Surprise Meeting: एक बिछुड़े दोस्त से मिलना युगों के बाद 

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Surprise Meeting: एक बिछुड़े दोस्त से मिलना युगों के बाद 

 

मिलना और बिछुड़ना हमारी नियति है, पर सच्चा प्रेम बिछुड़ने से बिछुड़ता नहीं है बल्कि गहरा होता जाता है .संसार का सबसे लोकप्रिय साहित्य और फ़िल्में भी मिलने बिछुड़ने मिलने की थीम पर ही हैं.

मेघदूत से अभिज्ञान शाकुन्तलम् तक कालिदास के साहित्य में मिलन और विरह का दुख ही ध्वनित होता है .राधा और कृष्ण के मिलन -वियोग का दुख किसे नहीं छूता.लोकगीतों में भी मिलन की आकुलता और बिछोह की पीड़ा हर भाषा में व्यक्त हुई है .हिन्दी फ़िल्मों में दोस्तों और भाइयों का कुंभ के मेले में बिछुड़ना एक लोकप्रिय कथानक रहा है .लापता लेडीज भी इसी तत्व का नया संस्करण है .

यों तो ज़िंदगी फ़िल्मों से ज़्यादा फ़िल्मी है फिर भी कई बार फ़िल्मी कहानियाँ पर्दे से उतरकर ज़िंदगी में चली आती हैं और हम विस्मय में डूब जाते हैं.हुआ यूं कि शहडोल में संभागीय आयुक्त के रूप में पदस्थ होने के कुछ महीनों के बाद एक दिन दिलीप अग्रवाल का फ़ोन आया .अब ये दिलीप अग्रवाल एक दिलचस्प व्यक्ति हैं या कहिये अधिकारियों के एनसाइक्लोपीडिया हैं.आप के जन्म ,चयन ,पदोन्नति ,विवाह तिथि सब का हिसाब दिलीप के पास है .आप भूल जाइए दिलीप याद रखते हैं.वर्षों से असंख्य अधिकारियों से जुड़े दिलीप मुझ से भी कई दशकों से जुड़े थे .उन्हीं के शहर शहडोल में मेरी पद स्थापना हुई तो संपर्क बढ़ना सहज था .एक दिन दिलीप ने फ़ोन किया -सर आपके लिये एक सुखद आश्चर्य मेरे पास है .

वह कैसे -मैंने पूछा .सर आपके एक पुराने मित्र हैं। उनसे आपके विद्यार्थी जीवन के क़िस्से सुन रहा हूँ .अब मैं ताज्जुब में था .मुझे याद नहीं आया कि यहाँ मेरा कोई पुराना दोस्त है .ख़ैर ऑफिस में मिलना तय हुआ .नियत समय दिलीप एक वकील साहब को लेकर कार्यालय में आये .मैं हैरत में था .उन्हें बैठाया और पूछा ?वकील साहब ने याद दिलाया राष्ट्रीय सेवा योजना का राज्य स्तरीय शिविर रुठियाई -गुना वर्ष 83-84. अहा एक पल में बीते चार दशक पार कर कोई टाइम मशीन मुझे पिछले युगों में वापस ले गई .शिविर की स्मृति जीवंत हो उठी .आदरणीय भाई जी श्री सुब्बाराव जी का सानिध्य याद आया .याद आये डॉ आई एम एन गोयल सर और आदरणीय डॉ महेंद्र नागर जी .इसी शिविर में मेरा भाषण सुनने के बाद तत्कालीन केंद्रीय मंत्री स्व माधवराव सिंधिया जी ने मुझे जयविलास महल में आने का संदेश भेजा था .सांस्कृतिक गतिविधियों के केंद्र में होने से प्रदेश भर के शिविरार्थी मुझसे जुड़ गए थे . शहडोल से गए श्री निवास शर्मा जी वहीं मित्र बने .शिविर के बाद जो ढेर सारे पत्र मुझे मिले उनमें शर्माजी का पत्र इस लिये याद रहा क्योंकि उन्होंने संबोधन में लिखा था -प्रिय वाणी सम्राट …

जीवन के झंझावातों में शर्मा जी वकील साहब बन गए और मैं बंजारा बनकर वन वन भटकता रहा .भाग्य देवता ने हमें अचानक मिलाकर विस्मित और भावुक कर दिया था .