देश में उत्तेजक वातावरण के लिए जिम्मेदार कौन ? क्या भड़काऊ बयानबाजी और हिंसा में शामिल तत्वों को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का प्रत्यक्ष – अप्रत्यक्ष समर्थन मिल रहा है ? क्या भाजपा के सभी नेता संघ नेतृत्व के निर्देशों – सलाह को मानते हैं ? संघ और सरकार में पर्याप्त समन्वय – समझबूझ है ? सांप्रदायिक इन प्रश्नों के उत्तर पाने के लिए संघ प्रमुख मोहन भागवत , प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के हाल के कुछ वक्तव्यों और प्रयासों पर ध्यान देने की आवश्यकता है | सबसे आश्चर्य की बात यह है कि उनके इन प्रयासों की कांग्रेस या ओवेसी की पार्टी के अलावा वर्षों से संघ भाजपा समर्थक रहे कट्टर हिंदूवादी तत्व भी आलोचना कर रहे हैं | संवाद और सामाजिक सद्भाव , अन्य धार्मिक संगठनों , समुदाय के लोगों के सहयोग के बिना क्या राष्ट्र को सशक्त और आत्म निर्भर बनाया जा सकता है ? क्या हजार साल में हुई गड़बड़ी या हिंसा का बदला वर्तमान पीढ़ी से लिया जाना उचित है ? हर उपासना स्थल की नींव खोदकर अपनी मूर्ति खोजने का प्रयास सही है ? हिटलर के अत्याचारों का बदला क्या जर्मनी के आज के समाज से लिया जा रहा है ? क्या ब्रिटिश राज के जुल्मों के लिए वर्तमान ब्रिटिश शासकों या ब्रिटिश नागरिक हो चुके भारतीय मूल के लोगों से लेना संभव है ?
भारत ही नहीं दुनिया के किसी भी देश में कट्टर उग्रवादी तत्वों और उनकी गतिविधियों से बर्बादी के रास्ते खुलते हैं | किस युद्ध के अंत में संधि और शांति पर बात नहीं होती ? हिंसा और आग को किस सीमा तक जारी रखा जा सकता है | सत्ता के लिए यदि जनता की भावनाओं का सहयोग मिला है , तो क्या सत्ताधारी पद की गरिमा , कर्तव्य और भविष्य के हितों की रक्षा न करें ?
पहली बात संघ प्रमुख के विचारों की | वर्तमान सरसंघचालक मोहन भागवत ने हाल के महीनों में स्पष्ट शब्दों में कहा है कि ‘ भारत में जन्मे हर व्यक्ति को अपना , भारतीय और हिन्दू माना जा सकता है | उसकी उपासना पद्धति कुछ भी हो सकती है | ” मतलब हिंदू धर्म संस्कृति की रक्षा और संवर्धन के साथ उन्हें इस्लाम , ईसाई , बौद्ध आदि किसी धर्म और उसकी उपासना के तरीकों के प्रति भी संघ का सम्मान है और वे सभी भारतीय समाज के अभिन्न अंग है | ऐसा भी नहीं कि यह बात नरेंद्र मोदी की सरकार आने के बाद संघ प्रमुख ने कही है | उनसे पहले रहे सरसंघचालक प्रोफेसर राजेंद्र सिंह और सी सुदर्शन ने मुझे वर्षों पहले दिए इंटरव्यूज में भी कही और मैंने प्रकाशित की हैं | फिर कुछ दिन पहले श्री भागवत ने कहा कि ‘ हर मस्जिद में अपने भगवान की मूर्ति ढूंढना अनुचित है | इस तरह की मांगों से तो अराजकता पैदा हो जाएगी | ‘ और इस सप्ताह दिल्ली के एक कार्यक्रम में अधिक स्पष्ट किया कि ‘ अयोध्या का भव्य मंदिर बन ही रहा है | काशी और मथुरा के प्राचीन मंदिरों स्थलों के लिए सम्पूर्ण हिन्दू समाज की भावना जुडी हुई है और महाभारत – रामायण को कल्पना या सामान्य कथा नहीं उस समय के तथ्यात्मक इतिहास के रुप में माना जाना चाहिए | इन धार्मिक स्थलों के लिए सबूत आदि नहीं मांगें जाने चाहिए | ” इस तरह उन्होंने सार्वजनिक रुप से कह दिया कि अयोध्या , काशी , मथुरा के धार्मिक स्थलों के अलावा संघ या उससे जुड़े संगठनों और लोगों को किसी अन्य स्थान पर दावे का प्रयास नहीं करना है | यही नहीं उन्होंने दिल्ली में मुस्लिम समुदाय के विभिन्न क्षेत्रों के बुद्धिजीवियों , भारत में महत्वपूर्ण पदों पर रहे अधिकारियों से मिलकर समाज में शांति और सद्भावना के प्रयासों पर विचार विमर्श किया |इनमें दिल्ली के उप राज्यपाल रहे नजीब जंग और पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी भी शामिल हैं | नजीब जंग से 2019 में भी उनकी बातचीत हुई थी | जंग और उनके साथी समाज में तनाव रोकने , हिन्दू मुस्लिम समुदाय के बीच शांति सद्भावना के प्रयासों के लिए सक्रिय हैं | इस बार भी विशेष रुप से गौ रक्षा , मंदिर मस्जिद मुद्दों पर दोनों पक्षों में निरंतर संवाद , उत्तेजक बातों पर नियंत्रण जैसे मुद्दों पर चर्चा हुई | भागवतजी ने उन्हें यह भी स्पष्ट किया कि संघ हिन्दू शब्द को व्यापक रुप में मानता है और देश में इस्लाम की उपासना पद्धति , मस्जिद के प्रति आस्था रखने वालों को भारतीय मुसलमान कहने में उसे कोई आपत्ति नहीं है | बाद में संघ प्रमुख न केवल मदरसे और मस्जिद में भी गए और मान्यता प्राप्त इमाम इलियासी तथा मदरसों के छात्रों से बातचीत की | इस तरह के शांति सद्भावना के प्रयासों और वक्तव्यों का स्वागत करने के साथ उनके क्रियान्वयन की कोशिश सभी पक्षों से होनी चाहिए | कष्टकारक बात यह है कि दोनों वर्ग के कुछ कट्टरपंथी इस तरह की पहल की भी आलोचना कर रहे हैं |
दूसरी बात संगठन की | इसमें कोई शक नहीं कि हाल के वर्षों में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और उससे जुड़े संगठनों का विस्तार होने के साथ शक्ति बड़ी है | संसाधनों के साथ आधुनिकीकरण और उदारता का असर दिख रहा है | संघ के विचारों से प्रभावित लोगों के सत्ता में आने से आत्म विश्वास बढ़ा है | अनुशासन और सादगी के सारे आदर्शों के बावुजूद संगठन से जुड़े कुछ लोग दुरुपयोग और मनमानी भी करने लगे हैं | स्वार्थी तत्व मंदिर , गाय , गंगा यमुना के नाम पर अनुचित लाभ उठाने के लिए सक्रिय हो गए हैं | तो पहले संघ में रहकर अब नए नए नामों से संस्थाएं बनाकर हिन्दू धर्म – समाज के ठेकेदार बनकर अनर्गल बयानबाजी और हिंसा पैदा करने वाली गतिविधियां करने लगे हैं | उन पर नियंत्रण के लिए संघ ही नहीं सरकारों और प्रशासन को समय रहते कार्रवाई करनी चाहिए | इसी दृष्टि से संघ से एक हद तक जुडी मानी जाने वाली भारतीय जनता पार्टी .को भी अधिक सतर्क और संयम से काम लेना होगा | कुछ सांसद , विधायक या स्थानीय नेता ही नहीं मंत्री भी उत्तेजक बातें कर देते हैं | इससे संघ नेतृत्व और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के सारे प्रयास और सकारात्मक कार्य धूमिल हो जाते हैं |
रही बात सरकार की | इस तथ्य से कोई इंकार नहीं करता कि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी , उनके वरिष्ठ सहयोगी मंत्री संघ के विचारों , आदर्शों और संस्कारों से आए हैं | इसलिए उन्हें अलग से संघ के निर्देशों की आवश्यकता नहीं है | हाँ , अपने सिद्धांतों , वायदों , संकल्पों को पूरा करने के लिए परस्पर सहयोग जरुरी है | प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी निरंतर इस बात पर जोर देते हैं कि सरकार के सभी कार्यक्रम सम्पूर्ण भारतीय समाज और हर वर्ग के लिए है | मतलब केवल हिन्दू ही नहीं सिख , मुस्लिम , ईसाई , बौद्ध इत्यादि भी समान रुप से सरकारी योजनाओं – सुविधाओं के लाभ पा सकते और पा भी रहे हैं | भारत में साम्प्रदायिक भेदभाव और हिंसा की आधी अधूरी या गलत सूचनाएं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहुँचने से देश की छवि ख़राब होती है | वैसे भी विश्व राजनीति में भारत की भूमिका और चुनौतियां बढ़ी हैं | कुछ राज्यों में अति विश्वास वाले नेता गड़बड़ियों को रोकने के लिए मनमाने कदमों और बुलडोजर फॉर्मूले से समस्याओं का निदान करने की कोशिश कर वास्तव में मोदी सरकार और संघ के सकारात्मक अच्छे कामों को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं | इसलिए संगठन और सरकार को निरंतर निगरानी , आत्म समीक्षा और आवश्यक नियंत्रण के कदम अवश्य उठाने होंगे |
( लेखक आई टी वी नेटवर्क इंडिया न्यूज़ और दैनिक आज समाज के सम्पादकीय निदेशक हैं )
आलोक मेहता
आलोक मेहता एक भारतीय पत्रकार, टीवी प्रसारक और लेखक हैं। 2009 में, उन्हें भारत सरकार से पद्म श्री का नागरिक सम्मान मिला। मेहताजी के काम ने हमेशा सामाजिक कल्याण के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है।
7 सितम्बर 1952 को मध्यप्रदेश के उज्जैन में जन्में आलोक मेहता का पत्रकारिता में सक्रिय रहने का यह पांचवां दशक है। नई दूनिया, हिंदुस्तान समाचार, साप्ताहिक हिंदुस्तान, दिनमान में राजनितिक संवाददाता के रूप में कार्य करने के बाद वौइस् ऑफ़ जर्मनी, कोलोन में रहे। भारत लौटकर नवभारत टाइम्स, , दैनिक भास्कर, दैनिक हिंदुस्तान, आउटलुक साप्ताहिक व नै दुनिया में संपादक रहे ।
भारत सरकार के राष्ट्रीय एकता परिषद् के सदस्य, एडिटर गिल्ड ऑफ़ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष व महासचिव, रेडियो तथा टीवी चैनलों पर नियमित कार्यक्रमों का प्रसारण किया। लगभग 40 देशों की यात्रायें, अनेक प्रधानमंत्रियों, राष्ट्राध्यक्षों व नेताओं से भेंटवार्ताएं की ।
प्रमुख पुस्तकों में"Naman Narmada- Obeisance to Narmada [2], Social Reforms In India , कलम के सेनापति [3], "पत्रकारिता की लक्ष्मण रेखा" (2000), [4] Indian Journalism Keeping it clean [5], सफर सुहाना दुनिया का [6], चिड़िया फिर नहीं चहकी (कहानी संग्रह), Bird did not Sing Yet Again (छोटी कहानियों का संग्रह), भारत के राष्ट्रपति (राजेंद्र प्रसाद से प्रतिभा पाटिल तक), नामी चेहरे यादगार मुलाकातें ( Interviews of Prominent personalities), तब और अब, [7] स्मृतियाँ ही स्मृतियाँ (TRAVELOGUES OF INDIA AND EUROPE), [8]चरित्र और चेहरे, आस्था का आँगन, सिंहासन का न्याय, आधुनिक भारत : परम्परा और भविष्य इनकी बहुचर्चित पुस्तकें हैं | उनके पुरस्कारों में पदम श्री, विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार, गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार, पत्रकारिता भूषण पुरस्कार, हल्दीघाटी सम्मान, राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार, राष्ट्रीय तुलसी पुरस्कार, इंदिरा प्रियदर्शनी पुरस्कार आदि शामिल हैं ।