Flashback: खंडवा की पहली पोस्टिंग और एसपी की आत्महत्या!

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19 दिसंबर, 1975 को भोर से पहले तीन बजे मैं, IPS प्रोबेशनर खंडवा स्टेशन पर उतरा। मुझे लेने के लिए सर्किल इंस्पेक्टर (CI) आर एन चौबे और थानेदार सिटी कोतवाली आर के शुक्ला आए थे। आश्चर्यजनक रूप से खंडवा के प्रतिष्ठित नागरिक एवं वहाँ के तीनों सिनेमा हाल के मालिक भद्दा सेठ ( त्रियुग नारायण त्रिवेदी) भी मुझे लेने आए थे। स्टेशन के बाहर पुलिस का डग्गा (मीडियम गाड़ी) लेने लिए आया था ( जिले की एक जीप SP साहब के पास और दूसरी SDOP बुरहानपुर के पास थी)। भद्दा सेठ जी के बहुत आग्रह पर मैं उनकी फ़िएट कार में बैठ गया। मेरा ट्रंक और होलडाल पुलिस गाड़ी में रख दिया गया। रात के अंधेरे में मैं सर्किट हाउस पहुँचा।मुख्य बिल्डिंग से हटकर बनी 2 छोटे कमरों की हट में मेरे रहने की व्यवस्था की गई थी।भद्दा सेठ ने मुझे बताया कि उनकी बहू मेरी अमेरिका वाली मामी के परिवार से हैं।उन्होंने कहा कि पुलिस अधीक्षक उनके घनिष्ठ मित्र हैं और सुबह वो मुझे उनके घर पर मिलवाने ले चलेंगे। मैंने बड़ी कठिनाई से इसे अस्वीकार कर दिया।

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सुबह 10 बजे मैं वर्दी पहन कर कमरे के बाहर निकला। सर्किट हाउस हल्की ऊँची पहाड़ी पर बना था। चारों ओर की प्रकृति जाड़े में ही भूरी दिख रही थी। अरुणाचल प्रदेश और लखनऊ की ठंड के बाद यहाँ गर्मी लग रही थी।मैं पैदल SP ऑफ़िस चल पड़ा जो केवल दो फर्लांग की दूरी पर दिख रहा था। SP ऑफिस पहुंचकर मैं DSP सरदार हरनाम सिंह के कक्ष में बैठ गया और उनसे कुछ बातचीत की। पुलिस अधीक्षक श्री श्रीनाथ तिवारी के आगमन के बाद जब उन्होंने मुझे बुलाया तो मैंने जाकर उन्हें सेल्यूट किया। उन्होंने मुझे बैठा कर मेरे संबंध में जानकारी प्राप्त की। मेरे उत्तर प्रदेश के रहने वाले होने के कारण वे थोड़ा प्रसन्न दिखें; वे स्वयं प्रतापगढ़ के थे। उसके बाद वे अपने काम में लग गए।लंच में मैं DSP द्वारा बताये गये 2 किमी दूर स्टेशन पर स्थित रेस्टोरेंट में भोजन के लिए पैदल गया और कुछ दिनों तक वहीं लंच होता था।
खंडवा में सभी कार्यालय एक स्थान पर बने हुए थे।


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अगले दिन मैंने डिस्ट्रिक्ट जज श्री बी एन श्रीवास्तव और कलेक्टर श्री अशोक विजयवर्गीय से जाकर सौजन्य भेंट की। उन्होंने अच्छा मार्गदर्शन दिया। मैं प्रतिदिन SP साहब के समक्ष एक दो घंटे बैठता था और फिर अपनी ट्रेनिंग पर निकलता था। DSP सिंह साहब से पुलिस की अनेक व्यवहारिक बातों को मैंने सीखा।कुछ दिन बाद SP साहब मुझे कलेक्टर साहब के कक्ष में ले गए और उनसे कहा कि आप इन्हें कोई घर मेरे बंगले के सामने अभी आवंटित कर दें। उन्होंने जी टाइप क्वार्टर मुझे दे दिया।इसमें 3 छोटे कमरे तथा छोटा बरामदा और आंगन था। ड्रॉइंगरूम में पुलिस लाइन की चार लोहे की कुर्सियाँ और बेडरूम में लोहे का पलंग डाल दिया। तीसरा कमरा बॉक्स रूम बन गया। खाना घर पर दीनानाथ बनाने लगे। SP साहब का आदेश था कि वे कहीं भी शासकीय, सामाजिक अथवा निजी काम से जाते हैं तो मैं सदैव उनके साथ रहूँ। यह उनके ट्रेनिंग देने का तरीक़ा था। वे कहीं भी जाते तो पहले उनकी जीप मेरे घर आकर मुझे ले जाती और फिर बंगले से वे स्वयं जीप चलाते और रास्ते में मुझसे बातचीत करते रहते थे। मेरी मौसी की बेटी के विवाह में मुझे एक दिन पहले उन्होंने छुट्टी पर नहीं जाने दिया। 26 जनवरी की परेड कमाण्ड करने के बाद ही यात्रियों से भरी बस मेरे घर के सामने आयी और मुझे लेकर भोपाल रवाना हुई जहाँ उसी रात को विवाह था।


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कार्यालय में प्रत्येक बाबू ( क्लर्क) की टेबल पर बैठकर उनका कार्य सीखा। एकाउंटेंट शुक्ला बाबू सबसे कुशाग्र थे और उन्होंने मेरे वेतन का एक रजिस्टर बनाया जो अगले 37 वर्ष तक काम आया। पंधाना क्षेत्र में एक आदिवासी युवक की हत्या के प्रकरण में CI चौबे जी के साथ मुझे भेजा गया। CI साहब और मैं तीन दिन तक वहाँ रुके जब तक हत्या का पता नहीं चल गया। हत्या उसकी पत्नी ने की थी। SP साहब के पास खंडवा के विधायक श्री गंगा चरण मिश्र आते रहते थे।वे आपातकाल में मीसाबंदियों की पैरोल की अनुशंसा करते रहते थे। इससे मुझे इमरजेंसी की ज़्यादतियों का पता चला। पूरे ज़िले में राजनीतिक गतिविधियां बंद थी।

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SP साहब बहुत प्रभावशाली व्यक्तित्व के थे और ज़िले के सभी कार्यक्रमों की धुरी हुआ करते थे। वे अच्छे वक्ता भी थे। ऋण मुक्ति कार्यक्रम में कलेक्टर, SP और मैं ज़िले के अनेकों स्थानों पर जाते थे। ऋण मुक्ति आदि के कार्यक्रमों के साथ दाल वाफले का कार्यक्रम भी होता था। हरसूद में विधायक श्री शकरगाय ने तो बहुत ही भव्य आयोजन किया था। SP साहब खंडवा रोटरी क्लब के अध्यक्ष भी थे। एक बार रोटरी की डिस्ट्रिक्ट कांफ्रेंस में मुझे औरंगाबाद ( अब संभाजी नगर) अपने साथ ले गए। वहाँ पर मेरा ध्यान रखने के लिए उन्होंने एक उत्साही नवयुवक तनवंत सिंह कीर को नियुक्त किया जो कालांतर में वरिष्ठ मंत्री बने।एक बार SP साहब सपरिवार मेरी थाना ट्रेनिंग के समय मान्धाता आए और जीप में बैठे-बैठे ही उन्होंने मुझसे तुरंत जीप में बैठ कर खरगोन चलने के लिए कहा। मैंने कहा कि आप लोग दो मिनट चाय पी लें और मैं अपना सामान ले लेता हूँ। उन्होंने कहा सामान की कोई ज़रूरत नहीं है। खरगोन सर्किट हाउस में पहुँचते ही उन्होंने अपना एक कुर्ता और लुंगी मेरे कमरे में भिजवा दी। वे मुझे पारिवारिक सदस्य मानने लगे थे।

खंडवा में मैं नियमित रूप से रात्रि में IAS प्रोबेशनर श्री ख़ुशीराम जी के घर पर जाता था। रात्रि भोजन वहीं करता था जो बहुत ही साधारण होता था। हम दोनों लोग अपनी ट्रेनिंग और अन्य विषयों की घंटों चर्चा किया करते थे। दो तीन बार हम लोग साथ-साथ ट्रेन से बुरहानपुर भी गए जहाँ हम दोनों से एक वर्ष सीनियर श्री सुकोमल चन्द्र वर्धन SDM और नगरपालिका प्रशासक थे। हम लोग उन्हीं के घर पर रूकते थे तथा उनके क्षेत्र में उनके साथ घूमते रहते थे।एक बार संयोगवश SP साहब और कलेक्टर साहब दोनों एक साथ छुट्टी चले गए। श्री सुकोमल चन्द्र वर्धन को कलेक्टर खंडवा का प्रभार मिल गया। इसका लाभ उठाकर हम लोगों ने पुनासा के पास सिंचाई विभाग के नर्मदा गैस्टहाउस में रात्रि विश्राम की योजना बनायी। श्री वर्धन, ख़ुशी राम और मैं सिंचाई विभाग के एक्सिक्यूटिव इंजीनियर श्री अग्रवाल के साथ रवाना हुए। मेरे मना करने पर भी श्री वर्धन बहुत तेज़ जीप चला रहे थे। एक ऊँट जैसी पुलिया के ऊपर पहुँच कर सामने नीचे बिलकुल पास पत्थर की मुंडेर से ख़तरनाक तरीक़े से सड़क बंद कर दी गई थी और डायवर्सन दिया गया था। तेज़ ब्रेक लगाने से जीप उलट गई। सौभाग्यवश किसी को विशेष चोट नहीं आयी। सूचना मिलने पर अन्य लोगों के अतिरिक्त PWD इंजीनियर श्री अंसारी घटना स्थल पर आए और उन्होंने क्षमा याचना की। हम लोगों को वापस लौटना पड़ा।

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मानव जीवन की यात्रा अत्यंत विस्मयकारी और अकल्पनीय है। 3 जनवरी, 1977 की रात को SP साहब के बंगले में वे, कलेक्टर साहब और मैं गपशप कर रहे थे। अगले दिन SP साहब को कुछ दिनों के लिए बाहर जाना था। हम लोग इमरजेंसी और संजय गांधी के बारे में चर्चा कर रहे थे। SP साहब ठहाके भी लगा रहे थे। बंगले से निकलते समय गेट पर उन्होंने अचानक थोड़ा गंभीर होकर मुझसे कहा कि वे मेरे विवाह में नहीं चल पाएंग। मैंने कहा उसमें अभी 12 दिन हैं तब तक आप वापस आ जाएँगे। उन्होंने कहा नहीं, मैं नहीं चल पाऊँगा । उसी रात की सुबह चार बजे SP साहब के बंगले से उनका एक रिश्तेदार दौड़ते हुआ आया और बोला कि SP साहब ने अपने को गोली मार ली है। मैं किंकर्तव्यविमूढ़ सा हो गया। बंगले पर जा कर उनके परिवार को सांत्वना दी। बहुत हंसमुख और दमदार व्यक्तित्व के SP साहब को डिप्रेसिव साइकोसिस की मानसिक बीमारी हो गई थी जिसमें आत्महत्या की भावना प्रबल हो जाती है। इसका आभास मुझे नहीं था। उनके परिवार से 45 वर्ष बाद आज भी मेरा संपर्क है।

विवाह के उपरांत पहले मैं अपनी अम्मा और के साथ खंडवा आ गया। उसके कुछ दिनों के बाद लक्ष्मी भी आ गई। SP साहब की मृत्यु के तीन माह पश्चात मेरा अटैचमेंट इंदौर हो गया। श्री श्रीनाथ तिवारी और खंडवा की स्मृति आज भी ज्यों की त्यों मेरे मानस पटल के समक्ष है।