आदतों से नियति तक

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आदतों से नियति तक

नागेश्वर सोनकेशरी

इस जहॉं में ऐसा कौन है जिसमें कोई आदत ही न हो ? हम सभी में कुछ अच्छी आदतें होती हैं और कुछ बुरी भी ।सच यह है कि नई आदत शुरू करने की तुलना में, पुरानी आदत को छोड़ना अधिक कठिन होता है ।ऐसा इसिलिए कि आदतें हमारे दिमाग में गहराई तक बसी होती हैं ,क्योंकि ये समय के साथ धीरे-धीरे विकसित हुई होती हैं ।जब हम किसी आदत को एकदम से रोकने की कोशिश करते हैं, तो यह किसी तेज गति से भागती ट्रेन को उसकी पटरी पर रोकने की कोशिश करने जैसा है ।ट्रेन को रोकने की कोशिश करने के बजाए अगर हम उसे स्पीड कम करके रोकें या नई दिशा दें तो क्या बेहतर नहीं होगा ?
किसी बुरी आदत को छोड़ना अपने आप से लड़ना नहीं है । यह स्वयं को समझने, अपनी आदतों का अवलोकन करने और एक बेहतर रास्ता चुनने जैसा है ।अगर हम अपनी आदतों में थोड़ा सा भी बढ़िया सुधार कर सकें, तो लंबे समय में एक बड़ा बदलाव निश्चित आएगा ।ठीक उसी तरह कि हम समुद्र में एक जहाज पर हैं ।अगर जहाज अपनी दिशा को कुछ डिग्री तक बदलता है, तो यह पहली बार में उतना बड़ा नहीं लगेगा । मगर लंबी दूरी में कुछ डिग्री का मतलब यह हो सकता है कि हम जहॉं पहुँचेंगे, वहॉं मीलों का अंतर होगा ।हमको रातोंरात खुद को बदलने की जरूरत नहीं है। थोड़े समय और प्रयास के साथ किसी भी आदत को लगभग नया आकार दिया जा सकता है ।
आदतें तब बनती हैं, जब हम कोई काम इतनी बार करते हैं कि वह सहज हो जाता है ।आदत का मतलब यह है कि हम उन चीजों पर कम से कम प्रतिक्रिया करते हैं जो स्थिर, लगातार और हमेशा होती रहती है ।ये हमें काम आसानी से करने की अनुमति देती है ।आदतों का एक बड़ा ख़तरा यह भी है कि ये हमें जो देखने की ज़रूरत है उसे नजरअंदाज करने देती है ।यदि आप समझ सके कि फ़लाँ आदत आपको नुक़सान पहुँचा रही है , तो उसमें कुछ रचनात्मक बदलाव लाने से उस बुरी आदत से धीरे-धीरे छुटकारा पाया जा सकता है ।आपने देखा होगा कि सबसे सफल लोगों की आदतें बहुत मजबूत होती हैं वे उनका कड़ाई से पालन भी करते हैं ।
हमारी आदतें हमें बनाती हैं और हम अपनी आदत बनाते हैं ।दुनिया के लिए हमारी कुल जमा संपत्ति आम तौर पर इस बात से निर्धारित होती है कि “हमारी बुरी आदतों को अच्छी आदतों से घटाने के बाद क्या बचता है ? “ उद्देश्यपूर्ण और आनंद से भरा जीवन जीने के लिए अच्छी आदतों को अपनाना आवश्यक है । दार्शनिक लाओत्से कह गए हैं कि अपने विचारों पर ध्यान दें , वे आपके शब्द बन जाते हैं । अपने शब्दों पर ध्यान दें, वे आपके कार्य बन जाते हैं ।अपने कार्यों पर ध्यान दें, वे आपकी आदतें बन जाती हैं ।अपनी आदतों पर नजर रखें, वे आपका चरित्र बन जाती हैं ।अपने चरित्र पर ध्यान दें , तो यह आपकी नियति बन जाएगा ।तो यह रहा आपकी आदतों से नियति तक का सफर । तो क्यों न अपनी आदतों में कुछ अच्छा सा बदलाव लाकर,जीवन का आनंद लें।