“मुर्मू” के राष्ट्र की “प्रथम नागरिक” बनने के मायने …

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"मुर्मू" के राष्ट्र की "प्रथम नागरिक" बनने के मायने ...

“मुर्मू” के राष्ट्र की “प्रथम नागरिक” बनने के मायने …

मौसम बदल रहा है। तेज गर्मी के बाद राहत भरी फुहारों ने मन को खुश कर दिया है। देश भी बदल रहा है। मध्यप्रदेश में 2020 की तरह महाराष्ट्र में 2022 में बदलाव के बादल छा गए हैं। दोनों जगह एक बात समान है। मध्यप्रदेश में कमलनाथ खुद बदलाव का शिकार हुए थे, तो महाराष्ट्र की स्थिति पर नजर रखने की महती भूमिका भी वही निभा रहे हैं। वैसे मध्यप्रदेश के बाद राजस्थान में भी बगावत की फसल लहलहाई थी, पर कटने से पहले ही बर्बाद हो गई थी।
"मुर्मू" के राष्ट्र की "प्रथम नागरिक" बनने के मायने ...
और अगले महीने संघ की एक महत्वपूर्ण बैठक राजस्थान में होने जा रही है, जो वहां की कांग्रेस सरकार की बेचैनी जरूर बढ़ा रही होगी। पर इन सब राजनीतिक हालातों पर भारी है इन दिनों एक नाम “द्रौपदी मुर्मू” का। एनडीए की यह रणनीति तो पहले से जाहिर थी कि पिछले चुनाव में दलित राष्ट्रपति चेहरा लाने के बाद मोदी टीम इस बार आदिवासी चेहरा लाकर नई लकीर खींचेगी। पर यह संभावना बहुत लोगों को नजर नहीं आई होगी कि आदिवासी महिला को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक ही तीर से सारे हित साध लेंगे।
द्रौपदी मुर्मू का नाम सामने आने के बाद एक बार फिर साबित हो गया कि भाजपा की सोच काबिले गौर है। जिस तरह खुद मुर्मू भी नाम सामने आने के बाद भाजपा की इसी सोच की कायल हो गई हैं। जिस तरह का फैसला भाजपा ने पिछले राष्ट्रपति चुनाव में रामनाथ कोविंद का लेकर सबको चौंका दिया था। उससे ज्यादा आश्चर्य में इस बार द्रौपदी मुर्मू के नाम का चयन कर सभी राजनैतिक दलों को चारों खाने चित कर दिया है। इस निर्णय से देश के संपूर्ण जनजातीय समाज में उत्सव का माहौल है। अब इसे भाजपा-कांग्रेस में विभाजित नहीं किया जा सकता। यानि कि इस फैसले से भाजपा ने खुद को आदिवासियों का सबसे बड़ा हितैषी साबित करने की जंग जीत ली है।
समग्रता से देखा जाए तो भाजपा “पार्टी विद डिफरेंस” की अपनी छवि को तरासने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देती है। मध्यप्रदेश के नगरीय निकाय चुनाव भी इसका प्रमाण हैं। मेयर का टिकट किसी विधायक को न देने के फैसले पर अमल कर भाजपा ने “पार्टी विद डिफरेंस” की छवि को चमकाया है। तो पार्षद टिकट से नवाजे गए दागदार चेहरों को बाहर का रास्ता दिखाकर भाजपा ने जता दिया है कि परिवारवाद को धता बताने वाली पार्टी अब किसी भी तरह के समझौतों के लिए तैयार नहीं है।
"मुर्मू" के राष्ट्र की "प्रथम नागरिक" बनने के मायने ...
भारतीय जनता पार्टी और एनडीए की ओर से उड़ीसा की द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद के चुनाव में संयुक्त प्रत्याशी बनाए जाने पर भारतीय जनता पार्टी मध्यप्रदेश के समस्त जनजातीय जनप्रतिनिधि और पार्टी पदाधिकारी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा तथा केन्द्रीय नेतृत्व का आभार व्यक्त करेंगे। भाजपा का प्रदेश नेतृत्व मुख्यमंत्री शिवराज और प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा की नगरीय निकाय चुनावों में अब लाइन यही है कि यह भाजपा में ही होता है कि कोई सामान्य कार्यकर्ता भी महापौर से लेकर राष्ट्रपति तक बन सकता है। तो कार्यकर्ताओं में भरोसे की यह अलख जगाकर भाजपा केंद्र के इस फैसले के जरिए जन-जन के मन में कमल खिलाने के लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित कर रही है।

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देश की आधी आबादी यानि कि महिला जब विश्वास की स्थायी डोर से जुड़ जाए, तो फिर कौन है जो पार्टी को आइना दिखा सके। भले ही राष्ट्रपति चुनाव में मतदाता पहले से चुने जा चुके मुट्ठीभर जनप्रतिनिधि ही क्यों न हों, पर जनजाति और महिला के चयन के फैसले ने ‘सोने पे सोहागा’ का काम किया है। जनजातीय जनप्रतिनिधि तो पार्टी बंधन की नैतिक सीमा को खूंटी पर टांगकर द्रौपदी के गले में विजय का हार डालने का फैसला कर लें, तब भी कोई बड़ी बात नहीं।
आगामी चुनावों में आदिवासी मतों को लुभाने की बड़ी लकीर भी भाजपा ने खींच ही दी है। मोदी है तो मुमकिन है…का भाव एक बार फिर सबके मन में जाग जाए, भाजपा नेतृत्व हर राज्य में यही कोशिश करेगा। तो मुर्मू के टिकट से विरोधी पक्ष को हिट विकेट करने की एनडीए और भाजपा की रणनीति रंग ला चुकी है। यह फैसला हर मायने में पार्टी के लिए फायदेमंद और मास्टर स्ट्रोक साबित हो रहा है। मुर्मू का “प्रथम नागरिक” बनना भारत को दुनिया में अगली पंक्ति में स्थान दिलाएगा और अंतिम पंक्ति के व्यक्ति पर केंद्रित इस फैसले से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की सोच सौ फीसदी फलीभूत होती नजर आएगी।