सावधान ! दूसरे को वाहन देने से पहले 100 बार सोचें

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सावधान ! दूसरे को वाहन देने से पहले 100 बार सोचें

क्या आप भी ऐसा करते है ?अगर आप भी अपने वाहन चाहे वह कार हो या स्कूटर इत्यादि अपने परिचित ,मित्र ,रिश्तेदार को  मदद की दृष्टी से देते रहते है ,यह एक सामाजिक भाव और इंसानियत का तकाजा कहा जा सकता है , अत्यंत आवश्यक स्थिति को देखते हुए ऐसाकरना  भी चाहिए ,लेकिन कई बार बिना आवश्यकता जाने भी वाहन दे देते है तो सावधान हो जाइए ,कभी आप परेशानी में भी आ सकते है ,इसलिए वाहन देते हुए कुछ् बातों पर पहले  विचार करें ,जानकारी ले और जागरक रहें .मदद जरुर कीजिये पर अपनी सावधानी के साथ .

हम अपना वाहन उसी जरूरतमंद को मांगे जाने पर देते हैं जो हमारा परिचित, दोस्त, रिश्तेदार होता है.

यह सोचकर कि चलो उसका काम चल जाएगा. अक्सर  जब हमें जरूरत होती है तो हम भी किसी दूसरे का वाहन मांग कर अपना काम निकालने की सोचते हैं. ऐसा करते-धरते हम इस सबके आगे पीछे मौजूद परिवहन कानूनों को जाने-अनजाने नजर अंदाज कर जाते हैं, जो वाहन मांगने वाले और अपना वाहन दूसरे को देने वाले, यानी दोनों के ही लिए घातक साबित हो सकता है.

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लिहाजा जान लीजिए कि अपना वाहन किसी को देने और किसी का वाहन मांगकर चलाना किस हद तक परेशानी का कारन  बन सकता है. अगर आप अपने नाम पंजीकृत वाहन अपनी ही किसी नाबालिग संतान को चलाने के लिए देते हैं, तो पकड़े जाने पर आपकी जेब पर भारी जुर्माना तो होगा ही. वैसे कानून तो जेल भेजने तक का है. मगर जेल तभी होगी जब आपसे मांगकर वाहन चलाते वक्त आपकी नाबालिग संतान या फिर कोई और किसी गंभीर सड़क हादसे को अंजाम दे डाले.

25 हजार रुपये तक हो सकता है जुर्माना

नाबालिग द्वारा वाहन चलाए जाने के वक्त वाहन से दुर्घटना के बाद वाहन चलाने  वाले को तीन साल की जेल का भी कानून है. साथ ही ऐसे मामलों में वाहन स्वामी के ऊपर अर्थदंड भी डाला जाता है. यह जुर्माना 25 हजार रुपये तक हो सकता है जबकि जेल 3 साल के लिए जाने की नौबत आ सकती है. इतना ही नहीं नाबालिग द्वारा आपका वाहन चलाते हुए उसके पकड़े जाने पर, उसे 25 साल की उम्र तक हिंदुस्तान के किसी भी परिवहन कार्यालय द्वारा ड्राइविंग लाइसेंस जारी न किए जाने का भी कानून है. साथ ही ऐसे मामलों में संबंधित विभाग द्वारा (परिवहन विभाग या फिर ट्रैफिक पुलिस) भेजे गए चालान की जुर्माना राशि 15 दिन के भीतर जमा कराया जाना भी अनिवार्य है.

16 साल से कम उम्र के बच्चों के हाथों में न सौंपे गाड़ी की चाबी

नियमानुसार निर्धारित समयावधि (15 दिन के भीतर) में अगर कोई दोषी वाहन चालक जुर्माने की राशि जमा नहीं कर सका तो उसे और भी ज्यादा लेने के देने पड़ सकते हैं. तब ऐसे विषम हालातों में यह मामला कोर्ट में चला जाएगा. फिर कोर्ट जैसा कहेगा वैसा लापरवाह वाहन स्वामी को मानना पड़ेगा.

कोर्ट इस जुर्माने राशि को कम भी कर सकता है और बढ़ा भी सकता है. नियम तो यह है कि 16 साल से कम उम्र के बच्चों के हाथों में वाहन की चाबी ही न सौंपें. चाहे वो आपकी संतान ही क्यों न हो क्योंकि कानून संतान और परिचित की नजर से नहीं उम्र के हिसाब से बना हुआ है.

गियर वाले वाहन चला सकते हैं इस उम्र के बच्चे

हां, यहां यह बताना जरूरी है कि, 16 से 18 साल तक के बच्चे (नाबालिग) बिना गियर वाले वाहन चला सकते हैं. इन तमाम तथ्यों को लेकर टीवी9 भारतवर्ष ने बात की दिल्ली ट्रैफिक पुलिस के रिटायर्ड एसीपी ट्रैफिक हनुमान सिंह से. उन्होंने कहा, “देश में ट्रैफिक नियम तो बहुत सख्त हैं.

अगर उन पर ईमानदारी से अमल कर लिया जाए तो देश में 27 से 30 फीसदी सड़क हादसों में कमी आ सकती है. हो मगर इसके एकदम विपरीत रहा है. माता-पिता अपनी जवान होती संतान के प्रेमपाश में अंधे होकर, उन्हें जल्दी से जल्दी ड्राइवर बना डालने की हसरत रखते हैं. यही अंधी हसरत मां-बाप और बच्चों के लिए कभी कभी ऐसी मुसीबत बन जाती है. जो तमाम उम्र याद रहती है. सबक तब मिलता है जब गलती हो चुकी होती है.

लोगों में कानून की जानकरी नहीं

एक लाइन में कहूं तो लोगों को कानून न तो पता है, न ही आज लोग ट्रैफिक कानून जानने के इच्छुक हैं. अधिकांश लोग बस यह करते देखे गए हैं कि उनका बच्चा किसी तरह से वाहन चलाने लगे. तो माता-पिता की जिम्मेदारी कम हो जाएगी. होता मगर अक्सर इसके एकदम उलट है.” दिल्ली पुलिस के रिटायर्ड सहायक पुलिस आयुक्त हनुमान सिंह आगे बोले, “नियम तो इसके लिए भी सख्त हैं कि किसी के नाम पंजीकृत वाहन अगर किसी गैर-पंजीकृत इंसान के पास से बरामद हो तो, ट्रैफिक पुलिस उस वाहन को सीज कर सकती है. इसके बाद उसका फैसला अदालत में ही होता है.

ताकि जिस वाहन स्वामी के नाम पर वाहन पंजीकृत हो, उसे हमेशा हमेशा के लिए सबक मिल सके. हालांकि, अब आजकल भागमभाग वाली जिंदगी में हो सब कुछ उल्टा पुल्टा ही रहा है.

कुछ मामलों में मां बाप ही बच्चों को वाहन चलाते देखने की तमन्ना में घर बैठे मुसीबत में फंस जाते हैं. जबकि कई मामलों में जिद्दी बच्चे माता-पिता को कोर्ट कचहरी थाने चौकी के चक्कर में डाल देते हैं. और सडक पर ट्रैफिक रूल तोड़ने के आरोप में पकड़े जाने पर, सब एक दूसरे का मुंह ताकते हैं. अपनी खुद की गलती न मानते हुए सब एक-दूसरे पर जिम्मेदारी का ठीकरा फोड़ते हैं.”

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