सिसौदिया की पीड़ा के मायने तलाशने होंगे…

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मध्यप्रदेश सरकार के पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री महेंद्र सिंह सिसौदिया जिस तरह प्रदेश के मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैस के खिलाफ खुलकर मुखर हुए हैं, यह कोई साधारण संकेत नहीं है। वैसे भले ही मध्यप्रदेश में प्रशासनिक दबदबे का “इकबाल युग” जाने को है, पर तब भी मंत्री का संयम न रख पाना यह बता रहा है कि जख्म लंबे समय से है और भर भी नहीं पा रहे हैं। वैसे चोट तो दूसरे मंत्रियों के दिलों में भी गहरी है, लेकिन अंतर बस इतना है कि वह चोट खाकर चुप हैं और सिसौदिया ने शौर्य और पराक्रम का मार्ग चुनकर सीधी चुनौती दे दी है। शिवपुरी एसपी के बहाने ही सही सिसौदिया ने पूरी जिम्मेदारी से यह बात भी रखी है कि जो व्यक्ति भाजपा संगठन के हितों को दरकिनार करे, उसे वह कतई बर्दाश्त नहीं कर सकते।

तो संकेत यह भी साफ है कि जो सिंधिया सड़क पर उतरकर कांग्रेस को सड़क पर ला सकते हैं, उनके मंत्रियों की यह दशा बर्दाश्त के काबिल नहीं है। फिर मामला चाहे बुआ-भतीजे का हो लेकिन भतीजे ने न तो अपने और अपनों के हितों के साथ पहले समझौता किया है और न ही स्वाभिमान के साथ समझौता करने का रंग अब भी चढ़ पाया है, यह बताने की कोशिश है। बात पार्टी अनुशासन की है, तो उसी दायरे में रहकर ही सही बात रखने में समझौता नहीं होगा। वैसे सिंधिया के नाम पर सिसौदिया की बात बड़े ही संतुलित तरीके से सामने आई है। सांप भी मर गया और लाठी भी साबुत है। पर इससे कई खाटी भाजपाई मंत्रियों के कलेजे में ठंडक पहुंच गई है। हालांकि इससे इकबाल की सेहत पर कोई फर्क पड़ेगा, यह सोच बेकार है। फिर भी सिसौदिया ने पानी का एक छींटा तो छिड़क ही दिया, ताकि गहरी नींद में थोड़ा खलल तो पड़ ही जाए।

मामला यह है कि पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री महेन्द्र सिंह सिसौदिया के एक पत्र ने मुख्य सचिव के बर्ताव को सामने रखने की कोशिश की है। दरअसल शिवपुरी जिले के एसपी राजेश सिंह चंदेल ने कानून-व्यवस्था का हवाला देते हुए जिले के अंदर कुछ पुलिसकर्मियों के तबादले किए हैं। इस जिले के प्रभारी हैं सिंधिया के बेहद खास पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री महेन्द्र सिंह सिसौदिया। तबादले की बात सिसौदिया को बेहद नागवार गुजरी तो उन्होंने एक चिट्‌ठी शिवपुरी जिले के कलेक्टर को लिख दी। इसमें उन्होंने लिखा है कि पुलिस अधीक्षक शिवपुरी ने बिना मेरे अनुमोदन के थाना प्रभारियों के तबादले कर दिए हैं। यह उनकी मनमर्जी को उजागर करने वाला काम है।

मंत्री जी ने कलेक्टर को निर्देश दिए हैं कि पुलिस अधीक्षक के खिलाफ कार्रवाई कर मेरे कार्यालय को सूचित करें। कहानी इससे आगे शुरू होती है कि मंत्री जी ने इस पत्र की प्रतिलिपि सिर्फ दो लोगों ज्योतिरादित्य सिंधिया के निज सचिव और अपर मुख्य सचिव गृह मंत्रालय भोपाल को दी है। आईपीएस अधिकारियों के तबादले मुख्यमंत्री के अुनमोदन से होते हैं। लेकिन मंत्री सिसौदिया ने इस मामले में न तो मुख्यमंत्री को प्रतिलिपि भेजी है और न प्रदेश के गृह मंत्री को। और इस मामले में सिसौदिया ने प्रदेश के मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस को भी सूचना देना तक उचित नहीं समझा है। और मुख्य वजह भी यही है कि वह मुख्य सचिव से नाराज बताए जा रहे हैं। उन्होंने सार्वजनिक तौर पर यह स्वीकार कर मुख्य सचिव की कार्यशैली पर सीधा सवालिया निशान यह बचाव करते हुए लगा दिया है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जैसा नेतृत्व मिल पाना मुश्किल है।

वैसे सरकार को राहत इस बात की है कि 2023 आने से एक माह पहले ही इकबाल सिंह का कार्यकाल पूरा हो रहा है। चूंकि चुनावी बेला में पर्याप्त समय है, इसलिए एक्सटेंशन जैसा कोई मामला भी नहीं बनता। तो मंत्रियों को सांत्वना की यह घुट्टी तो पिलाई ही जा सकती है कि थोडे़ समय की बात है तो थोड़ा धैर्य और रखो, सब ठीक हो जाएगा। वहीं मंत्रियों का मान रखने के लिए मुख्य सचिव को भी समझाइश दी जा सकती है। वहीं अगला मुख्य सचिव का चेहरा थोड़ा लचीला लाया जा सकता है जो चुनावी साल में समन्वय के साथ अपनी और पार्टी संगठन संग सरकार की नैया पार लगाने की काबिलियत रखता हो। हालांकि यह बात सही है कि सिसौदिया की पीड़ा के मायने तलाशने होंगे, क्योंकि चुनावी साल में सरकार के मंत्रियों की सकारात्मक भूमिका और संतुष्टि जरूरी है। इससे ही आगे का रास्ता सुगम होना है।