बस यही समझ लो कि कुछ कहते नहीं बन रहा। अमृत की बूंदों ने पूरे देश को भिगो दिया है। हां 21 जुलाई और सावन का महीना है। पवन शोर कर रही है। जियरा झूम रहा है। वन में मोर नाच रहे हैं। दुनिया की निगाहें भारत में सर्वोच्च संवैधानिक पद पर आसीन होने वाले चेहरे पर टिकी हैं। क्योंकि द्रौपदी मुर्मू देश की पंद्रहवीं राष्ट्रपति चुन ली गई हैं। उड़ीसा राज्य के मयूरभंज जिले में उपरवाड़ा की बेटी ने पूरे देश को गौरव से भर दिया है। तो वहीं पहाड़पुर गांव की बहू बनी इस बेटी की बात ही निराली है। श्याम से विवाह कर पहाड़पुर गई थी। दो बेटे और एक बेटी का जन्म हुआ। दोनों बेटों और पति ने असमय साथ छोड़ दिया। पर मुर्मू ने हार नहीं मानी। पहाड़पुर के घर को स्कूल बना दिया और दोनों बेटों और पति की स्टेच्यू यहां लगा दी। पुण्यतिथि पर यहां पहुंचकर फिर राष्ट्रसेवा का संकल्प और जहां तक पहुंची, उससे आगे कदम बढ़ा देती हैं।
25 साल के राजनैतिक सफर में देश की यह आदिवासी बेटी पार्षद से महामहिम के ताज तक पहुंच गई है।द्रौपदी मुर्मू ने साल 1997 में राइरंगपुर नगर पंचायत के पार्षद चुनाव में जीत दर्ज कर अपने राजनीतिक जीवन का आरंभ किया था। भाजपा के अनुसूचित जनजाति मोर्चा के उपाध्यक्ष के रूप में कार्य किया। भाजपा की आदिवासी मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सदस्य भी रहीं।ओडिशा के मयूरभंज जिले की रायरंगपुर सीट से 2000 और 2009 में भाजपा के टिकट पर दो बार जीती और विधायक बनीं। ओडिशा में नवीन पटनायक के बीजू जनता दल और भाजपा गठबंधन की सरकार में द्रौपदी मुर्मू को 2000 और 2004 के बीच वाणिज्य, परिवहन और बाद में मत्स्य और पशु संसाधन विभाग में मंत्री बनाया गया था। द्रौपदी मुर्मू मई 2015 में झारखंड की 9वीं राज्यपाल बनाई गई थीं। उन्होंने सैयद अहमद की जगह ली थी। झारखंड की पहली महिला राज्यपाल बनने का खिताब भी द्रौपदी मुर्मू के नाम रहा। साथ ही वह किसी भी भारतीय राज्य की राज्यपाल बनने वाली पहली आदिवासी भी हैं। द्रौपदी मुर्मू ने 24 जून 2022 को एनडीए की तरफ से राष्ट्रपति पद का अपना नामांकन किया, प्रधानमंत्री मोदी प्रस्तावक और राजनाथ सिंह अनुमोदक बने। और अब बड़ी जीत संग मुर्मू देश की पंद्रहवीं महामहिम बन गई हैं। 25 साल का राजनैतिक सफर नगर के पार्षद से देश के सर्वोच्च पद तक पहुंचने का साक्षी बन गया है।
संथाल बेटी को प्रकृति-पर्यावरण की खास चिंता है। संथाली बोली में कहें तो गाछ बचाओ, गाछ बांचले परिबेश बांचबे, परिबेश बांचले मानुख बांचबे यानि पेड़ बचाओ, पेड़ों को बचाने से पर्यावरण बचेगा और पर्यावरण बचने से मनुष्य बचेगा। मुर्मू के राष्ट्रपति बनने के बाद प्रकृति और पर्यावरण की बेहतरी के लिए विशेष प्रयास होंगे, यह नई आस जाग गई है। संथाली भाषा की यह पंक्तियां भी दिल को छू रही हैं।सेदाय मारे हापड़ाम को, दिसा कोम से मैरी हो,जानाम दिसाम रोफाय लागित् नालाय लेन को। सिदो कान्हू चान्द भायरो, नुयहार कोम से मैरी हो,जात ञुतुम दिसाम दो को दोहोवात् बोन। यानि अपने पुराने पूर्वजों को, प्रियतम याद करो,मातृभूमि की रक्षा के लिए उन्होंने अपने को न्योछावर कर दिया था। सिदू, कान्हू, चाँद और भायरो,प्रियतम !
इन सबों का स्मरण करो, वे लोग अपनी जाति के नाम से देश हमें छोड़ गए। अब इस देश की, मातृभूमि की गरिमा बनाए रखने की बड़ी जिम्मेदारी मुर्मू तुम्हें मिल गई है। अभी तक अलग-अलग पदों पर रहकर आपने देश को गौरवान्वित किया है। आज आपको यह देश गौरवान्वित होने का पूरा अवसर देकर हर्षित है। पंडित दीनदयाल के अंत्योदय का सपना साकार हुआ है। देश की आजादी के अमृतोत्सव में आदिवासी बेटी देश की पहली नागरिक बनकर यह साबित कर रही है कि इस देश के लोकतंत्र ने बहुत लंबी यात्रा तय कर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के अंतिम पंक्ति के व्यक्ति के कल्याण का सपना साकार कर दिया है। पद पर आसीन होने के छह माह बाद जब महामहिम गणतंत्र दिवस पर लाल किले की प्राचीर से ध्वजारोहण करेंगी, तब आसमान में खुशियों के सारे रंग भरे बिना नहीं रहेंगे। आंखों में खुशी की नमी होगी, तो ध्वज की तरफ सबकी निगाहें रहेंगीं। मन यही कह रहा है कि पहाड़पुर की बहू तुमने पूरे देश का मान बढ़ाया है। तुम्हारे बारे में और क्या-क्या कहूं…। अब पूरा देश तुम्हारे अंडर में है सुप्रीम कमांडर…।