उफ! कांग्रेस के बुजुर्ग नेता की यह कैसी हरकत….
राजनीतिक दल कई बार बदनामी के ऐसे जाल में फंसते है कि सुनने वाले उफ् किए बिना नहीं रहते। इस बार इसकी शिकार हुई मप्र कांग्रेस और बदनामी का कारण बने एक बुजुर्ग नेता, जिनके पास संगठन की महत्वपूर्ण जवाबदारी है। ये महाशय उम्र के अंतिम पड़ाव में लूपलाइन में पड़े थे। चूंकि कमलनाथ के नजदीक रहे थे, इस कारण उनके प्रदेश अध्यक्ष बनते ही मुख्य धारा में आ गए। संगठन में नियुक्तियों को लेकर इन पर कई आरोप पहले भी लगे चुके थे, लेकिन इनकी ताजी हरकत ने पूरी कांग्रेस को शर्मशार कर रख दिया।
नेता जी पर आरोप है कि ये प्रदेश कार्यालय आने वाली महिलाओं से मजाक और छेड़खानी करते हैं। एक बार तो एक महिला नेत्री का हाथ ही पकड़ लिया। खबर कांग्रेस के एक पूर्व प्रदेश अध्यक्ष एवं पार्टी के वरिष्ठ नेता तक पहुंची। उन्होंने इस बुजुर्ग नेता की जमकर क्लास ले ली। उम्र का लिहाज करने की नसीहत देते हुए उन्होंने चेतावनी दी कि अब ऐसी कोई शिकायत नहीं मिलना चाहिए। दरअसल, जिस महिला नेत्री का हाथ पकड़ा गया था, वह इन वरिष्ठ नेता के बंगले शिकायत लेकर पहुंच गई थीं। यह मामला प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ तक पहुंच गया है। देखिए, कमलनाथ जी अपने इस खास नेता पर कोई कार्रवाई करते हैं या नहीं?
‘दुविधा में दोनों गए, माया मिली न राम’….
– भविष्य में कांग्रेस के वे लगभग एक दर्जन विधायक संकट में आ सकते हैं, जन्होंने राष्ट्रपति के चुनाव में पार्टी लाइन से अलग हटकर विपक्ष के प्रत्याशी यशवंत सिन्हा की बजाय एनडीए की द्रोपदी मुर्मू को वोट दिया था। इनके नाम उजागर नहीं हुए है फिर भी इन पर ‘दुविधा में दोनों गए, माया मिली न राम’ वाली कहावत चरितार्थ हो सकती है। ये पहला ऐसा चुनाव जिसमें कांग्रेस विधायकों ने क्रास वोटिंग कर दी लेकिन इन्हें भाजपा की ओर से न धन मिला और न ही भविष्य के लिए कोई आश्वासन।
आदिवासी प्रेम की वजह से इन्होंने अंतरात्मा की आवाज पर द्रोपदी मुर्मू के पक्ष में वोट कर दिया। कांग्रेस ने इसे गंभीरता से लिया है। क्रास वोटिंग करने वाले विधायकों को चिंहित कर लिया गया है और इनके नाम कांग्रेस हाईकमान तक पहुंचाए जा चुके हैं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने 2023 के चुनाव के लिए इनके क्षेत्रों में विकल्प की तलाश शुरू कर दी है। भाजपा ने चूंकि आश्वासन नहीं दिया इसलिए वह भी इन्हें टिकट देने से रही। अर्थात इन्हें ‘माया मिली न राम’। ऐसे हालात में संभव है कि क्रास वोटिंग करने वालों को न कांग्रेस का टिकट मिले और न ही भाजपा का। इन्हें गोंगपा, सपा, बसपा जैसे दलों की ओर ताकना पड़ सकता है। तब भी ये खाली हाथ रह सकते हैं।
नरोत्तम का कमाल, ऐसे बहा दी उल्टी गंगा….
– प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा कमाल के नेता हैं, यह बीच-बीच में वे साबित करते रहते हैं। हाल में उन्होंने कमाल की उलटी गंगा बहा दी। आम तौर पर साधु-संत राजनेताओं अथवा अपने शिष्यों के बीच समझौता कराने का काम करते रहे हैं, लेकिन नरोत्तम ने छत्तीस का आंकड़ा वाले दो चर्चित संतों को एक मंच पर लाकर समझौता करा दिया। हम बात कर रहे हैं चंबल-ग्वालियर अंचल के संत पंड़ोखर सरकार और बुंदेलखंड के बागेश्वर धाम के संत पंडित धीरेंद्र शास्त्री की। पंडोखर सरकार पहले से स्थापित हैं जबकि वर्तमान में धीरेंद्र शास्त्री लोकप्रियता के शिखर पर पहुंच रहे हैं।
पंडोखर सरकार ने हाल ही में धीरेंद्र शास्त्री की जम कर आलोचना की थी। खुद के परिवार से भी धीरेंद्र शास्त्री को चुनौती मिल रही थी। लेकिन नरोत्तम मिश्रा ने वो कर दिखाया जो सबके बस की बात नहीं। दतिया में धीरेंद्र शास्त्री और पंडोखर सरकार को एक मंच पर बुलाकर समझौता करा दिया। दोनों संत गले मिले और एक दूसरे का सम्मान किया। नरोत्तम ऐसे नेता हैं जो कांग्रेस पर हमला करने का कोई अवसर नहीं छोड़ते। बावजूद इसके कांग्रेस के वरिष्ठ नेता डा. गोविंद सिंह ने कहा था कि सत्तापक्ष के विपक्ष के साथ कैसे संबंध हों, यह नरोत्तम मिश्रा से सीखना चाहिए।
कमलनाथ ने तय की अपनी विदाई की तारीख….
– प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद से ही कमलनाथ मध्य प्रदेश की पूरी कांग्रेस के एक मात्र शक्ति केंद्र हैं। पहले वे प्रदेश अध्यक्ष रहे और सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री भी बन गए लेकिन प्रदेश अध्यक्ष का पद नहीं छोड़ा। नतीजा, ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसा बड़ा नेता कांग्रेस छोड़ गया और कांग्रेस की सरकार चली गई। इसके बाद नाथ प्रदेश अध्यक्ष के साथ नेता प्रतिपक्ष भी बन गए। उनकी इच्छा दोनों पदों पर बने रहने की थी लेकिन दबाव में उन्होंने नेता प्रतिपक्ष का पद छोड़ दिया। अब कमलनाथ का यह कहना किसी के गले नहीं उतर रहा कि वे ‘2023 में प्रदेश की राजनीति छोड़कर केंद्र में चले जाएंगे’।
उन्होंने यह भी कहा कि उनसे केंद्र की राजनीति में आने के लिए कहा जा रहा है लेकिन वे 2023 के पहले मप्र नहीं छोड़ेंगे। कमलनाथ ने मप्र से अपनी विदाई की तारीख क्यों घोषित की, इसके मायने निकाले जा रहे हैं। एक तर्क यह कि 2023 के विधानसभा चुनाव के बाद यदि कांग्रेस सत्ता में न लौटी, तब उनका केंद्र में जाना तय है। लेकिन यदि कांग्रेस ने सत्ता में वापसी कर ली तो क्या तब भी कमलनाथ अपने वचन पर कायम रह पाएंगे, इसे लेकर दुविधा है। कमलनाथ के वचन को रणनीति का हिस्सा भी माना जा रहा है क्योंकि ऐसा कह कर चुनाव से पहले नेताओं को एकजुट किया जा सकता है।
भाजपा के तेज तर्राट नेताओं की खामोशी के मायने….
– इसे राजनीति के बदलते मिजाज का नतीजा माने, सत्ता समीकरणों में परिवर्तन या किश्मत का खेल, भाजपा में कई तेजतर्राट नेता खामोश हैं। इनमें पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा, पूर्व मंत्री जयभान सिंह पवैया, पूर्व मंत्री अनूप मिश्रा, राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय एवं पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती आदि को शामिल किया जा सकता है। ये सभी नेता अपनी दबंग छवि के लिए जाने जाते रहे हैं। प्रभात झा प्रदेश के दौरों और ज्योतिरादित्य सिंधिया पर हमले को लेकर चर्चित रहते थे। अब उनकी आवाज सुनाई नहीं पड़ती। पवैया महल विरोधी नेताओं के अगुवा रहे हैं।
सिंधिया के भाजपा में आने के बाद से वे चुप हैं। अटलजी के भान्जे अनूप मिश्रा संभावना वाले नेता थे। उनके काम की स्टाइल का हर कोई प्रशंसक था, अब घर बैठे हैं। आक्रामक छवि कैलाश विजयवर्गीय की पहचान रही है लेकिन पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों के बाद उनकी वह धमक नहीं रही। पश्चिम बंगाल का प्रभार भी उनसे ले लिया गया है। अब विजयवर्गीय बिना काम के हैं। उमा भारती को फायरब्रांड और तेज तर्रार नेत्री कहा जाता है। एलान के बावजूद वे न शराबबंदी करा पाईं और न ही रायसेन के सोमश्वर महादेव मंदिर का ताला खुलवा सकीं। अब निराशा के भंवर में हैं। सभी का राजनीतिक भविष्य भाग्य के भरोसे है।