शिव के आशीर्वाद से ‘शिवराज’ का डंका बजा!
प्रधानमंत्री की यात्रा के बाद ‘मीडियावाला’ के संपादक हेमंत पाल की त्वरित टिप्पणी
आज की शाम कई मायनों में बहुत यादगार कही जा सकती है। खासकर मध्य प्रदेश, उज्जैन और प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह के लिए। उज्जैन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों ‘श्री महाकाल लोक’ के लोकार्पण ने भक्ति और आध्यात्म के अभूतपूर्व संगम के साथ प्रदेश की राजनीति को भी नया स्वरुप दिया। इस भव्य आयोजन ने कुछ बना दिया, कुछ बदल दिया और बहुत कुछ बदलने को मजबूर कर दिया। इसे महाकाल ज्योतिर्लिंग का चमत्कार कहा जाए या शिवराजसिंह चौहान की मेहनत और समर्पण का परिणाम कि उज्जैन जैसी धार्मिक नगरी नए रूप में निखर आई! दो हेक्टेयर का महाकाल परिसर 20 हेक्टेयर का बना दिया गया और अगले चरण में ये 47 हेक्टेयर का विशाल परिसर बन जाएगा। ‘श्री महाकाल लोक’ का सिर्फ भौतिक रूप ही नहीं निखरा, इसके साथ शिवराज सिंह की राजनीतिक ताकत भी बढ़कर चौगुनी हो गई!
प्रधानमंत्री ने अपने भाषण की शुरुआत में कहा कि जब महाकाल का आशीर्वाद मिलता है, तो काल की रेखाएं मिट जाती हैं, समय की सीमाएं मिट जाती हैं और अंत से अनंत की यात्रा आरंभ हो जाती है। इसे राजनीतिक संदर्भों में देखा और समझा जाए तो महाकाल की सबसे ज्यादा कृपा शिवराज सिंह पर ही होगी। क्योंकि, उन्होंने इस पावन नगरी को कई मायनों में बदल दिया। सबसे बड़ी बात यह भी कि इस अवसर पर भाजपा की सबसे बड़े ताकतवर नेता की मौजूदगी ने प्रदेश के मुखिया का कद बढ़ा दिया।
अपने भाषण में नरेंद्र मोदी ने कहा कि ‘श्री महाकाल लोक’ की यह भव्यता भी समय की सीमा से परे है। ये आने वाली कई पीढ़ियों को आलौकिक दिव्यता के दर्शन कराएगी। भारत की अध्यात्मिक और सांस्कृतिक चेतना को ऊर्जा देगी। मैं इस अद्भुत अवसर पर राजाधिराज महाकाल के चरणों में शत-शत नमन करता हूं। मैं आप सभी को देश-दुनिया में महाकाल के सभी भक्तों को ह्दय से बहुत-बहुत बधाई देता हूं। विशेष रूप से भाई शिवराज सिंह चौहान और उनकी सरकार का मैं ह्दय से अभिनंदन करता हूं। वे लगातार इतने समर्पण से इस सेवा यज्ञ में लगे हुए हैं।
‘श्री महाकाल लोक’ का निर्माण सिर्फ एक मंदिर परिसर का विस्तार नहीं, उससे बहुत ज्यादा कुछ है। अभी तक उज्जैन को धार्मिक नगरी की मान्यता मिली थी। महाकाल मंदिर में सालभर लाखों दर्शक आते हैं। हर 12 साल सिंहस्थ होता है। लेकिन, फिर भी ये शहर सुप्त माना जाता रहा है, जहां कोई काम धंधा पनप नहीं पाता! यहां कि अर्थव्यवस्था इंदौर के कारण बढ़ नहीं पाती है। लेकिन, अनुमान है कि ‘श्री महाकाल लोक’ बनने के बाद यहाँ यहां के लोगों के जीवन स्तर में अंतर आएगा। शहर का सालाना 300 करोड़ का कारोबार बढ़कर दोगुना हो जाएगा! क्योंकि, यहां बाहर से आने वाले जो श्रद्धालु महाकाल का दर्शन करके लौट जाते थे, वे अब 3 से 4 दिन उज्जैन में रहेंगे! सिर्फ उज्जैन शहर ही नहीं, मालवा अंचल का पर्यटन और धार्मिक यात्राओं की संख्या बढ़ेगी, जिससे आर्थिक गतिविधियों में वृद्धि का लाभ पूरे इलाके को मिलेगा।
ये तो हुई उज्जैन की आर्थिक उन्नति के भविष्य की बात। लेकिन, उससे ज्यादा अहम है मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के ‘श्री महाकाल लोक’ के प्रति समर्पण की बात! उन्होंने ‘श्री महाकाल लोक’ के लोकार्पण से पहले कहा था कि ऐसा लग रहा है, जैसे मेरा जीवन सार्थक हो गया। 2016 में जो महाकाल परिसर की जो कल्पना की थी, वो साकार हुई। उन्होंने कहा था कि मैंने ऐसी शिव सृष्टि की कल्पना की थी, जिसमें महाकाल के दर्शन के बाद भक्तों को भगवान शिव की लीलाएं भी देखने को मिले। 2017 में इस विचार पर चर्चा की गई। इसके बाद 2018 में कैबिनेट ने इस महाकाल प्रकल्प को स्वीकृति दी। लेकिन, इस प्रकल्प के बारे में जो सोचा गया था, उससे कहीं बहुत उत्तम, अद्भुत और अकल्पनीय काम हुआ, जो हमारी सांस्कृतिक अभ्युदय को दिशा देगा। प्रधानमंत्री के नेतृत्व में भारत में सांस्कृतिक पुनरुत्थान का काम हो रहा है। पहले बाबा केदारनाथ धाम का पुनर्निर्माण हुआ, फिर काशी विश्वनाथ कॉरिडोर बना और अब महाकाल महाराज के परिसर में श्री महाकाल लोक की अद्भुत रचना हुई।
धर्म और आध्यात्म्य से परे हटकर इस आयोजन की भव्यता को देखा जाए तो इसने बरसों के लिए उज्जैन को यादगार बना दिया। इसकी आयोजना के लिए सिर्फ मुख्यमंत्री और उनके प्रशासन की पीठ थपथपाई जाना चाहिए। इतने भव्य कार्यक्रम में कहीं न कहीं कोई न कोई खामी रहना स्वाभाविक है, पर आज का ये कार्यक्रम इस सबसे अछूता रहा! योजना, क्रियान्वयन और व्यवस्था की दृष्टि से सभी कुछ सही हुआ। इसे महाकाल की कृपा ही कहा जाना चाहिए कि मौसम विभाग की चेतावनी और अनुमान के बावजूद इंद्र देवता की कृपा रही और बारिश नहीं हुई। सारे किंतु, परंतु को देखते हुए कहा जा सकता है, कि जो लोग मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को लम्बे समय से राजनीतिक रूप से अस्थिर समझ रहे थे, उन्होंने भी आज चुप्पी साध ली होगी। साथ ही जो खुद को विकल्प जान रहे थे, वे भी लाइन तोड़कर खड़े हो गए होंगे! क्योंकि, जब महाकाल का आशीर्वाद मिलता है, तो काल की रेखाएं मिट जाती हैं!
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