नगर निगम भोपाल के चुनाव में चार विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा (BJP) के वार्ड प्रत्याशियों की स्थिति अनाथ जैसी है। इन्हें अपनी लड़ाई खुद लड़ना पड़ रही है। ये क्षेत्र हैं गोविंदपुरा, मध्य, दक्षिण-पश्चिम और उत्तर विधानसभा क्षेत्र। इनमें गोविंदपुरा से भाजपा की विधायक कृष्णा गौर हैें लेकिन क्षेत्र के 18 वार्डों में से 2-4 को छोड़ इनकी पसंद के प्रत्याशी नहीं हैं। कृष्णा की मर्जी के खिलाफ अधिकांश टिकट दिए गए हैं। लिहाजा वे रुचि नहीं ले रहीं। दक्षिण-पश्चिम में पूर्व विधायक उमाशंकर गुप्ता की पसंद से टिकट नहीं मिले तो वे प्रचार की खानापूर्ति कर रहे हैं। मध्य क्षेत्र के पूर्व विधायकों सुरेंद्रनाथ सिंह एवं ध्रुव नारायण सिंह को किनारे कर रखा गया है। लिहाजा वे चेहरा देखकर काम कर रहे हैं। उत्तर विधानसभा क्षेत्र में है ही कांग्रेस के आरिफ अकील का कब्जा। यहां का दारोमदार ले देकर पूर्व महापौर आलोक शर्मा के पास है लेकिन वे महापौर प्रत्याशी के लिए सक्रिय हैं। इस तरह चार विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा प्रत्याशियों के साथ भाजपा का कोई नेता नहीं है जबकि हुजूर और नरेला में क्रमश: रामेश्वर शर्मा और विश्वास सारंग की मर्जी से टिकट मिले हैं, इसलिए वे सभी प्रत्याशियों के साथ मेहनत कर रहे हैं। ऐसे हालात में नतीजे चौकाने वाले आ सकते हैं।
कमलनाथ का बयान सेल्फ गोल तो नहीं….
– कमलनाथ द्वारा जबलपुर में दिया गया एक बयान कांग्रेस के लिए ही सेल्फ गोल माना जा रहा है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कमलनाथ के इस बयान पर हमलावर हैं। मजेदार बात यह है कि एक तरफ कमलनाथ नगरीय निकाय चुनाव प्रचार के लिए प्रदेश के दौरे कर रहे हैं, पार्टी विधायकों से कहा गया है कि यदि उनके क्षेत्र में कांग्रेस हारी तो उनका टिकट खतरे में पड़ सकता है, सभी प्रमुख नेताओं को जवाबदारी सौंपी गई है और दूसरी तरफ वे यह भी कह बैठे कि निकाय चुनाव में उनका कोई इंट्रेस्ट नहीं।
मुख्यमंत्री चौहान ने इस बयान पर तंज कसते हुए कहा कि कमलनाथ जी यदि आपको स्थानीय चुनाव में इंट्रेस्ट नहीं है तो जबलपुर किस लिए आए थे? यह कोई समझ नहीं पा रहा कि कमलनाथ ने आखिर यह बयान दिया क्यों? क्या उन्हें नहीं मालूम की लोकतंत्र की बुनियाद और पाठशाला ये स्थानीय चुनाव ही होते हैं। इनके जरिए लोकतंत्र मजबूत होता है। इन चुनावों को विधानसभा चुनावों का सेमी फाइनल कहा जा रहा है। इतना ही नहीं, कमलनाथ प्रदेश कांग्रेस के मुखिया हैं। ऐसे में यह कहना कि उन्हें इन चुनावों में कोई इंट्रेस्ट नहीं है, निकाय चुनाव लड़ रहे कांग्रेस प्रत्याशियों का मनोबल ही गिराने वाला है।
भाजपा को आई अपने संगठन मंत्रियों की याद….
– नगरीय निकाय चुनाव में भाजपा के अंदर हुई बगावत ने नेतृत्व की नींद उड़ा रखी है। कांग्रेस की तुलना में भाजपा के ज्यादा बागी मैदान में हैं। हालांकि पार्टी ने ज्यादा बागियों पर कार्रवाई भी की है, बावजूद इसके बगावत ने कई जगह भाजपा के समीकरण बिगाड़ रखे हैं। ऐसे में भाजपा के संकट मोचक के रूप में सामने आए हैं, पुराने संगठन मंत्री। भाजपा के अंदर संगठन मंत्रियों की व्यवस्था खत्म कर दी गई थी।
खाली हुए कई संगठन मंत्रियों को निगम मंडलों में जगह देकर लाल बत्ती दे दी गई थी लेकिन संकट की इस घड़ी में पार्टी को फिर इनकी ही याद आई है। पहले टिकट वितरण में इनकी मदद ली गई और अब बागियों को काबू में करने के लिए इन्हें तैनात किया गया है। शैलेंद्र बरुआा ने छिंदवाड़ा में मोर्चा संभाल लिया है। इसी तरह केशव भदौरिया, जितेंद्र लटोरिया सहित अन्य को अलग-अलग शहरों की जवाबदारी दी गई है। दरअसल, प्रदेश संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा को इन संगठन मंत्रियों पर ज्यादा भरोसा है क्योंकि संगठन बागियों को संभाल नहीं पाया। कई जगह प्रचार अभियान भी अव्यवस्थित होने की शिकायतें हैं। नेतृत्व का मानना है कि संगठन मंत्रियों को जमीनी हकीकत पता है, इसलिए वे स्थिति संभाल सकते हैं।
कांग्रेस का मतलब सिर्फ कमलनाथ-दिग्विजय!….
– प्रदेश कांग्रेस में सर्व शक्तिमान पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ हैं या दिग्विजय सिंह के साथ मिल कर वे पार्टी चलाते हैं। इसे लेकर अटकलें थमती नहीं हैं। आमतौर पर लोग सारी शक्तियां कमलनाथ में ही देखते हैं, लेकिन प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा यह सिद्ध करने में लगे हैं कि कांग्रेस सिर्फ दो नेताओं कमलनाथ एवं दिग्विजय की है, पार्टी के अन्य किसी नेता की कोई हैसियत नहीं। नरोत्तम को यह सिद्ध करने का अवसर ये नेता ही देते हैं। जैसे, कांग्रेस ने महापौरों की सूची जारी की तो कहा गया कि इसमें दो नाम दिग्विजय के हैं, शेष नामों को कमलनाथ ने हरी झंडी दी है।
दिग्वजय ने इसका खंडन करते हुए कहा कि हम दोनों ने मिलकर ही सारे नाम तय किए हैं। नरोत्तम मोर्चे पर आए और बोले दिग्विजय के बयान से स्पष्ट है कि कांग्रेस सिर्फ दो नेता ही चलाते हैं, अन्य किसी की कोई हैसियत नहीं। दिग्विजय का एक और बयान आया। उन्होंने कहा कि जिन्हें टिकट मिला, वह कमलनाथ ने दिए और जिनके टिकट कटे, वे मैने कटवाए। नरोत्तम ने फिर कहा कि प्रदेश कांग्रेस सिर्फ दो नेता कमलनाथ-दिग्विजय चलाते हैं, अन्य किसी नेता की पूछपरख नहीं। क्या बड़े नेताओं को बयान देने में सावधानी नहीं बरतना चाहिए?
धर्मसंकट में शैलेंद्र, भाजपा हारी तो बड़ा संकट….
– सागर से भाजपा विधायक शैलेंद्र जैन धर्मसंकट में हैं। यदि महापौर के चुनाव में कांग्रेस जीत गई तो और बड़ा संकट। दरअसल, कांग्रेस ने इस बार बड़ा दांव चला है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने अपने पूर्व विधायक एवं शैलेंद्र के छोटे भाई सुनील जैन की पत्नी को सागर से महापौर का टिकट देकर मैदान में उतार दिया है। भाई की पत्नी मैदान में है तो धर्मसंकट स्वाभाविक है। खास बात यह है कि सागर से आई खबरों में सुनील जैन की पत्नी की स्थिति काफी मजबूत बताई जा रही है। यदि वे जीतने में सफल रहीं तो शैलेंद्र पर भाजपा की ओर से भितरघात के आरोप लगना तय हैं। इससे उनके राजनीतिक भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लग सकता है। इधर महापौर चुनाव के जरिए ढोलक बीड़ी परिवार के सुनील जैन की राजनीति में वापसी हो रही है। सुनील दिग्विजय सिंह शासनकाल में देवरी से कांग्रेस विधायक थे। इस परिवार में सेंध लगाते हुए भाजपा के वरिष्ठ नेता सुंदरलाल पटवा ने सुनील जैन के बड़े भाई शैलेंद्र जैन को भाजपा ज्वाइन करा दी थी। इसके बाद वे भाजपा के जिलाध्यक्ष बनाए गए और तीन बार से विधायक भी हैं। तब से ही सुनील जैन हाशिए पर चल रहे थे। महापौर का चुनाव उनकी किस्मत के दरवाजे खोल सकता है।