अमेरिका (America) की पहली यात्रा
2011 में मैं भारत सरकार, नई दिल्ली में DG नैशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के पद पर था। अपनी इस आख़िरी पदस्थापना में मुझे अमेरिका में एक सेमिनार में जाने का सुअवसर मिला और यह मेरी पूरी सेवाकाल में भारत सरकार द्वारा मुझे विदेश भेजने का प्रथम अवसर था।
वरिष्ठतम स्तर के अधिकारियों का यह सेमिनार अमेरिका की शक्तिशाली एजेंसी फे़डरल ब्यूरो ऑफ़ इन्वेस्टिगेशन द्वारा ग्लैमर सिटी लॉस एंजिलिस में आयोजित किया गया था।इसका शीर्षक यूएस/इंडिया लॉ इन्फोर्समेंट एक्ज़ेक्यूटिव डेवलपमेंट सैमीनार था।
हमें भारत सरकार द्वारा विशेष रूप से डिप्लोमैटिक पासपोर्ट जारी किया गया। बड़े उत्साह से सारी तैयारियाँ करने के बाद 16 अप्रैल, 2011 को लक्ष्मी के साथ रात को एयर इंडिया की न्यूयॉर्क की नॉन स्टॉप फ़्लाइट से रवाना हुआ। पहली बार हम दोनों बिज़नेस क्लास में यात्रा कर रहे थे।
लगभग चौदह घंटे की उड़ान के बाद सूर्य की दिशा में यात्रा के कारण सुबह जल्दी ही न्यूयॉर्क के JFK एयरपोर्ट पर पहुँचे। वहाँ इमिग्रेशन में बहुत भीड़ थी और अभिलेखों की बारीक जाँच और फ़ोटो आदि के कारण बहुत विलंब हो रहा था।हम दोनों इमीग्रेशन से बाहर आए तब बहुत देर तक ढूंढने के बाद हमें अपना सामान मिला। तब तक लॉस एंजेलिस की कनेक्टिंग फ़्लाइट जा चुकी थी।
किसी प्रकार एयर इंडिया के काउंटर पर लंबी बहस के बाद हमारी एट्लांटा और फिर वहाँ से दूसरी फ़्लाइट से लॉस एंजेलेस जाने की व्यवस्था की गई। इन दोनों लंबी यात्राओं में बहुत समय लगने के उपरांत भी पश्चिम दिशा में यात्रा करने के कारण संध्या को ही लॉस एंजेलेस पहुँच गए। एयरपोर्ट से टैक्सी द्वारा हम दोनों किम्प्टन होटल पहुँचे।
अगली सुबह और मेरे सहित कुछ वरिष्ठतम अधिकारियों के लिए पृथक एवं पूर्णकालिक गाड़ियों की व्यवस्था की गई थी। मुझे जो गाड़ी मिली थी उसकी चालक की जूली नामक महिला थी तथा वह सभी स्थानीय यात्राओं के लिए उपलब्ध थी। सभी अधिकारी समय से FBI के भवन पर पहुँचे। 2001 में न्यूयॉर्क के WTC टावर की भीषण आतंकी घटना तथा 2008 में मुंबई के आतंकी तांडव के बाद दोनों देशों के बीच गहराते संबंधों के परिप्रेक्ष्य में यह आयोजन किया गया था।
इसमें आतंकवाद की समस्या के अतिरिक्त सुरक्षा एवं अनुसंधान से जुड़े अनेक विषयों पर चर्चा हुई। फे़डरल ब्यूरो ऑफ़ इन्वेस्टिगेशन की संरचना, नैशनल क्राइम इन्फ़ॉर्मेशन सेंटर, मोबाइल कमांड सेंटर, क्राइसिस मैनेजमेंट, रैस्क्यू टीम, लॉस एंजिल्स पुलिस डिपार्टमेंट और हवाई और समुद्री सपोर्ट यूनिट आदि के संबंध में विस्तृत जानकारी दी गई।
क्लास रूम की पढ़ाई के अतिरिक्त भ्रमण कार्यक्रम और प्रदर्शन भी रखे गए थे जो बहुत ज्ञानवर्धक एवं मनोरंजक थे। लॉस एंजिलस का कंट्रोल रूम और उसकी विशाल छत पर खड़े हेलीकॉप्टर तथा डिजास्टर मैनेजमेंट कंट्रोल रूम दिखाया गया। FBI की फॉरेंसिक प्रयोगशाला तथा ग्रामीण पुलिस का भ्रमण भी कराया गया।लॉस एंजिल्स को छूने वाले प्रशांत महासागर में तट- रक्षक नौकाओं में विचरण और उसमें अतिथि सत्कार अविस्मरणीय है।
लक्ष्मी को लॉस एंजिल्स का लोकप्रिय यूनिवर्सल स्टूडियोज़ हॉलीवुड देखने का सुअवसर मिला।लॉस एंजिलिस पुलिस द्वारा पत्नियों सहित सभी अधिकारियों का एक हॉलीवुड का भ्रमण रखा गया। इसमें हम लोग को प्रसिद्ध बेवर्ली हिल्स देखने का अवसर मिला जहाँ पर हॉलीवुड के सभी बड़े फ़िल्मी स्टार रहते हैं।
हॉलीवुड के थियेटर और वहाँ के फुटपाथ पर बने पुराने फ़िल्मी स्टारों के विख्यात चित्र देखने का अद्भुत अनुभव प्राप्त हुआ। हॉलीवुड हिल्स पर हम लोग गए जहाँ से पूरे लॉस एंजिल्स की लाइटों की छटा दिख रही थीं। अंत में एक शानदार रेस्टोरेंट में डिनर के लिए हम लोग गए।
अगले दिन प्रशिक्षण के बाद मैं और लक्ष्मी जूली के साथ अत्यधिक कांतिमय समुद्री बीच के भ्रमण के लिए गए। हम लोग बहुत देर तक चमकदार दुकानों के बीच बोर्ड पर घूमते रहे। अंधेरा प्रारंभ होने पर जूली को बुलाने के लिए जब मोबाइल ढूंढा तो वह नहीं मिला। बहुत दूर तक फैली पार्किंग में गाड़ी ढूँढना संभव नहीं था। अंधेरा बढ़ने पर बहुत ही कम लोग बचे और स्थिति भयावह हो रही थी। सौभाग्यवश गाड़ी में मेरे मोबाइल की घंटी बजने पर जूली हमें ढूंढती हुई आयी और हम लोग गाड़ी में बैठ गये। अवकाश के दिन मैं अपनी भतीजी नीलम और उसके परिवार से मिलने गया।
प्रशिक्षण समाप्त होने के बाद मैंने एक सप्ताह का अमेरिका घूमने के लिए अवकाश ले लिया था। सर्वप्रथम हम दोनों हवाई जहाज़ से निकट के राज्य नेवाडा में स्थित विश्व की मनोरंजन राजधानी लास वेगास पहुँचे। एयरपोर्ट पर लेने हमें अरूण कुकरेजा के एक मित्र आ गए थे जिन्होंने हमें होटल तक पहुँचा दिया। चमकते कैसीनो और नाइट क्लब की चकाचौंध से हम दोनों विस्मित थे।
अगली सुबह ग्रैंड कैनियन की सीधी कटी हुई बहुत गहरी घाटियों को देखने के लिए निकले।सूखे मरुस्थल में चलते हुए हम लोग कोलोरेडो नदी से बनायी गई ग्रैंड कैनियन की गहरी खाइयों को देखने पहुँचे जो भूगोल और प्रकृति में रुचि लेने वाले मेरे जैसे व्यक्ति के लिए वरदान था।
कोलोरेडो नदी पर बने हूवर बॉंध को भी देखा। फीनिक्स से मेरा भतीजा विवेक अपनी पत्नी और बच्चे के साथ मुझसे मिलने लॉस वेगास आया। लास वेगास से हम लोग लम्बी हवाई यात्रा के बाद अमेरिका के पूर्वी तट पर न्यू जर्सी पहुँचे जहाँ हमें लेने हरीश रजवानी आए और अपने घर ले गये। रात में उन्होंने मुझे न्यू जर्सी घुमाया और सुबह पूर्व निर्धारित बस टूर पर बैठा दिया।
हमारी बस दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर चल पड़ी और दो घंटे में फिलाडेल्फिया पहुँच गयी जो अमेरिका के ऐतिहासिक संविधान की जन्मस्थली है। वहाँ पर इंडिपेंडेंस मॉल, स्वाधीनता की प्रतीक लिबर्टी बेल, स्वतंत्रता की घोषणा का स्थान इंडिपेंडेंस हाल और संविधान की जन्मस्थली कांग्रेस हाल का अवलोकन किया।
अमरीकी इतिहास का छात्र होने के कारण यह मेरे लिए बहुत रोमांचक था।वहाँ से रवाना होकर हम लोग वाशिंगटन पहुँचे जो अमेरिका की राजधानी है।यहाँ पर विश्व विदित कैपिटल हिल, राष्ट्रपति निवास व्हाइट हाउस, नैशनल हिस्ट्री म्यूज़ियम, एयर एंड स्पेस म्यूज़ियम, लिंकन और जेफ़रसन के स्मारक आदि देखने को मिले। अगले दिन मार्ग में ग्लास फ़ैक्ट्री देखते हुए शाम तक नियाग्रा जल प्रपात के निकट विश्राम हेतु पहुँचे।
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को देखने की मेरी बड़ी अभिलाषा थी। अगले दिन सुबह विश्व के सबसे तीव्र जल प्रवाह के इस प्रपात के नैसर्गिक सौंदर्य के दर्शन हुए।वहाँ से हम लोग न्यूयॉर्क शहर की लंबी यात्रा पर निकल पड़े।
न्यूयॉर्क शहर में प्रवेश के पूर्व ही पार्ज़ीपेनी नामक स्थान पर बस रूक गई। वहाँ से प्रदीप पाराशर हमें लेकर अपने घर ले गए। अगले दिन हम लोग सबसे पहले न्यूयॉर्क के आतंकी शिकार वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के स्थल पर पहुँचे और उसके पास ही वित्तीय शक्ति के प्रतीक स्टॉक एक्सचेंज का अवलोकन किया।
दिन भर न्यूयॉर्क के प्रसिद्ध स्थल जैसे अंपायर स्टेट बिल्डिंग, UNO भवन, सेंट्रल पार्क और समुद्र में स्थित प्रतिष्ठित स्टैचू ऑफ़ लिबर्टी आदि देखते रहे। रात को दूर स्थित लांग आईलैंड में अपने मामी के घर चला गया। अगले दिन मेरी मामी तथा उनकी बेटी मन्नी ने भारतीय भोजन बनाकर खिलाया।
दोपहर बाद मन्नी ने हमें JFK एयरपोर्ट के एयर इंडिया के लाउंज तक पहुंचा कर विदा किया। अपनी तीन अमेरिका की यात्राओं में से यह पहली अमेरिका की यात्रा समाप्त कर 30 अप्रैल, 2011 को दोपहर में मैं और लक्ष्मी दिल्ली एयरपोर्ट पहुँच गए।