अग्निपथ-अग्निवीर और अब अग्नि-देश…

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ऐसा दिख रहा है कि ड्रैगन को पछाड़ने के लिए लाई गई “अग्निपथ” योजना ने अपने देश को ही पछाड़ने का मन बना लिया है। कई राज्यों में इसके विरोध में “अग्नि-अग्नि” देखने को मिल रही है। कहीं रेलगाड़ियां अग्नि की चपेट में आ गईं तो कई जगह सार्वजनिक संपत्तियां अग्निमय हो रही हैं। लगता है यह “अग्नि” खुद ही अपना “पथ” बनाते हुए पूरे देश में घूमने निकल पड़ी है। जिन्हें “अग्निवीर” बनाने की चाह थी, वही आक्रोशित होकर “अग्नि” को थाम “पथ-पथ” पर कोहराम मचा रहे हैं। मानसून के इंतजार में दहक रहा देश मानो “अग्नि-देश” बन गया है, जबकि “अग्निदेव” ने भी ऐसा सोचा नहीं होगा।

और यह योजना बनाते, लाते और जोर-शोर से राष्ट्रभक्ति की पताका फहराते हुए यह ही सोचा होगा इसके निर्माताओं ने, कि योजना भी हिट होगी और फार्मूला रोजगार की कसौटी पर भी फिट होगा। पर यह दु:खद कि ऐसा होता दिख नहीं रहा और अब तो लगता है कि “अग्निवीरों” के दिल की आग अब “अग्निपथ” को स्वाहा करने की बाट जोह रही है। या फिर विरोध किसी साजिश की अग्नि का शिकार तो नहीं हो गया है? या फिर ड्रैगन की नजर तो नहीं लग गई अग्निपथ के? या फिर “अग्निवीर” यह तो नहीं जताना चाह रहे कि करना ही था तो “लांग टर्म” के साथ “शॉर्ट टर्म” की भर्ती करते जनाब।

 यह सोच भी हो सकती है कि क्या अब सेना में भी संविदा नियुक्ति से भी बदतर फार्मूला पर राष्ट्रभक्ति और देश पर कुर्बान होने के जज्बे का मोल लगाया जाएगा? अफसोस कि आखिर अग्निपथ बनाने  वालों ने क्या यह नहीं सोचा होगा कि प्रतिक्रिया भी अग्निमय मिल सकती है? क्योंकि यह तय है कि जो युवा देश पर मर मिटने और दुश्मनों को खाक करने का इरादा रखते हैं, उनके दिल की आग उनके खुद के प्रति अन्याय की सोच को कतई बर्दाश्त नहीं कर सकती।

खैर अब जो हुआ, सो हुआ, पर आगे सरकार क्या सोचेगी…यह सबसे बड़ा सवाल है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह जब कश्मीर में थे, तब बाकी देश में “अग्निवीर” न बनने के लिए आग झुलस रही थी। वैसे हरिवंश राय बच्चन की कविता “अग्निपथ” बहुत कुछ कहती है और ऐसे राह से भटके युवाओं को आइना भी दिखाती है।

वृक्ष हों भले खड़े,
हों घने हों बड़े,
एक पत्र छांह भी,
मांग मत, मांग मत, मांग मत,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।
तू न थकेगा कभी,
तू न रुकेगा कभी,
तू न मुड़ेगा कभी,
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।
यह महान दृश्य है,
चल रहा मनुष्य है,
अश्रु श्वेत रक्त से,
लथपथ लथपथ लथपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।

अग्निपथ का मतलब होता है आग से भरा रास्ता यानि मुश्किल रास्ता या कठिन रास्ता। और देश के लिए सर्वस्व न्यौछावर करने का जज्बा लेकर अगर चार साल की सेना की नौकरी करने की कठिन चुनौती हिस्से में आ रही थी, तो यह भी स्वीकार कर “अग्निवीर” का तमगा हासिल करने में युवाओं को शपथ लेकर उस पथ पर कदम आगे बढ़ाने चाहिए थे, न कि हर पथ पर अग्नि तांडव करने पर उतारू होना था। कवि हरिवंशराय बच्चन कहते हैं कि पूरा जंगल सामने हो, तब भी एक पत्ते से भी छांव की गुजारिश नहीं करनी चाहिए। अपने दम पर ही कठिनाई से पार पाने का हौसला रखना चाहिए। न थको, न रुको और न ही हारकर मुड़ो, जब तक कि मंजिल न मिल जाए। मनुष्य जब तमाम कठिनाईयों के बाद भी मंजिल पर बढ़ता जाता है, तब वह महान दृश्य दिखता है। मनुष्य अपने आँसू, पसीने और खून से लथपथ आगे बढ़ता रहता है और मंजिल को पा लेता है।

पर सरकार की योजना “अग्निपथ” के बाद देश में जो मंजर दिख रहा है, वह हरिवंशराय बच्चन की कविता की सोच से मेल नहीं खाता। वह युवाओं का देश के प्रति समर्पण भी नहीं दिखाता। विसंगतियों को सुसंगत बनाने के प्रयास बिना हिंसा-बिना आगजनी के भी हो सकते थे। युवाओं को यह सोचना चाहिए कि यदि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चार साल में दुश्मनों को अपनी ताकत का अहसास कराने का मन बनाया हो, तो क्या यह युवा राष्ट्र की आन, बान और शान के लिए अपनी जिंदगी के चार साल “अग्निवीर” बनकर देश को  समर्पित होने का भाव नहीं रखते हैं?

यदि आगामी चार साल में पाकिस्तान को सबक सिखाना हो, तो क्या “अग्निपथ” पर चलने को तैयार नहीं है देश का युवा? यदि इसी चार साल में ड्रैगन का गला मरोड़ने का मन बनाया हो, तो क्या जिंदगी के स्वर्णिम चार साल युवा देश को नहीं देंगे? विरोध का गलत रवैया कर देश को आग में झौंकने वाले युवा इन सवालों का सामना करने का साहस नहीं रखते हैं। तो दूसरी तरफ यह भी स्वीकार करना चाहिए कि इस योजना के क्रियान्वयन से पहले शायद देश पर कुर्बान होने का हौसला रखने वाले इन युवाओं को समझाने में कहीं न कहीं कोई कमी रह गई है, वरना युवाओं में सरकार की इस योजना के प्रति भरोसा भी होता और वह खुशी-खुशी इसका स्वागत भी करते।