समाज और संस्कृति (society and culture) के मुद्दों पर विरोधाभास से घिरी राजनीति के रंग

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समाज और संस्कृति (society and culture) के मुद्दों पर विरोधाभास से घिरी राजनीति के रंग;

इन दिनों राजनीति के कई दिलचस्प रंग सामने आ रहे हैं | भगवान  राम और शिव की उपासक तथा भाजपा की वरिष्ठ नेता उमा भारती ने पिछले दिनों दो सार्वजनिक प्रदर्शन किए | पहला प्रदेश में पूर्ण शराब बंदी के लिए बयानों के साथ शराब की दुकान पर बाकायदा पथ्थर फेंककर | दूसरा रायसेन के पास एक प्राचीन शिव  मंदिर में पुरातत्व विभाग द्वारा स्थाई रूप से लगे ताले को न खोले जाने तक अन्न ग्रहण न करने की घोषणा | यह मंदिर केवल महा शिव रात्रि पर केवल 12 घंटे के लिए खुलता है |  शेष 364 दिन दरवाजे बंद रहते हैं |

 

उमा भारती बाकायदा मंदिर के सामने जाकर दरवाजे खोलने के लिए  अड़ गई | प्रशासन और पुलिस सेवा में केवल निवेदन करते रहे | दरवाजे नहीं खुले | आंदोलन की इन दो धमकियों को राजनीति में अधिक महत्व न मिलने और आगामी चुनावों में बागडोर के साथ सत्ता में बड़ी भागेदारी के कदम के रूप में देखा जा रहा है | स्वाभाविक है वह स्वयं इस बात को स्वीकार नहीं करती | यही नहीं बयानबाजी के बाद किसी इंटरव्यू के लिए तैयार नहीं हैं | कभी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह उन्हें आदर से मनाने की कोशिश करते हैं , कभी दोनों ट्विटर पर संकेतों में संवाद कर लेते हैं |

भाजपा , उमा भारती और मध्य प्रदेश की राजनीति और समाज को दशकों से जानने समझने के अवसर मुझे मिले हैं |  राजनीति के बदलते कई रंग देखे , उन पर लिखा या टी वी चैनलों पर इंटरव्यू किए अथवा टिप्पणियां की हैं | इसलिए वर्तमान दौर के दिलचस्प  विरोधाभास पर लिखना उचित लगता है | उमा भारती के इन दोनों प्रदर्शनों के बाद संयोग से  गत सप्ताह इंदौर – उज्जैन जाने का अवसर मिला |

 

एक स्थानीय यू ट्यूब चैनल ‘ उज्जैन टी वी ‘ पर पहली प्रमुख खबर देखी | खबर में वीडियो सहित निरंजनी अखाड़े द्वारा चैत्र महा अष्टमी पर शनिवार के दिन  चौबीस खम्भा माता को मदिरा भोग और फिर 28 किलोमीटर तक फैले 42 से 45 देवी देवताओं के मंदिरों में मदिरा चढ़ाकर इसी कलश से सबको प्रशाद पिलाने का विवरण दिया गया है | निरंजन अखाड़े के प्रमुख रवींद्र पुरी के अनुसार “हर साल ढोल धमाके के साथ महामाया महालया देवी और भैरव देवता को शराब अर्पित कर पूजा प्रशाद देने का कार्यक्रम होता है | बारा खम्भा के बाद शराब का कलश लेकर शहर में जुलुस निकलता है |   यह नगर पूजा महाराजा विक्रमादित्य के काल से होती रही है | ” यों दशहरे से पहले वाली नव रात्रि पर नगर प्रमुख – आजकल जिला कलेक्टर से  भी यह पूजा शुरू करवाने का चलन है |

इस दृष्टि से पत्रकार या किसी भी व्यक्ति यह सवाल उठा सकता है कि समाज और संस्कृति की आवाज उठाने वाली उमाजी को शराब के प्रशाद रूप में चलन की परम्परा की जानकारी नहीं होगी | निश्चित रूप से शराब या अन्य नशे से समाज के लिए समस्याएं हैं , लेकिन इसके लिए जागरूकता की आवश्यकता अधिक है | इसी तरह पुरातत्व के महत्व के कारण रायसेन के शिव मंदिर में अंदर दर्शन पर रोक है | लेकिन क्या उन्हें या अन्य नेताओं को क्या यह जानकारी नहीं है कि पिछले कुछ महीनों से उज्जैन के ऐतिहासिक महाकालेश्वर मंदिर के गर्भगृह में जाकर जल , फूल , बेलपत्री  चढाने के लिए  सामान्य श्रद्धालु को 1500 रूपये का टिकट लेना  पढता है |

 

लाइन के बिना गर्भ गृह के बाहर दरवाजे से दर्शन के लिए 250 रूपये का टिकट है | पर्व त्यौहार के दिनों में सामान्य गरीब व्यक्ति टिकट न खरीद पाने के कारण आठ दस घंटे लाइन में खड़े रहते हैं | संभव है , उमा भारतीजी या शिवराज जी या दिग्विजय सिंह जैसे नेताओं  को पूजा अर्चना के लिए न टिकट लेना पड़ता होगा और न ही लाइन में इन्तजार करना पड़ता है | बहरहाल , हजारों लाखों लोग मंदिर में आते जाते रहेंगे | पर्यटन से आमदनी भी सरकार या मंदिर के ट्रस्ट को हो सकती है | लेकिन नई पीढ़ी के लोग मुझसे प्रश्न करते हैं कि शराब पर टैक्स से सरकार की आमदनी ठीक हो सकती है , हिन्दू धर्म की रक्षा की बात करने वाले विभिन्न पार्टियों के नेता मंदिरों में महंगे टिकट के विरुद्ध आवाज क्यों नहीं उठाते ?

इसी  तरह का एक और मुद्दा है – मस्जिद से लाऊड स्पीकर से ऊंची आवाज में अजान और उसके प्रतिकार में राज ठाकरे द्वारा हनुमान चालीसा बजाने की धमकी का | स्पीकर के सम्बन्ध में सरकारों या स्थानीय प्रशासन ने ध्वनि की एक तकनीकी सीमा तय की है | उसके न माने जाने पर नियमानुसार आपत्ति का अधिकार है | और यह नियम मस्जिद नहीं मंदिर , गुरूद्वारे , चर्च या किसी अन्य धार्मिक या कमर्शियल संस्थान के लिए भी लागू है | इन दिनों इसे विभिन्न राज्यों में राजनीतिक साम्प्रदायिक मुद्दा बनाया जा रहा है | जबकि उज्जैन , मथुरा , काशी जैसे अनेक शहरों में हिन्दू मुस्लिम समुदाय मिलकर हर त्यौहार मनाते रहे हैं |

 

उज्जैन के महाकाल मंदिर के आसपास ऐसे मोहल्ले हैं , जैसे पानदरीबा , सिंहस्थ गली आदि में पंडित और हिन्दू धर्म जातियों के लोग रहते हैं और आधा किलोमीटर सड़क के पार तोपखाना – लोहे का पूल इलाके में मुस्लिम [परिवार अधिक हैं | होली दीवाली ईद गणेश उत्सव  पर दोनों बस्तियों और अन्य हिस्सों के लोग मिल जुलकर खुशियां मनाते हैं | सात के दशक में एम् एन बूच उज्जैन के कलेक्टर थे और शहर के केंद्र छतरी चौक के आगे सड़क चौड़ी करने के लिए मस्जिद के आगे के हिस्से को तुड़वाया तो कोई विरोध नहीं हुआ | इसी मस्जिद से दस बीस गज सामने गोपाल मंदिर है | गणेश उत्सव और अनंत चतुर्दशी पर रात भर जुलुस बाजे गाजे से निकलते हैं , लेकिन कभी किसी समुदाय ने आपत्ति नहीं की | मुस्लिम समुदाय का एक वर्ग मोहर्रम के अवसर पर ताजिये उज्जैन , इंदौर , लखनऊ , दिल्ली , मुंबई में भी निकलते हैं , शायद ही हिन्दू समुदाय के लोगों ने कोई आपत्ति की हो |

 

कोरोना महामारी के संकट में विभिन्न धर्मावलम्बियों ने एक दूसरे के लिए हर संभव मदद की | किस अस्पताल ने धर्म या जाति के बारे में पूछा ?  यही नहीं केंद्र की शौचालय , घर बनाने , घरेलु गैस या किसानों की सब्सिडी या आयुष्मान भारत स्वास्थय बीमा योजना क्या केवल किसी एक धर्म के लोगों के लिए लागू हो सकती हैं ? इसका या देश की अर्थ व्यवस्था का लाभ या आर्थिक समस्याओं से परेशानी सबको उठानी पद रही है | दुर्भाग्य यह है कि विभिन्न राजनितिक दलों के नेताओं के सिद्धांतों और व्यवहार में विरोधाभास है | वे सुविधानुसार मुद्दों को उठाते हैं | क्या यह बेहतर नहीं कि सामाजिक सद्भावना और प्रगति के लिए अनावश्यक सांप्रदायिक और आर्थिक मुद्दों पर चिंगारी – आग न लगाएं ?

( लेखक आई टी वी नेटवर्क – इंडिया न्यूज़ और आज समाज दैनिक के संपादकीय निदेशक हैं )