Piyush Pande: भारत के विज्ञापन जगत का महान कहानीकार

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Piyush Pande: भारत के विज्ञापन जगत का महान कहानीकार

– राजेश जयंत

आज सुबह भारत ने अपने सबसे बड़े विज्ञापन शिल्पकार को खो दिया। “पीयूष पांडे” वह नाम जिसने विज्ञापन को सिर्फ़ प्रचार का माध्यम नहीं, बल्कि जीवन की भावना बना दिया। चार दशकों तक उन्होंने ऐसे अभियान रचे जिन्होंने न सिर्फ़ ब्रांड्स को ऊँचाई दी, बल्कि भारत की भाषा, संस्कृति और संवेदनाओं को एक नया चेहरा दिया।

“कुछ ख़ास है”, “चल मेरी लूना”, “हर खुशी में रंग लाए”, “फेविकोल का जोड़”, “अतुल्य भारत”, “कुछ दिन तो गुजारिये गुजरात में” – ये सिर्फ़ विज्ञापन नहीं, बल्कि भारत की कहानी हैं।

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**प्रारंभिक जीवन और पृष्ठभूमि**

पीयूष पांडे का जन्म 1955 में जयपुर, राजस्थान में हुआ था। शुरुआती दिनों में वे क्रिकेट खेलते थे और पेशेवर जीवन की शुरुआत एक चाय-स्वाद विशेषज्ञ के रूप में की। बाद में उन्होंने दिल्ली के सेंट स्टीफेंस कॉलेज से इतिहास में स्नातकोत्तर किया।

विज्ञापन जगत में उनकी यात्रा 1982 में ओगिल्वी एंड माथर (O&M) से शुरू हुई, जहां उन्होंने एक ट्रेनी के रूप में कदम रखा। धीरे-धीरे अपनी रचनात्मक सोच, सरल भाषा और भारतीय संदर्भों की गहरी समझ के कारण वे एजेंसी के क्रिएटिव हेड और बाद में कार्यकारी अध्यक्ष बने।

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**विज्ञापन की दुनिया में क्रांति**

भारतीयता का नया चेहरा: उस दौर में जब विज्ञापन अंग्रेज़ी भाषी, विदेशी संदर्भों में सीमित थे, पीयूष पांडे ने भारतीयता को केंद्र में रखा। उन्होंने दिखाया कि आम आदमी की बोली, रोज़मर्रा की ज़िंदगी और स्थानीय भावनाएं ही सबसे सशक्त संचार माध्यम हैं।

उनकी सोच थी- “विज्ञापन दिमाग़ से नहीं, दिल से बनते हैं।”

उनके प्रतिष्ठित अभियान:

फेविकोल- “जोड़ तोड़ने का नहीं, जोड़ने का काम करता है।” इस अभियान ने फेविकोल को भारत का पर्याय बना दिया।

“कैडबरी डेयरी मिल्क” “कुछ ख़ास है ज़िंदगी में” ने भारतीय भावनाओं को मिठास दी।

“एशियन पेंट्स”- “हर खुशी में रंग लाए” ने हर घर को रंगों से जोड़ दिया।

हच/वोडाफोन- प्यारा “पग डॉग” अभियान जिसने मोबाइल ब्रांड को मानवीय भाव दिया।

अतुल्य भारत और गुजरात पर्यटन – इन अभियानों ने भारत की आत्मा और विविधता को दुनिया तक पहुंचाया।

“हमारा बजाज” और “चल मेरी लूना” जैसे प्रतिष्ठित विज्ञापन ने भारतीयों में ‘देसी गर्व’ की भावना जगाई- “हमारा बजाज” सिर्फ बाइक नहीं, एक भावनात्मक पहचान बन गया।

“चल मेरी लूना” जैसे- सरल-असरदार ने आम आदमी के सपनों को सड़क पर उतार दिया। सस्ती, भरोसेमंद और दिल छू लेने वाली सवारी का प्रतीक बन गया।

मध्य प्रदेश पर्यटन- “एमपी अजब है, सबसे गजब है” ने भारत के हृदय प्रदेश को जीवंत कर दिया।

इन अभियानों ने केवल उत्पाद नहीं बेचे, बल्कि लोगों के जीवन में जगह बनाई।

ऐसे ही विज्ञापन गुरु पीयूष पांडे ने “अबकी बार, मोदी सरकार” जैसे नारे से भारतीय राजनीति में विज्ञापन की नई परिभाषा गढ़ दी।

इस अभियान ने न सिर्फ जनमानस को प्रभावित किया बल्कि भारतीय चुनाव प्रचार की शैली ही बदल दी।

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*शैली और दर्शन*

पीयूष पांडे की विज्ञापन शैली उनकी भारतीय जड़ों से गहराई से जुड़ी थी। उन्होंने स्थानीय भाषा और बोली को मुख्य स्थान दिया।

उनके विचारों में मानवीय भावनाओं की सादगी थी।

वे मानते थे कि “सड़क, बाजार और आम लोगों की बातें ही असली प्रेरणा हैं।”

उनकी रचनाओं में हास्य, संवेदना और सच्चाई का अनोखा मिश्रण था, जिससे दर्शक जुड़ाव महसूस करते थे।

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*उपलब्धियां और सम्मान*

पीयूष पांडे को भारत सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया।

वे कान्स लायंस इंटरनेशनल फेस्टिवल ऑफ क्रिएटिविटी के जूरी चेयर बनने वाले पहले एशियाई थे- यह भारतीय विज्ञापन की वैश्विक मान्यता का प्रतीक था।

उन्हें “भारतीय विज्ञापन का पिता” कहा गया क्योंकि उन्होंने विज्ञापन की दिशा और दृष्टि दोनों को बदल दिया।

उनके नेतृत्व में ओगिल्वी इंडिया ने सैकड़ों अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीते और भारतीय विज्ञापन को विश्व मंच पर स्थापित किया।

*व्यक्तित्व और प्रभाव*

पीयूष पांडे अपने सहज, आत्मीय और जमीन से जुड़े व्यक्तित्व के लिए जाने जाते थे। वे बड़े विचारों को आम आदमी की भाषा में ढालने की अद्भुत कला रखते थे।

उनके सहकर्मी और शिष्य उन्हें एक मार्गदर्शक के रूप में याद करते हैं- जिनकी एक मुस्कान या एक वाक्य पूरी टीम को प्रेरित कर देता था।

उनकी बहन प्रसून पांडे भी फिल्म और विज्ञापन जगत की जानी-मानी हस्ती हैं, और दोनों भाई-बहन ने मिलकर कई यादगार रचनाएं कीं।

*अंतिम यात्रा और विरासत*

24 अक्टूबर 2025 की सुबह पीयूष पांडे ने दुनिया को अलविदा कहा। उनके निधन से विज्ञापन जगत ही नहीं, पूरे रचनात्मक भारत में शोक की लहर दौड़ गई।

कॉर्पोरेट दिग्गजों से लेकर सिनेमा और मीडिया जगत तक- हर किसी ने उन्हें श्रद्धांजलि दी।

उन्होंने एक ऐसी विरासत छोड़ी है जहां हर विज्ञापनकर्ता यह सीखता है कि “विचार केवल बेचे नहीं जाते, महसूस किए जाते हैं।”

*भारतीय विज्ञापन पर स्थायी प्रभाव*

—उन्होंने दिखाया कि भावनात्मक विज्ञापन हमेशा दीर्घकालिक होते हैं।

—स्थानीय संस्कृति और बोलचाल को विज्ञापन की शक्ति बनाया।

—“वोकल टोन” और “कहानी कहने” की कला को पुनर्जीवित किया।

—भारत को वैश्विक विज्ञापन मानचित्र पर प्रमुख स्थान दिलाया।

—आज भी भारत के हर क्रिएटिव एजेंसी में उनका नाम सम्मान के साथ लिया जाता है।

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पीयूष पांडे केवल विज्ञापन बनाने वाले नहीं थे- वे कहानी कहने वाले शिल्पकार थे। उन्होंने हमें सिखाया कि सबसे सशक्त विचार वे हैं जो सादगी में छिपे हों और जो लोगों के दिल में उतर जाएं।

उनकी रचनाएं आने वाले वर्षों तक हमें याद दिलाती रहेंगी कि विज्ञापन केवल बेचने की कला नहीं, बल्कि जीवन को छूने की कला है।

“वो चले गए, पर उनके शब्द, उनके विचार और उनकी कहानियां- हमेशा हमारे बीच रहेंगी।”