एक पत्थर से फिर बढ़ी शिवराज की बैचेनी

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शराबबंदी के खिलाफ आज पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने भोपाल की एक शराब दुकान पर पत्थर फेंक कर आंदोलन का आगाज कर दिया मगर इस एक पत्थर ने मध्यप्रदेश में सियासी तूफान ला दिया है। फायर ब्रांड नेता उमा भारती का पाँच राज्यों के चुनावी नतीजों के बाद अचानक इस तरह प्रदेश की राजधानी में सक्रिय होना बहुत बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम माना जा रहा है।

उमा भारती ने नवंबर 2005 में अपनी ही पार्टी से नाराज होकर बगावत कर दी थी। भोपाल के बीजेपी कार्यालय में अगले मुख्यमंत्री के नाम पर शिवराज सिंह चौहान की मुहर लगते ही तल्ख मिजाज उमा भारती ने अपने साथ पार्टी के कई विधायकों को लेकर पैदल राम रोटी यात्रा शुरु कर दी थी। बाद में अलग पार्टी भी बनाई। उमा भारती ने इस दौरान कई बार पार्टी और उनके नेताओं को जमकर कोसा था। मैंने उनके साथ एक महीने तक उनकी इस यात्रा को बतौर टीवी पत्रकार कवर किया है। उमा जी इस दौरान काफी घनिष्टता हो गई थी।

वे ऑन द रिकॉर्ड के साथ अक्सर ऑफ द रिकॉर्ड भी कई सारी बातें किया करती थीं। उमा भारती ने भले ही बीजेपी में घर वापसी कर ली हो लेकिन उनके भीतर की आग कहीं न कहीं अभी भी धधक रही है। उमा भारती को सदस्यता देने के बाद से ही पार्टी ने उन्हें मध्यप्रदेश से अलग-थलग रखा लेकिन उनका मधयप्रदेश से ऐसा लगाव रहा है कि वे ज्यादा दिन दूर नहीं रह पाती। रहना भी नहीं चाहिए। वे यहां से विधायक, सांसद रही हैं। प्रदेश की जनता ने उन्हें बतौर मुख्यमंत्री भी चुना है।

साल 2003 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले पार्टी ने बतौर मुख्यमंत्री उन्हें प्रोजेक्ट कर तत्कालीन दिग्विजसिहं सरकार के खिलाफ चुनाव मैदान में उतारा था। दिग्विजय सिंह को मिस्टर बंटाढार करार देते हुए उन्होंने लोगों के दिलों में अपनी जगह बनाई। यकीनन वे जननेता थीं और अब भी हैं। आज के घटनाक्रम पर बीजेपी में सन्नाटा पसरा हुआ है। पार्टी में दो धड़ों से बयान आ रहे हैं। कुछ समर्थन कर रहे हैं तो कुछ इसे उनका व्यक्तिगत कदम करार दे रहे हैं। पार्टी ने आधिकारिक तौर पर उमा भारती के इस आंदोलन से किनारा कर लिया है।

विपक्ष चुटकियां ले रहा है। पार्टी और नेताओं से सवाल किए जा रहे हैं। इन सबके बीच सवाल यह भी हैं कि उमा भारती को शराब की बिक्री पर इतना ही एतराज था तो उन्होंने अपनी सरकार रहते हुए खुद शराबबंदी क्यों नहीं की…क्या उमा जी लोकतांत्रिक तरीके से विरोध नहीं जता सकती थीं….क्या वे अपनी ही पार्टी के मुख्यमंत्री से सीधे बात कर शराबबंदी को लागू नहीं करवा सकती। शायद या तो ये सारे रास्ते वे अपनाना नहीं चाहती या फिर एक बार फिर वे मध्यप्रदेश में शराबबंदी के मुद्दे पर जनता को अपनी तरफ फिर से केंद्रीत करना चाहती हैं।

वे यह भी जानती हैं कि प्रदेश की खस्ताहाल आर्थिक स्थिति से निपटने के लिए शराब से मिलने वाला राजस्व ही सबसे बड़ा मददगार है। ऐसे में उनका यह कदम किसी दूसरी तरफ ही इशारा करता है। उन्होंने पहले भी कहा है कि इस शराब से प्रदेश के 80 फीसदी लोग त्रस्त हैं। यानी इस मुद्दे पर इतने लोग उनके साथ होंगे। क्या यह आंकड़ा सत्ता की कुर्सी तक पंहुचने के लिए कोई नया रास्ता है। शिवराज जी के लिए उमा भारती का यह एक पत्थर उनकी नींद खराब करने के लिए पर्याप्त है। इस पत्थर से शराब बंदी के आंदोलन के धुँआधार आगाज के साथ राजनीति की एक नई बिसात भी बिछ गई है। यह स्पष्ट समझ लिया जाना चाहिए। मध्यप्रदेश में विधानसभा के चुनाव में एक लगभग डेढ़ साल बाकी है ऐसे में उमा भारती की नई सियासत शिवराज सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया और बीजेपी के लिए एक नई मुश्किल खड़ी कर सकती है।