Memories of Sinhasth 2016: जब महाकाल ने मुझे दुस्साहस करने का साहस दिया!
राजीव शर्मा
उज्जयिनी है पुनर्नवा .हर बारह वर्ष में अपना कायाकल्प करने वाली पवित्र नगरी .स्वाद ,संगीत ,कविता और अध्यात्म की इस भूमि की दिव्यता को मैंने कैशोर्य से अब तक सदा अनुभव किया है .विक्रमादित्य ,कालिदास ,भर्तहरी तो सबको याद हैं पर कम ही लोगों को पता है कि महाकाल मंदिर जिन सम्राट तालजंघ ने स्थापित किया था वे सम्राट सहस्त्रबाहु के पूर्वज थे .
द्वापर में भगवान श्री कृष्ण का संदीपनि ऋषि के आश्रम में सुदामा के साथ विद्यार्जन की कथा सारा भारत जानता है .विद्वता और उत्सव प्रियता उज्जयिनी के डीएनए में है .पंडित सूर्यनारायण व्यास ,श्री विष्णु विनायक वांकनकर ,श्री शिव मंगल सिंह सुमन ,श्रीकृष्ण सरल हम सबकी स्मृतियों में हैं .सिंहस्थ इसी उज्जयिनी की उत्सव प्रियता ,भक्ति और सामूहिक आस्था का विराट उत्सव है .सदियों से सनातन भारत पवित्र क्षिप्रा तट पर स्नान ध्यान दान का सुख विनम्रतापूर्वक लेता आया है .
लोकतंत्र में लोकरंजन के बिना कोई सरकार टिक नहीं सकती इसलिये शासन और प्रशासन कुंभ मेलों में सुव्यवस्था बनाने सर्वोत्तम प्रयास करते हैं .
अगला सिंहस्थ निकट आ रहा है इसलिये तैयारियों की बातें चर्चा में हैं.
पिछले सिंहस्थ में मुझे कलेक्टर शाजापुर के रूप में तीर्थ यात्रियों की अकूत भीड़ की सेवा का सौभाग्य मिला था .उस समय शाजापुर मक्सी शुजालपुर सहित पूरे ज़िले की जनता ने ,जन प्रतिनिधियों विशेषकर सरपंचों ने शासकीय मशीनरी के कंधे से कंधा मिलाकर तन मन धन से यात्रियों की सेवा की थी. 2016 के उस सिंहस्थ में पहले शाही स्नान के समय ही इतनी भीड़ उमड़ी थी कि रेल स्टेशन जाम जी हाँ जाम हो गये थे .जब मक्सी में यह स्थिति बनी तो मेरी टीम ने रेल स्टेशन से यात्रियों को निःशुल्क सड़क मार्ग से उज्जैन पंहुचाया और भगदड़ को थामा.मक्सी के संघ कार्यकर्ताओं और समाज सेवियों ने भोजन के असंख्य पैकेट बाँटे.
ज़िले भर के लोगों ने अपने घरों और गाँवों में तीर्थ यात्रियों को आश्रय दिया भोजन पानी की सेवा दी .कोई किसी की जाति नहीं पूछ रहा था .हिंदू मुस्लिम ईसाई सब तीर्थ यात्रियों की चिंता कर रहे थे .भारत सदियों से बिना सरकारी आवंटन या कृपा के कैसे विराट तम आयोजन करता रहा है उसका उदाहरण शाजापुर के सर्व जन ने मेरे हृदय में सदा के लिये अंकित किया हुआ है .
मक्सी में सड़क व रेल मार्ग से अपार भीड़ आयेगी यह पूर्वानुमान लगाकर मैंने राज्य शासन से रेलवे स्टेशन से बस स्टैंड तक चौड़ी सड़क बनाने का प्रस्ताव भेजा था पर इंदौर -उज्जैन के सामने शाजापुर या राजगढ़ की कौन सुनता ? जब मुझे विश्वास हो गया कि स्वीकृति नहीं मिलनी ना पैसा तो मैंने मक्सी जाकर स्थानीय संसाधनों से एक नई अतिरिक्त सड़क बनवा दी .जब भीड़ विकराल हुई तो इसी सड़क ने प्राण वायु का काम किया और संभावित हादसों को टाल दिया .मैंने महाकाल को सिर झुकाया जिन्होंने मुझे यह दुस्साहस करने का साहस दिया था .