Flashback: मेरा व्यायाम चिंतन और समय के साथ उतार-चढ़ाव

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Flashback: मेरा व्यायाम चिंतन और समय के साथ उतार-चढ़ाव

1960 में जब मैं 10 वर्ष का था तब मुझे पूर्वी उत्तर प्रदेश के गंगा के किनारे बसे ग़ाज़ीपुर में परंपरानुसार नाग पंचमी ( पचैंया) के दिन आयोजित एक बड़े दंगल का कार्यक्रम देखने का अवसर प्राप्त हुआ। एक सम्पन्न भूमिहार परिवार के मंगला राय उस क्षेत्र के बहुत नामी पहलवान थे और उन्होंने देश में अनेक कुश्तियां जीती थी। उस दिन उनकी कुश्ती पंजाब के चाँद पहलवान से थी। दंगल में मंगला राय की लोकप्रियता के कारण बड़ी भारी भीड़ एकत्र हुई।

अनेक छोटी जोड़ियों की कुश्तियों के बाद अंत में मंगला राय और चाँद पहलवान की कुश्ती हुई जिसमें मंगला राय आसानी से जीत गए।इस दंगल में मैंने पहलवानों को दण्ड बैठक करते हुए देखा जिसका मुझ पर तुरंत प्रभाव पड़ा और मैंने घर पर डंड- बैठक करना शुरू कर दिया। मैंने ज़िद करके अपने लिए लंगोट भी बनवा ली, परंतु कुछ ही महीनों बाद यह सिलसिला बंद हो गया।घर के सामने एक बहुत बड़े मैदान में मोहल्ले के लोगों के साथ रोज़ मैं हॉकी खेलता था और स्कूल में दौड़भाग भी होती थी परंतु इस सबको व्यायाम नहीं माना जाता था।

Flashback: मेरा व्यायाम चिंतन और समय के साथ उतार-चढ़ाव

इलाहाबाद विश्वविद्यालय में मैं प्रसिद्ध ए एन झा हॉस्टल में रहता था और वहाँ मेरे मेरठ में सहपाठी रहे घनिष्ठ मित्र बाल विक्रम सिंह रघुवंशी यूनिवर्सिटी के बॉक्सिंग चैंपियन थे।वे कमरे में वेटलिफ़्टिंग का सामान रखते थे और कसरत करते रहते थे। उनको देखकर कई बार व्यायाम करने की इच्छा हुई परन्तु कुछ अधिक नहीं हो सका। लखनऊ विश्वविद्यालय में अपने नाना की छत्रछाया में जब मैं पढ़ रहा था तब एक दिन मैंने नाना से कहा कि मेरे पीठ में कुछ दिनों से दर्द रहता है तो मेरे नाना ने कहा कि तुम बहुत कमज़ोर हो। यह सुनकर अगले दिन से डंड-बैठक करना शुरू कर दिया जो सिलसिला केवल दो वर्ष तक चला।

IPS की ट्रेनिंग में पुलिस एकेडमी माउंट आबू तथा फिर हैदराबाद स्थानांतरित पुलिस एकेडमी में अचानक बहुत कठिन शारीरिक परिश्रम के दिन आ गए। सुबह उठते ही एक पीरियड PT का होता था जिसमें दौड़ाना, रस्से पर चढ़ना तथा अनेक शारीरिक व्यायाम होते थे।इसके बाद बदल बदल कर तरह-तरह की परेड, घुड़सवारी, आर्म्स ट्रेनिंग, जूडो और फिर शाम को अनिवार्य मैदानी खेल होता था।

रात को मनोरंजनार्थ मैं टेबल टेनिस या बिलियर्ड्स खेलता था। यह दिनचर्या इतनी कठिन थी कि हम लोग एक साल की ट्रेनिंग समाप्त होने की राह देखते थे। इस ट्रेनिंग के बाद मेरा ग्रुप आर्मी अटैचमेंट के लिए नेफा (अरुणाचल प्रदेश) में हिमालय की टैंगा वैली में 5 माउंटेन डिवीज़न में गया। वहाँ दिसंबर के महीने के भयंकर जाड़े में सुबह पहाड़ की कम आक्सीजन की हवा में दौड़ाया जाता था लेकिन हैदराबाद की ट्रेनिंग से आने के कारण वह भी संभव हो गया।

 

मध्य प्रदेश आने पर प्रारंभिक सेवाकाल में अत्यधिक व्यस्तता के कारण व्यायाम बंद हो गया।कई वर्षों बाद AIG के पद पर भोपाल आने पर चार इमली स्थित घर पर कभी कभी कुछ हल्का फुल्का व्यायाम कर लेता था। ज़िलों में पुलिस अधीक्षक के रूप में दमोह को छोड़कर जहाँ जंगलों में कभी-कभी लंबा पैदल चलना पड़ा, व्यायाम नहीं हो पाता था।

इंदौर में जब DIG बंगले में पहुँचा तो वहाँ शाम को ब्रिस्क वॉक करना प्रारंभ किया जो उस काफ़ी बड़े बंगले में सुविधाजनक रूप से हो जाती थी। सुबह स्टेशनरी साइकिल भी चला लेता था।आकस्मिक कार्यों और रेंज के ज़िलों में दौरे के समय यह सिलसिला टूट भी जाता था।बीच में दो बार भोपाल में पोस्टिंग होने पर मैं चार इमली में शाम को कालोनी में ब्रिस्क वॉक करता था। ग्वालियर में IG के पद पर जाने पर वहाँ कुछ दरी पर लेट कर स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज करना प्रारंभ कर दिया जो काफ़ी नियमित रहा।

Flashback: मेरा व्यायाम चिंतन और समय के साथ उतार-चढ़ाव

बढ़ती आयु के साथ स्वास्थ्य के प्रति ध्यान आकृष्ट होना स्वाभाविक है।अपने लगभग पाँच वर्ष के ट्रांसपोर्ट कमिश्नर के कार्यकाल में मुझे सप्ताह में आधे समय भोपाल और आधे समय ग्वालियर में रहना पड़ता था।मैं भोपाल में वैशाली स्थित निजी मकान में रुकता था तथा वॉक के लिए एकांत पार्क जाता था। ग्वालियर में मेरे शासकीय भवन के समीप ही फ़ॉरेस्ट नर्सरी में वॉक के लिए जाता था।ब्रिस्क वाक के बाद डम्बल और स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज भी करता था। प्रतिनियुक्ति पर स्पेशल DG CRPF जम्मू कश्मीर में पदस्थ हुआ।

वहाँ मेरे दोनों निवास जम्मू और श्रीनगर CRPF कैंप के अंदर थे। वहाँ पर सुरक्षित कैम्पस के अंदर भी वॉक करने के लिए कड़ी सुरक्षा की दृष्टि से मेरे साथ नौजवान आरक्षक AK 47 राइफ़ल लेकर मेरे आगे और पीछे चलते थे।उनकी गति सेअपनी गति को मिलाने में काफ़ी आनंद आता था।इसके बाद स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज अपने कमरे में करता था और एक्सरसाइज के बीच-बीच में मोबाइल से दिल्ली सहित अन्य आवश्यक आने वाले कॉल भी सुनता रहता था। मेरी अंतिम पोस्टिंग DG नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स् ब्यूरो, नई दिल्ली में हुई। वहाँ मैं अपने चाणक्यपुरी के निवास के समीप ही बहुत बड़े प्रसिद्ध नेहरू पार्क में सुबह वॉक के लिए जाने लगा।

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सेवानिवृत्ति के पश्चात् भोपाल आने पर पिछले 10 वर्ष से मेरा व्यायाम पहले की अपेक्षा अधिक नियमित हो गया है।अधिकांशतया एकांत पार्क में वॉक और मौसम का व्यवधान होने पर ट्रेडमिल या साइकिल नियमित हो गई है। भोपाल आने के क़रीब दो वर्ष बाद मैंने अत्यंत वैज्ञानिक ढंग से लिखी गई बारबरा बुशमैन की पुस्तक पढ़ी और उसके आधार पर एरोबिक (वॉकिंग), रजिस्टेंस, स्ट्रेचिंग, बैलेंस और प्राणायाम के व्यायाम करना शुरू कर दिया है।

मैं पूजा पाठ नहीं करता हूँ और मेरी लंबी सुबह व्यायाम के दो भागों में विभक्त रहती है जिसमें बीच में फल और समाचार पत्र के लिए समय रहता है।भोपाल से बाहर जाने पर यथासंभव व्यायाम जारी रखता हूँ। विदेश यात्राओं में काफ़ी पैदल चलना पड़ता है और वही व्यायाम हो जाता है।

व्यायाम के प्रति विगत कुछ समय से काफ़ी जागृति आयी है और लोग इस पर ध्यान दे रहे हैं। व्यायाम पहलवान या बॉडी बिल्डर बनने के लिए ही नहीं होता है। स्वस्थ जीवन के लिए यह तुलसीदास के शब्दों में ‘आबाल वृद्ध नर नारी’ सब के लिए अत्यावश्यक है। किसी भी आयु में पूरी जानकारी लेकर व्यायाम प्रारम्भ किया जा सकता है। जीवन में शारीरिक और मानसिक तथा कदाचित आध्यात्मिक गुणवत्ता के लिए व्यायाम का कोई विकल्प नहीं है।