Kissa-A-IAS : IAS Ankurjeet Singh: शरीर की कमी को आत्मविश्वास से पूरा किया 

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Kissa-A-IAS : IAS Ankurjeet Singh: शरीर की कमी को आत्मविश्वास से पूरा किया 

 

कहा जाता है कि ईश्वर जब किसी में कोई शारीरिक कमी छोड़ता है, तो उसे कई और खूबियों से नवाजना नहीं भूलता। इसलिए कि उसे अपनी वो शारीरिक कमी महसूस न हो। कुछ ऐसी ही कहानी आईएएस अधिकारी अंकुरजीत सिंह की भी है, जिन्हें आंखों से दिखाई नहीं देता, पर उन्होंने देश की मुश्किल परीक्षा यूपीएससी पास की। बचपन से ही अंकुरजीत को कम दिखाई देना शुरू हो गया था। धीरे-धीरे यह समस्या बढ़ती गई और फिर स्थिति यह गई कि उन्हें दिखना ही बंद हो गया। शुरू में तो वे खुद पढ़ाई-लिखाई कर लेते थे। बाद में उन्हें लैपटॉप और आईपैड का सहारा लेना पड़ा।

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इतनी दिक्कत के बावजूद उन्होंने शरीर कमी को अपने आप पर हावी नहीं होने दिया। अपनी लगन और मेहनत से 2017 की यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा 414 वीं रैंक में पास की और IAS अधिकारी बने। कोई सोच नहीं सकता कि जिसने बचपन से ही धीरे-धीरे अपनी आंखों की रोशनी खोना शुरू कर दिया हो, वो व्यक्ति एक दिन अपनी मेहनत, लगन और आत्मविश्वास से IAS अधिकारी जैसे बड़े पद पर पहुंच सकता है।

2018 बैच के IAS अधिकारी अंकुरजीत सिंह के बारे में यही कहा जा सकता है, कि उन्होंने अपनी कमी को ही ताकत बनाया और उस लक्ष्य को हासिल किया, जहां पहुंचने का सपना देखने के भी बहुत आत्मविश्वास की जरूरत है।

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अंकुरजीत की मम्मी को जब अपने बच्चे की समस्या का पता चला तो जो भी वह स्कूल से पढ़कर आता था तो रात को उसे पढ़कर सुनाती थी। इस तरह से वे सुनकर पढ़ाई करता था। अंकुर ने दसवीं तक 10वीं तक की पढ़ाई गांव के सरकारी स्कूल से ही हुई। जब गर्मियों की छुट्टियों में बच्चे खेलते और मस्ती करते थे तब अंकुरजीत मां के मदद से सारी किताबें पहले ही पढ़ लेते थे, ताकि जब क्लास में टीचर पढ़ाएं तब वह सुनकर ही सब कुछ समझ लें। अंकुरजीत जब 12वीं में पढ़ते थे तो उनकी टीचर ने कहा कि तुम आईआईटी का फॉर्म क्यों नहीं भरते। अंकुरजीत ने फॉर्म भरा और उनका एडमिशन आईआईटी रुड़की में हो गया। वहां अंकुरजीत के दोस्त यूपीएससी की तैयारी कर रहे थे, इसलिए उन्होंने भी तैयारी शुरू कर दी और इसका नतीजा अच्छा रहा।

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अंकुरजीत की इच्छा सेना में जाने की थी। 12वीं के बाद उन्होंने एनडीए की परीक्षा भी दी। क्योंकि, उनके चाचा आर्मी में थे और देश की सेवा करते हुए शहीद हो गए थे। अंकुरजीत उन्हीं के नक़्शे कदम पर चलकर सेना में जाना चाहते थे, लेकिन आंख की रोशनी इसमें बाधा बनी। फिर उनके पिता ने सलाह दी कि इससे अच्छा होगा कि यूपीएससी दें। अंकुरजीत सिंह के अंदर हमेशा से सेना में जाने का एक जुनून रहा। हालांकि, बाद में पिता ने समझाया कि एनडीए की लिखित परीक्षा पास करने के बाद भी मेडिकल टेस्ट पास करना उनके लिए चुनौती होगी। इसके बाद उन्होंने अपना रुख यूपीएससी की तरफ किया।

दृष्टि बाधा के बावजूद अंकुरजीत काफी एक्टिव रहते हैं। राफ्टिंग, क्लिफ जंपिंग, बंजी जंपिंग जैसी एडवेंचर एक्टिविटीज में वो जमकर भाग लेते हैं। अंकुरजीत जिस समय आईआईटी रुड़की में थे, तो दोस्तों के साथ ऋषिकेश जाकर ऐसी एक्टिविटी करते थे। पढ़ाई के साथ-साथ अंकुरजीत को पढ़ाना भी बहुत पसंद है। आईआईटी में पढ़ाई के दौरान वह सरकारी स्कूल के बच्चों को पढ़ाते भी रहे। उन्हें घूमने का भी बहुत शौक है। हालांकि, नौकरी की व्यस्तता के कारण अब घूम नहीं पाते। वे दृष्टिबाधित जरूर हैं, लेकिन, काम के प्रति उनके समर्पण को देखकर कोई नहीं कह सकता कि उनमें कोई कमी है।

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हरियाणा में यमुनानगर के रहने वाले अंकुरजीत ने अपनी दृष्टि बाधा को कभी भी अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। उनका जन्म ऐसे परिवार में हुआ, जहां माता-पिता दोनों ही सरकारी नौकरी में थे। उन्हें बचपन से ही देखने में समस्या थी, लेकिन, वे इससे कभी निराश नहीं हुए। इस चुनौती को ताकत बना लिया। धीरे-धीरे अंकुरजीत ने अपनी इस कमी को स्वीकार कर लिया। माता-पिता ने भी पूरा साथ दिया और मानसिक रूप से मजबूत बनाकर आत्मविश्वास बनाए रखा।

अंकुरजीत सिंह को हाल ही में जालंधर विकास प्राधिकरण का चीफ एडमिनिस्ट्रेटर नियुक्त किया गया है। जालंधर विकास प्राधिकरण के साथ-साथ वे अमृतसर विकास प्राधिकरण के चीफ एडमिनिस्ट्रेटर का अतिरिक्त प्रभार भी संभाल रहे हैं।