Jhooth Bole Kauwa Kaate: योगी-मोदी और संघ चरखा दांव से जंग
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव अंतिम दौर में है। जिन्ना और हिजाब विवाद से शुरू हुए चुनाव में फिलहाल यूक्रेन से उपजे संकट की एंट्री भी हो चुकी है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारतीयों के रेस्क्यू ऑपरेशन को लेकर सरकार की तारीफ कर रहे हैं, तो राहुल गांधी सवाल उठा रहे हैं और अखिलेश यादव शर्मनाक बता रहे हैं।
सियासी अखाड़े में मजबूती से खड़े अखिलेश अपने पिता मुलायम सिंह यादव का चरखा और धोबी-पाट दांव पहले ही चल चुके हैं।
प्रदेश की राजनीति में मुलायम के ये दांव काफी मशहूर हैं। इनके जरिए कई बार उन्होंने बड़े-बड़े राजनीतिक सूरमाओं को धराशायी किया है।
सियासी दोस्तों को अपने यू टर्न से झटका देने वाले मुलायम राजनीतिक फायदों, समीकरणों को देखकर इसे आजमाते रहे हैं।
पूर्वांचल की सियासी जमीन पर कभी सपा-बसपा का परचम लहराया करता था। लेकिन, 2014 के लोकसभा चुनाव से भारतीय जनता पार्टी ने जो यहां अपना झंडा गाड़ा तो 2017 के विधानसभा और 2019 के लोकसभा चुनाव में भी उसे बरकरार रखा, सारे विपक्षी दांव फेल हो गए।
2017 में छठे और सातवें चरण की कुल 111 सीटों में से भाजपा ने 72 सीटों पर कमल खिलाया था। जबकि, उसकी सहयोगी पार्टी सुभासपा ने तीन और अपना दल ने चार सीटें जीती थीं।
इस बार अपना दल तो भाजपा के साथ ही है लेकिन अखिलेश ने चरखा दांव लगा कर सुभासपा और कृष्णा पटेल वाले अपना दल को अपने पाले में गिरा लिया। तब की परिस्थितियां भी और थीं।
सत्ता विरोधी लहर, शिवपाल फैक्टर, भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग आदि-इत्यादि। इस बार एंटी इन्कमबैंसी भाजपा के विरूद्ध है, तो सोशल इंजीनियरिंग का चरखा दांव भी सपा ने खेला है।
स्वामी प्रसाद मौर्य हों या भाजपा छोड़ समाजवादी पार्टी में आए ओपी राजभर हों, या फिर भाजपा के साथ इन चुनावों में निषाद पार्टी हो – इनका प्रभाव पहले कितना था और इस बार कितना बरकरार है, इस बात का फ़ैसला भी 10 मार्च को हो जाएगा।
अखिलेश का दांव राज्य कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन स्कीम और जातिगत जनगणना का भी है।
दूसरी ओर, बसपा के अधिकतर वरिष्ठ बागी नेता भी सपा के टिकट पर मैदान में आ गए। अंबेडकर नगर, जिसे बसपा का गढ़ माना जाता है, अब लालजी वर्मा, राम अचल राजभर और त्रिभुवन दत्त (सभी बसपा विद्रोही) सपा के सिंबल पर प्रख्यात समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया के जन्मस्थान के रूप में जाने जाने वाले जिले से छठे चरण में चुनाव मैदान में थे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सातवें चरण के मतदान से पूर्व तीन से पांच मार्च तक वाराणसी में हैं और इस दौरान डोर टू डोर कैंपेन के साथ ही जनसभा, रोड शो सहित अन्य कार्यक्रम कर माहौल बनाने का काम करेंगे।
कहते हैं कि काशी जाति के सभी बंधनों को तोड़ देता है, खासकर 2014 में पीएम मोदी के यहां से लोकसभा चुनाव लड़ने के बाद इस तथ्य को और बल मिला।
2017 में भी मोदी ने चुनाव से पहले 2 दिन कैंप किया था, फलस्वरूप भाजपा वाराणसी की आठों सीटें जीत गई थी।
बोले तो, भाजपा की एक परोक्ष ताकत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को नजरअंदाज करना भी बड़ी भूल होगी। भाजपा की जीत के लिए संघ परिवार हर तरीका अपना रहा है।
इसमें बूथ प्रबंधन, पोलिंग स्टेशन की सुरक्षा, वोटरों का उत्साह बनाए रखना, क्षेत्र में राष्ट्रवादी मुद्दों को उभारना, पूर्वांचल में ब्राह्मणों की नाराजगी को दूर करने से लेकर से विपक्षी दलों और उनके कथित विदेशी फंड कनेक्शन से वोटरों को सावधान करना शामिल है।
गोरक्ष (गोरखपुर) और काशी (वाराणसी) प्रांत संघ की दृष्टि से उत्तर प्रदेश के सबसे निर्णायक ज़ोन हैं। गोरखपुर ज़ोन में संघ परिवार के सहयोगी संगठनों ने दिन-रात मोर्चा संभाला। सुबह की शाखा के बाद वरिष्ठ पदाधिकारियों ने नौजवानों से संपर्क साधा, मतदाताओं तक पर्चे पहुंचाया।
राम मंदिर, जम्मू और कश्मीर में धारा 370 हटने, धर्मांतरण के खिलाफ उप्र में कानून और ‘गुंडा राज’ की चर्चा की। बांटे जा रहे पर्चे पर भाजपा का चुनाव चिह्न नहीं दर्शाया।
इन पर्चों को लोक जागरण मंच, धर्म जागरण मंच, स्वदेशी जागरण मंच या मतदाता जागरण मंच जैसे संघ के मुखौटा संगठनों की ओर से पेश किया।
कभी ये नहीं कहा कि किनको वोट करना चाहिए, बस देश हित और देश प्रेम की बात की। काशी में भी कुछ ऐसा ही चल रहा।
झूठ बोले कौआ काटेः चुनाव में जातिगत और मजहबी किलेबंदी दोनों ओर से है, महंगाई और रोजगार है तो सबका साथ-सबका विकास के साथ लाभार्थियों का आधार और बाहुबलियों का बंटाधार भी है।
ऐसे में योगी-मोदी की छवि और पीठ पीछे सक्रिय ‘संघ’ की संगठित धार से पार पाना सपा और विपक्ष के लिए इतना आसान भी नहीं।
मुफ्त राशन, खाद कारखाना, चीनी मिलें और गन्ना किसानों का भुगतान, किसान सम्मान निधि, एक्सप्रेस वेज, कुशीनगर अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट, गैस पाइपलाइन, स्वास्थ्य सेवाएं, काशी कॉरिडोर जैसे अनेकों काम डबल इंजन सरकार की अपनी खेती है, जिस फसल को इन 19 जिलों में जातिगत समीकरणों के बावजूद फिर भाजपा ही काटेगी, कोई संशय नहीं।
कितना काटेगी 10 मार्च को साफ हो जाएगा। यह भी ध्रुव सत्य है कि भाजपा के कुछ निवर्तमान विधायक यदि जीत पाएंगे तो केवल योगी-मोदी की छवि के कारण ही।
इन नेताओं ने पांच साल तक क्षेत्र की सुधि नहीं ली और विपक्ष के हाथ में जनाक्रोश का अस्त्र थमा दिया।
और ये भी गजबः उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचार में इस बार फिल्म स्टारों की जगह गीतों का तड़का भी गजब का लगा है। राजनीतिक दलों ने समर्थक वोटरों को लुभाने के लिए स्थानीय भाषाओं में अनेक गाने रीलिज किये।
भाजपा के गोरखपुर सांसद और भोजपुरी स्टार रविकिशन ने सपा के ‘यूपी में का बा’ के जवाब में ‘यूपी में सब बा’ पेश किया। ‘जे कब्बो न रहल, अब बा, यूपी में सब बा’ इस गीत में फर्टिलाइजर, गोरखपुर एम्स, पूर्वांचल एक्सप्रेस वे जैसी उपलब्धियों के साथ माफियाओं के खिलाफ कार्रवाई, गरीबों को राशन जैसी सरकारी योजनाओं सहित अयोध्या राम मंदिर और काशी कॉरिडोर का भी उल्लेख है।
भाजपा नेता और भोजपुरी स्टार मनोज तिवारी ने ‘मंदिर अब बनने लगा है, भगवा रंग चढ़ने लगा है’ से माहौल में तड़का लगाया। भोजपुरी गायक निरहुआ का गाना, ‘यूपी के बच्चा-बच्चा के फरमाइश, योगी जी अइहे 22 में…’ भी लोकप्रिय हुआ।
अनामिका जैन अंबर का ‘काये कि यूपी में बाबा है, यूपी में बाबा…’ भी खूब हिट हुआ। एक समय इस क्षेत्र में गोरखपुर के चर्चित कलाकार राकेश श्रीवास्तव के गीत ‘भाग चले माओ-नक्सली, योगीजी की सेना चली’ का एकाधिकार हुआ करता था, जो आज भी उतना ही लोकप्रिय है।
सपा भी पीछे नहीं रही। नेहा सिंह राठौर के ‘बाबा के दरबार बा, खतम रोजगार बा….हाथरस के निर्णय जोहत लड़की के परिवार बा… अरे का बा.. यूपी में का बा…’ से चुनावी माहौल में तड़का लगने के बाद इसके और पार्ट आए तो ‘अबकी चुनाव में हमरे वोटन क अइसा रेला होइबे, खदेड़ा होइबे, मुंह के बल बीजेपी गिरिहें, अंत ये सारा झमेला होइबे, खदेड़ा होइबे खेला होइबे’ गीत के माध्यम से सपा ने योगी आदित्यनाथ सरकार पर निशाना साधा। ‘यूपी का जनादेश, आ रहे हैं अखिलेश’ और ‘अखिलेश यादव बोल रहा हूं’ गीत भी खूब वायरल हुए।
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बसपा के प्रचार अभियान में सोनू निगम का गाया हुआ गाना खूब इस्तेमाल किया जा रहा है, ‘अब करो विजय की तैयारी, अब करो विजय की तैयारी, भारी बहुमत से जीतेगी माया बहन हमारी’। ऐसे ही एक गाना और लोकप्रिय हो रहा है, ‘माया बहन के चाहने वालो, यूपी में बहना को लाने वालो, योगी को हटा दो सब मिलकर’।
कांग्रेस ने थीम सांग जारी किया, ‘पर्वत क्या मेरे आगे, मैं चांद को लांघ भी सकती हूं। घर भी चलाया है मैंने, मैं देश भी चला सकती हूं। फसल उगाई इन हाथों ने, सरहद पे भी लड़ सकती हूं। #लड़की_हूं_लड़_सकती_हूं’। कुल मिला कर कह सकते हैं, ‘यूपी में अब्बे त इहे सब बा!’