Loud Speaker Controversy : धर्म स्थलों पर लगे लाउड स्पीकर पर कानूनी रोक असंभव!

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Nai Delhi : देशभर में धार्मिक उन्माद के बीच लाउड स्पीकर भी विवाद बनकर उभरा है। उत्पाती लोग और धार्मिक उन्माद को हवा देने वाले नेता धर्म स्थलों पर लाउड स्पीकर को लेकर रोज उकसाने वाले बयान दे रहे हैं। लेकिन, लाउड स्पीकर पर कानूनी रूप से रोक लगाना क्या संभव है, अभी इस बात पर बहस छिड़ी हुई है। दोनों प्रमुख धर्मों के कई आयोजनों में लाउड स्पीकर का इस्तेमाल होता है, जिसे कोई रोकना नहीं चाहता। पर दूसरे पर बंदिश लगाने की कोशिश हो रही है। सुप्रीम कोर्ट ने इसे ध्वनि प्रदूषण और अभिव्यक्ति की आजादी से जुड़ा मामला माना है। ऐसी स्थिति में कहा नहीं जा सकता कि लाउड स्पीकर को लेकर कोई कानूनी रोक संभव है। राज्य सरकारें ही अपनी तरफ से रोक लगा सकती हैं।

इस माहौल में यह जानकारी होना जरूरी है कि लाउडस्पीकर के इस्तेमाल की इजाजत को लेकर अदालतों का क्या रुख रहा है। कई कोर्टों के साथ विभिन्न राज्यों के हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक में ये मामला उठा है। लेकिन, कोई भी अदालत इस पर कानूनी रोक नहीं लगा सकी।

सुप्रीम कोर्ट ने भी लाउड स्पीकर मामले पर दो महत्वपूर्ण आदेश दिए हैं। 18 जुलाई और 28 अक्टूबर 2005 को सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि शांति से, बिना ध्वनि प्रदूषण का जीवन आर्टिकल 21 के तहत मिले ‘जीने के अधिकार’ का हिस्सा है। अभिव्यक्ति की आजादी का हवाला देकर बाकी लोगों को अपनी बात सुनने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।            IMG 20220416 WA0039

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

18 जुलाई 2005 के आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक लाउडस्पीकर, म्यूजिक सिस्टम, पटाखों के इस्तेमाल पर ल रोक लगा दी थी। जस्टिस आरसी लोहाटी और जस्टिस अशोक भान ने बेंच ने अपने फैसले में कहा कि ध्वनि प्रदूषण से आजादी आर्टिकल 21 के तहत मिले जीवन के अधिकार का ही एक हिस्सा है। यह शोर, शांति से रहने के लोगों के अधिकारों में दखल देता है।

लोगों के सोने के वक्त यानी रात 10 से सुबह 6 बजे के बीच किसी ध्वनि प्रदूषण की इजाजत नहीं दी जा सकती। SC ने यह भी माना था कि ध्वनि प्रदूषण से निपटने के लिए कोई प्रभावी कानून नहीं है। भारतीय समाज भी ध्वनि प्रदूषण के नुकसान को लेकर बहुत ज्यादा जागरूक नहीं है।

सर्वोच्च अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि जो लोग शोर करते हैं, वो अक्सर आर्टिकल 19 1(A) के तहत प्राप्त अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार का हवाला देकर बचने की कोशिश करते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि संविधान अपनी बात रखने की आजादी देता है। लेकिन, यह समझना होगा कि कोई भी अधिकार अपने आपमें पूर्ण नहीं है। लाउडस्पीकर के इस्तेमाल को लेकर कोई भी अपने मूल अधिकार का दावा नहीं कर सकता।

किसी को अपनी बात रखने का अधिकार हासिल है, तो सामने वाले के पास भी उसे सुनने या न सुनाने का अधिकार मिला है। किसी को भी कोई बात सुनने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। अगर कोई आर्टिफिशियल डिवाइस के जरिए अपनी आवाज के वॉल्यूम को बढ़ा रहा है, तो वह दूसरों को आर्टिकल 21 के तहत मिले, शांतिपूर्ण प्रदूषण रहित जीने के अधिकार का उल्लंघन ही कर रहा है।