विधानसभा अध्यक्ष की मनमानी ठीक नहीं

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विधानसभा अध्यक्ष की मनमानी ठीक नहीं

सर्वोच्च न्यायालय को विधानसभा के एक अध्यक्ष के आदेश को निरस्त करना पड़ा है। यह घटना दुखद है लेकिन यदि ऐसा नहीं होता तो भारत की विधानपालिकाओं पर यह आरोप चस्पा हो जाता कि वे निरंकुश होती जा रही हैं। ब्रिटेन में माना जाता है कि संसद संप्रभु होती है। उसके ऊपर कोई नहीं होता लेकिन महाराष्ट्र विधानसभा ने एक नया सवाल उछाला।

वह यह कि क्या विधानसभा या लोकसभा का अध्यक्ष भी संप्रभु होता है? वह जो कह दे, क्या वही कानून बन जाता है? 5 जुलाई 2021 को महाराष्ट्र की विधानसभा के अध्यक्ष भास्कर जाधव के साथ कुछ विधायकों ने काफी कहा-सुनी कर दी। उन्हें भला-बुरा भी कह डाला। उनका क्रोधित होना स्वाभाविक था। उन्होंने इन विधायकों को पूरे एक साल के लिए मुअत्तिल कर दिया। ये 12 विधायक भाजपा के थे। भाजपा महाराष्ट्र में विपक्षी दल है।

शिव-सेना गठबंधन वहां सत्तारुढ़ है। अध्यक्ष के गुस्से पर सदन ने भी ठप्पा लगा दिया। अब विधायक क्या करते? किसके पास जाएं? राज्यपाल भी इस मामले में कुछ नहीं कर सकते। मुख्यमंत्री तो अध्यक्ष के साथ हैं ही। आखिरकार उन्होंने देश की सबसे बड़ी अदालत के दरवाजे खटखटाए। अच्छा हुआ कि अदालत ने अपना फैसला जल्दी ही दे दिया वरना देश में न्याय-व्यवस्था का हाल तो ऐसा है कि मरीज को मरने के बाद दवा मिला करती है। इन मुअत्तिल विधायकों को साल भर इंतजार नहीं करना पड़ा।

अदालत ने महाराष्ट्र विधानसभा के सदन में उनकी उपस्थिति को बरकरार कर दिया। अपना फैसला देते वक्त अदालत ने जो तर्क दिए हैं, वे भारतीय लोकतंत्र को बल प्रदान करनेवाले हैं। वे जनता के प्रति विधानपालिका की जवाबदेही को वजनदार बनाते हैं। जजों ने कहा कि विधायकों की एक साल की मुअत्तिली उनके निष्कासन से भी ज्यादा बुरी है, क्योंकि उन्हें निकाले जाने पर नए चुनाव होते और उनकी जगह दूसरे जन-प्रतिनिधि विधानसभा में जनता की आवाज बुलंद करते लेकिन यह मुअत्तिली तो जनता के प्रतिनिधित्व का अपमान है।

इसके अलावा यदि विधायकों ने कोई अनुचित व्यवहार किया है तो उन्हें उस दिन या उस सत्र से मुअत्तिल करने का नियम जरुर है लेकिन उन्हें साल भर के लिए बाहर करने की पीछे सत्तारुढ़ दल की मन्शा यह भी हो सकती है कि विरोधी पक्ष को अत्यंत अल्पसंख्यक बनाकर मनमाने कानून पास करवा लें। जहां महाराष्ट्र की तरह गठबंधन सरकार हो, वहां तो ऐसी तिकड़म की संभावना ज्यादा होती है। इस घटना से अध्यक्ष, सत्तारुढ़ और विरोधी दलों— सबके लिए समुचित सबक निकल रहा है।