त्रों में सुशोभित रहते थे, इसीलिए पीताम्बरधारी कहलाए। पीला रंग शुद्ध और सात्विक प्रवृत्ति के साथ ही सादगी और निर्मलता का भी प्रतीक है। जिन दो गमलों में पीताम्बरी पलाश खिलाया था , उनकी उंचाई भले ही 12 इंच हो, लेकिन पीताम्बरी पलाश का आकार लगभग दो से तीन फीट तक पहुंच गया था।
पीले पलाश के सीड्स
फूल समाप्त होने के 10 दिन में ही यह सीड्स पाड बन गये थे। प्रत्येक सीड्स पाड में केवल 1 सीड्स बनता है । कुल 2 सीड्स बने थे , दोनों ही उग आए थे, लेकिन कुछ दिनों बाद 1 ही बचा । वह भी एक साल में केवल 3″ ही हुआ है। अब वह लगभग 9″ का तीन साल में हुआ है। सोच सकते है कि सीड्स से पौधा बनकर फूल आने तक 20-25 साल लग सकते है।
पीले पलाश के दो वृक्ष का प्रत्यक्षदर्शी
अंगुली पकड़कर कर पोंचा पकड़ने की कहावत तो सुनी ही होगी.. कुछ ऐसा ही मैंने भी किया है। कुछ वर्षों पूर्व सोचा था कि पीला पलाश का पौधा घर पर गमले में खिले .. यह कामना पूर्ण हो गई। गमले में खिले फूलों के आकर्षण ने नई अभिलाषा उत्पन्न कर दी.. अब हमें इसके पेड़ को भी देखना है.. यह कामना संजोए रखीं थीं.. प्रभु-कृपा से एक नहीं अपितु दो पीले पलाश के वृक्ष प्रत्यक्ष देखने का अवसर प्रदान कर दिया।
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गमलों में खिले पलाश को देखने हेतु मित्र Ajay Kaithwas ji घर आए थे । तब उन्होंने बताया था कि जाम दरवाजा वाली घाटी में पीले पलाश के वृक्ष है। तब ही से देखने की जिज्ञासा थी। गत वर्ष अजय जी का संदेश चलने हेतु आया , तुरंत चल दिए.. लगभग 60 किलोमीटर के सफर में 15 किलोमीटर के अंतराल पर एक एक कर कुल दो पेड़ इत्मीनान से देख कर अनेक फोटो क्लिक किए। फूलों का स्वाद भी चखा। वृक्षों को देखने के अतिरिक्त सड़क पर ही एक जगह ऐसी अजय जी ने बतलाई जहां ऊंचाई होने के बावजूद बगैर एक्सीलेटर के स्वमेव कार ऊंचाई पर अत्यंत धीमी गति से चलने लगती है, हमने दिशा परिवर्तन किया तो रिवर्स में चलने लगी। इस चमत्कार से भी रूबरू होने का अवसर इन्हीं पीले पलाश के कारण मिला।
* सामान्य पलाश – Butea monosperma
* पीला पलाश – Butea monosperma lutea
* सफेद पलाश – butea parviflora
(दुखद पहलू यह है कि इस वर्ष मार्च में फूल आने के पहले ही दोनों पौधे वैकुंठ वासी हो गये है। प्रयत्न करने पर एक पौधा फिर से उपलब्ध हो गया है। लेकिन फूल आने पर ही पक्का होगा कि वह पीताम्बरी पलाश है।)
* पीले पलाश के सभी चित्र मेरे यहां के है, जबकि पेड़ों के चित्र भी मेरे द्वारा क्लिक किए हैं।
महेश बंसल, इंदौर