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जनता का दिया टैक्स, देता कभी खुशी कभी गम
आम नागरिक अपनी गाढ़ी कमाई पर लगने वाला प्रत्येक कर सरकार को जमा करा देता है और खुश होता है क्योंकि वह जानता है इसी कर से सरकार देश चलाएगी। जितने भी जनहित और सुरक्षा के कार्य है उसमें उसका उपयोग होगा। टैक्स बढने पर भी जनता कुछ नहीं कहती है बल्की बढा हुआ टैक्स भी जमा कराती है। सरकारी कई योजनाएं विकास, सुरक्षा, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि कई जनहित कार्य इसी जमा कर राशी के माध्यम से होते है।
लेकिन आम आदमी को गम तब होता है कि जब उस जमा टैक्स राशि में से सरकार चुनाव दौरान जीतने के लिए मुफ्त में लोगों को बांटने का वादा करती है और जीतने पर बांटती भी है। क्या इस प्रकार मुफ्त में कर्ज माफी, उपहार, भूमि, खाद्य सामग्री वह अन्य कई चीजें बांटने से लोगों की जिंदगी संवर जाएगी या देश संवर जाएगा, परंतु ऐसा कुछ होता नही बल्कि राशि बांटने के लिए जिन को जिम्मेदारी और अधिकार दिए जाते है उनमें से कई स्वयं गबन कर लेते हैं और जिनको राशि मिल जाती है उनमें से कई कामकाज छोड़ फोकट में खाने के आदी हो जाते हैं जिन्हें हम मट्ठे कहते हैं।
मेहनत की कमाई से दिए हुए कर का सदुपयोग के बजाए सत्ता पाने के लिए फ्री में बांटना सभी करदाताओ के साथ अन्याय है। वक्त की मांग है कि सभी करदाता जमा संगठन बनाकर सरकार के सामने यह प्रस्ताव रखे की वह कोई भी राशि का उपयोग मुफ्त बटवारे में ना करें।
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अशोक मेहता
इंदौर (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्)